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कल बादल छाएँगे

 

एक मिनट

आर नई दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के बोर्डिंग गेट के दूसरी तरफ अवस्थित कोस्टा कॉफी के आउटलेट से वैजेटेबल पफ और कॉफी का कप आर्डर करती है। सुबह के पाँच बजे हैं। आर सात घंटे से एयरपोर्ट पर है। मुम्बई के लिए उसकी फ्रलाईट कल रात 11 बजे जाने वाली थी, लेकिन मौसम की खराबी के कारण जा नहीं पाई – बहुत अधिक धुंध थी, और दृश्यता शून्य पर पहुँच चुकी है, इसी वजह से फ्रलाईट में देरी हुई है। उसके पति ने ऐसे मौसम में जाने से मना किया था, लेकिन वह उसको सफर पर जाने से रोक नहीं पाया।

आर अपने खाने के आने का इन्तजार कर रही है, बीच-बीच में उबासी ले रही है। बहुत दिनों बाद वह सारी रात जगी रह गई। कोस्टा का एक कर्मचारी उसके सामने ट्रे रखकर चला जाता है। वह अपनी कॉफी उठाती है और उसका ध्यान इस बात पर जाता है कि आसपास की सभी कुर्सियाँ खाली हैं। वह पास की एक कुर्सी पर बैठ जाती है। वह आराम से कुर्सी पर पसर जाती है। यह उसकी दूसरी तिमाही है, उसको पहली तिमाही के मुकाबले अपने शरीर के बदलाव की आदत पड़ने लगी है। वह अपने दाँत से एक झटके में केचअप की पुडिया फाड़ लेती है। इससे उसको उस आदमी की याद आ जाती है, जो उसको हमेशा यह कहता था कि उसके दाँत बहुत मजबूत हैं। लेकिन वह पुड़िया की जगह किसी की चमड़ी पर काट खाती थी। यह सोचकर चेहरे पर अनायास हलकी-सी मुस्कान आ जाती है। मानो यह सब कल की ही बात हो।

आर पफ का एक कौर काटती है और कॉफी का घूँट भर लेती है। वह इधर-उधर देखती है। फूड कोर्ट के पास में ही स्मोकिंग क्षेत्र है। आर जब से गर्भवती हुई थी सिगरेट पीने से बचती आई है। उसके पति और सास-ससुर को यह नहीं पता था कि वह पहले सिगरेट पीती है। स्मोकिंग रूम में एक-एक आदमी को घूरते हुए उसकी निगाह एक आदमी पर जाकर ठहर जाती है। वह आदमी बगल से ही दिखाई दे रहा है। यह उसके जानने के लिए काफी है कि वह आदमी कौन है। उसका दिल जोर से धड़कने लगता है। वह मुँह में पफ चबाते-चबाते रुक जाती है।

एन ने जितना सोचा था, वह उससे अधिक देर तक सोया रहा। वह 3:30 बजे का अलार्म लगाकर सोया हुआ था, लेकिन उसकी नींद नहीं खुली। उसकी नींद तब खुली जब उसकी पत्नी ने सुबह 4:30 बजे उसको फोन करके यह जानना चाहा कि क्या वह होटल से निकलने के लिए तैयार हो गया है। अगले 15 मिनट में वह तैयार हुआ, होटल से चेक आउट किया, टैक्सी पकड़ी और दिल्ली हवाई अड्डे के लिए निकल पड़ा। उसे हैदराबाद जाने वाली फ्रलाईट पकड़नी थी। सिक्योरिटी चेक से निकलने के बाद उसने सिगरेट का पैकेट निकाला। खाली था। उसको पास के डस्टबिन में फेंक दिया, फिर उसने एक दुकान खोजी जहाँ से उसने अपना पसंदीदा ब्रांड खरीदा : मार्लबोरो। जब वह इन्तजार कर रहा था कि दुकानदार उसको 2000 रुपए का खुल्ला दे दे तभी वहाँ एक महिला आई; उसने डेविड ऑफ की माँग की। इससे उसको किसी की याद आ गई। उसके चेहरे पर पुराने दिनों को याद करके मुस्कान आ गई। एक जमाना था जब उसने इस ब्रांड की सिगरेट के साथ खूब मजे किए थे। एक सिगरेट, दो लोग, दोनों को बारी-बारी से कश लगाना होता था। जो भी पहले सिगरेट खत्म कर लेता, वह दूसरे को दिन भर के सेक्स के लिए अपना गुलाम बना लेता। वह पल, सिगरेट के कश, वह कोई . . . सब उसकी आँखों के सामने तैरने लगा। कुछ स्मृतियाँ ऐसी होती हैं, जो कभी नहीं मिटती। उसने खुल्ला लिया और स्मोकिंग रूम की तरफ चल दिया। अन्दर जाने से पहले उसने कॉफी कोस्टा से अपने लिए कॉफी ले ली।

स्मोकिंग रूम में बहुत से लोग थे। एन ने अपनी सिगरेट सुलगाई और लंबा कश लिया, फिर धीरे-धीरे धुंआ छोड़ने लगा। जब से वह दफ़्रतर की नई परियोजना का हिस्सा बना था, तब से सप्ताहांत में हवाई जहाज से उड़कर कहीं जाना उसकी दिनचर्या बन चुकी थी। बहुत थकाने वाला होता था, फ्रलाइट्स, होटल के कमरे, बोर्डरूम, मीटिंग . . . ज़िंदगी इतनी एकरस कभी नहीं हुई थी।

एन अपनी सिगरेट बुझाने ही वाला था कि उसने देखा कि स्मोकिंग रूम के बाहर से कोई उसको देख रही थी। शीशे के दरवाज़े के बाहर उस महिला की आकृति धुँधली थी लेकिन उसको पहचानने में ग़लती नहीं हुई। सिगरेट से गर्म राख उसकी उँगली पर गिर गई। उसको दर्द तो हुआ, लेकिन उसने उसको झाड़ा नहीं। उसको दस साल से उसने देखा नहीं था, क्योंकि उन्होंने तब यह कसम खाई थी कि वे अब एक दूसरे से कभी नहीं मिलेंगे।

दो मिनट (आर)

जैसे ही हमारी आँखें मिली, मैं नीचे देखने लगी। लेकिन तत्काल उसको फिर से देखने की इच्छा हुई। यह देखने के लिए कि क्या वह अभी भी मुझे देख रहा है। इसका मतलब यह होगा कि उसने मुझे पहचान लिया। एक पल पहले मुझे भूख लगी थी लेकिन अचानक मुझे ऐसा लगा जैसे मेरा पेट भर गया हो। मैं जो पफ खा रही थी उसे मैंने ट्रे में वापस रख दिया और कॉफी उठा ली। ऐसा करते हुए मैंने उसकी तरफ देखा। वह अभी भी मुझे घूरे जा रहा है। मुझे उस नज़र की पहचान है। अगर केवल देखना ही पत्र होता तो मैं उसके देखने के अंदाज के एक-एक शब्द को डिकोड करके पढ़ लेती।

मुझे कुछ घबड़ाहट हो रही है। मुझे नहीं पता था कि जब मैं अगली बार उसको देखूँगी तो मुझे ऐसा ही महसूस होगा या नहीं। मैं मग मेज पर रख देती हूँ, उठती हूँ और वहाँ से चल देती हूँ। जब मैं स्मोकिंग रूम के सामने से गुज़रती हूँ, तो देखती हूँ कि वह बाहर की तरफ निकल रहा है। मैं यह दुआ करती हूँ कि वह मुझे पुकारे नहीं। मैंने यह सोच रखा था कि अगर वह कभी मुझसे टकराया तो मैं उसको पहचानूँगी ही नहीं। लेकिन एक बार मुझे देखकर वह सब समझ जाएगा। वह हमेशा से जानता था कि मेरे रहस्यों को जानने के लिए कहाँ देखे – मेरी आँखों में।

मैं सैम्सोनाईट के बैग को खींचते हुए तेजी से बोर्डिंग गेट की तरफ बढ़ने लगती हूँ। मेरे अन्दर यह इच्छा हो रही है कि घूमकर देखूँ कि कहीं वह मेरा पीछा तो नहीं कर रहा। अगर वह कर रहा है, तो मैं यह जानना चाहती हूँ, इन वर्षों में उसके अन्दर कभी यह इच्छा जगी थी कि मेरी तलाश करे।

मैं अपने बोर्डिंग पास को देखती हूँ : बोर्डिंग शुरू होने में पाँच मिनट बाकी हैं।

हालाँकि हमें आख़िरी बार एक दूसरे को देखे दस साल हो चुके हैं, मैंने इस तरह की परिस्थिति के बारे में सैकड़ों बार कल्पना की है। अगर कभी हम एक दूसरे से टकरा गए तो? हर बार मेरा जवाब वही होता था : तो क्या? मैं ऐसे जताऊँगी जैसे मैं उसको जानती ही नहीं। अब मुझे समझ में आया है कि इस तरह की बेपरवाही से काम नहीं चलने वाला। यह दुनिया के लिए है। अपने लिए तो पक्की ईमानदारी ही काम आती है। लेकिन इस तरह की ईमानदारी से सवाल अधिक उठते हैं जवाब कम मिलते हैं। उदाहरण के लिए, आप किस तरह से उस आदमी की अच्छी यादों से खुद को अलग कर रखेंगे, जिसको आप पा नहीं सके? लेकिन उसके साथ होना भी उसको पाना ही है, है ना? उसी तरह से जिस तरह से बचपन में स्कूल में पढ़ी कहानियों का सार जीवन भर हमारे साथ रहता है, उसी तरह से जिस आदमी को हमने प्यार किया हो उसकी यादों को हमेशा अपने साथ रखते हैं। ऐसे लोग जिनके कोई विचार नहीं होते वे महज शरीर होते हैं। और केवल शरीर से कुछ सन्दर्भ नहीं बनता। वे उस तरह के शब्दों जैसे होते हैं, जिनका बिना किसी सन्दर्भ के कुछ मतलब नहीं होता। अपने आप में वे जादुई लगते हैं। शब्दों के साथ कोई भी खेल सकता है। लेकिन सभी के पास कहानियाँ नहीं होती। एन और मेरी भी एक कहानी थी।

असल में, मैंने एन को कभी जुदा किया ही नहीं। मैं असल में उसको कभी भूली ही नहीं कि एक दशक के बाद उसको याद करना पड़े। वह हमेशा से मेरे दिल में था, उसी तरह से मेरे जीवन की हर घटना के साथ-साथ चलता हुआ।

मुझे थकान महसूस होती है। अगली बार जब मैं अपने डॉक्टर के पास जाऊँगी तो इस बारे में उसको बताऊँगी। आजकल मैं जल्दी-जल्दी थकान महसूस करने लगी हूँ। मैं अपने गेट पर पहुँचती हूँ, बैठ जाती हूँ और अपना सैम्सोनाईट उसके बैग की बगल में रख देती हूँ। अपनी जगह से मैं यह देख सकती हूँ कि वह मेरी तरफ आ रहा है। मैं यह दुआ करती हूँ कि काश हम एक फ्रलाईट में न हों। उसकी धीमी होती चाल से मैं चौंक उठती हूँ : कुछ कमजोरियों को पंख नहीं देना चाहिए, क्योंकि वे आपको उड़ा कर ऐसी जगह ले जाते हैं, जहाँ उथल-पुथल होती है।

तीन मिनट (एन)

मैं अपनी घड़ी में देखता हूँ। मुझे यह भी ध्यान नहीं आ रहा है कि दिन है या रात। वह अधिक बदली नहीं है। मुझे अच्छी तरह याद है। वह थोड़ी मोटी हो गई है। मैं भी तो हो गया हूँ। अब वह चश्मा पहनने लगी है। मैंने भी पहनना शुरू कर दिया है। उसने अपने बालों का स्टाइल भी बदल लिया है। मैं गलमुच्छा रखता हूँ। अब वह औरत दिखने लगी है। पहले वह लड़की जैसी लगती थी। मैं भी तो लड़का था। एक जैसे बदलावों को देखकर मुझे ऐसा लग रहा है कि हम दूर-दूर होकर भी पास हैं। मुझे याद आता है कि बोर्डिंग शुरू होने में अभी आधे घंटे का समय है। मैं सिगरेट बुझाकर स्मोकिंग रूम से बाहर निकल आता हूँ। जब तक मैं कोस्टा कॉफी के काउंटर पर पहुँचता हूँ तो देखता हूँ कि आर बोर्डिंग गेट की तरफ बढ़ी जा रही है। ध्यान देता हूँ कि उसकी ट्रे में आधा खाया हुआ खाना पड़ा है और सोचने लगता हूँ कि क्या मुझे इसमें ज़रूरत से ज्यादा पढ़ना चाहिए। क्या यह कोई संकेत है? मेरे पीछे आओ, या नहीं आओ। बहुत रहस्यमय है। मैं भी बोर्डिंग गेट की तरफ बढ़ जाता हूँ। हो सकता है कि उसको लगे कि मैं उसका पीछा कर रहा हूँ, लेकिन मैं नहीं कर रहा हूँ। हो सकता है कि कर भी रहा हूँ। मैं एक बार फिर अपनी घड़ी देखता हूँ।

मुझे याद आता है मैंने एक बार उससे कहा था कि शरीर के लिए आत्मा वैसी ही होती है जैसे घड़ी के लिए समय। और हम लोग समय थे घड़ी नहीं। मैं इस पंक्ति का सन्दर्भ भूल गया, लेकिन मुझे याद है कि वह मेरी आँखों-में-आँखें डाले देखती रही और बोली कि दुनिया की कोई ताक़त उसे मुझसे छीन नहीं सकती। कुछ महीने बाद हम लोग जुदा हो गए। लेकिन उसका कहना सही था। हमारे ब्रेक अप के बाद से इस कहानी को मैंने बार-बार याद किया। इन सालों के दौरान मुझे इस बात का पक्का भरोसा हो गया है कि अगर हम अभी साथ-साथ होते तो हम कभी अलग नहीं हुए होते। यह फैसला हम दोनों का था, लेकिन अभी भी मैं उसके बारे में सोचता रहता हूँ, ग़लतियों को सुधारता रहता हूँ, सब ठीक-ठाक करता रहता हूँ। अब मेरी एक पत्नी है और दो साल का एक बच्चा। मुझे दोनों से प्यार है। लेकिन मुझे पीछे मुड़कर देखने पर अब लगता है कि आर के साथ जो था वह बहुत सम्मोहक था। शायद इसलिए कि मैं पूरी तरह से इस जीवन को जी नहीं पाया, जिस तरह से मैं अपनी पत्नी और बच्चे के साथ जी रहा हूँ।

मैं आराम से उसके सामने से गुज़रता हुआ जा सकता हूँ, लेकिन मैं चाहता नहीं हूँ। मैं उससे मिल कर दुआ सलाम कर सकता हूँ, दोस्ताना तरीक़े से बातचीत कर सकता हूँ। लेकिन मैं करूँगा नहीं। मैं चाहता हूँ कि समय थम जाए। मुझे नहीं पता कि मैं अब उसको कब देख पाऊँगा। उसको देखने भर से मैं हिल गया हूँ। दस साल पहले अगर किसी ने मुझे भविष्य की इस मुठभेड़ के बारे में बताया होता, तो हमने यह कहा होता कि हम बाहर निकलकर उस तरह से सम्बन्ध बनाते जिस तरह से दो जानवर गर्मी में करते हैं या किसी सीढ़ी पर या कहीं और। और मैं अब डरा हुआ हूँ कि कहीं उससे फिर से आँखें न मिल जाए। हम लोग कभी दो जंगली पक्षी थे, हम लोग साथ साथ ऊँचा उड़ सकते थे, लेकिन हम कभी घोंसला नहीं बना पाए। हम दोनों एक दूसरे की पसंद थे, लेकिन हम हमेशा एक दूसरे की प्राथमिकताओं, पहनने-ओढ़ने आदि को लेकर दु:खी रहते थे। मुझे नहीं पता कि अधिक दर्द भरा क्या है : यह बात कि हम एक दूसरे के साथ रह नहीं पाए या हम एक दूसरे के बिना भी रह गए। इससे मुझे आश्चर्य होता है कि किसी रिश्ते में कसमे-वादे कितने बेमानी होते हैं। जब मैं इस रिश्ते में था और जब हमारा रिश्ता अंतिम दौर में था, तो सब कुछ किसी सजा की तरह लगता था। सालों बाद, मुझे यह अनुभव शिक्षाप्रद लगा। मैं यह जानना चाहता हूँ कि क्या वह मेरे बिना खुश है। उन दिनों के संग-साथ को जब भी याद करता हूँ, तो काँटों जैसी चुभन महसूस होने लगती है। क्या वह मुझे इस बात की शिक्षा देकर खुश है कि किसी भी चीज़ में कितनी शिद्दत से विश्वास किया जाए, वह कितना ही संभावनाशील दिखाई देता हो, लेकिन इस बात का खतरा बना रहता है कि वह बर्बाद हो सकता है?

मैंने उसके बैठने के ऊपर ध्यान दिया तो महसूस किया कि वह गर्भवती है। वह मेरी तरफ देखती है। मैं चाहता तो हूँ, लेकिन उसके ऊपर से अपनी निगाहों को हटा नहीं पाता हूँ। क्या मुझे मुस्कुराना चाहिए? या उसको घूरते रहना चाहिए?

चार मिनट (आर)

हमारी आँखें जुड़ी हुई हैं। क्या यह कोई खेल चल रहा है? कौन पहले नज़र हटाएगा?

मैं नहीं। वह भी नहीं हटाने वाला है। वह मुझसे कुछ दूरी पर खड़ा है। एक जमाना था जब उसकी आँखों में आग धधकती थी . . . मैं यह जानना चाहता हूँ कि क्या वह आग अभी भी है। हो सकता है कि वह अभी भी हो, लेकिन अब मैं उसको महसूस नहीं कर पा रही हूँ। पहले मैं उसकी धधक में जल गई होती। वह सबसे बड़ी खुशी की बात होती। उस आग में जल जाना जिसे उसने हवा दी हो, जिसे आप प्यार करते हों। एक बिंदु पर आकर प्यार और वासना एक हो जाते हैं और आप दोनों को एक दूसरे से अलग नहीं पाते, बल्कि उसके कारण आपको जो अंदरूनी खुशी मिली उसके ऊपर ही ध्यान रहता है। मुझे अपने पति के साथ ऐसा कभी महसूस नहीं हुआ।

ऐसा नहीं है कि मैंने अपने पति को कभी प्यार नहीं किया। मैं उसको प्यार नहीं कर सकी। एन के बाद नहीं। मुझे ऐसा महसूस हुआ मानो भावनात्मक रूप से मेरा अपहरण कर लिया गया हो। उसके बाद से मैं एन से नफरत करने लगी। मुझे ऐसा लगता था जैसे मैं उसकी यादों की कठपुतली हूँ। मुझे ऐसा महसूस होने लगा जैसे मेरा अपने ऊपर, या अपने दिल पर किसी तरह का नियंत्रण ही न हो। अपने पति के प्रति प्यार में उस गर्मजोशी की कमी होने के कारण उसकी भरपाई करने के लिए मैं अपने पति के प्रति अतिरिक्त कर्तव्य-परायण हो गई। मैंने उसको शिकायत करने का कोई मौक़ा नहीं दिया, न पत्नी के रूप में न ही एक इंसान के रूप में। ऐसा नहीं है मैं दब्बू बनकर रहने लगी, बल्कि मैं अधिक सामंजस्य के साथ रहने लगी। पहले मेरे अन्दर यह गुण नहीं था और इसी कारण हमारा ब्रेक अप हुआ था। क्या मुझे एन को यह बात बता देनी चाहिए कि आख़िरकार मैं वह इंसान बन गई हूँ, जैसा वह चाहता था मेरा गला रुंध जाता है। इन सालों में मुझे कभी-कभी ऐसा लगता रहा है मानो मेरा कुछ खो गया हो। लेकिन मुझे यह समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या था जो खो गया था। आज रात मैं यह जानती हूँ, मैंने अपनी प्रेम कहानी खोई है। यह अधूरी ही रह गई। अगर हमारा कोई इतिहास नहीं रहा होता, तो हमारी आँखें इस खाली एयरपोर्ट पर सुबह-सुबह एक दूसरे से ऐसी नहीं गुंथी होती। हमारा एक साझा अतीत है, लेकिन हमारी कहानी पूरी नहीं हो पाई।

जिस दिन मेरा पहला बच्चा कोख में आया उस रात भी एन वहाँ था, लेकिन न तो वह न ही मेरा पति कभी इस बात को जान पाएँगे। मैं बिना किसी योजना के गर्भवती हो गई थी। मैं और मेरे पति केरल में एक हाउस बोट में थे। मुझे ऐसा लगता है कि मैं उसी रात गर्भवती हुई थी। और मैं इससे अधिक और कुछ नहीं चाहती थी कि जब मैं माँ की भूमिका में आऊँ तो एन वहाँ रहे। मैं यह भी चाहती थी कि वह इसका कारण बने और सम्भोग करते समय मेरे दिमाग में वही था। जिस समय मेरे पति ने मेरे अन्दर प्रवेश किया और मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं और सब कुछ हो जाने के बाद जब मैंने अपनी आँखें खोली तब तक वही था। एन मेरे अन्दर था। संभोग हो जाने के बाद मैं सोने के लिए रोती रही, यह सोचते हुए कि मैं आख़िरकार वैसी बन गई, जिसको वह जानता नहीं था। मेरा गला रुंधा हुआ है और आँखें गीली। लेकिन मैं उनको मलूँगी नहीं। शायद उनको यह लग सकता है कि मैं रो रही हूँ। और मैं यह नहीं चाहती। आंसू खतरनाक होते हैं। आंसू लोगों को, ख़ासकर उन लोगों को जो उसका कारण थे, यह देखने का मौक़ा दे देते हैं कि आपकी आत्मा नंगी है। और यह एक ऐसी नग्नता है, जिससे आप शर्मिंदा होने के बजाय अधिक डर महसूस करते हैं।

एक फोन से मेरा ध्यान भंग हो जाता है। यह मेरे पति का है। मेरे हाथ काँपने लगते हैं। मुझे अचानक इस बात से शर्मिंदगी होती है कि मैं फोन की स्क्रीन पर उसका नाम चमकते हुए देख रही हूँ। मानो कुछ ग़लत करते हुए मैं पकड़ी गई होऊँ। मैं फोन उठाकर उससे कहती हूँ कि वह दो पल के लिए रुक जाए। मैं उठती हूँ, एन की तरफ अपनी पीठ करती हूँ और अपना सैम्सोनाईट लुढ़काते हुए दूसरी जगह पर जाकर बैठ जाती हूँ।

पाँच मिनट (एन)

काश उसने फोन नहीं उठाया होता। क्या उसके पति का फोन था? क्या इसी वजह से वह उठ खड़ी हुई और उसने मेरी तरफ अपनी पीठ कर ली। आर सदा से ऐसी ही थी। उसके हाव-भाव बता रहे हैं कि वह बहुत आवेग में है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि इस समय वह बहुत आवेग में हो ही . . .

जब हम जवान थे, तब हम मिले ही क्यों थे? कुछ अधिक ही जवान। जब हम एक दूसरे के साथ सम्बन्ध बनाए रखना चाहते थे, लेकिन इसको संभाल नहीं सके, इसको निभा नहीं सके। मैं बहुत अधिक पोजेसिव था; वह बहुत अधिक आजाद ख्यालों वाली थी। वह मेरे ऊपर अधिकार जमाए रखती थी; जबकि मैं बहुत अहंकारी था। मुझे ऐसा लगता है कि हम एक दूसरे के लायक तो थे, लेकिन उस समय हम इसके लिए तैयार नहीं थे।

समय के साथ, मैंने ऐसा महसूस किया है कि किसी भी रिश्ते में बहुत सारे झूठ उसके लिए बाधा खड़ी कर देते हैं, तो बहुत अधिक ईमानदारी उस रिश्ते को मार डालती है। आर और मैं एक दूसरे के प्रति बहुत ईमानदार थे। हम लोग बहुत खुले हुए थे, और कई बार हम एक-दूसरे को घायल भी कर देते थे जो घाव भर नहीं पाए। ईमानदारी के साथ-साथ परिपक्वता का मेल भी ज़रूरी होता है। हम बहुत मुश्किल किस्म के थे, उसके लिए लड़कों से मिलने में कोई बात नहीं थी, लेकिन अगर मैं लड़कियों से मिलने-जुलने लगता था तो वह असुरक्षित महसूस करने लगती थी और मुझसे लड़ाई करने लगती थी। हमेशा से वह चाहती थी कि जो वह चाहती है वही हो। अगर मैं यह कह देता कि वह दूसरे लड़कों के साथ फ्रलर्ट न करे, तो इसका मतलब हो जाता कि मैं उसकी आज़ादी में खलल डाल रहा हूँ। यह रिश्ता ऐसा था जिसमें हर बार मेरी ही नहीं चल पाती थी।

और मुझे लगता है कि इस बात से सभी सहमत होंगे कि जो रिश्ता मुश्किल दौर से गुज़र रहा हो, उसको बनाए रखने का तनाव बहुत अधिक की माँग करता है। जिस साल उससे मेरा ब्रेक अप हुआ था उससे एक साल पहले मुझे ऐसा लगा था कि हम लोग एक दूसरे के साथ महज इसलिए रहते हैं, क्योंकि हमें वह मजबूरी लगती है, क्योंकि हम यह नहीं चाहते थे कि एक दूसरे की नज़रों में गिर जाएँ, क्योंकि हम जन्म-जन्मांतर वाले रिश्ते में थे, नहीं थे क्या? हम जनम-जनम साथ रहेंगे . . . और इसी तरह की बातें। हमें इस बात को समझने में एक साल लग गया कि जीवन में कुछ भी जीवन भर नहीं रहता।

बहुत अधिक नज़दीकी और अंतरंगता किसी रिश्ते का दम घोंट देती है और उसको पारदर्शी नहीं रहने देती, जो उसका सहज परिणाम होता है। मैंने इस बात को आर के साथ अपने संबंधों के आधार पर समझा है। शायद यही कारण है कि क्यों मैं न तो अपनी पत्नी के बहुत करीब हो पाया न ही उससे बहुत दूर जा पाया। मैं उसको प्यार करता हूँ। लेकिन हमारा रिश्ता दमघोंटू नहीं है, शायद इस वजह से भी क्योंकि मैंने अपना दिल उसके सामने कभी नहीं खोला, न ही उसको कभी अपने अंतरतम तक पहुँचने दिया। इसकी वजह से मैं यह सोचता रहता हूँ कि क्या मेरी पत्नी इस बात को जानती है कि हमारी सफल शादी के पीछे एक औरत है, जिसका नाम आर है। और उसके साथ संबंध में रहने के कारण मैंने जो सबक सीखे।

कई बार मुझे लगता है आर मेरा बचपन थी, मेरा किशोर जीवन थी, जबकि मेरी पत्नी मेरे वयस्क जीवन की है। कोई इंसान अपने बचपन के दिनों में जो सबक सीखता है उसको वह जीवन भर आजमाता रहता है। अब मैं अपनी पत्नी के साथ एक अलग तरह का ही इंसान बन चुका हूँ। क्या अलग- अलग तरह के लोगों के कारण आपका बर्ताव अलग-अलग तरह का होता है? शायद। मेरा बड़ा मन हो रहा है कि आर से पूछूँ कि उसकी अपने पति के साथ कैसी चल रही है। जिस तरह से वह आजाद तरीक़े से मेरे साथ रहती थी क्या अभी भी वह उसी तरह से रहती है? या उसने घरेलू तौर-तरीके अपना लिए? शादीशुदा जोड़ों के रूप में हमारा व्यवहार किस तरह का रहा है? इस समय मुझे इस तरह के सवाल परेशान कर रहे हैं, इसलिए मैं पिछले जीवन को उस तरह से नहीं देख पा रहा वह जिस तरह का था।

आर इस समय बोर्डिंग गेट के पास बैठी है। फोन पर बातचीत पूरी हो चुकी है। अगर यही उसका बोर्डिंग गेट है, तो मुझे लगता है कि हम एक ही मंजिल की तरफ जा रहे हैं। यह सोचकर मैं काँप जाता हूँ। क्या हम कभी एक दिशा में सोचते भी थे? हमने वह रास्ता अपनाया है, जो सामान्य था। हमने साथ-साथ बस एक यात्र का अनुभव लिया है। लेकिन सफर पूरा हो जाता है, रास्ते नहीं। किसी-न-किसी रूप में यह जारी रहता है। हम इसको रोकने के लिए कुछ नहीं कर सकते। यह धुंधला तो पड़ सकता है, लेकिन यह कभी पूरी तरह मिट नहीं सकता। जैसे आर मेरे लिए धुंधली पड़ चुकी थी लेकिन अचानक आज उसको देखा और सब कुछ बहुत विस्तार से याद आ गया। उसके साथ बात करने का बहुत मन हो रहा है। अगर वह दिलचस्पी नहीं दिखाए तो मैं पीछे हट जाऊँगा। लेकिन वह जिस तरह से मुझे देख रही थी, उससे तो कुछ और ही लगता है। बोर्डिंग गेट के पास लोग उसके पीछे लाइन लगाकर खड़े थे। मैं उसकी तरफ बढ़ जाता हूँ।

छह मिनट (आर)

शादी भावनात्मक बंधन के अलावा क्या है? जब आप इस बंधन में पड़ते हैं, तो इसके साथ-साथ आप कुछ सामाजिक बन्धनों को भी स्वीकार करते हैं और इसको कमजोर करने वाली संस्थाओं से बचकर रहते हैं। जिस दिन मैं और मेरा पति इस बंधन में बंधे उसी दिन से हो गया। मैंने अपने पति को कभी एन के बारे में नहीं बताया। मैंने बताना चाहा था और उसने मुझसे पूछा भी था कि अतीत में मेरा किसी से कुछ था तो नहीं, मैंने यह कहते हुए टाल दिया कि ऐसा कुछ ख़ास नहीं था। मुझे नहीं लगता कि मेरे पति को इस बारे में पता चला होगा कि एन और मेरे बीच में क्या था। हमारे रिश्ते के कई रूप हैं। कई बार एक दूसरे के शरीर से हमारा जी नहीं भरा तो कई बार हम चुपचाप साथ बैठकर और साथ-साथ मिलकर सिगरेट पीते हुए भी संतुष्ट हो गए। कई बार दोनों आपस में घुल-मिल जाते थे। मेरा अपने पति के साथ ऐसा कुछ भी नहीं रहा। लेकिन मुझे इस बात में कोई संदेह नहीं कि उसने इसका अनुभव नहीं किया। हो सकता है किसी और के साथ। हो सकता है किसी रिश्ते की मौत पर उसको भी तकलीफ़ हुई हो? हो सकता है कि वह भी उसको लेकर भावुक रहता हो। हो सकता है, जिस रात मुझे गर्भ ठहरा था, उस रात वह भी किसी के बारे में सोच रहा हो।

कई बार मुझे किसी नासमझ किशोर जैसा महसूस होता है, हर जिम्मेदारी से भागकर एन की बाँहों में जाने का मन करता है, एक ऐसा जीवन जीने का मन करता है जो हम जी नहीं पाए। मैं मुस्कुरा उठती हूँ। मैं इस तरह से सोच रही हूँ, क्योंकि एन और मेरे बीच जिम्मेदारियों जैसी कोई बात नहीं थी। हम वहाँ थे। यह बात है। हम एक दूसरे का कुछ कर्ज नहीं रखते। सिवाय कुछ गहरे भावनात्मक पलों के। मुझे अचानक एक बात सूझी। अगर मैं आगे बढ़कर एन से कहूँ कि वह मेरे साथ कहीं हवाई यात्र पर चल सकते हैं? मैंने पाया कि मैं पसीने से नहा गई हूँ। मैं स्वयं को झिड़क देती हूँ : यह मैं क्या सब सोच रही हूँ? लेकिन यह सब सोचने से मैं खुद को रोक नहीं पा रही। क्या वह मेरे अनुरोध को मानेगा? और अगर वह मान गया, तो क्या यह महज अनुरोध भर रह जाएगा? रहेगा . . . ठीक है, मैं उससे अनुरोध करके देखती हूँ, ठीक? मैं नीचे झुककर अपने बैग से पानी की बोतल निकालती हूँ और एक घूँट में सारा पानी पी जाती हूँ। मुझे बेचैनी महसूस होने लगती है। वह ज़रूर शादीशुदा है। हो सकता है उसको बच्चा भी हो? मैं इस तरह से सब कुछ छोड़-छाड़ कर उसके साथ कहीं जाने के बारे में सोच भी कैसे सकती हूँ? मेरा एक पति है। कोख में बच्चा पल रहा है। मुझे इस तरह के विचारों का त्याग कर देना चाहिए न कि उनके बारे में सोचना चाहिए। क्या मैं कुछ दिनों के लिए एक अलग तरह का जीवन नहीं जी सकती, अलग तरह के लोगों के बीच, अलग तरह के माहौल में? लेकिन इस तरह से अचानक बदलाव की अनुमति किसी को भी नहीं होती। कोई भी कभी मुक्त नहीं हो सकता।

जब मैं पीछे मुड़ती हूँ, तो देखती हूँ कि वह मेरी तरफ आ रहा है। मेरा गला सूख जाता है और मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगता है। और जब वह ठीक मेरे सामने आता है, तो रुक जाता है।

सात मिनट

आर उठ खड़ी होती है और एन उसके पास आता है। वह कुछ संघर्ष करती है; एन उससे सावधान होने के लिए कहता है। वह उसको छूने ही वाला था, लेकिन अंतिम पल में अपने हाथ हटा लेता है। उसके लिए अच्छा है। आर के लिए भी अच्छा है। आख़िरकार, दोनों एक दूसरे के सामने खड़े हो जाते हैं। क्या सचमुच इतना समय बीत गया है? एन की खिचड़ी दाढ़ी से उसको ऐसा लगता है। बालों में लाल रंगत दिखाई दे रही है, जिससे इस बात की और पुष्टि हो जाती है।

‘बधाई हो’, एन बोलता है।

एक पल के लिए आर को यह कहने का मतलब समझ में नहीं आया। उसने ऐसा क्यों कहा? वे एक दशक के बाद मिल रहे हैं। तब उसको अपने पेट का ध्यान आता है।

‘शुक्रिया’

‘कौन-सा महीना है?’

‘पाँचवाँ।’

एन होंठ भींचकर मुस्कुराता है। आर भी अजीब तरह से मुस्कुरा उठती है। वैसे तो उनके पास एक दूसरे से कहने के लिए कितना कुछ है, लेकिन उनके मुँह से एक भी शब्द नहीं निकलता। उनको अपने विचारों को सुसंगत तरीक़े से वाक्यों में ढालने की ज़रूरत है।

‘तो . . .’ वह पूछता है।

‘तो?’ वह भी पूछती है।

‘कैसा चल रहा है?’ वह पूछता है।

आर ने कभी सोचा भी नहीं था कि उनके रिश्ते एक दिन ऐसे हो जाएँगे कि उनको बात करने के लिए विषय नहीं मिलेगा।

‘अच्छा’, वह सर हिलाते हुए कहती है, ‘तुम्हारा क्या चल रहा है?’

‘अच्छा।’

‘तुम कहाँ जा रही हो?’ वह बातचीत को हर हाल में आगे बढ़ाने के मकसद से कहता है।

इससे पहले कि आर अपने आपको रोकने की कोशिश करती, उसके मुँह से निकल जाता है, ‘पता नहीं।’

‘सॉरी।’

‘मैं माफी माँगती हूँ। मुंबई। मैं मुंबई जा रही हूँ,’ वह जल्दी से कहती है।

‘ओह! मैं हैदराबाद जा रहा हूँ।’

‘काम?’

‘घर। दिल्ली में काम था,’ वह कहता है। अंतिम शब्द सुनकर वह दु:खी हो जाती है। ‘घर।’ उसने कभी यह नहीं सोचा था कि एक दिन वह घर शब्द बोलेगा और वह उसका हिस्सा नहीं होगी।

‘मुंबई मेरा घर है’, वह कहती है।

‘मुझे लगा था।’

कुछ पलों की चुप्पी के बाद वह पूछती है, ‘क्या तुम्हारी शादी हो गई है?’

वह मुस्कुराता है, जिसे वह समझ नहीं पाती, और फिर वह आगे कहता है, ‘वह बहुत अच्छा खाना पकाती है, मेरा ध्यान रखती है; वह कामकाजी औरत है, हम जो भी करते हैं वह कभी मेरे ऊपर सवाल नहीं उठाती है . . .’

आर बोल पड़ती है, ‘मैं समझ गई।’

‘तुम समझ गई?’ एन हैरान होकर कहता है।

‘लेकिन तुमको तो एकरसता पसंद नहीं है।’

वह जवाब देने से पहले कुछ सोचता है। ‘अब मुझे इसकी आदत पड़ चुकी है। मुझे पहले कई चीज़ें पसंद थीं, जो मुझे अब अच्छी नहीं लगती। समय के साथ घर की हमारी परिभाषा बदलती रहती है। ’

‘क्या तुमको घर की अच्छी और बुरी बातों के बारे में पता है?’

‘तुम मुझे अच्छी बातें बताओ। मैं बुरी बातों के बारे में बताऊँगा।’

‘वे हमें एक दूसरे से शरण देते हैं। मैं एक को न इसलिए कह सकती हूँ, क्योंकि मेरे पास कोई और होता है।’

‘और सबसे बुरी बात यह है कि इसको हम बनाते हैं, हालाँकि दूसरे लोगों के लिए, इसलिए वे हमें बुलाते रहते हैं। ख़ासकर आधी रात के बाद। जब दूसरे नींद में होते हैं। जब हमारी आत्मा अधिक जाग्रत होती है। शायद किसी के बुलाए जाने का इन्तजार करती रहती है।’

उद्घोषणा होती है : आर के फ्रलाईट की बोर्डिंग शुरू हो गई है।

‘मुझे अब जाना होगा,’ वह एन से कहती है।

तुम कभी नहीं जा पाओगी। यह बात समझी नहीं? एन सोचता है।

‘ज़रूर’, वह कहता है।

आर लाइन में लग जाती है। एन अपनी जगह से नहीं हिलता। वह उसको एक बार चूमना चाहता था। वह भी उसे गले से लगाना चाहती थी। लेकिन दोनों जानते हैं कि ऐसा करने से बरसों की दबी हुई मिट्टी ऊपर आ जाएगी।

एन उसका बोर्डिंग गेट से बाहर जाने का इन्तजार कर रहा है। आर से आगे चार लोग हैं। एयरलाइन का एक कर्मचारी आकर उससे कहता है कि बूढ़े लोग और गर्भवती महिलाएँ लाइन से बाहर आ सकती हैं। आर उसके पीछे-पीछे चली जाती है। वह रूकती है, पीछे मुड़ती है और एन के पास आ जाती है।

‘क्या तुम मेरे पेट को चूमोगे?’ आर बहुत भावुक हो गई है, और उससे विनती कर रही है। एन का गला भर आया है। कुछ पल के बाद वह झुककर उसके पेट को चूम लेता है। तुमको पता नहीं है कि तुम कितने खुशकिस्मत हो, वह बच्चे से फुसफुसाते हुए कहता है और उठ खड़ा होता है। वह उसको उदासी से देखती है और चली जाती है। जब मेरा पति पूछेगा तो मैं इस मुलाक़ात के बारे में वैसे ही टाल जाऊँगी जिस तरह से मैंने तब टाल दिया था, जब मेरे पति ने मुझसे अतीत के रिश्ते के बारे में पूछा था।

आर यह सोचती है और अपना चश्मा चढ़ाकर कर्मचारी को अपना बोर्डिंग पास दिखा देती है।

अंत में हमारी राख से एक जैसी गंध आएगी, लेकिन हमारी ज़िंदगी की आग अलग-अलग जलती रही, हम दोनों अलग-अलग थे और एक नहीं हो पाए। हम दोनों अलग थे और एक दूसरे की कामना करते रहे। एन आर को जाते हुए और सुबह की धुंध में गायब होते हुए देखते हुए सोचता है।