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टिकट कट गए

 

पहली रात

मैं हिमाचल प्रदेश में मैक्लोडगंज के पास धर्मकोट में हूँ। सब अपने-अपने कमरों में हैं। सबसे मेरा मतलब है निर्देशक, फोटोग्राफर, निर्माता और मैं यानी कला निर्देशक। हम लोग यहाँ सप्ताह भर के लिए फिल्म रेकी पर आए हुए हैं यानी फिल्म से जुड़ी बातों की टोह में। वैसे तो मैं भी अपने कमरे में ही हूँ, लेकिन मुझे नींद नहीं आ रही है। मैंने गरम कपड़े पहन रखे हैं, अपने घुटनों को मोड़कर छाती से सटाकर दो कम्बल ओढ़कर लेटी हुई हूँ, लेकिन फिर भी मुझे हाड़ कँपाने वाली ठंड महसूस हो रही है। हमने यह घर एयरबीएनबी (AIRBNB) के माध्यम से लिया था, हमारे पास चार कमरे हैं। लेकिन हमारे पास यहाँ बुनियादी सुविधाएँ ही हैं। निजी तौर पर मुझे ऐसी रातों से चिढ़ है, जब नींद न आ रही हो और बीते दिनों की यादें दिमाग पर हावी होने लगें। मैंने अपने पति राघव को व्हाट्सऐप पर मैसेज किया, लेकिन वह सोया हुआ है। रात के 2.30 बज चुके हैं। मुंबई की एक जानी-मानी विज्ञापन एजेंसी में रगड़ कर काम करने के बाद वह और क्या करेगा? कल सुबह-सुबह उसकी कुछ ज़रूरी मीटिंग होने वाली है। इस तरह की रातों में बीते दिनों के बारे में सोचने की मेरी बुरी आदत है। जो हुआ, जो नहीं हुआ, और जो हो सकता था। मुझे हमेशा से पढ़ने की आदत रही है, ख़ासकर प्रेम कहानियाँ। जिसके कारण मुझे बहुत कम उम्र से ही ऐसा लगता था कि किसी इंसान को किसी एक से ही प्यार हो सकता है। लेकिन जैसे-जैसे मैं बड़ी होती गई मुझे यह बात समझ में आने लगी कि प्यार एक से अधिक इंसान से भी हो सकता है। मुझे दो लोगों से हुआ। पहले ने मुझे बर्बाद कर दिया, जबकि दूसरे ने मुझे बनाया-सँवारा।

उसका नाम क्षय है – जिसने मुझे बर्बाद कर डाला। मैं बहुत से लोगों को जानती हूँ लेकिन क्षय की तरह किसी को भी नहीं। जब वह मेरे साथ था, तब मैं उसकी आँखों में यह पढ़ सकती थी कि वह कहीं और नहीं जा सकता। लेकिन हम जैसे ही जुदा हुए, मैं जान गई कि वह मुझसे संपर्क करने की कोशिश कभी नहीं करेगा। हमेशा मैंने ही हर चीज़ की शुरुआत की। मुझे गुस्सा तो आता था। इसके कारण मेरा आत्म-सम्मान गिर गया। लेकिन तब भी मैं निभाती रही। पाँच साल तक निभाती रही। उसके बाद मैंने उससे कह दिया कि अब मुझे उससे प्यार नहीं। लेकिन ऐसी रातों में मुझे समझ में आता है कि नहीं यह झूठ है। उससे मेरा दिल भरा नहीं है। शायद उसकी मौजूदगी से मैं मुक्त हो गई हूँ। लेकिन उसके न होने से हो गई हूँ क्या? जब आप किसी के होने न होने को लेकर बहुत अधिक चौकन्ने हो जाते हैं, तो क्या वह भी एक तरह की मौजूदगी नहीं है? इस बात की समझ डराने वाली थी। एक दिन जब मैं राघव के साथ थी, तब इस बात की तरफ़ मेरा ध्यान गया। और मुझे तब भी अकेलापन महसूस हुआ। सबसे बुरे किस्म का अकेलापन वह होता है जब आप अपने प्रेमी के साथ हों और आपको उसकी गर्मजोशी महसूस नहीं हो रही हो। इससे मुझे यह समझ में आ गया कि अब तक मैं अपने आपको झूठी दिलासा देती आ रही थी। मैंने उस रिश्ते से निकल जाने के लिए बहुत से झूठ ओढ़े थे।

जिस दिन मैं क्षय से मिली थी, मुझे वह दिन आज भी याद है। वह मुलाक़ात इतनी इत्तफाक़न थी कि मैंने कभी यह सोचा भी नहीं कि उस मुलाक़ात में कुछ ख़ास बात छिपी थी। हम एक कैफे में थे। मुझे एक दोस्त से मुलाक़ात करनी थी। मैं काफी देर से उसका इंतज़ार कर रही थी और फिर मैं वाशरूम चली गई। और जब मैं बाहर निकली तो मैंने क्या देखा? मैं अपनी टेबल पर जो कैपुचिनो छोड़ कर गई थी कोई और उसको पी चुका था। वह मेरी तरफ पीठ किए खड़ा था। मुझको बड़ा अजीब लगा। मैं उसके पास गई और बोली कि यह मेरी कॉफी थी। वह उसी समय माफी माँगने लगा। उसको ऐसा लगा कि यह उसकी कॉफी थी, क्योंकि वह भी बाथरूम गया हुआ था। उसने मेरे लिए एक और कॉफी खरीदने की पेशकश की। मैंने उससे कहा कि वह परवाह न करे और ऐसे जताने लगी मानो जैसे मेरे लिए यह कोई बात हो ही नहीं। वैसे वह अपनी बात पर अड़ा हुआ था। तब तक मेरी दोस्त आ चुकी थी। मैं उसके साथ किसी और कैफे में चली गई। उस रात क़रीब बारह बजे किसी ने दरवाज़े की घंटी बजाई। जब मैंने दरवाज़ा खोला तो पाया कि वहाँ गर्मागर्म कॉफी का प्याला रखा था और एक नोट चिपका हुआ था, जिसमें लिखा था : ‘माफ़ करना, मैंने तुम्हारा पीछा किया। लेकिन मुझे ग्लानि से निकलना था। यह रही तुम्हारी कॉफी। मैं कसम खाकर कहता हूँ कि अब फिर कभी तुम्हारा पीछा नहीं करूँगा। लेकिन अगर तुम चाहो तो तुम कर सकती हो।’

एक स्माइली के साथ फोन नम्बर लिखा हुआ था। मैं मुस्कुराए बिना नहीं रह सकी। एक अजनबी आदमी पूरी शाम केवल इसलिए मेरा पीछा करता रहा, ताकि मुझे सॉरी बोल सके? काफी रोमांटिक लग रहा था, लेकिन कुछ चिंता की बात भी थी। मैंने नोट और कॉफी दोनों ले लिए। मेरी आँखों के सामने उसका चेहरा कौंध गया। एक अजनबी आदमी से वह ऐसे आदमी में बदलने लगा, जो मुझे अच्छा लग रहा था। ईमानदारी से कहूँ तो मेरा मन हुआ कि उसको उसी समय फोन पर पिंग करूँ, लेकिन मैंने इंतजार करने का फैसला किया। दो दिन बाद मैंने उसको स्माइली के साथ एक मैसेज किया:

‘हाय, अगर आपकी शर्मिंदगी का दौर बीत गया हो तो आप मुझे मैसेज कर सकते हैं। यह वही कॉफी वाली लड़की है।’

कोई जवाब नहीं आया। मुझे ऐसा लगा कि शायद मैंने बहुत अधिक उम्मीद पाल ली थी। करीब एक महीने बाद जब मैं उसके बारे में भूल चुकी थी, तब उसका मैसेज आया:

‘मेरी शर्मिंदगी की अंतिम मंजिल कॉफी वाली लड़की है। मैं उसको कहाँ ढूँढ सकता हूँ? कोई सूत्र मिल सकता है?’

मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या कहूँ? यह क्षय था। उसको किसी तरह की उम्मीद के खाते में नहीं डाला जा सकता।

मैंने काँपते हुए करवट बदली। मेरी नज़र बिस्तर की दूसरी तरफ के आईने पर पड़ी। मैं मुस्कुरा रही हूँ। उसके बारे में सोचकर मैं अभी भी मुस्कुरा उठती हूँ। मेरी मुस्कान मुझे अपने हाल के बारे में कितना कुछ बता देती है, जबकि मैंने उसको पिछले चार साल से नहीं देखा है। मैंने उस मुस्कराहट में अधिक कुछ पढ़ने का साहस नहीं किया। मैंने अपनी आँखें बंद की और सोचने लगी कि अब वह कैसा दिखता होगा। उसके बाद मुझे ख़याल आया – ‘अगर वह आए और मेरे दरवाज़े को खटखटाने लगे तो?’ और कुछ मिनट बाद सच में कोई मेरे दरवाज़े को खटखटा रहा था। मेरे दिल में धक से रह गया। शायद मैं यह कल्पना कर रही हूँ। लेकिन दरवाज़े पर खटखटाहट की आवाज़ फिर से सुनाई दी। मेरी त्योरियाँ चढ़ गईं और मैं बिस्तर से उठ गई। मेरा दिल तेजी से धड़क रहा है। मैं दरवाज़ा खोलती हूँ। एक दाढ़ीवाला आदमी है, जिसके बाल कंधे तक हैं; उसने काले कार्बन फ्रेम का चश्मा पहन रखा है। और उसकी आँखें सम्मोहक हैं। यह क्षय है!

दूसरी रात

मैं उसको घूरने लगती हूँ और वह मुझे। क्या यह सच है या मेरी कल्पना का फितूर?

‘मुझे ऐसा लग रहा था जैसे कोई मेरा पीछा कर रहा है। मुझे नहीं पता था कि यह तुम हो!’ क्षय कहता है।

‘अरे, नहीं!’ मैं अंततः इस बात को समझते हुए कहती हूँ कि जो हो रहा था वह सच है।

‘तुमको कैसे पता चला कि मैं यहाँ हूँ?’ मैं पूछती हूँ।

‘मुझे पता नहीं था। मुझे एक सिगरेट चाहिए था। यहाँ के मालिक ने कहा कि उसके पास तो नहीं है, लेकिन तुम लोगों में से किसी के पास शायद हो। इसलिए . . .’

जाहिर है, यह पूछना मेरे लिए बड़ी बेवक़ूफ़ाना बात थी। उसको कैसे पता हुआ कि मैं यहाँ हूँ, मैंने यह सोचते हुए जवाब दिया, ‘मेरे पास सिगरेट नहीं है।’

‘मुझे पता है। तुमने कभी सिगरेट नहीं पी।’

उसने इतने निर्णायक ढंग से यह बात कही कि मैं चिढ़ गई। उसने जो कहा वह सच था, लेकिन किसी को किसी के बारे में इतने आत्मविश्वास से कुछ नहीं कहना चाहिए।

‘नहीं। मैं पीती हूँ। लेकिन इस समय मेरे पास एक भी सिगरेट नहीं है,’ मैंने उससे इसलिए झूठ बोला, ताकि उसको यह पता चल सके कि वह मेरे बारे में जितना जानता है, उससे अधिक बातें मेरे बारे में जानने के लिए हैं।

‘आह!’ उसने अपनी भौंहें चढ़ाते हुए कहा।

‘मेरे सहकर्मियों के पास हो शायद’, यह कहते हुए मैं अपने कमरे से बाहर निकलती हूँ। बाहर गलियारे में जमाकर रख देने वाली ठंड है। क्षय वहीं का वहीं खड़ा रहता है। मैं अपने निर्देशक के कमरे के सामने जाकर द्वार खटखटाती हूँ। उसके दरवाज़ा खोलने पर मैं उससे सिगरेट माँगती हूँ। वह ख़ुशी-ख़ुशी मुझे कुछ सिगरेट दे देता है। वह साथ देने की पेशकश करता है, लेकिन मैं उसको मना कर देती हूँ। पीछे मुड़ने पर मैं देखती हूँ कि क्षय मेरे कमरे में झाँक रहा है। क्या वह यह देखना चाह रहा है कि मैं किसके साथ हूँ? मैं मन-ही-मन सोचती हूँ।

‘क्या हुआ?’ मैं पूछती हूँ।

‘कुछ नहीं,’ वह कहता है और मेरे हाथ से सिगरेट ले लेता है। उसके पास लाइटर है। ‘तुम यह जानना चाहते हो कि क्या मैं यहाँ अकेली हूँ।’ मैं होशियार दिखने की कोशिश करते हुए कहती हूँ। वह चौकन्ना होकर मुझे देखते हुए सिगरेट जलाता है। उसके इस तरह देखने से मुझे नफरत है। इससे मैं असहज हो जाती हूँ। ऐसा पहले भी हो चुका है।

‘शुक्रिया,’ कहते हुए वह वहाँ से चल देता है। मैं उसको बुलाना चाहती हूँ। लेकिन बुला नहीं पाती। क्षय ऐसा ही है। जब आप इसके लिए तैयार नहीं हों, तो वह आपसे मिलता है और जब आप पूरी तरह से तैयार हो गए हों तो चल देता है।

मुझे ठीक से नींद नहीं आई। अगले दिन मैं अपनी टीम के साथ शूटिंग के लिए किसी अच्छी लोकेशन की तलाश में निकल गई। रक्कर गाँव में हमने एक घर को पसंद किया। उसके बारे में यही कहा जा सकता है कि वह बहुत सुंदर है। इस बीच, राघव और मैंने एक दूसरे को कुछ फोन किए, लेकिन नेटवर्क आ-जा रहा था; इसलिए लम्बी बात नहीं हो पाई। मैं उससे कहना चाहती हूँ कि मेरी मुलाक़ात क्षय से हुई, लेकिन मैंने कहा नहीं। उसको पता है कि क्षय मेरा पूर्व प्रेमी है। जब मैंने राघव को क्षय के बारे में बताया था, तो मैंने कहानी का काफी हिस्सा संशोधित कर दिया था। जब भी कोई किसी को अपने अतीत के बारे में बताता है, तो बताने वाला चाहे जितनी भी ईमानदारी बरतने की कोशिश करे कहानी कभी उस रूप में सामने नहीं आती है, जिस रूप में घटित हुई होती है। जब हम कुछ बताना शुरू करते हैं, तो कुछ-न-कुछ अलग हो ही जाता है या कुछ न कुछ छूट ही जाता है। मैंने उसको कल रात की मुलाक़ात के बारे में नहीं बताया, क्योंकि मुझे नहीं लगा कि यह बात इतनी महत्वपूर्ण है कि इसके बारे में राघव को बताया जाए। अगर उस मुलाक़ात के बारे में राघव को बताती तो उसको ऐसा लगता जैसे मेरे लिए इस बात का कोई मतलब है। जब अपने जीवनसाथी के सामने कुछ स्वीकार करने की बात आती है, तो बताने से पहले अच्छी तरह से मन-ही-मन यह सोच लेना चाहिए कि सुनकर उसकी प्रतिक्रिया क्या हो सकती है?

हम लोगों को मैकलोडगंज के एक तिब्बती रेस्तराँ में खाना खाना है, हम लोग रेस्तराँ के पास मोनास्ट्री को देखते हैं और शाम को अपने घर लौट आते हैं। निर्माता और निर्देशक तय करते हैं कि उनको घूमने जाना है, जबकि कैमरामैन कमरे में ही रहने के बारे में सोचते हैं। मुझे उम्मीद थी कि डिनर के समय क्षय से मुलाक़ात हो जाएगी, लेकिन वह वहाँ था नहीं। मैं अपने कमरे में लौटी और मैंने गरम पानी से स्नान किया, कम्बल में घुस गई और राघव को फोन लगाती हूँ। उसके बाद मैं फोन पर फ़िल्म देखने में लग जाती हूँ। सच बात बताऊँ तो मुझे सही में यह उम्मीद थी कि मेरा सामना क्षय से हो जाएगा। मैंने यह सोचा था कि सुबह के नाश्ते के समय मुझे वह नीचे मिल जाएगा या जब हम शहर में शूटिंग के लिए जगह की तलाश में गए थे, तब भी मुझे उम्मीद थी कि उससे मुलाक़ात हो जाएगी। मुझे ऐसा महसूस हुआ कि वह आसपास ही है, लेकिन मैंने उसको देखा नहीं। मुझे अपने कमरे के बाहर क़दमों की आहट सुनाई देती है। कहीं क्षय तो नहीं। उसको आसपास के किसी कमरे में ही होना चाहिए। मेरा मन हुआ कि दरवाज़ा खोलकर देख लूँ। अगर वह हुआ तो मैं यह कह ही सकती हूँ कि मैं बाहर टहलना चाहती थी। मैं बिस्तर से उठने के बारे में सोच ही रही थी कि मुझे अपने दरवाज़े पर दस्तक सुनाई देती है। ठीक उसी तरह से जिस तरह पिछली रात हुआ था। मेरे लिए फ़ैसला करने के लिए यह काफी है। बिस्तर से उठकर मैं दरवाज़ा खोल देती हूँ। क्षय है।

‘क्या फिर से सिगरेट चाहिए?’ मैं व्यंग्य में पूछती हूँ।

‘मेरे पास सिगरेट है’, वह कहता है।

‘फिर तुमको क्या चाहिए?’

‘तुम’, वह मुस्कुराते हुए जवाब देता है।

‘तुमको मेरी जरूरत क्यों है?’ मैं पूछती हूँ। ऐसा नहीं है कि मैं बाहर जाना नहीं चाहती हूँ। लेकिन मैं इतनी आसानी से नरम पड़ जाना नहीं चाहती।

‘क्या मेरे साथ सिगरेट पीने आ सकती हो?’ वह पूछता है। वह एक बार और बनावटी हँसी हँसता है। इससे पहले कि मैं कमजोर पड़ जाऊँ, मैं दूसरी तरफ देखने की कोशिश करती हूँ।

तीसरी रात

मैं क्षय के पीछे-पीछे बाहर आती हूँ। मुझे पता है कि मैंने अपना फोन कमरे में ही छोड़ दिया है, लेकिन अब इस समय मुझे कौन फोन करेगा? हम घर से निकलकर एक छोटे से खुले स्थान में आते हैं। हम लोहे की रेलिंग से लगकर खड़े हैं, नीचे पहाड़ी रास्ता दिखाई दे रहा है और दूर बर्फ से ढकी पहाड़ी चोटियाँ। बाहर कुहासा है और ठीक से कुछ दिखाई नहीं दे रहा है। क्षय नीचे बैठकर सिगरेट सुलगा लेता है। वह एक सिगरेट मेरी तरफ भी बढ़ा देता है। क्या मुझे उसको यह बता देना चाहिए कि मैंने झूठ बोला था? मैं सोचती हूँ, लेकिन सिगरेट ले लेती हूँ। वह सिगरेट जलाने में मेरी मदद करता है और फिर अपनी सिगरेट सुलगा लेता है। वह एक कश लेता है, मैं भी कश लेती हूँ। यह पहली बार नहीं है कि मैं सिगरेट पी रही हूँ कि कश लेकर खाँसने लगूँ और अपने आपको बुद्धूँ साबित कर लूँ।

‘तो तुम यहाँ क्या कर रहे हो?’ मैं पूछती हूँ। हर गुज़रते पल के साथ हमारे बीच की चुप्पी अजीब होती जा रही है। वह जोर से एक कश लगाता है और कहता है, ‘एक खेल खेलोगी?’

‘खेल?’

‘यह अनुमान लगाते हैं कि पिछले चार साल के दौरान हम क्या करते रहे।’

‘दिलचस्प है। लेकिन इससे हमें क्या मिलेगा?’

मैं उसकी तरफ घूरने लगती हूँ। क्या उसको यह याद है कि हम अलग क्यों हुए थे? इसका कारण यह था कि वह कभी सीधे-सीधे कोई बात नहीं करता था। क्षय जैसे पुरुषों को किसी लड़की से प्यार नहीं करना चाहिए। किसी से किया गया प्यार का वादा एक मंजिल होती है, और जैसे ही उसके जैसे पुरुषों को क्षितिज पर वह साफ़-साफ़ दिखाई देने लगता है, तो वे अपना रास्ता बदल लेते हैं। वह हवा की तरह है। आप उसको महसूस तो कर सकते हैं लेकिन उसको पूरी तरह से अपना नहीं बना सकते। आपके हिस्से वही हिस्सा रह जाता है, जो आपसे टकराता है। और आप अपनी नादानी में यह मान लेते हैं कि वह उसका सम्पूर्ण रूप है। है ना! वह एक भावुक सैलानी है। महिलाओं को उसके जैसे पुरुषों से बचकर रहना चाहिए। लेकिन वे हमेशा ऐसे लोगों के प्यार में पड़ जाती हैं। इस तरह के पुरुष जीत में मिले सामान की तरह होते हैं। नाउम्मीद करने वाले जीती हुई वस्तु की तरह जो ऐसे लोगों के साथ संपर्क बनाते हैं, जो भावुक यात्री होते हैं। मैंने पाँच साल तक उस जीत को हासिल करने की कोशिश की। और मेरा यकीन कीजिए, अगर कोई समाज नहीं रहा होता, शादी करने के लिए मेरे ऊपर माता-पिता का दबाव नहीं होता तो मैं उससे प्यार करती ही रही होती। किसी के पीछे लगे रहने में एक अजीब सा नशीला अहसास होता है। इसका कारण यह भी होता है कि क्षय जैसे पुरुष आपसे कभी भी सीधे-सीधे नहीं कहते हैं कि वे आपके साथ लम्बे समय तक नहीं रहने वाले हैं। वे आपको लटकाए रखते हैं। इसमें मुझे एक तरह के आनंद का अहसास होने लगा था। जब तक राघव मेरी ज़िंदगी में नहीं आया था, तब तक मैं ऐसा ही सोचती थी।

‘अच्छा ठीक है। आओ शुरू करते हैं’, मैंने कहा।

‘अच्छा ठीक है। एक बड़ा फर्क तो यह आ गया है कि अब तुम शादीशुदा हो’, वह कहता है। न उसकी आवाज़ में न ही उसके चेहरे पर ऐसा कोई भाव था, जिससे यह समझा जा सके कि यह बात उसके लिए मायने रखती है या नहीं।

‘यह आसान है, क्षय’, मैंने कहा और आगे यह भी जोड़ दिया, ‘बत्तीस साल की उम्र में भारत में हर दूसरा आदमी विवाहित होता है।’

वह मुस्कुरा कर कहता है, ‘अब तुम्हारी बारी है।’

क्षय कभी एक नौकरी में टिककर नहीं रहा। आिख़री बार जब मुझे पता चला तब वह डिस्कवरी चैनल के साथ काम करता था, लाइन प्रोड्यूसर था। उसकी परियोजना उत्तर-पूर्व में चल रही थी। उससे पहले वह एक बड़े क्रिकेट खिलाड़ी का ब्राण्ड मैनेजर था। उससे पहले वह खोजी पत्रकार था। मुझे कुछ नहीं पता कि वह ऐसा क्यों करता है। हालाँकि उसने मुझे एक बार बताया था कि वह ऐसा इसलिए करता है क्योंकि एक ही ज़िंदगी है और अरमान इतने सारे। यह एक तरह से उसका तकिया कलाम रहा है।

‘तुम अब कोई और नौकरी कर रहे हो। और जाहिर है, तुम्हारी शादी नहीं हुई है।’

वह कुछ देर मेरी तरफ देखता है, फिर ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगता है।

‘क्या?’

‘यह तो ज़ाहिर-सी बात है।’ वह कहता है।

‘वैसे ही जैसे तुमने अनुमान लगाया।’

‘अच्छा ठीक है, तो अब मुझे कुछ ऐसा अनुमान लगाना चाहिए, जो मुझे तो समझ आ रहा है लेकिन तुम्हें नहीं?’

‘ठीक है।’

क्षय करीब आकर कहता है, ‘तुम्हारे पति को यह नहीं पता है कि तुम कल रात मुझसे मिली हो, जबकि उसको मेरे बारे में पता है।’

मैं घबड़ाहट के मारे अपना थूक निगलते हुए सोचती हूँ कि काश, उसको पता ना चले।

‘उनको पता है!’ यह सफेद झूठ है।

‘वह जानता है?’ क्षय मुझे घूरते हुए पूछता है।

‘वह जानता है या नहीं यह तुम्हारे जानने की बात नहीं है क्षय। अब यह बात तुम्हारे मतलब की नहीं रह गई है।’

‘तो उसको नहीं पता है। सवाल यह है कि क्यों नहीं?’

‘यह बात मायने नहीं रखती है। हम कुछ कर नहीं रहे हैं।’

‘या फिर इस कारण कि कहीं वह यह ना सोच ले कि हम कुछ कर रहे हैं?’

‘प्लीज़, राघव इस तरह से हर वक़्त मेरे बारे में सोचने वाला या ईर्ष्यालु किस्म का इंसान नहीं है।’

‘किसी आदमी को सही-सही जानकारी दे दीजिए और फिर उसको इसमें देर नहीं लगती कि वह गलत तरीके से व्यवहार करना शुरू कर दे,’ उसकी बनावटी मुस्कान लौट आई है। और मुझे इससे नफरत है। मुझे ठीक से पता नहीं कि मैंने ऐसा क्यों किया, लेकिन मैंने सिगरेट को नीचे गिरा दिया। गुस्से में उसको कुचलते हुए मैं अपने कमरे में वापस चली जाती हूँ। मैं फोन उठाती हूँ, और राघव का नम्बर मिला देती हूँ, और उसके फोन उठाने का इंतजार करने के दौरान दौड़ते हुए उस जगह पर वापस चली जाती हूँ, जहाँ क्षय बैठा हुआ है।

‘हाय बेबी, इस वक्त तुमको परेशान करने के लिए माफ करना। मैं तुमको कुछ बताना भूल गई थी। कल रात मेरी मुलाक़ात क्षय से हुई थी। याद है न, वही मेरा एक्स? हाँ, वह यहाँ किसी काम से . . . मुझे पता नहीं किस काम से आया हुआ है’, आिख़री बात मैं क्षय को देखते हुए कहती हूँ। जान बूझकर ऐसे देखते हुए ताकि उसको यह जता सकूँ कि वह मेरे लिए उतना मायने नहीं रखता। अब बिल्कुल नहीं। मैंने सुना कि ऊनींदा राघव यह पूछ रहा है कि कोई और बात तो नहीं है, नहीं तो वह कल मुझसे बात कर लेगा।

‘वह जानता है’, मैंने मुस्कुराते हुए कहा।

‘हाँ। जानकर अच्छा लगा।’

मैंने ध्यान दिया कि उसकी सिगरेट ख़त्म हो गई है।

‘क्या मैं ईमानदारी से बात कर सकता हूँ?’ वह पूछता है।

‘किस बारे में?’

‘तुमको पता है कि मैं क्यों यह चाहता था कि तुम अपने पति को मेरे बारे में बता दो?’

मैं त्योरी चढ़ा कर देखने लगती हूँ।

‘मैं शर्मिंदा महसूस करना नहीं चाहता था।’

‘किस बारे में शर्मिंदा?’

क्षय मुस्कुराते हुए वहाँ से चला जाता है, सीटी बजाकर एक पुराने हिंदी गाने को गुनगुनाते हुए। जब उसके दिमाग में किसी तरह की शरारत रहती थी, तो वह इसी तरह से करता था। और उसको पता है कि मुझे हमेशा उसकी शरारतों से परेशानी रही है।

चौथी रात

मैं अपनी टीम के साथ कुछ घर देख रही हूँ। हम सुबह के नाश्ते के बाद निकले थे। एक बार फिर मुझे ऐसा लगा कि मैं शायद क्षय को देख लूँ, लेकिन वह नहीं दिखा। उठने के ठीक बाद मैंने राघव को फोन मिलाया, लेकिन उसने फोन नहीं उठाया। मैंने उसके लिए मैसेज छोड़ दिया, लेकिन कोई फोन नहीं आया। जब मेरी टीम ने यह तय किया कि मुंबई के एक दोस्त द्वारा सुझाए गए रेस्तराँ से गर्मा-गर्म मोमोज खाए जाएँ तभी मेरे फोन पर राघव का नाम चमक उठता है। मैं फोन उठा लेती हूँ। उसका लहजा कुछ बदला हुआ सा लगता है। उसी तरह से जिस तरह से जब पुरुषों के मन में कोई चाल होती है, तब वे जैसा करते हैं।

‘तुमने नाश्ता किया?’ वह पूछता है।

‘मैंने कर लिया। और अब हम लोग बहुत स्वादिष्ट मोमोज खाने जा रहे हैं’, मैं ख़ुश होते हुए कहती हूँ।

‘क्षय के साथ?’ वह पूछता है। उसने इतनी जल्दी से और साफ़तौर पर पूछा मानो उसके दिमाग में वह नाम बहुत देर से चल रहा हो।

‘बिलकुल नहीं। मैं अपनी टीम के साथ हूँ। तुमने ऐसा क्यों कहा?’

‘अगर आधी रात को तुम उससे मिल सकती हो, तो दिन में मिलना तो कुछ भी नहीं है, है ना!’

राघव ने मुझसे इतनी रूखाई से आज तक बात नहीं की थी। आज सुबह से पहले तो बिलकुल नहीं। क्या उसको फोन कर देने से कुछ बदल गया? एक सही सूचना और कितनी सारी झूठी कल्पनाएँ? क्या हमारा रिश्ता इतना कमजोर है? मैं यह सोचती हूँ और उससे बताती हूँ कि मैं सच में अपनी टीम के साथ हूँ। वह मुझे वीडियो कॉल करने के लिए कहता है। मुझे बुरा लग जाता है।

‘मैं तुमको वीडियो कॉल क्यों करूँ? क्या तुम मेरे ऊपर विश्वास नहीं कर सकते?’

‘अगर तुम उसके साथ नहीं हो तो वीडियो कॉल क्यों नहीं कर रही? एक वीडियो कॉल की ही तो बात है।’

‘नहीं, यह वीडियो कॉल की बात नहीं है। यह विश्वास की बात है, जो सभी रिश्तों का आधार होता है। मैंने ध्यान दिया कि फोन कट चुका था। इससे पहले कि मैं यह समझ पाती कि यह नेटवर्क के कारण हुआ या जान-बूझकर किया गया कि मेरे फोन पर राघव का नाम फिर से चमकने लगता है, लेकिन इस बार उसने वीडियो कॉल किया है। मुझे बहुत गुस्सा आता है। मैंने उससे यह कहा था कि मैं क्षय के साथ नहीं थी; मैंने उससे कहा था कि वीडियो कॉल की कोई जरूरत नहीं है, तब भी वह वीडियो कॉल कर रहा है? क्या उसके लिए मेरी बातों का कोई मोल नहीं? मुझे यह नहीं पता था कि इतनी छोटी-सी बात से उसके व्यक्तित्व का एक नया पहलू मेरे सामने उजागर हो जाएगा। मैं उसका फोन नहीं उठाती हूँ। तत्काल एक मैसेज चमकने लगता है:

‘अगर तुमने मेरा फोन नहीं उठाया, तो मुझे यह बात अच्छी तरह से समझ में आ जाएगी कि वह तुम्हारे साथ ही है।’

वह अगले ही पल फिर से वीडियो कॉल करता है। मेरे हाथ काँपने लगते हैं। मैसेज किसी चेतावनी की तरह लगा। और मैंने ऐसा क्या किया था? मैंने उसके प्रति ईमानदारी बरती थी। मैं फोन उठा लेती हूँ। मैं राघव को देख सकती हूँ और वह भी मुझे देख सकता है। वह मुझे आसपास दिखाने के लिए कहता है। उसको हो क्या गया है? मैं न कह देती हूँ। लेकिन वह अपनी बात पर अडिग है। मुझे शर्मिंदगी महसूस हो रही है। मैं वही करती हूँ जो मुझे कहा गया था। उसको कोई नहीं दिखाई देता है। वह कुछ कहना शुरू करता है कि मैं फोन काट देती हूँ और फोन को स्विच ऑफ कर लेती हूँ। विश्वास अपने आपमें पूरी तरह से चाक-चौबंद नहीं होता। वह चाक-चौबंद होता है अपने साथी में आपके विश्वास से। आज राघव ने मेरे एक मिथ को तोड़ दिया। अभी तक मुझे ऐसा लगता था कि वह उन दुर्लभ उदार पुरुषों में एक है और मैं ख़ुशिक़स्मत हूँ कि मुझे वह मिला। कोई आदमी अपनी साथी के साथ कितना उदार है यह शायद इस बात पर निर्भर करता है कि वह उसको कितनी अच्छी तरह जानता है और वह उस स्त्री के बारे में क्या सोचता है। दोनों के बीच का अंतर अक्सर रिश्तों को तोड़ता अधिक है बजाय प्यार जितना जोड़ता है। मेरा काम में अब ध्यान नहीं लग सकता है, हो सकता है ऐसा ही होता हो। मेरा निर्माता मुझे आराम कर लेने के लिए कहता है? मैं न नहीं कहती। मैं अपने कमरे में जाकर बिस्तर पर लेट जाती हूँ, शर्मिंदगी और चिंता से भरी हुई। मुझे पता है कि राघव ने वीडियो कॉल क्यों किया था। वह केवल इस बात को सुनिश्चित नहीं करना चाहता था कि मैं सच कह रही थी या नहीं बल्कि वह मुझे शर्मिंदगी का अहसास भी करवाना चाहता था। और स्त्रियों और शर्मिंदगी का रिश्ता पुराना रहा है। अगर शर्मिंदगी के लिए न हो तो मेरे ख़याल से किसी स्त्री को पुरुष द्वारा वश में नहीं रखा जा सकता। राघव ने वीडियो कॉल से वही किया। जब तुम्हारा पति है, तो तुम अपने एक्स से कैसे मिल सकती हो? वह भी आधी रात में? एक आदर्श स्त्री को तो दरवाज़ा ही नहीं खोलना चाहिए। कोई शादीशुदा आदर्श स्त्री अपने पूर्व प्रेमी से मिलती ही नहीं या इस तरह का कुछ करती ही नहीं। राघव को इस बात का डर है कि कहीं मुझे क्षय से फिर प्यार न हो जाए। अगर हमारे बीच सेक्स हो गया तो? इसका तो एक ही मतलब हुआ कि मैंने सेक्स करने के लिए राघव से बढ़कर उसका चुनाव कर लिया। स्त्री और पुरुष सेक्स को दूसरे नज़रिए से देखते हैं। पुरुष इसको जीत के रूप में देखता है और स्त्री अनुभव के रूप में। क्या इसीलिए पुरुष जब एक स्त्री से कई बार सेक्स कर चुका होता है, तो वह अलग-अलग स्त्रियों के ऊपर दिमाग दौड़ाता है? लेकिन स्त्री अक्सर जब अलग-अलग पुरुषों के साथ बिस्तर पर जाती है, तो वह अपनी कल्पना के उसी पुरुष को चाह रही होती है? मैं यह तय करती हूँ कि मुझे शर्मिंदा नहीं होना। अब जब मैं आँख बंद कर लेती हूँ, तो मुझे अच्छा महसूस होता है।

एक आवाज़ से मेरी नींद खुल जाती है। पता नहीं क्या हुआ है। मैं अपने फोन में समय देखती हूँ। काफी देर हो चुकी है। मैं डिनर नहीं ले पाई। मैं एक बार फिर अपना फोन देखती हूँ। राघव ने कई बार फोन किया था लेकिन जाहिर है मैंने उठाया नहीं। इससे वह यह नतीजा निकाल लेगा कि मैं नाराज हूँ। या यह कि मैं क्षय के साथ हूँ। उसका दिमाग़, उसके विचार, उसके सोचे नतीजे। इसके लिए मुझे दोषी नहीं ठहराया जा सकता। मुझे अपने दरवाज़े के बाहर आवाज़ सुनाई देती है। ऐसी आवाज़ आ रही है मानो कोई दरवाज़े को खरोंच रहा हो। मैं डर जाती हूँ, लेकिन दरवाज़ा खोलने के लिए उठती हूँ। मैं देखती हूँ कि क्षय वहाँ घुटनों के बल बैठा है, उठने की कोशिश करता हुआ। एक बार उसकी आँखों में देखकर ही मैं समझ गई कि वह नशे में है। वह कुछ बुदबुदा रहा है, जो मैं समझ नहीं पाती। मैं उठने में उसकी मदद करती हूँ और वह मेरी कमर में हाथ डाल देता है। पता नहीं क्यों उसकी इस हरकत से मैं चौकन्नी हो जाती हूँ, मेरी गर्दन के पीछे के रोएँ खड़े हो जाते हैं। क्या इसलिए क्योंकि क्षय और मेरा शारीरिक सम्बन्धों का इतिहास रहा है? या ऐसा इसलिए क्योंकि इसी छुअन से राघव को परेशानी है, या इसलिए क्योंकि मुझे यह पता है कि अगर उसको इस बारे में पता चल गया तो वह किस तरह से प्रतिक्रिया जताएगा। अगर उसको पता चला तो। यह सोचकर मुझे ऐसा महसूस होता है कि मैं राघव से आगे हूँ कि मैं भी उसका दिल उसी तरह दुखा सकती हूँ, जिस तरह उसने आज सुबह मेरा दुःखाया है।

क्षय लगातार बुदबुदा रहा है। मैं उसको चुप हो जाने के लिए कहती हूँ, लेकिन वह चुप नहीं होता है। मैं उसके पॉकेट में देखती हूँ और मुझे उसके कमरे की चाबी मिल जाती है। मैं उसका कमरा खोलती हूँ, बत्ती जलाती हूँ और उसको कमरे के अंदर ले जाती हूँ। किसी तरह मैं उसको बिस्तर पर गिरा देती हूँ। मैं उसको चादर ओढ़ा देती हूँ और बत्ती बुझा देती हूँ। मैं कमरे से निकलने ही वाली होती हूँ कि अचानक रुक जाती हूँ। पता नहीं मुझे क्या हो जाता है कि मैं वापस जाकर उसके होंठों को चूम लेती हूँ। मैं जल्दी से अपने कमरे में वापस आ जाती हूँ। मैं बिस्तर पर लेट जाती हूँ और पूरी रात जगी रह जाती हूँ।

पाँचवीं रात

मैं हमेशा से तैश में आकर फैसला लेने वाली रही हूँ। अपने बारे में इसी एक बात से मैं चिढ़ती हूँ। कई बार मैं बिना सोचे समझे कुछ कर जाती हूँ। फिर इस बात को अच्छी तरह समझते हुए कि उस किए गए को अनकिया नहीं किया जा सकता, मैं उसके बारे में सोचती रहती हूँ।

वह चुम्बन वास्तविक था। सबसे अच्छी बात यह थी कि उसके बारे में केवल मुझे ही पता है। क्षय बहुत नशे में था। राघव अब मुझसे कभी कुछ स्वीकार नहीं करवा पाएगा। पुरुष कुछ सूचनाओं को जानने के लायक ही नहीं होते। वे उस तरह की सूचनाओं को सम्भाल नहीं पाते, चाहे वे इस बात के कितने ही दावे करें कि उनको कोई फर्क नहीं पड़ता। मुझे मजा आ रहा है, मुझे कोई ऐसी बात पता है, जिसके बारे में राघव को पता भी नहीं है। मुझे अच्छा महसूस हो रहा है। हो सकता है मैंने आवेश में आकर क्षय को चूम लिया हो, लेकिन मुझे इसके लिए राघव द्वारा उकसाया गया था। जब मैंने कुछ भी नहीं किया था, तब भी उसने मुझे नीच साबित करने की कोशिश की। अब अगर उसने कभी वीडियो कॉल के लिए कहा, तो मैं न नहीं कहूँगी।

आज मेरे इस ट्रिप का सबसे मजेदार दिन रहा। हम पैदल चलकर त्रिंड नामक स्थान पर जाने वाले हैं और वहीं तंबू लगाकर रात में रहने भी वाले हैं। मैंने राघव को फोन नहीं किया। उसको बस एक मैसेज कर दिया कि मैं अपनी टीम के साथ ट्रेक करने जा रही हूँ। अगर वह चाहे तो किसी भी समय वीडियो कॉल कर सकते हैं। जवाब में उसने मुझे चुम्बन वाले कुछ इमोटिकन भेज दिये हैं। मेरा मन कर रहा है कि उसको एक थप्पड़ जड़ दूँ, लेकिन मैं समझती हूँ कि मेरे मैसेज ने उसके अहम् को अच्छी तरह सुकून पहुँचाया है। विवाह कंपास की तरह होता है। हमें यह पता होता है कि हम किस दिशा में जा रहे हैं, लेकिन इस बात को समझ पाना असम्भव होता है कि हम असल में ठीक-ठीक हैं कहाँ। हम हमेशा एकाग्र होते हैं, इस बारे में सोचते हैं, बातें करते हैं कि हमारा भविष्य है कहाँ? लेकिन हम इस बात को कभी समझ नहीं पाते कि हमारा वर्तमान कहाँ है। हम जिस वर्तमान को नज़रअन्दाज करते हैं, वही आगे चलकर हमारे लिए दुःखदायी भविष्य हो जाता है। मैं इस बात को अच्छी तरह समझती हूँ कि राघव को इस बारे में अन्दाज भी नहीं है कि उसने जो मर्दवादी रवैया अपनाया है, जिसके कारण मैं यह कर रही हूँ। अगर उसको भविष्य में इस बात का पता चलता है, तो वह यही सोचेगा कि मैंने उसके साथ धोखा किया। लेकिन उसने अविश्वास करके सबसे पहले मुझे धोखा दिया। जब पति-पत्नी में से कोई रिश्ते से निकल जाता है, तो केवल बेवफाई की बात ही क्यों की जाती है? तब बेवफाई की बात क्यों नहीं आती है जब दो लोगों के बीच के विश्वास का उल्लंघन किया जाता है। क्यों किसी तीसरे व्यक्ति के साथ सोने को बेवफाई के रूप में देखा जाता है? राघव ऐसा कभी नहीं था। इसी वजह से मैंने उससे शादी की थी। लेकिन अब मुझे समझ में आ गया कि यह मर्दवादी रवैया उसके अंदर सोया हुआ है। वह मेरे सामने उदार दिखने की कोशिश करता है या वह सच में है, मुझे इस बारे में कभी पता नहीं चल पाएगा। लेकिन मैं छला हुआ महसूस कर रही हूँ। मैंने जिस पति से विवाह किया था यह वह पति नहीं है। इसलिए बड़ा धोखेबाज कौन हुआ? राघव या मैं? या हम दोनों?

हम जब तक त्रिंड पहुँचे तब तक देर हो चुकी थी। लेकिन वह ट्रेकिंग मेरे जीवन के यादगार अनुभवों में से एक है। हमारी योजना यह है कि यहीं रात्रि विश्राम किया जाए और सुबह के वक्त लौटा जाए। जब यह तंबू लगाने के लिए जगह की तलाश कर रहे थे, तो मेरा ध्यान इस बात पर गया कि एक तंबू वहाँ पहले से ही तना हुआ है। जब हमारी टीम ने हमारे तंबू को लगाना शुरू किया, वे एक-एक करके तंबू लगाने लगे, तब मैंने ध्यान दिया कि वह आदमी पहले ही अपना तंबू लगा चुका है और पहाड़ की चोटियों की तस्वीर ले रहा था। मैं मुस्कुरा उठती हूँ। मैं वहाँ सबसे माफ़ी माँगती हूँ और क्षय के पास जाती हूँ।

‘तुम भी ट्रेक कर रहे थे?’ मैं पूछती हूँ।

‘हाँ! मैं इसी उम्मीद में था’, वह मुस्कुराते हुए जवाब देता है।

‘मुझे अब यह मत कहना कि तुम अभी भी उम्मीद और मुझे साथ-साथ उपयोग में लाते हो।’

‘नहीं।’

‘हूंह?’

‘मैं उम्मीद, तुमको और खुद को साथ में उपयोग में लाता हूँ। ऐसी बेहतरीन तिकड़ी जिसकी कोई कल्पना ही कर सकता है।’ उसकी गर्मजोशी से भरी मुस्कान के स्थान पर अब शरारती मुस्कान आ जाती है।

‘हाँ, जरूर। जब हम साथ-साथ थे, तब तुमने ऐसा कभी नहीं किया।’

जब हम साथ थे तब साथ थे। अब उम्मीद करने के लिए क्या है?’ वह मुझे सीधे तौर पर देखते हुए कहता है। मुझे ऐसा लगता है कि पिछले चार साल मरीचिका की तरह रहे। मानो वे रहे ही न हों। यह क्षय के बारे में एक और ख़ास बात है। या शायद क्षय और मेरे बारे में। हम हमेशा बिना किसी प्रयास के वहीं से शुरू करते हैं, जहाँ हमने छोड़ दिया हो। हमें कभी शुरू से शुरुआत नहीं करनी पड़ती। हम हमेशा बीच में रहते हैं।

‘क्या तुम किसी के साथ रिश्ते में हो?’ मैं पूछती हूँ। मुझे पूछना ही था।

‘मुझे लगता है कि मैं हूँ।’

‘उसी तरह से जिस तरह से तुमने सोचा था कि हम एक दूसरे से प्यार करते हैं। जबकि सच्चाई यह है कि मैं कोशिश कर रही थी कि ऐसा हो जाए।’

‘सिर्फ़ इसलिए कि हमारे रास्ते अलग-अलग थे, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैंने कोशिश नहीं की।’

‘हो सकता है तुमने की हो। लेकिन हमारी मंजिल अलग- अलग थी। इसलिए हमारी कोशिशों का ढंग भी अलग था।’

‘मैं जो चाहता था तुम उससे अलग कुछ चाहती थी।’

‘हाँ, मैं तुम्हारे साथ घर बसाना चाहती थी। कोई स्त्री जब किसी पुरुष से प्यार करती है तो वह और क्या चाहती है?’ जब से हमने अलग होने का फैसला किया तभी से मैं अपने आप से यह पूछती रही हूँ।

‘पता है समाज ने हमारे साथ सबसे बुरा क्या किया?’

मैं उसकी तरफ कुछ जानने के ख़याल से देखती हूँ।

‘इसने हमें यह मानने को विवश कर दिया कि यह जो हमसे चाहता है, उसका कोई विकल्प नहीं है। इसने हमें इस बात का यकीन दिलवा दिया है कि सदियों से इसने हमारे लिए जो बनाया है, वही सबसे सही है। और जो इसका उल्लंघन करते हैं वे पागल लोग हैं, जिसके बारे में सभी को निर्णय करने और निंदा करने का हक है।’

उसकी बात में दम है। इसी वजह से मैं कुछ नहीं कहती। मेरा फोन बज उठता है। राघव का है।

‘पति?’ क्षय पूछता है। मैं सिर हिला देती हूँ।

‘उससे कह दो कि तुम मेरे साथ हो।’

मैं उसकी बात को नज़रअन्दाज करते हुए राघव से कहती हूँ कि मैं अपनी टीम के साथ हूँ, हम लोग अपने तंबू लगा रहे हैं। मैं उससे कहती हूँ कि जब तंबू लगाने का काम हो जाएगा तो मैं उसको फोन करूँगी। क्षय मुस्कुरा रहा है। मैं कंधे उचका देती हूँ। ‘यह एक और कारण है कि मैं किसी के साथ घर नहीं बसाना चाहता। मैं उसके साथ पूरी तरह ईमानदार नहीं रह सकता। कोई भी नहीं रह सकता।’

उसकी बात में एक बार फिर दम लगता है। मैं कुछ नहीं कहती। उसी समय मेरा डायरेक्टर मुझे आवाज़ देता है। मैं क्षय को कुछ नहीं कहती। मैं अपनी टीम के पास वापस चली जाती हूँ, जबकि वह अपने तंबू में चला जाता है। बाद में, हम सभी अपने-अपने तम्बुओं में चले जाते हैं और मैं अपने फ्रलास्क से थोड़ा सा गर्मा-गर्म टमाटर का सूप लेती हूँ। मैं राघव को वीडियो कॉल लगाती हूँ और फिर यह कहते हुए फोन काट देती हूँ कि मुझे नींद आ रही है। मेरी भावना क्षय तक जाने के लिए लगातार कोशिश कर रही है। वह मुझे कभी अपने साथ शांति से नहीं रहने देगा। वह उस तरह की उथल-पुथल का नाम है, जिसके बारे में आपको यह अहसास होता है कि बेहतर तो यह होता कि उससे मिले ही नहीं होते, लेकिन आपको यह बात भी समझ में आ जाती है अगर आप उससे नहीं मिले होते तो आज आप जो हैं वह हुए ही नहीं होते। उसने मुझे मेरे अंदर की टूटन से मिलवाया। राघव ने मुझे उस खंडहर के टुकड़ों को चुनकर घर बनाने की इच्छा से मिलवाया। और अब राघव . . .

‘मैं सोच रही थी . . .’ मुझे एक पुरुष आवाज़ सुनाई देती है। मैं जल्दी से उठ जाती हूँ। यह क्षय की आवाज़ है।

‘माफ करना। मैं तुमको डराना नहीं चाहता था, लेकिन मेरे पास यह नई किताब है। और मैं यह सोच रहा था कि क्या तुम इसको मेरे साथ पढ़ना चाहोगी। उसी तरह जिस तरह से हम पढ़ा करते थे’, वह आँखों को चमकाते हुए कहता है। वह मुझे बताता है कि वह बीते दिनों को उसी तरह से याद करता है, जिस तरह मैं करती हूँ। इससे मुझे राहत महसूस होती है। जिस तरह से हम पढ़ा करते थे . . . क्षय को किताबों की दीवानगी है। जब भी वह कोई ऐसी किताब पढ़ता जिसको बिना पढ़े छोड़ पाना मुश्किल होता तो वह कम्बल के नीचे घुटने मोड़े नंगा पड़ जाता। मेरा सिर उसकी छाती पर होता था, उसकी बाँहें मेरे कंधे के इर्द-गिर्द और वह किताब पढ़ने लगता। मैं उसको सुनते हुए घंटों खोई रहती थी।

‘क्या कहती हो?’ वह जवाब का इंतजार कर रहा है। अगर वह मुझे अच्छी तरह जानता है, तो उसको मेरा जवाब भी पता होना चाहिए।

छठी रात

मैं उसको देखती रहती हूँ। मुझे लगता है जैसे मेरे ऊपर जादू सा छा रहा हो। मैं घुटनों के बल बैठ जाती हूँ और अपने कपड़े खोलने लगती हूँ। क्षय तंबू का जिप बंद कर देता है। मैं अपने गरम कपड़े और अंदर के कपड़े खोल देती हूँ। मैं काँप रही हूँ, लेकिन मैं ठंड की अधिक परवाह नहीं करती। मैं पागल हो गई हूँ। उसकी आँखें मेरे शरीर पर घूमने लगती हैं, मेरी आँखों से मेरे होंठों तक, मेरे वक्ष तक और मेरी कमर और उसके नीचे तक। मेरा मन होता है कि उससे पूछूँ कि क्या कुछ बदला है। क्या मेरे वक्ष अब भी उतने ही सख़्त लग रहे हैं, जब उसने उनको पहली बार छुआ था? क्या मेरा शरीर अभी भी वैसा ही है, जैसा उसको सालों पहले लगा था? मेरी सोच की शृंखला थम जाती है, क्योंकि वह भी कपड़े उतारना शुरू कर देता है। उसके चौड़े कंधे अभी भी वैसे ही हैं। उसकी छाती पर बाल भी वैसे ही हैं। उभरे हुए चुचक। शरीर पर निशान। मुझे हमेशा उसके निशानों को लेकर कुछ होता था। वह अपना अंडरवियर भी खोल लेता है। मैं उसके शिश्न की तरफ नहीं देखती हूँ। मैं अपनी आँखों को सख़्ती से उसकी कमर के ऊपर ही टिकाए रहती हूँ। क्षय अपनी जैकेट से एक किताब निकाल लेता है, शायद वही किताब है, जिसके बारे में वह बात कर रहा था। वह आता है और कम्बल के नीचे घुस जाता है। जैसे ही हमारे शरीर एक दूसरे के शरीर से मिलते हैं, न जाने कहाँ से मेरे अंदर अप्रत्याशित कामना जाग जाती है। वह लेट जाता है। मैं अपना सिर उसकी छाती पर टिका देती हूँ। हम एक भी शब्द नहीं कहते, लेकिन हम जिस तरह से अपने शरीर हिलाते हैं उससे मुझे पता चल जाता है कि हमारे बीच कुछ भी ख़त्म नहीं हुआ है। सब कुछ वैसे ही है। हमने अपने भावनात्मक चेहरों को एक दूसरे से अलग कर लिया था और यह जताते रहे कि सब कुछ ख़त्म हो चुका है। यह राहत सुंदर भी है और परेशान करने वाली भी। शायद यह इसलिए परेशान करने वाली है, क्योंकि यह सुंदर है। एक विवाहित स्त्री को इस बात की अनुमति नहीं है कि वह ऐसी सुंदरता का अनुभव किसी और पुरुष की बाँहों में करे चाहे इससे उसको कितनी ही राहत क्यों न पहुँचती हो। मेरे पति ने मेरा पता क्षय से बदल कर अपना कर दिया, लेकिन कुछ पते ऐसे होते हैं, जिनको आपके लिए कोई बदल नहीं सकता। क्षय मेरे लिए ऐसा ही एक पता है।

वह पढ़ना शुरू करता है। मुझे पता है कि उसका शिश्न सख़्त हो चुका है, लेकिन मैं उसको वहाँ नहीं छूती हूँ। वह भी कोई कोशिश नहीं करता। मुझे हमेशा से उसकी यह आदत पसंद थी। कोई और पुरुष रहा होता तो अब तक मेरे साथ सम्भोग कर चुका होता। लेकिन वह नहीं करेगा। तब तक नहीं जब तक मैं ऐसा न चाहूँ। केवल तभी। इस वजह से भी मैं उसकी तरफ देखने से बच रही हूँ। कई बार आपको इस बात का पता नहीं होता कि आपकी आँखों में क्या कहानी होती है। और कोई आदमी उसकी व्याख्या किस प्रकार करेगा। वह पढ़ता रहता है। मेरा मन होता है कि उससे पूछूँ कि उसकी पीठ पर जो कटे का निशान था वह अभी भी है। मन हो रहा है कि उसके शरीर के अंग-अंग को चूम लूँ। वह पढ़ता रहता है। मैं ख़यालों में खोई हुई हूँ। पता नहीं कब नींद आ जाती है।

सुबह मेरी नींद यह सुनकर खुल जाती है कि कोई आदमी मेरा नाम पुकार रहा है। यह मेरे डायरेक्टर की आवाज़ है। जैसे मुझे यह समझ में आता है कि मैं नंगी हूँ, तो मैं घबड़ा जाती हूँ। मैं उससे कहती हूँ कि मैं थोड़ी देर में आती हूँ। वह चला जाता है। मैं आसपास देखती हूँ। वहाँ क्षय नहीं है। उसकी किताब वहीं तकिए की बगल पड़ी है। मैं राहत की साँस लेती हूँ। मैं जल्दी से कपड़े पहनकर अपने फोन को चेक करती हूँ। शुक्र की बात यह है कि अभी तक राघव का न तो कोई मैसेज आया है, न ही कोई फोन। जब मैं तम्बू से बाहर निकलती हूँ तो देखती हूँ कि क्षय का तम्बू तो अभी भी वहीं है, लेकिन वह कहीं दिखाई नहीं दे रहा है। मेरी टीम के लोग और आगे तक पैदल चलकर जाना चाहते हैं और उसके बाद रात को लौटकर यहीं आ जाएँगे और उसके बाद कल सुबह धरमकोट के लिए निकल जाएँगे। मुझे यह विचार पसंद आता है। नंबर के पन्ने पर किताब को मोड़कर रखा गया था। जागने के बाद यह देखना मुझे याद रहता है। किताब अभी भी समाप्त होने से बहुत दूर है।

जब हम ट्रेकिंग से लौटे तो रात के नौ बज चुके थे। बहुत अच्छी यात्र रही। बाकी लोग बोनफायर के लिए तैयारी में लग गए, जबकि मैं क्षय को देखने के लिए जाती हूँ। वह तम्बू के ठीक बाहर बैठा हुआ है। वह मुझे देखकर हाथ हिलाता है। मैं भी उसको हाथ हिलाकर अभिवादन का जवाब देती हूँ। मैं और मेरी टीम के साथी बोनफायर के सामने बैठकर डिनर करते हुए पुरानी हिन्दी फिल्मों के गीत गा रहे हैं। सभी को थोड़ा बहुत नशा चढ़ चुका है और सब अपने-अपने तंबुओं में वापस चले जाते हैं। मैं बोनफायर के पास ही बैठने का फैसला करती हूँ। क्षय मेरे पास आता है। इस बार हम और कम बातचीत करते हैं। दोनों मेरे तम्बू के भीतर जाते हैं और अपने-अपने कपड़े उतार देते हैं; इस बार हम एक दूसरे के और करीब होकर बैठ जाते हैं। वह जिस तरह से अपने हाथ मेरे कंधे के इर्द-गिर्द डाल देता है, जिस तरह से मैं अपने हाथ उसकी छाती पर टिका देती हूँ, जिस तरह से मैं अपने पैर उसके पैरों के बीच में डाल देती हूँ, उसको उत्तेजित होते हुए महसूस करती हूँ; जिस तरह से उसके शरीर से गंध आ रही है; यह सब हमारे वर्तमान से अधिक अतीत की याद दिलाने वाला है। लेकिन अतीत में जाने के अपने अप्रत्यक्ष प्रभाव होते हैं। कई बार मैं यह सोचती हूँ कि इसके जो प्रभाव रहे वह हमारे अपने बनाए हुए थे, न कि उनके पीछे परिस्थितियों का हाथ था। क्षय किताब पढ़ना समाप्त करता है। वह मुड़कर मेरी तरफ देखता है।

‘क्या?’

‘तुमको वह खेल याद है?’ वह पूछता है। मैं समझ जाती हूँ कि वह क्या कह रहा है।

पलक झपकते ही वह मेरी तरफ मुड़ जाता है। वह मेरी दानेदार त्वचा पर अपनी ऊष्म जीभ से कुछ लिखता है। मैं शब्द को समझ जाती हूँः प्यार। यह खेल हम पहले खेला करते थे। वह मेरे शरीर के अलग-अलग अंगों पर कुछ लिखता था और मुझे अनुमान लगाना होता था। उसके बाद मुझे भी वही करना होता था। जिसके अनुमान अधिक सही निकलते वह जीत जाता। वह मेरी पीठ पर, जंघा पर, पेट पर, कंधे पर, बाँहों पर जो लिखता जा रहा था मैं उन शब्दों के सही-सही अनुमान लगाती रही। दसवें शब्द पर मैं उसे रोककर उसके साथ जांघ के अंदरूनी हिस्से पर वही करती हूँ। उसका अनुमान ग़लत साबित होता है। मैं हँस पड़ती हूँ। मैं उसके अंडकोष पर कुछ लिखती हूँ। फिर ग़लत। जैसे ही मैं उसके उत्तेजित शिश्न को पकड़ती हूँ, तो उसके बाद मैं और कुछ नहीं लिखती। मैं उसको चूसने लगती हूँ। और फिर हम देर रात तक बिना किसी बाधा के अंदर तक थका देने वाला संभोग ऐसे करते हैं मानो हम भूत, वर्तमान और भविष्य से मुक्त हों। समाज के कायदों से, अपने पूर्वाग्रहों से बहुत आगे।

अगली सुबह जब मैं जागती हूँ, तो एक बार फिर क्षय जा चुका होता है। मैं खुद को फोन के कैमरे में देखती हूँ। खुद को देखकर मैं शरमा जाती हूँ।

सातवीं रात

एक झटके से मेरी आँख खुल जाती है। मुझे समझ में आ जाता है कि मुंबई से उड़ी मेरी फ्रलाइट दिल्ली में उतर चुकी है। मैं इधर-उधर देखती हूँ। मेरी टीम के साथी बाहर की तरफ देख रहे हैं। मुझे समझ में आता है कि फिर एक बार वही हुआ है। मैं इसको भावनात्मक कल्पना कहती हूँ। अगर जीवन में ऐसा हुआ होता तो क्या होता जैसी बातें सोच-सोच कर मुझे मजा आता है। और इन सबका संबंध जाहिर तौर पर क्षय से होता है।

मैं अपना फोन चालू करती हूँ। कई सारे मैसेज में सबसे पहला मैसेज राघव का है : ‘जब जहाज उतर जाए तो मुझे फोन करना। लव यू।’

मेरा पति बहुत प्यारा है। असल में, क्षय के कारण मुझे मर्दों के बारे में जो लगता था, उसने उसको सफलतापूर्वक चुनौती दी थी। लेकिन न जाने क्यों मेरी कल्पनाओं में राघव हमेशा से एक मर्दवादी रहा है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि अपने सपनों में भी मैं यह चाहती हूँ कि मेरा पति ऐसा हो जो सीमा को न लाँघे? जाहिर है शादी का सम्बन्ध सीमाओं से होता है। एक ऐसी रेखा जो गोल घेरे के आसपास केन्द्रित होती है। कई उसी घेरे में घूमते रह जाते हैं और कुछ आगे बढ़कर उसको पार कर लेते हैं। कुछ मेरी तरह होते हैं। हम उस सीमा को पूरे वैध तरीक़े से पार करते हैं, लेकिन केवल कल्पनाओं में, सपनों में। कितनी हँसने वाली बात है। हो सकता है कि राघव के साथ मैं बहुत खुश होऊँ लेकिन क्षय भी मेरे मन से नहीं निकला हो। इसलिए मेरा एक पहलू उस कल्पना के साथ जीते रहना चाहता है, जबकि दूसरा पहलू राघव के साथ बहुत सहज है और वह यह नहीं चाहता है कि वास्तविक जीवन में ऐसा कुछ हो जाए। जब मैं सफर में होती हूँ तब मैं इस तरह की कल्पनाओं के साथ होती हूँ, लेकिन जब मैं मुंबई में राघव के साथ होती हूँ तो इस तरह की कल्पना की दुनिया में नहीं रहती।

नई दिल्ली से हम बस में बैठकर मैक्लोडगंज गए और वहाँ से धरमकोट, जहाँ हमने एआईआर बीएनबी की साईट से अपने लिए एक घर बुक कर रखा था। उस घर में पहुँचने के बाद मैंने यूँही उसके मालिक से पूछ लिया कि हम जिन कमरों में थे क्या उस घर में वे ही कमरे खाली थे। उसने कहा नहीं। तब मेरा निर्देशक उससे पूछता है कि क्या कोई आनेवाला है मुझसे मिलने। मैं अपनी गर्दन हिला देती हूँ। जब आप कल्पना में होते हैं, तो किसी बात की उम्मीद नहीं कर रहे होते हैं। इसीलिए वे वास्तविकता से अधिक आदर्श के करीब होते हैं। और जाहिर है कोई किसी बात को लेकर आपके बारे में राय नहीं बनाता। मैं अपने कमरे में जाती हूँ और राघव को फोन मिलाती हूँ; मैं उसे बता देती हूँ कि हम लोग पहुँच गए हैं। जब वह यह कहता है कि वह मुझे देखना चाहता है, तो मैं झूठ-मूठ में हँस देती हूँ। वीडियो कॉल।

पेट भर खाने के बाद हम अपने-अपने कमरों में चले जाते हैं। रेकी का काम कल से शुरू होने वाला है। मुझे नींद नहीं आती है। मैं सोचती हूँ कि राघव को फोन करूँ लेकिन बहुत देर हो चुकी होती है। वैसे भी उसने द ़फ्रतर में अधिक देर तक काम किया था। हो सकता है वह यह न कहे लेकिन उसको सोने की जरूरत थी। मैं बिस्तर पर करवटें बदल रही होती हूँ। कमरे में ठण्ड बहुत अधिक है, और बावजूद इसके कि मैंने मोटे-मोटे दो कम्बल ओढ़ रखे हैं। मुझे ठण्ड लग रही है।

दरवाज़े पर दस्तक होती है। मैं बैठकर अपने फोन में टाइम देखती हूँ : 12:45। रात के इस वक़्त कौन हो सकता है? एक बार और खटखट होती है। मैं फोन हाथ में लिए बिस्तर से उतर जाती हूँ। मुझे अपने मोजों के अन्दर भी फर्श की ठंडक महसूस हो रही है। मैं दरवाज़े तक पहुँचती हूँ।

‘कौन है?’ मैं पूछती हूँ।

‘मुझे माफ कीजिएगा, लेकिन मैं यह जानना चाह रहा था कि क्या आपके पास ऐक्स्ट्रा सिगरेट हैं?’ दूसरी तरफ से एक आदमी जानना चाह रहा था। घबड़ाहट के मारे मेरा हलक सूखने लगता है। यह क्या हो रहा है? या यह सब कल्पना है? तीसरी दस्तक हल्की लगती है। मैं दरवाज़ा खोल देती हूँ।