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अवकाश

 

पहला अलार्म : सुबह 5:30

दक्षिण कोलकाता के सम्भ्रांत इलाक़े न्यू अलीपुर में अगर कोई अजनबी मेरे घर को तलाशता आए तो उसको मेरा नाम जानते अधिक देर नहीं लगेगी – राधिका। अगर वह दरवाज़े के पास लगी नेमप्लेट को देख ले, तो उसको मेरा पूरा नाम पता चल जाएगा – राधिका बोस। यही नहीं, उसको ठीक-ठीक यह भी पता चल जाएगा कि मेरे घर में कुल कितने लोग रहते हैं – ग्यारह। वह घर जिसमें सबके होंठों पर मेरा नाम रहता है, ख़ासकर सुबह के समय। 34 साल की उम्र में मैं बोस परिवार की सबसे बड़ी बहू हूँ। मेरी आठ साल की एक बेटी है, प्यार करने वाला एक पति है, मेरे सास-ससुर हैं, दो छोटे देवर हैं, उनकी पत्नियाँ और बच्चे हैं। मेरी शादी सबकी पसंद से हुई थी। उस समय मेरी उम्र थी बाईस साल। मेरे पति का कहना है कि जब उसने मुझे पहली बार देखा था तो अपनी बड़ी, गोल, गहरी आँखों के कारण मैं माँ दुर्गा की तरह लगी थी। यह जानकर खुशी हुई, लेकिन मुझे अधिक खुशी हुई होती अगर उसने यह कहा होता कि मुझे देखकर उसे मैडोना की याद आई।

वैसे उस समय मैं इस बात को समझ नहीं पाई थी, लेकिन बारह साल बाद मैं एक बात समझ पाई हूँ। मेरा पति मेरी बहुत इज्जत करता है, जो बड़ी बात है। काश मेरे पति जैसे और मर्द भी हों। लेकिन यह बात भी सही है कि जब दो लोग एक दूसरे का बहुत अधिक सम्मान करते हैं तो उनके बीच कभी न भरने वाली एक गहरी खाई भी बन जाती है। मेरे और मेरे पति के बीच सब कुछ बिलकुल सही है, लेकिन फिर भी एक दूरी है। मेरे परिवार में सभी मुझे प्यार करते हैं, लेकिन फिर भी एक बात है जो कहते हुए हो सकता है कि कड़वी लगे, मुझे ऐसा महसूस होता है जैसे कि मैं यहाँ बंदी हूँ। कारण यह है कि मैं इस तरह की रही ही नहीं जो घरेलू जीवन जीना चाहती हो, लेकिन कम उम्र में ही मजबूर होकर मुझे बनना पड़ा। अपनी नई भूमिका को समझने में मुझे कुछ साल लग गए, और उसके बाद मिनी का जन्म हुआ। समय उड़ता गया और मुझे अपने परिवार के सिवाय किसी और बात के ऊपर सोचने का मौक़ा भी नहीं मिला। अब मेरे पास समय है, तो मैं सोचती हूँ, मैं भी अपने दोस्तों की तरह काम क्यों नहीं कर सकती? उनकी तरह मैं भी आर्थिक रूप से आजाद क्यों नहीं हो सकती? मैं किसी को इसका दोष नहीं दे रही, लेकिन मुझे कई बार अपने ऊपर अफसोस होता है। मैं अपने लिए दुःखी हो जाती हूँ। मुझे याद है मैंने अपने पति से कहा कि मुझे जिम जाना है। मुझे जाने की अनुमति देने से पहले उसे करीब एक महीने तक अपने माता-पिता को समझाना पड़ा। मैं घर से साड़ी पहनकर निकलती, जिम पहुँचकर वहाँ के कपड़ों में आ जाती और फिर साड़ी पहनकर वापस आ जाती। प्यार है, सम्मान है. . . लेकिन जिस दिन नई वधु के रूप में मैंने इस घर में कदम रखा था उस दिन से मुझे ऐसा लगता है मानो मैं बंधन में हूँ। मैं अपनी देवरानियों को देखती हूँ तो पाती हूँ उनको इस तरह की घरेलू जिम्मेदारियों की परेशानी नहीं है। हो सकता है कि वे इस बात को महसूस ही नहीं करती हों, एक बार जब आपको इसका अहसास हो जाता है, तो फिर उनके साथ रह पाना मुश्किल होता जाता है। लेकिन उनके बिना रह पाना बहुत बड़ी बात है?

मैंने इन बातों के बारे में स्कूल के जमाने की अपनी सबसे अच्छी दोस्त से बात करने की कोशिश की, उसने मुझे कहा कि मैं सच्चाई से भाग रही हूँ और स्वार्थी भी हो रही हूँ। उसने कहा कि कुछ लोग बहुत अधिक अच्छाई को पचा नहीं पाते। और मेरे साथ यही हो रहा था। मैं यह मानती हूँ कि ऐसे लोग भी हैं, जिनके साथ मुझसे बहुत अधिक बुरा हुआ। लेकिन क्या इस कारण से मैं अपनी उस भावना को परे कर दूँ, जो मुझे खाए जा रही है? मुझे ऐसा लगता है कि औरत परिवार के केंद्र में रहकर उसको संतुलित बनाए रखती है। उसका एक भी अप्रत्याशित कदम उस संतुलन को भंग कर सकता है। और इसके लिए कोई भी तैयार नहीं रहता। कई बार हम स्वयं ही किसी बदलाव के लिए तैयार नहीं रहते। लेकिन पिछले तीन महीने से मैं खुद को किसी चीज के लिए तैयार कर रही हूँ। यह संतुलन को किसी भी तरह से भंग नहीं करेगा, लेकिन मुझे ज़िंदगी का अनुभव एक अलग तरीक़े से करवाएगा।

आज जिस वक़्त अलार्म बजा, उस वक़्त तक मैं जग चुकी थी। मैं सोई ही नहीं थी। आज मुझे अपने पति को इस बारे में बता देने की जरूरत है (जो बाद में सभी बता देंगे) कि मेरा अवकाश है। मैं अपने कॉलेज के दिनों की दोस्त से मिलने के लिए दिल्ली जा रही हूँ, जो मृत्यु-शैय्या पर है। मेरे कुछ और दोस्त भी उसको देखने के लिए जा रहे हैं। अपनी शादी के बाद से मैं पहली बार अकेले सफर करूँगी। मैं अपने परिवार को यह बता दूँगी कि मैं दो दिनों के लिए जा रही हूँ। लेकिन फिर धीरे-धीरे अपने अवकाश को बढ़ाकर एक सप्ताह तक के लिए कर लूँगी। मैंने अपने दिमाग़ में इस बात को सैकड़ों दफा दोहरा लिया है कि मुझे कहना क्या है? मेरी योजना सफल होती है या असफल यह इस बात के ऊपर निर्भर करती है कि मैं कितने आत्मविश्वास के साथ अपनी बात कह पाती हूँ। मैं अपनी योजना की असफलता का भार नहीं सह सकती, क्योंकि इससे मेरी ज़िंदगी फिर कुछ भी नहीं रह जाएगी। बारह सालों में मैं पहली बार उनसे झूठ बोलूँगी। यह बहुत बड़ा खतरा है। मैं जानती हूँ। पकडे़ जाने के बाद के बारे में सोच-सोच कर मैं डर जाती हूँ, लेकिन जब मैं यह सोचती हूँ कि शायद मैं इस काम को कर सकती हूँ, तो मैं जोश से भर जाती हूँ। मिनी को स्कूल भेजने के बाद और नाश्ते से ठीक पहले जब मेरे पति द ़फ्रतर जाने के लिए तैयार हो रहे हों, तब मैं उनको अपने सफर के बारे में बता दूँगी। मेरे पेट में गुदगुदी हो रही है। आिख़रकार यह कोई सामान्य छुट्टी नहीं है, मैं जिस छुट्टी पर जा रही हूँ वह सेक्स के लिए ली गई छुट्टी है। मैं एक गहरी साँस लेती हूँ, कुछ देर रोककर छोड़ देती हूँ। मैं उठ जाती हूँ।

दूसरा अलार्म : 10.30 रात

मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा है कि मैंने यह कर दिया। मेरे पति मेरी कहानी में उलझ जाते हैं। वह सारी बात अपने माँ पिता को बताते हैं और वे भी मान जाते हैं। और अब मैं दिल्ली के रास्ते में हूँ। मेरे पति और मेरी बेटी मुझे छोड़ने के लिए हवाई अड्डे तक आते हैं। मेरी आँखें नम हैं और मैं मिनी को अलविदा कहती हूँ। मुझे उम्मीद थी कि बड़ी होकर जब उसको मेरी इस छुट्टी का कारण पता चलेगा, तो वह इस बात को समझ नहीं पाएगी। अगर वह इस बात को समझ गई तो इसका मतलब होगा कि वह भी उस दौर से गुज़री है, जिस दौर से मैं गुज़री। खुद को ग़लत समझे जाने की कीमत पर भी मैं यह चाहती थी कि मेरी बेटी का भविष्य वैसा न हो।

यह सब उस दिन शुरू हुआ जिस दिन मैंने फेसबुक पर अतुलित नामक एक आदमी की फ्रेंड रिक्वेस्ट स्वीकार की। उसमें ऐसा कुछ भी नहीं है, जो बहुत चमक-दमक वाला हो। वह 25 साल का है, वह इंजीनियर है और आजकल सिविल सेवा की परीक्षा की तैयारी कर रहा है। पिछले साल उसने प्रारंभिक परीक्षा पास कर ली थी लेकिन मुख्य परीक्षा पास नहीं कर पाया। इस साल उसको पूरा विश्वास है कि वह दोनों परीक्षाओं में पास हो जाएगा। वह बिहार के एक छोटे से कस्बे का रहने वाला है और गुरुग्राम में दो कमरों के फ्रलैट में अकेले रहता है। वह घर असल में उसके चाचा का है, जो अमेरिका में रहते हैं।

पता नहीं क्यों मैंने फेसबुक मैसेंजर में उसके साथ बातचीत शुरू कर दी, एक दूसरे को अपने नंबर दे दिए (उसका नंबर मुझे एक महिला के नाम से सेव करना पड़ा), और क्यों मैंने उसके साथ एक सप्ताह बिताने का फैसला किया। मेरे नई दिल्ली जाने का असली कारण अतुलित ही है। लेकिन हो सकता है यह बात पूरी तरह से सही नहीं हो। उसके कारण से मैं आज इस फ्लाईट में हूँ।

मैं अराइवल गेट से अपना सूटकेस घसीट कर बाहर निकालती हूँ और सामने की भीड़ में अतुलित को तलाश करने लगती हूँ। वैसे मैंने उससे कहा था कि वह मुझे लेने के लिए एयरपोर्ट न आए लेकिन वह जोर दे रहा था। मुझे किसी से पहली बार हवाई अड्डे पर मिलना अजीब लग रहा है। विमान से उतरने के बाद मैं तत्काल बाथरूम में गई, ताकि इस बात को पक्का कर सकूँ कि मैं अच्छी लगूँ। उसको देख पाने में मुझे अधिक समय नहीं लगता। मेरा दिल धड़क रहा है। वह मुझे देखकर हाथ हिलाता है। मुझे हमेशा ऐसा लगता था कि मैं अपनी तस्वीरों में जैसी दिखती हूँ असल में उससे अलग हूँ, लेकिन जिस तरह से उसने देखते ही मुझे पहचान लिया, उससे मुझे यह महसूस हुआ कि शायद मैं ग़लत थी। मैं भी उसको देखकर हाथ हिला देती हूँ। वैसे तो हम एक दूसरे को गले लगाने के बारे में चैट में बातें करते थे, लेकिन मिलने पर यह अजीब लग रहा है। हम हाथ मिला लेते हैं। उसकी कार में बैठते ही मैं अपने साहस को वापस बटोरती हूँ। एक गृहिणी जो अपने सास-ससुर और पति को झूठ बोलकर दिल्ली में अपने से छोटे एक पुरुष से मिलने आई है। यह सोचकर ही मुझे गुदगुदी होने लगी। मैं खुद को चिकोटी काटकर देखती हूँ कि सब वास्तविक तो है न। जब हम एक ट्रैफिक सिग्नल पर रुकते हैं, तो अतुलित अपने हाथ मेरे हाथ पर रख देता है। यह छुअन उससे काफी अलग है, जो हाथ मिलाते व ़ क्त महसूस हुई। यह सब सच में हो रहा है सोचकर बहुत अच्छा महसूस हो रहा है। हम एक-दूसरे की ऊँगलियों में ऊँगलियों को फँसा लेते हैं, लेकिन जल्दी ही हमें अलग हो जाना पड़ता है, क्योंकि बत्ती हरी हो जाती है। मेरे पति का फोन आता है। मैं उनको बताती हूँ कि मैंने केब ले ली है और मैं अपने दोस्त के घर की तरफ जा रही हूँ। जब कॉल पूरी हो जाती है तो मैं अतुलित की तरफ देखकर अजीब तरह से मुसकुराती हूँ।

जब वह अपने अपार्टमेंट का दरवाज़ा खोलता है तो मेरे पेट में मरोड़ उठने लगती है। मुझे पता है कि अगले सात दिन तक इसके अन्दर क्या होने वाला है। मैं जानती हूँ कि एक बार अन्दर कदम रखने के बाद किसी तरह की वापसी नहीं होने वाली। मेरी कल्पना धीरे-धीरे वास्तविकता में बदल रही है।

अतुलित मेरे अन्दर आने का इन्तजार कर रहा है। इसलिए मैं जल्दी से अन्दर चली जाती हूँ। मैं उस जगह को इधर-उधर अधिक नहीं देखती। वह मुझे एक सोफे पर बैठने के लिए कहता है और पानी लाने के लिए चला जाता है। मैं गहरी साँस लेती हूँ। मुझे अचानक अपने पति की याद आने लगती है, अपने सास-ससुर की, अपनी बेटी की, अपनी दुनिया की। क्या मैं सच में कुछ ग़लत कर रही हूँ? किसी से पूछिए और जवाब बड़ी उग्रता से आएगा कि हाँ।

‘तुम ज़रूर थक गई हो। आज रात तुम सो क्यों नहीं जाती? दूसरा कमरा तुम्हारे लिए है। कल सुबह बातें करते हैं’, वह कहता है। मुझे इस बात की खुशी महसूस होती है कि वह बिलकुल वही आदमी निकला, जो चैट करते वक़्त होता था। मैं सर हिलाकर कमरे में चली जाती हूँ। कमरा अच्छी तरह से सुसज्जित है, लेकिन ऐसा लग रहा है मानो उसमें बहुत दिनों से कोई रहा नहीं हो। मैं बाथरूम में जाकर कपड़े बदलती हूँ, कमरे का दरवाज़ा अन्दर से बंद करती हूँ और सोने की कोशिश करने लगती हूँ। जब मेरे फोन का अलार्म बजता है, तो मेरा मन करता है कि अपने पति को फोन करूँ। रात के साढ़े दस बज चुके हैं। यह समय है जब मेरे ससुर ब्लड शुगर की दवा लेते हैं। मैं ही उनको रोज इस बारे में याद दिलाती हूँ।

तीसरा अलार्म : सुबह 9:30

इससे पहले मैं सुबह 9 बजे तब उठी थी, जब मैं कॉलेज में पढ़ती थी। मुझे खुशी हुई; मैं बहुत दिनों बाद अपनी सुबह जी रही हूँ। मैं एक पत्नी, माँ, और बहू के रूप में जी चुकी हूँ, लेकिन अभी तक अपनी ज़िंदगी नहीं जी पाई हूँ। अभी तक हर सुबह उठते ही मुझे नाश्ते की चिंता होती रही है। एक बार जब वह हो जाता, तो रोजमर्रा के काम निपटाए जाते, फिर दोपहर का भोजन, मिनी का होमवर्क, मेरे सास-ससुर की शाम की चाय के साथ में खाने के लिए कुछ नाश्ता तैयार करना, और अंत में रात का खाना। और यह याद दिला दूँ, कि यह एक दिन का काम नहीं है। सप्ताह में सात दिन और साल के 365 दिन की यही दिनचर्या है। इस कारण मुझे आगे की योजना बनाने की आदत इतनी पड़ चुकी है कि मैं इस पल को महसूस नहीं कर पा रही हूँ। इस पल मैं गुरुग्राम में अतुलित के फ्रलैट में हूँ . . . मेरे बिस्तर से कुछ दूरी पर एक अजनबी सोया हुआ है . . . क्या सच में मैं यहाँ हूँ?

मैं अपना फोन उठाती हूँ। मेरे पति का न तो कोई फोन आया है न ही कोई मैसेज। मैंने उनको कहा था कि मैं अपने दोस्तों के साथ रहूँगी इसलिए मैं ही उनको अपना हाल समाचार देती रहूँगी। उन्होंने मुझसे कोई सवाल नहीं पूछा था। या तो वे मेरे ऊपर बहुत अधिक विश्वास करते हैं या उनको ऐसा महसूस होता है कि वे मेरे बारे में बहुत कुछ जानते हैं। या वे मुझे ऐसा समझते हैं कि यह विचार ही उनको बेतुका और असम्भव लगता है कि मैं उसके साथ किसी तरह का धोखा कर सकती हूँ। शादी के बाद वह मुझे लेकर बहुत गंभीर रहते थे। लेकिन मिनी के जन्म के बाद उनके इस लगाव में कुछ कमी आ गई। हो सकता है कि उन्होंने इसलिए मेरी परवाह करनी छोड़ दी हो, क्योंकि उनको ऐसा लगता हो कि अब मैं किसी के लिए आकर्षक नहीं रह गई थी? मानो विवाह करने से किसी औरत की कामनाएँ समाप्त हो जाती हैं और माँ बनने से अपनी स्वतंत्र इच्छा शक्ति का अंत हो जाता है। एक पति आपसे सम्पूर्ण समर्पण चाहता है। दोनों के बीच न जाने कितनी ख्वाहिशें चुपचाप दम तोड़ देती हैं।

मुझे दरवाज़े पर आहट सुनाई देती है। मैं बिस्तर से उठकर दरवाज़ा खोल देती हूँ।

‘गुड़ मॉर्निंग’, अतुलित के हाथ में ट्रे है। वह नाश्ता लेकर आया है : सौसेज, अंडे, बेकन और कॉफी। मुझे याद आया कि मैंने उससे कहा था कि मुझे इंग्लिश ब्रेकफास्ट बहुत पसंद है। उसे याद था। अचानक मुझे अपनी अहमियत महसूस होने लगती है।

‘तुम अच्छी तरह सोई थी सयेशा?’ उसने ट्रे को बगल की मेज पर रखते हुए कहा।

फेसबुक पर मैं सयेशा सेन हूँ। वैसे मेरे प्रोफाइल फोटो में मेरी तस्वीर तो सही है लेकिन मैंने जान-बूझकर अपना नाम बदल लिया है। मेरा परिवार, मेरे पति के परिवार के लोग, भाई-बहन, दफ़्तर के सहकर्मी सभी फेसबुक पर हैं। मैं उन लोगों से मुक्त होना चाहती थी, जिन लोगों को मैं पहले से जानती थी और मैं अपने आपसे अजनबियों से जुड़ना चाहती थी। अगर मेरे अन्दर यह ख्वाहिश नहीं रही होती तो मैं कभी अतुलित से नहीं मिली होती। मैं उसको सही करते हुए अपना असली नाम नहीं बताती। मैं झूठ को झूठ ही बने रहना चाहती हूँ। एक बार घर वापस जाने के बाद मैं अपने फेसबुक प्रोफाइल को बंद कर देना चाहती हूँ, अपना फोन नंबर बदल लेना चाहती हूँ, और आभासी संसार से अपने आपको इस तरह गायब कर लेना चाहती हूँ मानो वहाँ मेरा कोई वजूद ही न रहा हो।

‘हाँ, मुझे आई थी।’

‘यह तुम्हारे लिए है’, वह मुस्कुराते हुए कहता है।

‘मैं ब्रश करने से पहले कुछ नहीं खाती’, मैं उससे मुस्कुराते हुए कहती हूँ।

वह मुझे देखता रहता है और उसकी मुस्कराहट बढ़ती जाती है। ‘याद है?’

मुझे पता है कि उसके दिमाग़ में क्या है? उसने मुझे कहा था कि वह सुबह के समय मुझे स्मूच करेगा, पागलों की तरह जूठे मुँह एक दूसरे का स्मूच। मैंने उससे कहा था कि मैंने ऐसी कोई कल्पना नहीं की है। मुझे याद आया कि मैंने उससे ऐसा कहा था क्योंकि इस तरह के जितने चैट किए जाते हैं वे यह मानकर किए जाते हैं, कि इनमें से कुछ भी सही नहीं होने वाला। अतुलित कुछ पास आ जाता है। वह मुझसे करीब पाँच इंच बड़ा है। वह दुबला पतला है, लेकिन जब अपने दोनों हाथों से मुझे थामता है तो बहुत मजबूत लगता है। मेरा हलक सूखने लगता है। मुझे ऐसा लगता है जैसे मैं शिकार हो गई हूँ। और इस कमरे की चार दीवारों के पीछे, जहाँ कोई नहीं जानता कि हम वहाँ हैं, इसके साथ एक परेशान करने वाली उत्तेजना हो रही है।

‘मुझे ऐसा लगता है कि तुमको एक बार अपने कायदे बदलने में बुरा नहीं लगेगा’, वह फुसफुसाता हुआ कहता है और मुझे चूमने के इरादे से आगे की तरफ झुकता है। हम तब तक एक-दूसरे को चूमते रहते हैं, जब तक कि हमारे जबड़ों में दर्द नहीं हो जाता। उसके बाद दो घंटे तक जो हुआ वह अभी भी मुझे स्तब्ध कर देता है। मैंने हर वह काम किया जो मैंने कभी सोचा भी न हो। मैंने काट लिया, नोच लिया, जोर-जोर से सीत्कारें भरने लगी, ऐसी-ऐसी मुद्राओं में सम्भोग किया, जिनमें पहले कभी नहीं किया था। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं आजाद हो गई हूँ, मुझे अपने शरीर का महत्व समझ में आ रहा है, अपना महत्व समझ में आ रहा है। उसके ऊपर न जाने कितनी देर तक सवार रहने के बाद जब उसकी बगल में लेटी, तब मुझे समझ में आया कि यह मेरे लिए कितनी अनहोनी-सी बात थी। ऐसा नहीं है कि मैंने अपने बारे में ऐसा सोचा नहीं था, बल्कि कभी ऐसा किया नहीं था। इतने सालों के दौरान मैंने यह समझ लिया था कि मैं सेक्स के मामले में अपने पति से संतुष्ट नहीं हो पाई, मुझे हमेशा ऐसा लगता था कि अगर मैंने जोर से सीत्कार भरी तो पता नहीं वह क्या सोचे, अगर मैंने उनको यह कहा कि मुझे खूब मस्ती करते हुए सेक्स करना पसंद है तो न जाने क्या हो? मैं उनके साथ कभी पूरी तरह से ईमानदार नहीं रह पाई। मैं इस बात को समझ गई कि जब आप किसी इंसान के साथ रोज-रोज रहते हैं, तो उसको अपना गन्दा रूप दिखाना आसान नहीं होता। जब तक कि इस बात का भरोसा नहीं हो कि सामने वाला मुझे उसी रूप में नहीं देखेगा। जहाँ तक मेरी बात है, तो मुझे इस तरह का भरोसा कभी नहीं हुआ।

चौथा अलार्म : सुबह 4 बजे

कल सुबह मुझे उस समय यह बात सूझी जब हमने भावनात्मक और शारीरिक रूप से जी भर कर सेक्स कर लिया था और एक दूसरे के तलवों को तलवों से सहलाते हुए लेटे हुए थे। मेरी शादी सभी की सहमति से हुई थी। अपने पति के साथ सोने से पहले मैं उनको अच्छी तरह जानती भी नहीं थी। मेरी तरफ से न का भाव था, जिसको उन्होंने अपने बल से दबा दिया। मुझे लगता है कि यह ज़रूरी था, नहीं तो मैं कभी कुछ नहीं कर पाती। क्या मैं सहज थी? यह अलग कहानी है। हालाँकि, अनजाने में अतुलित के साथ यह सब अलग तरह से हुआ। हम चैट करते थे और बीच-बीच में फोन पर भी बात करते थे। जब मैं उससे मिली तो मुझे ऐसा लगा कि मैं उसको जानती थी। इसी जानकारी की वजह से पिछली सुबह सेक्स करते समय मुझे कुछ हद तक सहज महसूस हुआ।

हम हमेशा लोगों के बारे में इस आधार पर राय बनाते हैं कि सेक्स के सम्बन्ध में उनकी प्राथमिकता क्या है, बजाय यह जानने के कि असल मतलब भावनाओं का होता है। मैं गुरुग्राम सेक्स करने के लिए नहीं आई थी। अगर सेक्स करना ही मकसद रहा होता तो मैं कोलकाता में ही कर लेती और किसी को पता भी नहीं चलता। यह अवकाश और कारणों से लिया गया था : इस बात में विश्वास करने के लिए अपने पति के अलावा भी कोई मेरी ख्वाहिश रखता है, कि मेरे जीवन में मेरे परिवार से भी अधिक कुछ है, कि मैं पारिवारिक रिश्तों का शिकार ही नहीं हूँ, कि मैं पत्नी, माँ, और बहू के रूप में अपनी भूमिका का संतुलन भंग किए बिना भी एक अलग जीवन जी सकती हूँ।

मैं वीडियो कॉल के द्वारा मिनी का होमवर्क पूरा करवा पाने में सफल रही। कल रात मैंने अपने झूठ-मूठ की दोस्त के स्वास्थ्य के बारे में अपने पति को बताया, उनसे घर में सभी के बारे में जानकारी ली। मैंने झूठ जरूर बोला था, लेकिन मैंने अपने कर्तव्यों से कोताही नहीं की। और मुझे इससे अच्छा लग रहा है। ईमानदारी से कहूँ तो अतुलित को लेकर मेरे मन में शंकाएँ थी। अगर वह कोई ग़लत आदमी निकला होता, तो मैं तत्काल लौट जाती। लेकिन राहत की बात यह है कि वह ऐसा कुछ भी नहीं है। हमने साइबर हब में बर्मा बर्मा नामक एक बर्मी रेस्तराँ में खाना खाया। वह बातें बहुत करता है, जो मुझे बहुत अच्छा लगता है। मैं जानती हूँ कि वह मुझे प्रभावित करने की कोशिश कर रहा है। मैंने यह भी महसूस किया कि वह जिस तरह से मुझे देखता है उससे लगता है कि वह मुझसे बहुत प्रभावित है; वह बहुत सभ्य इंसान है और मेरे आराम को बहुत तरजीह देता है। मैं खुद को बहुत जीवंत महसूस कर रही हूँ। कई बार मुझे लगता है कि हम यही तो चाहते हैं कि कोई हमारा ध्यान रखे, हमारी परवाह करे। लेकिन मैं इस बात को भी समझती हूँ कि हमारी यह मौज-मस्ती अगर एक सप्ताह से आगे खिंच गई तो अतुलित का प्यार भी कम पड़ने लगेगा। और हो सकता है कि वह भी मेरे पति जैसा बन जाए। मैं कितना चाहती हूँ कि हम अपने घरेलू संगियों से इसको छिपाकर रखें। लेकिन फिर मैं इस बात को भी जानती हूँ कि पारिवारिक संबंधों का यही सार होता है : नीरस और एकरस। हम सबके अन्दर गहरी भावनात्मक उथल-पुथल मची होती है। – कुछ लोग आसानी से इससे पार पा लेते हैं और कुछ नहीं कर पाते। बारह सालों से मैं इस खोज के लिए व्याकुल थी और अब मुझे इस बात की खुशी है कि मुझे यह मिल गया है।

हम फिल्म देखने गए और उसके बाद लंच करने के लिए कनॉट प्लेस में उसके एक पसंदीदा रेस्तराँ में गए। वह सेल्फी लेना चाहता था, लेकिन जब मैंने उससे कहा कि तस्वीरों से मैं असहज हो जाती हूँ तो उसने जोर नहीं दिया। वह मेरे लिए खरीदारी करना चाहता था, लेकिन मैं इसको लेकर सख्त थी। मैंने उसको ऐसा करने की अनुमति नहीं दी। शायद वह इस बात को नहीं समझता था कि मैं दिल्ली उसके कारण नहीं आई थी, बल्कि अपने लिए आई थी। मैं इस बात के लिए उसको इल्जाम नहीं दूँगी कि वह मेरी इस यात्र को इस रूप में समझ ले कि मैंने यह हमारे लिए किया था। जब यह सब समाप्त होगा, तो वह हमेशा-हमेशा के लिए मुझसे नफरत करने लगेगा। मैं इस बात को जानती हूँ। लेकिन मुझे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता। पहली बार मैं स्वार्थी हो रही हूँ। अगर अपने लिए जीने की यही कीमत चुकानी है, तो मुझे लगता है कि ठीक है।

हम गुरुग्राम वापस आ गए। अतुलित मुझे अम्यूजमेंट पार्क ले जाना चाहता था। लेकिन मैंने उसको याद दिलाया कि मैं उसके फ्रलैट में ही रहना चाहूँगी। अलार्म बजता है। मिनी के साथ वीडियो कॉल पर बात करने का समय हो गया है। मुझे उसका होमवर्क पूरा करवाना है। मुझे महसूस हो रहा है कि अतुलित चिढ़ गया है, लेकिन वह कहता है, ‘इसके बाद मैं क्या कह सकता हूँ। ठीक है?’

मैं मुस्कुराकर सर हिला देती हूँ।

कुछ घंटों में मैं इस वास्तविकता में लौट जाऊँगी, मैं अपने आप से कहती हूँ।

पाँचवाँ अलार्म : 9 बजे रात्रि

चालीस घंटे से भी अधिक समय बीत गया है और हम अपार्टमेंट से नहीं निकले हैं। मैं उसके ध्यान के केंद्र में रही हूँ। कितना अच्छा लगता है कि आप किसी के लिए कुछ मायने रखते हैं, चाहे वह कुछ दिनों के लिए ही क्यों न हो या सप्ताह भर के लिए ही सही। मैं उस शब्द की तरह महसूस कर रही हूँ, जो अपने अस्तित्व को लेकर तब तक भटकता रहता है, जब तक कि हम शब्दकोश में उसके अर्थ को नहीं जान लेते। अतुलित इस समय मेरा शब्दकोश है, जिसमें मैं अपने अलग अलग अर्थों के बारे में पढ़ रही हूँ। कितनी अजीब बात है कि किस तरह अलग-अलग लोग आपके अलग-अलग अर्थों के बारे में आपको अहसास दिलाते हैं। शादी के शुरूआती दिनों में मेरे पति मेरे बारे में कुछ और ही समझते थे, उनके लिए मेरा कुछ अलग ही अर्थ था। वह हमेशा मेरे साथ शरारत करने की कोशिश करते थे। मुझे भी मजा आता था। लेकिन पता नहीं कब यह भूत उतर गया। आजकल, हम लोग महीनों किसी तरह का शारीरिक सम्बन्ध नहीं बनाते, और एक दूसरे से यह भी नहीं कहते, ‘सुनो, हमें करना चाहिए। बहुत दिन हो गए।’

रिश्ते उपहारों से भरे झोले की तरह होते हैं। जैसे ही हमें मिलता है हम खोलने के लिए जोश में आ जाते हैं। लेकिन जब हमें इस बारे में पता चल जाता है कि उपहार में क्या क्या है तो जोश ठण्डा पड़ जाता है। मैं और मेरे पति शुरूआती दिनों में उसी उत्साह भरी स्थिति में थे। लेकिन अतुलित के साथ मेरा अभी शुरू ही हुआ है। सम्भोग करते-करते, मैं उसको देखकर अपने आपमें मुस्कुराने लगती हूँ। उसने एक बार मुझे कहा था कि मैं अपने परिवार को छोड़कर उसके साथ रहने लगूँ। कितना भोला है वह। उसको सच में ऐसा लगता है कि सब कुछ छोड़ना इतना आसान होता है। उसको असल में ऐसा लगता है कि मैं उसके साथ इसलिए हूँ, क्योंकि मेरा अपने परिवार से मन भर गया है। नहीं! यह कोई भागने का मामला नहीं है। न ही ऐसा है कि मैं भगोड़ी किस्म की हूँ। यह तो बस एक अवकाश है। और इस तरह के अवकाश अस्थायी होते हैं। इनका मकसद होता है खुद को दुबारा से जवान बनाना। जीवन की एकरसता को फिर से स्वीकार करने के लिए अपने आपको तैयार करने के लिए शायद। लेकिन मैंने अतुलित को कुछ बताया नहीं है। जब भी वह भविष्य के बारे में बात करता है, तो मैं सर हिलाती रहती हूँ। मैं बस इस बात का ध्यान रख रही हूँ कि झूठी उम्मीद जगाकर और झूठे वादे करके मैं उसको किसी तरह के भ्रम में न डालूँ।

हम उसके बाथरूम में शावर के नीचे फर्श पर बैठे हुए हैं। वह मेरे पीछे बैठा है। हमलोग धर-पकड़ कर रहे हैं। अतुलित कुछ कह रहा है। मैं उसको मुश्किल से सुन पाती हूँ। मैं सिर्फ़ उसके हाथों को सहलाती रहती हूँ। वह बहुत कम उम्र का है। वह अभी दो लोगों के बीच की चुप्पी और उसके पीछे के रोमांस को नहीं समझ पाया है। कोई शब्द नहीं, न छूना, न ही देखना, बस इस बात की समझ कि आप जिस व्यक्ति के साथ होना चाहते हैं, वह आपकी बगल में बैठा है। मैंने अपने पति के साथ कई बार ऐसा करने की कोशिश की है, लेकिन उनकी चुप्पी अलग तरह की होती है। उनकी खामोशी कभी मेरे होने को स्वीकार नहीं करती।

अब हम उसकी बालकनी में बैठे हैं। वह सिगरेट पीते हुए बियर के घूँट लगा रहा है। मैं अदरख वाली चाय पी रही हूँ। मुझे नए माहौल के अनुकूल होने में तीन चार दिन लग गए। पहले मुझे ऐसा लगता था जैसे यह सब मेरी नींद में हो रहा हो। कोई मुझे जगा देगा और तब मुझे समझ में आ जाएगा कि सब सपना था। लेकिन पिछली रात से मैं धीरे-धीरे अपनी नई वास्तविकता से अनुकूल हो रही हूँ। शायद इसलिए भी क्योंकि मुझे लगने लगा है कि मेरी छुट्टी के दिन पूरे होने वाले हैं। जितना संभव हो सकता है उतना ही मैं हर पल को जीने की कोशिश कर रही हूँ। शायद इसलिए क्योंकि मुझे यह लगने लगा है कि मेरा यह अवकाश अब पूरा होने वाला है। मैं कोशिश कर रही हूँ कि इसके हर पल को जितना संभव हो सके जी लूँ। बस यही सोचती हूँ कि काश अतुलित थोड़ा और परिपक्व होता। ऐसा नहीं है कि अगर वह थोड़ा और परिपक्व होता तो मैंने अपनी छुट्टी की अवधि बढ़ा दी होती। जब कोई लहरों की सवारी पर निकलता है, तो वह यह दुआ नहीं करता है कि उसको छोटी-छोटी लहरें मिलें, हालाँकि उनके ऊपर सवारी करने से भी उत्तेजना पैदा होती है, लेकिन बड़ी लहरें उसकी कहानी का हिस्सा बन जाएँगी। अतुलित कभी मेरी कहानी का हिस्सा नहीं बन पाएगा। इतना तो मैं समझती हूँ। अब चूँकि इस सफर से मुझे किसी तरह की उम्मीद नहीं है इसलिए मुझे किसी तरह की निराशा नहीं है। जैसे-जैसे एक-एक पल बीतता जा रहा है, मैं सोच रही हूँ कि क्या ज़िंदगी में फिर कभी मैं इतनी हिम्मत जुटा पाऊँगी कि इस तरह की छुट्टी पर जा सकूँ। मुझे नहीं लगता। इसके लिए बहुत-सी बातों को सही होना आवश्यक है। मेरा ध्यान गया कि अतुलित मुझे देख रहा है। उसकी बियर खत्म हो चुकी है।

वह मेरे पास आकर मेरी कमर में हाथ डाल देता है। मुझे उसके स्पर्श की आदत पड़ चुकी है। वह करीब खींचकर मुझे चूम लेता है। उसके बाद स्मूच शुरू हो जाता है। मुझे उसकी बियर का स्वाद मिलता है उसको मेरी कॉफी का। मैं करीब-करीब खो चुकी होती हूँ कि मुझे अलार्म की आवाज़ सुनाई देती है। वे मेरी कहानी का हिस्सा हैं। मेरे विवाहित जीवन का सबसे बड़ा उपहार है : समय को लेकर सतत सजगता। अतुलित और जोर से मुझे चूमने लगता है कि मैं खुद को उसके बंधन से आजाद कर लेती हूँ। आख़िरकार, मुझे अपने पति को फोन करने का समय हो गया है। मुझे उनको यह बताना ज़रूरी है कि मेरी जो दोस्त साँस ले रही थी, उसकी साँस अब थम चुकी है। और मैं अगले दिन घर वापस आ जाऊँगी।

छठा अलार्म : 8.45 शाम

आज मेरी छुट्टी का आख़िरी दिन है। मुझे ध्यान आया कि कल रात मैं सो नहीं पाई थी। लेकिन सम्बन्ध बनाने के बाद मैं बहुत देर तक निढाल पड़ी रही। अतुलित साफ तौर पर उदास लग रहा है। यह देखकर कि एक आदमी मेरी जुदाई को सहन नहीं कर पा रहा है मेरे मन में भावनाएँ जाग रही हैं। मैंने ऐसा कभी नहीं देखा है। मैं कभी उसके लिए उलझन भरी परेशानी का कारण नहीं रही।

‘रुक जाओ’, वह मिन्नत करता है। मैं कुछ नहीं कहती और उसके माथे को चूम लेती हूँ। चुम्बन हमेशा भावनाओं से भरपूर होती हैं। किसी को हमारा चूमना बड़ी-बड़ी भावनात्मक बातों के ऊपर भी भारी पड़ जाता है। अगर कोई इसको अच्छी तरह और सच्ची तरह महसूस करता है, तो इस संबंध में कहने के लिए कुछ नहीं रह जाता। न ही किसी तरह की गलतफहमी। मैं यह सोच रही हूँ कि क्या इससे पहले मैंने किसी को इस प्यार से चूमा था। मैं और मेरे पति आमतौर पर सेक्स करने से पहले एक दूसरे को चूमा करते हैं। वह अलग तरह का चुंबन होता है। उससे केवल भूख का पता चलता है। यह अलग तरह का है। यह भावनात्मक है, राहत देने वाला है। और जब मुझे यह लगने लगता है कि अतुलित अब मुझे और हैरान नहीं कर सकता है तो वह मुझसे कहता है कि चूँकि यह आख़िरी दिन है, इसलिए वह मेरी देखभाल करना चाहता है।

‘क्या मतलब?’ मैं पूछती हूँ।

‘मैं तुमको नहलाना चाहता हूँ। तुमको कपड़े पहनाना चाहता हूँ। तुम्हारे लिए भोजन पकाना चाहता हूँ। चाहता हूँ कि तुम राजकुमारी की तरह महसूस करो।’

मेरे अन्दर का एक हिस्सा जोर-जोर से हँसना चाहता है, क्योकि मुझे इस तरह के चुटकुलों की आदत नहीं है। लेकिन मेरा एक और हिस्सा फूट-फूट कर रोना चाहता है क्योंकि मुझे पता है कि यह कोई मजाक नहीं है। आज तक मेरे लिए ऐसा किसी ने भी नहीं किया है। मैं उसके लिए इतनी ख़ास क्यों हूँ? मेरा मन होता है कि उससे पूछूँ लेकिन मैं नहीं पूछती। कई बार जवाब न जानना अच्छा होता है। मैं उससे कहती हूँ कि वह मेरे लिए, मेरे साथ जो चाहे कर सकता है।

वह मुझे बाथरूम में ले जाकर फर्श पर बिठाता है। मेरे बाल गीले करके उनमें शैम्पू लगाता है। वह जिस तरह से मेरे सर की मालिश कर रहा है, उससे मेरे अन्दर कुछ-कुछ होने लगता है। या हो सकता है कि यह सुकून हो। हम महिलाओं को इससे कितनी राहत मिलती है। मैं आँखें मूँदकर उस पल को संजो लेना चाहती हूँ। शैम्पू लगा लेने के बाद वह मुझे साबुन लगाता है। मैं मंत्रमुग्ध उसको देख रही हूँ। मैंने जैसी कल्पना की थी यह उससे भी अच्छा है। यह मेरी छुट्टी का अब तक का सबसे खूबसूरत हिस्सा है। इसमें भावनाओं और संवेदना का बहुत अच्छा संतुलन है। इसी की चाहत में मैं दिल्ली आई। वह मुझे अपनी तरफ घुमा लेता है और बजाय साबुन लगाने के मुझे कसकर थाम लेता है।

‘तुम्हारे जैसी कोई औरत मैंने नहीं देखी’, वह मेरे कान में फुसफुसाकर कहता है। क्या यह जानता है कि किस तरह से किसी औरत को इस बात का अहसास करवाया जाता है कि वह ख़ास है, यूँ ही राह चलते मिल जाने वाली नहीं, और इस बात को सुनकर किसी औरत को क्या महसूस होता है? हम चाहते हैं कि हर वक़्त हमारा पूरा ध्यान रखा जाए, कोई हमें दुलार करता रहे।

वह मुझे तौलिये से पोछकर बाथरोब पहनने में मेरी मदद करता है। जब मैं सर में तौलिया लपेटे हुए बाथरूम से बाहर निकलती हूँ, तो वह मुझसे कहता है कि मैं अपनी अगली इच्छा के बारे में बताऊँ। अनजाने में वह इस बात का पूरा इंतजाम कर रहा है कि मुझे इस छुट्टी की याद आये, इसकी कमी महसूस हो। मैं उससे कहती हूँ कि मैं लंच में चाइनीज खाना खाना चाहती हूँ। वह खाना आर्डर कर देता है। जब खाना आ जाता है, तब वह मुझे खिलाने लगता है। और मैं इतने सालों से दूसरे लोगों को खिलाती रही हूँ। जिस तरह से मेरी भूमिका यहाँ बदल गई है उससे मुझे अच्छा भी लग रहा है और शर्म भी आ रही है। ऐसा आदमी जो मेरे लायक था, वह मुझे फेसबुक पर ही क्यों मिला? मेरे पति ने मेरे लिए ऐसा क्यों नहीं किया? मुझे घर में कभी यह ख्वाहिश क्यों नहीं महसूस हुई? मेरा गला भर आता है, लेकिन मैं जाहिर नहीं करती हूँ। मैं इजाजत लेकर अपने कमरे में चली जाती हूँ।

शाम का वक़्त है। अतुलित मुझे छोड़ने के लिए एयरपोर्ट पर आया है। पिछले छह दिन जैसे पलक झपकते बीत गए। उसने मेरे हाथ थाम रखे हैं। कई बार जोर से, कई बार प्यार से। हम डिपार्चर गेट पर पहुँच जाते हैं। मैं पीछे मुड़कर उसको देखती हूँ। मुझे पता है कि मेरी आँखें गीली हैं। जो बात मैं नहीं जानती हूँ वह यह कि वह इस कारण गीली हैं, क्योंकि मेरा सफर समाप्त हो रहा है या फिर कभी मैं ऐसी यात्र पर निकल भी पाऊँगी या नहीं।

‘तुम क्यों रो रही हो? हम जल्दी मिलेंगे। अगर तुम यहाँ नहीं आई, तो मैं कोलकाता आऊँगा। किसी-न-किसी तरीक़े से हमें मिलना ही है’, वह कहता है।

नहीं। हम कभी नहीं मिलेंगे। केवल मैं इस बात को जानती हूँ। मैं उसको यह बताती नहीं हूँ। वह मेरे हाथों को चूम लेता है। मैं उसके गाल को चूम लेती हूँ। और बिना देरी किए मैं उससे हाथ छुड़ाती हूँ और गेट के अन्दर चली जाती हूँ। मैं पीछे मुड़कर उसको देखती हूँ। वह मेरी तरफ हाथ हिलाता है। जब मैं उसकी आँखों में उस उम्मीद को पहचान लेती हूँ, जो शादी की पहली रात मेरी आँखों में थी, तो मेरा गला भर आता है।

बोर्डिंग पास लेते समय मेरा अलार्म बज जाता है। मैं अपने पति को फोन करके यह बता देती हूँ कि मैं जहाज में चढ़ने वाली हूँ। हवाई जहाज उड़ने से पहले ही मैं अपने फेसबुक अकाउंट को बंद कर लेती हूँ। जहाज से उतरने के बाद मैं अपना फोन, सिम कार्ड तोड़ देती हूँ, उनको डस्टबिन में फेंक देती हूँ, और कोलकाता एयरपोर्ट से बाहर निकल जाती हूँ। ऐसा महसूस हो रहा है जैसे मैं किसी सुन्दर सपने से जगी हूँ। लेकिन पता नहीं मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि मैं अपने पति से अधिक अतुलित के साथ धोखा कर रही हूँ।

सातवाँ अलार्म : 5:30 सुबह

‘राधिका।’

एक सप्ताह बाद मुझे अपना असली नाम सुनकर अच्छा लगता है। सब इस बात से खुश हैं कि मैं घर आ गई हूँ। अब उनको अपने ऊपर और निर्भर रहने की जरूरत नहीं है। पिछले एक सप्ताह मेरे लिए काफ़ी था अपने आपको अकेले में जीने और फिर जीवन भर उसको याद करने के लिए। मैं जानती हूँ कि हर बात को मैं मन-ही-मन बार-बार दोहराऊँगी, उसके अलग-अलग रूप बनाऊँगीµ अच्छा और बुरा। कई बार अपने ऊपर मुस्कुराऊँगी, कई बार गला भर आएगा। दुनिया को इस बारे में कभी पता चला तो मुझे छल करने वाली माना जाएगा। लेकिन मेरे अपने लिए मैं वह औरत थी, जिसने वह किया जो वह चाहती थी, पहली और आख़िरी बार, बिना किसी तरह का संतुलन भंग किए।

एक सप्ताह की छुट्टी के बाद रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा बनना अजीब लगता है। मुझे ऐसा लग रहा है कि मेरे अन्दर ऊर्जा वापस आ गई हो। मेरे परिवारवालों के लिए, मैं कॉलेज की अपनी एक प्रिय सहेली को अलविदा कहकर आई हूँ। लेकिन मुझे देखकर उनको कुछ और ही लगता है। ऐसा नहीं है कि किसी ने मुझसे कुछ पूछा हो लेकिन उनको ऐसा लगा होगा कि दिल्ली से एक उदास राधिका वापस आएगी। उनको दोष नहीं दिया जा सकता। अब मैं उनको किस तरह समझाऊँ कि मुझे यह देखने के लिए इस एक सप्ताह की जरूरत थी कि क्या मैं अभी भी वही थी या नहीं जो मैं अपने आपको समझती थी? मैं अपने पति को सब कुछ बताने के लिए तैयार हूँ लेकिन क्या वह इस बात को कभी समझ पाएगा कि मैंने जो कुछ भी किया वह उसको धोखा देने के लिए नहीं किया?

मुझे सबसे अधिक मिनी की याद आती थी। कुछ पल के लिए भावुक होते हुए मैंने उसको कसकर भींच लिया। यह जल्दी ही बड़ी हो जाएगी और इसका विवाह हो जाएगा। लेकिन मैं यह नहीं चाहती कि उसको कभी भावनात्मक रूप से ऐसी स्थिति से गुज़रना पड़े। लेकिन हो सकता है कि यह अवश्यम्भावी हो। मुझे निश्चित रूप से ऐसा लगता है कि मेरी माँ ने भी ऐसा अनुभव हासिल किया हो। उनके और मेरे बीच बस एक अंतर है वह यह कि मैंने उस दौर के अंत के लिए कुछ करने का फैसला लिया। मैंने अपनी घरेलू ज़िंदगी की एकरसता को भंग किया। हो सकता है कि मैं अपने पति की नज़रों में उतनी आकर्षक नहीं रह गई थी, लेकिन मुझे यह सोचकर खुशी हो रही थी कि एक कम उम्र के नौजवान ने मुझे पसंद किया, चाहा, और मेरी ज़िंदगी अब नीरस नहीं रह गई है।

मेरे पति दफ़्तर से शाम में आते हैं। मैंने खाने के लिए उनका पसंदीदा खाना बनाया है। वह मुझे एक बॉक्स थमा देते हैं। वह नया फोन है। और एक नया सिम कार्ड जो इस बार उनके नाम से रजिस्टर्ड है। फोन में सिमकार्ड डाल कर उसको चालू करने के बाद मैं पहला काम यह करती हूँ कि मैं सुबह 5:30 का अलार्म लगा लेती हूँ। मैं एक बार फिर से राधिका बोस के नाम से जानी जाऊँगी। वह नाम जिससे मुझे मेरा परिवार जानता है। जिसको मैं भी जानती हूँ।