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तस्वीरें

 

पहला दिन

मेरे जीवन में सब कुछ ठीक है। लेकिन लगता है जैसे कुछ भी सही नहीं हो, मैं इस बात के फर्क को तब समझा जब मैं अपने संभावित जीवन-साथी से मिल रहा था, जो अब मेरी मंगेतर है।

मैं सगाई के लिए तैयार नहीं था। लेकिन मुझे पता नहीं था कि इसको किस तरह रोका जाए। मेरी उम्र बत्तीस साल है, देखने में अच्छा हूँ, एक सफल स्टार्ट अप में वाइस प्रेसिडेंट के पद पर हूँ। सिवाय इसके कि मैं अभी तैयार नहीं हूँ अपने माँ-पापा को कहने के लिए मेरे पास कुछ नहीं था। और उनके लिए यह पर्याप्त कारण नहीं था। पिछले चार साल से यही कहते रहने के बाद तो और भी नहीं। जैसे ही तुम्हारी शादी हो जाएगी, तुम इसके लिए लायक बन जाओगे, उन्होंने मुझसे कहा। लेकिन उन्होंने मुझे समझा ही नहीं, न तो अभी, न ही तब जब मैं सोलह साल का था और साइंस नहीं आर्ट्स पढ़ना चाहता था।

मुझे अपने अस्तित्व से जुड़ी बातों का संकट है। मुझे ऐसा लगा कि एक सफल जीवन के जितने पहचान प्रतीक होते हैं, मेरे पास सब थे। बड़ी कंपनी में ऊँची नौकरी? है। एक एसयूवी गाड़ी? है। संपत्ति? है। विदेश यात्रएँ? कर चुका हूँ। शादी? होने वाली है। सोशल मीडिया पर अच्छा जीवन? हाँ। लेकिन क्या जीवन का मतलब यही होता है? इन सब बातों को करने का क्या अर्थ होता है? मैं असल में अपनी ज़िंदगी के साथ कर क्या रहा था? क्या इन चीज़ों का आख़िरकार कोई मतलब था भी? मेरी ज़िंदगी के बारे में सब कुछ इतनी आसानी से बताया जा सकता था। सब कुछ वैसा ही था जैसा उसको होना चाहिए था, और तब भी मुझे कुछ महसूस नहीं होता था। मुझे ऐसा महसूस ही नहीं होता था कि मैं ज़िन्दा था। जैसा कि मैंने कहा, सब कुछ ठीक था। कुछ भी सही नहीं था।

और जैसे ही मैं कुछ-कुछ उम्मीद महसूस करने लगा, कुछ उत्साहित महसूस करने लगा, कि यह प्रस्ताव आया। पिछले महीने मैंने जोश में आकर डीएसएलआर खरीद लिया – केनन 500 डी। जब मैं उसके उपयोग के बारे में एक के बाद एक यूट्यूब वीडियो देख रहा था, फोटोग्राफी की शुरुआत करने वाले लोगों के लिए पुस्तिकाएँ पढ़ रहा था, तो यह पूरी कला बड़ी सुन्दर लग रही थी। मेरे अन्दर सीखने की वैसी ही ललक पैदा हो गई जैसे बचपन में क्रिकेट को सीखने को लेकर पैदा हो गई थी। मैं इस खेल को लेकर इतना उत्साहित था, जितना ज़िंदगी में किसी चीज़ को लेकर नहीं हुआ। उसके बाद मैं केनन 500 डी कैमरा खरीदने के बाद हुआ। कुछ ऐसा हुआ जिसमें मेरी दिलचस्पी जगी। फ्रेम बनाना, लाइटिंग, फोकस, शटर स्पीड – ये शब्द मेरे दिमाग में तब भी गूँजते रहते थे जब मैं दफ़्तर में काम कर रहा होता था। मेरा मन करता रहता था कि घर जाऊँ, जैक डेनियल का एक पैग बनाऊँ, कैमरा उठाऊँ और कैमरे के अगले प्रयोग में लग जाऊँ। केनन 500 डी से पहले मैं बहुत दिनों से किसी भी चीज़ को लेकर इतना पोजेसिव नहीं हुआ था।

फोटोग्राफी के कारण मुझे अपने जीवन की एकरसता से मुक्त होने का मौक़ा मिलता था। लोगों का कहना है कि फोटोग्राफी का मतलब किसी वस्तु को कैद करना नहीं है बल्कि रोशनी को कैद करना होता है। इससे मुझे ऐसा महसूस हुआ कि जीवन महज कुछ तुच्छ वस्तुओं का होना नहीं होता, बल्कि उसका सम्बन्ध आपकी भावनाओं से भी होता है। और इसी वजह से मैंने अपने काम से एक सप्ताह की छुट्टी ले ली है। मुंबई में बरसात का मौसम है, और यही समय है फोटोग्राफी के अपने सैद्धांतिक ज्ञान को व्यवहार में आजमाने का।

सोमवार का दिन है। सुबह जमकर नाश्ता करने के बाद मैं अंधेरी, लोखंडवाला के अपने अपार्टमेंट से गाड़ी चलाता हुआ सीधा बोरीवली के संजय गांधी नेशनल पार्क पहुँच गया। इससे अधिक जादुई कुछ नहीं हो सकता है कि बरसाती दिन में जंगल के कीचड़ भरे रास्तों को नापा जाए। रास्ते में, जब मैं यह देखता हूँ कि लोग अपने-अपने दफ़्तरों की तरफ भागे जा रहे हैं, तो मुझे हँसी भी आ रही है।

नेशनल पार्क में जितनी तस्वीरें हो सकती हैं, मैं लेता हूँ। हर क्लिक के साथ मैं मुस्कुरा उठता हूँ। मुझे यह जानकर खुशी हुई कि किसी चीज़ से मैं अब भी गहरे जुड़ सकता हूँ। हम में से बड़े होने के बाद ऐसा कितने लोग कह सकते हैं? मैं किसी दबाव में फोटो नहीं खींच रहा हूँ। मुझे अपनी खींची तस्वीरों का कोई चार्ट नहीं बनाना है। वे सफलता और असफलता के दायरे से अलग हैं। पिछली बार मैंने सब कुछ छोड़-छाड़ कर इस तरह का कुछ तब किया था, जब मैं स्कूल में पढ़ता था और मैंने शेव बनाना सीखा था। उसके बाद मैंने चाहे जिस तरह से जो कुछ भी किया वह या तो अपने मन को मारकर या किसी और के डर से किया।

बारिश तेज हो जाती है। मैं भागकर अपनी कार के भीतर चला जाता हूँ। मैं यह देखता हूँ कि मैंने जो तस्वीरें ली, वे किस तरह की हैं। जूम इन करके मैं इस बात की तस्कीद करता हूँ कि सभी मानकों का ध्यान रखा गया था या नहीं। मैं अपने कैमरे की लेंस को साफ करता हूँ और बैंडस्टैंड की तरफ गाड़ी चलाते हुए जाता हूँ। मैं समुद्र और मुम्बई शहर की सीमाओं को कैमरे में कैद करना चाहता हूँ।

अब बारिश तेज हो गई है। बैंडस्टैंड के पास के एक कैफे से मैं एक कप कॉफी खरीदता हूँ। मैं अपना जूम लेंस निकाल लेता हूँ। इस लेंस से यह महसूस होता है कि सब कुछ मेरी पहुँच में आ गया है, बहुत विस्तार के साथ जो आमतौर पर मुझसे खो गया होता। मैं लेंस को कैमरे से लगाता हूँ और अपने कैमरे को उठा लेता हूँ, एक आँख बंद करके व्यूफाइंडर में देखते हुए लेंस को ठीक करने लगता हूँ। शहर के नजारों को क्लिक करने से पहले मैं एक फोटो यूँ ही ले लेता हूँ, ताकि यह देख सकूँ कि सब कुछ सही है या नहीं। सड़क की दूसरी तरफ एक केफे में एक जोड़ा बैठा हुआ है, और मैं अपने कैमरे की लेंस को सही करके उस तरफ देखता हूँ। कैफे देखने में आनंददायक लग रहा है, बाहर रोशनी कम है, लेकिन बत्ती की रोशनी में कैफे चमक रहा है। वह जोड़ा खिड़की के पास बैठा है, शीशे पर पड़ते पानी के कारण बाहर से वह धुँधला दिखाई दे रहा है। आदमी बना-ठना लग रहा है, वह सफाचट दाढ़ी मूँछ वाला है और उसने बिना कमानी वाला चश्मा पहन रखा है। वह औरत मेरी मंगेतर श्रुतिका है, देखकर गुस्से के मारे मेरे होंठ फड़कने लगते हैं। जब मैंने उसको आख़िरी बार फोन किया था, तब उसने बताया था कि वह दिन भर दफ़्तर में व्यस्त रहेगी।

दूसरा दिन

जो मैंने कल देखा था आज वही मेरे साथ है। एक घंटे बाद वे निकल गए। मैं एक घंटे और दो मिनट बाद निकला। गाड़ी चलाकर घर वापस जाते समय मुझे समझ में आया कि दो श्रुतिका थी। एक से मेरी सगाई हुई थी और दूसरे के बारे में मुझे कुछ नहीं पता, सिवाय इसके कि उसने मुझसे झूठ बोला। किसी व्यक्ति के बारे में सबसे भयानक खुलासा जिसको उस आदमी ने अभी जानना शुरू ही किया हो। ख़ासकर जब वह आपकी मंगेतर हो।

आज तक मैं अपने जीवन में दो बार रिश्ते में रहा। एक सम्बन्ध दूर-दूर का रहा; इसकी शुरुआत ग्रेजुएशन के बाद हुई। यह सम्बन्ध चार साल तक चला, जब उस लड़की की शादी किसी और से हो गई। उसके बाद मेरा चक्कर उस जगह की एक लड़की से चला जहाँ मैंने पहली नौकरी के बाद काम करना शुरू किया था। हम दोनों पाँच साल तक साथ रहे। लेकिन उसको ऐसा लगता नहीं था कि मैं उस रिश्ते को लेकर गंभीर था; उसके लिए मैं बहुत उदासीन रहने वाला इंसान था। उसने मुझसे सम्बन्ध तोड़ लिया। मुझे पता था कि वह सही थी। मैं अपने हर रिश्ते में उदासीन ही रहा – रोमांटिक और पारिवारिक।

चूँकि हम दोनों की सगाई हो चुकी है, इसलिए श्रुतिका और मैं हर रात एक दूसरे को फोन करते हैं। शुरू-शुरू में बातचीत में ताजगी रहती थी; अब उसका एक ढर्रा बन चुका है। वह मुझे बताती है कि उसका दिन कैसा गुज़रा। मैं उसको अपने बारे में बताता हूँ। अगले दिन के लिए क्या है; संभव हो तो हम वीकेंड में फिल्म देखने जा सकते हैं; फिल्म देखने के बाद हम किसी नए रेस्तराँ में जा सकते हैं, इस तरह की बातें करते। कई बार वह मुझे उस तरह के लहँगे के स्क्रीनशॉट भेजा करती है, जिसको वह शादी वाले दिन पहनना चाहती है। हमने अभी तक एक दूसरे को ‘आई लव यू’ नहीं कहा है। या फोन पर हमने एक दूसरे को किस भी नहीं किया है। जब भी हम बाहर मिलते हैं, तो एक दूसरे के हाथ थाम लेते हैं, लेकिन कुछ बहुत नज़दीकी जैसी अभी तक हुआ नहीं है।

कल रात जब मैं उससे बात कर रहा था, तो मैंने कैमरे में फोटो को खोला और उसको तथा उसके साथ वाले आदमी को देखने लगा। क्या वह उसका पूर्व प्रेमी था? मुझे झूठ बोलकर वह उससे क्यों मिल रही थी? बातचीत के दौरान एक बार मेरा मन हुआ कि उससे पूछूँ कि उसने मुझसे झूठ क्यों बोला। यह बता दूँ कि मैंने उसको कैफे में एक आदमी के साथ देखा, लेकिन मैंने यही तय किया कि कुछ न कहा जाए। मैं यह नहीं चाहता था कि उसको ऐसा लगे कि मैं न उसके ऊपर काबू रखना चाहता हूँ, न ही उसको लेकर पोजेसिव हो रहा हूँ। हो सकता है कि बाद में सहज हो जाने के बाद वह खुद बता दे। मैं कभी किसी को कुछ कहने के लिए बाध्य नहीं करता। लेकिन मैं जानने को बहुत उत्सुक रहता हूँ।

आज मैं मरीन ड्राइव गया और वहाँ मैंने खूब सारी तस्वीरें खींची। लेकिन व्यूफाइंडर में देखने से अधिक मैं अपनी घड़ी देखता रहा। मैं उन दोनों का इन्तज़ार कर रहा था। मैं एक बार फिर बैंडस्टैंड गया और उस कैफे के सामने वाली सड़क पर खड़ा हो गया जहाँ मैंने उन दोनों को कल देखा था। उसके बाद दोनों आए : श्रुतिका और वह आदमी। मैंने जूम लेंस लगाकर उन दोनों की पचीस तस्वीरें उतारी। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं कोई जासूस हूँ। मैंने ऐसा क्यों किया? पता नहीं। एक घंटे के बाद वे वहाँ से चले गए। मैं दो घंटे बाद वहाँ से चला आया। उससे पहले मैंने क्लिक की हुई हर तस्वीर को देखा। क्या मेरी तस्वीरों से ऐसी कहानी का खुलासा हो सकता था जो वह छिपाना चाहती थी या मेरा दिमाग ऐसी सतह को खरोंच रहा है जिसके नीचे कुछ है ही नहीं? मेरे पास इसका कोई उत्तर नहीं था।

तीसरा दिन

सुबह अपने कैमरे के साथ खेलने के बाद दोपहर में खाने के लिए मैं बैंडस्टैंड आ गया। मेरे माता-पिता को लगता है कि बारिश के मौसम में मैं मुंबई को देख रहा हूँ। मैंने श्रुतिका से यह बता रखा था कि मैं एक सप्ताह की छुट्टी पर हूँ, लेकिन उसने यह नहीं पूछा कि मैं गया कहाँ था, मैंने कैसी तस्वीरें खींचीं। मैंने भी उसको कुछ बताया नहीं। जब कोई रूचि नहीं दिखाता है, तो मैं उसको कुछ भी नहीं बताता हूँ। इसलिए इस बात को केवल मैं ही जानता हूँ कि मैं यहाँ फोटो खींचने के लिए नहीं आया हूँ बल्कि . . . मुझे यह याद भी नहीं है कि मैंने पिछली बार बिना यह जाने कि मैं वह काम क्यों कर रहा था, कुछ किया हो। आमतौर पर ऐसा नहीं करता। लेकिन कई बार मैं सनक जाता हूँ।

मैं एक कैपुचिनो ऑर्डर करके दोनों का इन्तज़ार करने लगता हूँ, बल्कि पूरी बेचैनी से उनका इन्तज़ार करने लगता हूँ। मैं उन दोनों की पुरानी तस्वीरें देखने लगता हूँ। मैं उस आदमी को समझने की कोशिश करने लगता हूँ। मुझे ऐसा महसूस होता है कि इससे मुझे उनके रिश्ते को समझने में मदद मिलेगी। ख़ासकर उसके चश्मे को देखता हूँ। वह बिना कमानी वाला है। मुझे याद आया कि श्रुतिका ने एक बार मुझे चश्मा बदलने के लिए कहा था। मेरा कार्बन फ्रेम वाला चश्मा है। हो सकता है कि वह यह चाहती हो कि इस आदमी की तरह मैं भी बिना कमानी वाला चश्मा पहन लूँ। यह आदमी सफाचट है जबकि मेरी दाढ़ी और मूँछ दोनों हैं। हो सकता है उसको मूँछें न हों। उसे यह बात मुझे सीधे तौर पर बता देनी चाहिए थी। लेकिन मैंने भी उससे सीधे-सीधे कुछ नहीं पूछा था। पिछले दो दिनों में मैं बस श्रुतिका और उस आदमी के बारे में सोचता रहा हूँ। आवेग में आकर मैं उसको कॉल कर देता हूँ। मुझे उसकी आवाज़ में हैरानी की झलक मिल जाती है। क्या वह अभी से मेरी परवाह नहीं करती है? क्या उसने उस आदमी को बता दिया है, ‘मैं अपने होने वाले पति को बहुत अच्छी तरह जानती हूँ।’ मैं यहाँ इस कैफे में इसलिए बैठा हुआ हूँ क्योंकि मैं उसको अच्छी तरह नहीं जानता हूँ। अगर मैंने एक सप्ताह की छुट्टी नहीं ली होती, डीएसएलआर नहीं खरीदा होता, तो मुझे उन दोनों के इस मिलन का पता ही नहीं चल पाता?

मैं अपने आप से पूछता हूँ : मेरी असली मुश्किल क्या है – अपनी मंगेतर को किसी आदमी के साथ देखना या यह बात कि वह इन मुलाक़ातों के बारे में मुझसे छिपा रही है? लेकिन मुझे यह समझ में आ गया है कि यह अहम है मेरा। मुझे बुरा लग रहा है।

बारिश थम गई है। मैं अपनी घड़ी देखता हूँ। अभी समय है। मैं दूसरे कैफे में जाकर उस जगह बैठ जाता हूँ जहाँ से उनके बैठने की जगह दिखाई देती है। मैं सड़क पार कैफे की तरफ देखता हूँ, जिसके बाहर खड़ा होकर मैं उनके ऊपर नज़र रखता था। अगर श्रुतिका ने मुझे देख लिया तो वह क्या सोचेगी? क्या वह मुझे हाथ हिलाएगी? क्या वह जल्दी से ऐसे चली जाएगी जैसे उसने मुझे देखा ही न हो? या वह मेरा सामना करेगी – यह काम जो मैं कभी नहीं करूँगा? मैं उठता हूँ और दूसरे कैफे में वापस चला जाता हूँ।

मैं शहर के नजारों की कुछ तस्वीरें उतारता हूँ, काले बादलों की, कुछ चिड़ियाओं की, एक गîक्के की, माँ के साथ टहलते बच्चे की, लेकिन मुझे किसी भी चीज़ से संतोष नहीं मिलता। मैं सोचता हूँ कि उन लोगों ने कहीं और मिलने का फैसला तो नहीं कर लिया। यह सोचकर मुझे निराशा होती है। मैं यह सोच रहा था कि उनकी कहानी के बारे में शायद मुझे कुछ और पता चल जाए। एक तस्वीर हजार शब्दों के बराबर होती है। मैं एक बार फिर उनकी तस्वीर देखता हूँ। उस तस्वीर को मैं अपने फोन में श्रुतिका और अपनी तस्वीर से मिलाकर देखता हूँ। हम दोनों तस्वीर में औपचारिक लग रहे हैं, जबकि वे दोनों नहीं। हमें ऐसे लग रहा है जैसे किसी बंधन में बंधे हों, जबकि वे मुक्त लग रहे हैं। मेरी तस्वीरों में उन्होंने एक दूसरे को छुआ नहीं है, लेकिन तब भी उनके बीच का तालमेल बहुत अच्छा लग रहा है। उनके संग-संग और हमारे साथ के बीच एक बुनियादी फर्क है : समय। उनके सफ़र के पन्ने पहले से ही भरे हुए हैं। हमारा अभी कोरा ही है। इस अर्थ में हमारा सीमित है। उनकी कहानी ज़रूर कुछ रास्ता तय कर चुकी है। हमारी अभी सही रास्ता तलाश ही कर रही थी। एक और बुनियादी अंतर है। हम शादी करने वाले हैं। वे नहीं। तीन घंटे और चार कप कॉफी के बाद भी श्रुतिका और वह आदमी नहीं आए।

चौथा दिन

हमारा जीवन ढर्रे के मुताबिक होता है। या तो हम स्वयं उनको बनाते हैं या पहले से बने बनाए साँचों का हिस्सा बन जाते हैं। शायद हमें इसमें शांति महसूस होती है। मुझे अभी तक ऐसा कोई इंसान नहीं मिला, जो खुश हो और जिसके जीवन में बना बनाया ढर्रा न हो। लेकिन बने बनाए ढर्रों के अलावा कहीं खुशी नहीं हो सकती। बने बनाए ढर्रे का होना और एकरसता का होना दोनों दो चीज़ें हैं। एक ढर्रे को छोड़कर दूसरे ढर्रे पर चले जाना आसान नहीं होता। ज़िंदगी सबसे मजेदार तब होती है, जब हम दो ढर्रों के बीच होते हैं। जब हम इसके लिए संघर्ष कर रहे होते हैं कि एक को छोड़कर दूसरे को अपना लें। जैसे मैं धीरे-धीरे यह कोशिश कर रहा हूँ कि अपने कुँवारेपन को छोड़कर विवाह-पूर्व जीवन को स्वीकार कर लूँ।

मुझे यह बात तब समझ में आई जब श्रुतिका ने हमारे बीच रोज़ रात में फोन पर होनेवाली बातचीत के दौरान बहुत अजीब-सा प्रस्ताव रखा। ‘क्या हम साथ-साथ लंच कर सकते हैं?’ हम लोगों ने सप्ताह में काम के दिनों में कभी साथ-साथ खाना नहीं खाया!

जब हम रेस्तराँ की तरफ जा रहे थे, तो श्रुतिका ने मुझे बताया कि इस जगह के बारे में उसको जोमाटो से पता चला। वह जुहू में था और उसका नाम मेल्टिंग पॉट था; इस जगह के बारे में बहुत अच्छे-अच्छे रिव्यू आए थे। मैंने ‘हम्म’ कहकर जवाब दिया।

‘हमें सप्ताह के काम वाले दिनों में भी मिलना चाहिए। तुम क्या सोचते हो?’ जब हमने खाने का ऑर्डर कर दिया, तो श्रुतिका ने मुझे बताया।

‘हाँ, क्यों नहीं?’ मैंने जवाब दिया। वह ऐसे मुस्कुराई जैसे उसको इस बारे में पता था कि मैं मान जाऊँगा। लेकिन मुझे तकलीफ़ इस बात से हुई कि उसने इस समय ऐसा प्रस्ताव क्यों रखा? आज ही क्यों? तब मुझे ढर्रों-साँचों का ध्यान आया। जब वेटर ने हमें भोजन परोसा तो मैं यह सोचने लगा कि क्या शादी सबसे अनचाहा साँचा है, जिसमें हम ढल गए। लंच करते हुए हम कुछ ख़ास बातचीत नहीं कर रहे थे। सबसे दिलचस्प बात यह थी कि मैं छुट्टी पर था, जबकि मैं ही बार-बार घड़ी देख रहा था। मानो मैं यह चाहता था कि मेल्टिंग पॉट से अधिक उसके साथ बैंडस्टैंड के उस रेस्तराँ में जाऊँ।

जब हम कार में बैठे तो श्रुतिका ने मेरे गालों को चूमकर मुझे हैरान कर दिया। जब मैंने उसको चूमने की कोशिश की, तो उसने अपने होंठ आगे कर दिए और हम स्मूच करने लगे। उसके बाद हम शांत हो गए, पहले लंच, फिर स्मूच . . . दो अनायास घटनाएँ एक के बाद एक। क्या यह इसलिए था क्योंकि उसको ग्लानि हो रही थी? मुझे अपने एक दोस्त की याद आई जो जब भी दफ्रतर में किसी सहकर्मी के साथ सोता था तो वह अपनी पत्नी के लिए कोई तोहफा लेकर जाता था। कई बार इंसान ग्लानि में पड़कर ज़रूरत से ज्यादा प्यार का प्रदर्शन करने लगता है, उसने मुझे एक बार बताया था। क्या श्रुतिका इस बात से शर्मिंदा थी कि वह मुझे बिना बताए उस आदमी से मिल रही थी?

उसने मुझसे आग्रह किया कि मैं उसको दफ़्तर तक छोड़ दूँ। मुझे हैरानी नहीं हुई। मैं वैसे साहसी किस्म का आदमी हूँ, इसलिए कार से उतरते हुए मैंने उसको अलविदा कह दिया। उसने मुझे गले से लगा लिया। पिछली बार जब हम गले मिले थे इस बार उससे अधिक देर तक हम गले से लगे रहे। मुझे लगता है कि हम किसी इंसान को सामान्य से अधिक देर तक इसलिए गले से लगाए रहते हैं, क्योंकि हमें इस बात का यकीन नहीं होता है कि हमारे मन में जो भावनाएँ हैं शब्दों में उनके साथ न्याय हो पाएगा या फिर नहीं। कुछ भावनाएँ ऐसी होती हैं, जिनका बखान नहीं किया जा सकता। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि इस तरह से देर तक गले लगाकर श्रुतिका मुझे क्या कहना चाह रही थी।

मैंने उससे कहा कि मैं घर जा रहा था, लेकिन मैं बैंड स्टैंड चला गया। और मैं वहाँ उन दोनों का इंतजार करने लगा। जब मैं अपनी पसंद की सीट पर बैठा तो वेटर आया और बोला, ‘कैपूचिनो, बिना क्रीम के, नहीं सर?’

यहाँ तक कि कैफे और मैं भी एक तरह के ढर्रे के मुताबिक हो गए हैं। मैंने मुस्कुराते हुए सिर हिला दिया। वे आमतौर पर जिस वक़्त आते थे उसके एक घंटे बाद वह आदमी उस कैफे में आया। अब मुझे स्मूच का मतलब समझ में आया। कुछ देर तक वह इधर-उधर टहलता रहा और फिर उसको कोई फोन आया। वह अपनी नियत जगह पर बैठ गया और बार-बार घड़ी देखने लगा। मुझे समझ में आ गया कि वह उसका इंतजार कर रहा है। आधे घंटे बाद, वह वहाँ से चला गया। मैं इंतजार करता रहा। श्रुतिका नहीं आई। मुझे अचानक ऐसे लगा जैसे मैंने बिना तलवार उठाए ही लड़ाई जीत ली हो।

पाँचवाँ दिन

जबसे मेरी नींद खुली है मुझे चैन महसूस हो रहा है। आकाश में कल रात से ही बादल छाए हुए हैं, लेकिन बारिश नहीं हुई है। मुझे नहीं लगता है कि आज मैं बैंडस्टैंड जाऊँगा। मुझे कैमरे का शौक पूरा किए कुछ वक़्त हो चुका है। मैंने यह फैसला किया कि फोर्ट इलाके में जाकर लोगों की तस्वीरें उतारूँ। मुंबई के व्यावसायिक इलाके में 18वीं शताब्दी के ब्रिटिश स्थापत्य और आधुनिक स्थापत्य का संगम है, जहाँ 21वीं शताब्दी के दफ़्तर जाने वाले आते हैं। यह किसी नौसिखिया या पेशेवर छायाकर के लिए बहुत आदर्श स्थान है।

मैं गाड़ी चलाकर वहाँ जाता हूँ, खूब सारे फोटोग्राफ उतारता हूँ, जैसे ही लंच का वक़्त आता है बैंडस्टैंड जाने की मेरी ख्वाहिश बढ़ जाती है। मैं अपना ध्यान हटाने के लिए अलग-अलग चीज़ों के ऊपर ध्यान एकाग्र करने की कोशिश करता हूँ – एक भिखारी, सोया हुआ टैक्सी ड्राइवर, बस का इंतजार करता हुआ आदमी, एक मोची।

उसके बाद मेरे फोन की घंटी बज उठती है, यह श्रुतिका है। वह मुझसे पूछती है कि मैं कहाँ हूँ और उसके बाद बताती है कि उसको दफ़्तर के बाहर किसी काम से जाना है। फोन काटने के बाद मैं गाड़ी चलाता हुआ बैंडस्टैंड निकल जाता हूँ। वे यहाँ आए नहीं हैं और उनके मिलने के समय से समय बहुत अधिक हो चुका है। इस बार मैं उसी कैफे में जाता हूँ, जिसमें वे मिलते थे और बाहर की तरफ एक सीट पर बैठ जाता हूँ। तब मेरा ध्यान उस आदमी की तरफ गया। वह अंदर एक एयर कंडीशनर के पास बैठा हुआ है। बगल में एक बैग पड़ा हुआ है। श्रुतिका का बैग है, और कुर्सी पीछे की तरफ खींची हुई है। मुझे ऐसा लगता है कि वह ज़रूर वाशरूम में है। मैं अपना ऑर्डर कैंसल करता हूँ और तेजी से निकल जाता हूँ। सड़क पार करके मैं सामने वाले कैफे में चला जाता हूँ, जहाँ मैं अक्सर जाता हूँ।

जब मैं बैठता हूँ, तो देखता हूँ कि वे कैफे से बाहर निकल रहे हैं। मेरा दिल तेजी से धड़कने लगता है, मुझे ऐसा महसूस होता है जैसे मेरे सिर में कोई नस तन गई हो। अचानक बारिश होने लगती है। एकदम मुंबइया बारिश जैसी। लोग छिपने के लिए जगह की तलाश में इधर-उधर भागने लगते हैं। श्रुतिका के साथ वाला आदमी छाता खोल लेता है। उससे मुझे दिखाई देना बंद हो जाता है। मैं उन दोनों को साफ़-साफ़ देख नहीं पा रहा हूँ। और जब आप किसी चीज़ को साफ़-साफ़ नहीं देख सकते हैं, तो आप अपने मन से तरह-तरह की बातें सोचने लगते हैं। और जाहिर है बुरा-बुरा ही सोचने लगते हैं।

मुझे अब यह निश्चित रूप से लगने लगता है कि कल वह मुझे इसलिए मिली थी, क्योंकि उसको ग्लानि हो रही थी। क्या श्रुतिका को ऐसा लगा था : मैं इस आदमी को चूमने जा रही हूँ, लेकिन मैं अपने आपको यह भी समझाना चाहती हूँ कि मुझको मेरा मंगेतर पसंद है? यह सोचना फिजूल की बात है, क्योंकि निश्चित रूप से वह इस आदमी को पहली बार नहीं चूम रही थी? या यह हो सकता है कि हमारी सगाई के बाद वह पहली बार इस आदमी को चूम रही हो। मुझे स्पष्ट रूप से कुछ भी नहीं सूझ रहा है। मेरे विचारों की तरह मेरे खयालों पर भी बदली छाई हुई है। आकाश को मेरे ऊपर रहम आ जाता है। बारिश जिस तरह अचानक शुरू हुई थी उसी तरह रुक भी जाती है। मेरी आँखें छाते के ऊपर लगी हुई हैं। जब तक वह उसको बंद नहीं कर लेता है। उनकी यह करीबी देखकर मेरे दिल में आग-सी लग जाती है। मेरा दिल कह रहा है कि उनके सामने चला जाऊँ लेकिन मेरा दिमाग़ कह रहा है कि अपनी ही जगह पर बैठा रहूँ। बात यह है कि मैं उनको रंगे हाथ पकड़ना नहीं चाहता हूँ। मैं यह नहीं चाहता कि उन दोनों के बीच अपनी मौजूदगी को जताऊँ। मैं यह सोचने लगता हूँ कि यह त्रिकोण कब बना, कौन किसके बीच में है? क्या मैं दोनों के बीच में हूँ? या वह श्रुतिका और मेरे बीच में है? वे ज़रूर एक दूसरे को लंबे समय से जानते हैं। इससे जवाब मिल जाता है कि कौन किनके बीच में है, इससे मुझे गुस्सा आ जाता है, और मैं झटके से उठ खड़ा होता हूँ। टेबल में झटका लगता है और मेरा फोन गिर जाता है। मैं फोन उठाता हूँ; बैठ जाता हूँ और श्रुतिका को फोन मिलाता हूँ। अगर मुझे इस बात का इल्म है कि मैं उन दोनों के बीच में हूँ, तो उनको भी इस बात का इल्म होना चाहिए। मैं देखता हूँ कि वह फोन को घूर रही है। वह उस आदमी से कुछ दूर हट जाती है। वह जानती थी कि बीच में मैं हूँ। वह फोन उठाने में इतनी देर क्यों कर रही है? क्या फिर से ग्लानि? मुझे पक्का यह लग रहा है कि वह फोन नहीं उठाएगी। लेकिन वह फोन उठा लेती है, लेकिन बहुत देर घंटी बजने के बाद। आज मैं बैंडस्टैंड में हूँ, मैं कहता हूँ, फोटो खींच रहा हूँ। और उसको यह बताते हुए फोन को मैं बाएँ कान के पास कंधे से टिकाकर अपना कैमरा उठा लेता हूँ। मुझे केवल उसकी साँसें सुनाई दे रही हैं।

छठा दिन

श्रुतिका को ऐसा लगता है कि मैं मजाक बहुत अच्छी तरह करता हूँ। उसने मुझे कल रात ऐसा बताया था। आज सुबह नाश्ता करते समय मैं स्वयं को मुस्कुराने से रोक नहीं पाता। जब मैंने उससे यह कहा कि मैं बैंडस्टैंड में हूँ, तो उसके चेहरे पर घबड़ाहट, असहायता और दुश्चिंता का भाव देखने लायक था। वह घबड़ाहट में इधर-उधर देखने लगी कि कहीं मैं दिख जाऊँ। लेकिन मेरे पास जूम लेंस था, जो उसके पास नहीं था। मैं उसको हर पल देख रहा था। मैंने हँसते हुए उससे कहा कि मैं मजाक कर रहा था। यह सुनकर साफ़ दिख रहा था। उसके बाद उसने कहा कि मैं बहुत मजाकिया इंसान हूँ। उसको इस तरह उत्तेजित देखकर मेरे में भावनाएँ जाग उठती हैं। कहीं-न-कहीं मुझे यह समझ में आ गया था कि उसके जीवन में मेरा महत्व क्या था? मैं जो चाहता था उसके मन में वह उथल-पुथल मैंने मचा दी थी। किसी के ऊपर इतना वश मेरा कभी नहीं रहा था। मुझे नहीं लगता कि मेरे स्थान पर अगर उसको उस आदमी ने फोन किया होता जो उसके साथ था, तो वह इतनी उत्तेजित नहीं हुई होती। यही पति होने की ताकत होती है। या यह कहें कि होने वाले पति की।

पहली बार मुझे शादी का मतलब समझ में आया। अब मुझे यह बात समझ में आ गई है कि शादी भी सत्ता का खेल है। और अगर मेरा अंदेशा सही है, तो वह उस आदमी से फिर कभी बैंडस्टैंड पर नहीं मिलेगी। एक फोन से मैंने उनके मिलने-जुलने की जगह बदल दी। मुझे अपने बारे में भी कोई बात समझ में आ गई थी। मेरी जगह कोई और इंसान रहा होता, तो अभी तक उससे पूछ चुका होता। वह वास्तव में मर्दाना प्रतिक्रिया रही होती बजाय उन दोनों की गुप्त मुलाक़ातों को चुपचाप देखते रहने के। मुझे हमेशा से ऐसी उम्मीदों से असहजता महसूस होती रही है, जिसको पुरुषों से जोड़कर देखा जाता है। और अगर कोई उन आशाओं के अनुरूप न हो तो उस आदमी की मर्दानगी के ऊपर ही सवाल उठने लगते हैं। महिलाओं की तरह ही पुरुष भी समाज के बंधनों के कैदी होते हैं। बहरहाल, मुझे अपने रास्ते से हटना नहीं चाहिए। दूसरे लोग जो चाहे करते, लेकिन मैंने श्रुतिका का सामना नहीं किया। मैं नहीं करूँगा। काफी समय के बाद, किसी बात से मुझे हैरानी हुई और इस बात ने मेरी उत्सुकता को जगा दिया। रात में मैं उनकी कहानी के बारे में कल्पना करता और दिन के वक़्त मैं यह सोचने की कोशिश करता कि क्या हो सकता था। जैसे मैं लेखक हूँ और वे दोनों किरदार। अगर मुझे यह बात अच्छी नहीं लगी कि वे बैंडस्टैंड में मिलते हैं, तो मैंने एक फोन कॉल किया और उनके मिलने की जगह को दुबारा से लिख दिया। लेकिन बैंडस्टैंड के बारे में सोचते हुए मैं यह सोचने लगता हूँ कि आज वे कहाँ मिलेंगे, या मिलेंगे भी।

आज शनिवार है, श्रुतिका की छुट्टी का दिन है। सुबह के नाश्ते के कुछ घंटे बाद मैं गाड़ी चलाकर उसके घर की तरफ जाता हूँ। वह सांताक्रूज वेस्ट में अपने माँ-पिता के साथ रहती है। वह एक सहकारी सोसाइटी है। उसकी बिल्डिंग के गेट के पास मैं अपनी कार पार्क कर देता हूँ। आज गजब की बरसात हो रही है। मैं उसको फोन मिलाता हूँ। हम लोग कुछ देर तक बातें करते हैं। वह कहती है आज उसको बहुत आलस्य महसूस हो रहा है और वह सोएगी। मैं भी उससे यही कहता हूँ। मुझे लगता है कि वह इस बात को जानने के लिए उत्सुक थी कि आज मैं क्या करने वाला हूँ, उसी तरह से जिस तरह से मैं उत्सुक था। उसको इस बात का पता नहीं है, लेकिन हम एक खेल खेल रहे हैं। रिश्ते इसी तरह के होते हैं, है ना? फोन रखने के बाद मैं वहीं रुक जाता हूँ। मुझे न जाने क्यों ऐसा लग रहा है कि वह जल्दी ही बाहर निकलेगी। मुझे यह नहीं पता है कि वह हर बार यही समय क्यों चुनती है। हो सकता है इस समय उस आदमी के लिए सुभीता होता हो।

फिलहाल बारिश हो रही है। कुछ मिनट के बाद करीब 2.30 बजे उसकी बिल्डिंग के सामने ओला कैब आकर रुक जाती है। श्रुतिका कैब में सवार हो जाती है। मैं कैब का पीछा करता हूँ। बैंडस्टैंड? मैं सोचता हूँ। कुछ मिनट में ही मुझे यह बात समझ में आ जाती है कि वह वहाँ नहीं जा रही। कहीं और, मुझे निश्चित रूप से समझ में आ जाता है। चालीस मिनट बाद कैब खार, वेस्ट की एक संभ्रांत सोसाइटी के अंदर जाती है। आधे मिनट बाद कैब बाहर आ जाती है। उसके अंदर श्रुतिका नहीं है। मैं बाहर गाड़ी पार्क कर लेता हूँ। क्या वह आदमी यहीं रहता है? क्या अब वे उसके घर पर ही मिला करेंगे? यह सोचना बुरा लगता है। अगर वे किसी तरह के रिश्ते में हैं या थे तो हो सकता है वे कई बार मिल चुके हों। मैं इंतजार करने का फैसला करता हूँ। लेकिन यहाँ इंतजार करना बैंडस्टैंड के कैफे में बैठकर इंतजार करने से अलग है। मैं बेसब्र और बेचैन हो जाता हूँ। वहाँ मैं सामान्य रूप से उनके आने का इंतजार किया करता था। यहाँ मुझे पता है कि फ्रलैट के अंदर पहले ही दोनों की मुलाक़ात हो चुकी है।

मैं किसी तरह अगले कुछ घंटे बिताता हूँ। श्रुतिका बाहर नहीं आई है। उत्सुकतावश मैं कार से उतरकर अंदर जाता हूँ। मैं इस तरह गुपचुप तरीक़े से सोसाइटी के भीतर घुस जाता हूँ कि गार्ड मुझसे यह भी नहीं पूछ पाते हैं कि मैं जा कहाँ रहा हूँ। लेकिन एक बार अंदर जाने के बाद मुझे यह समझ में नहीं आता है कि उसकी तलाश कहाँ की जाए। अंदर चार बिल्डिंग हैं और मुझे नहीं पता है कि उनमें से किस बिल्डिंग में वह है। गार्ड से बिना पूछे इस बात का पता लगा पाना मुश्किल है, जिसको शक भी हो सकता है। मेरे मन में ऊहापोह चल ही रही होती है कि श्रुतिका मुझे एक बिल्डिंग से आती दिखाई देती है। वह आदमी उसके पीछे है और उसके साथ एक औरत भी है जिसने एक बच्चे का हाथ थाम रखा है। सब लोगों ने रेन कोट पहन रखा है। जल्दी से मैं पास की इमारत में जाकर छिप जाता हूँ। अचानक मुझे ऐसा लगता है कि सत्ता का संतुलन उसकी ओर झुक गया है। वैसे श्रुतिका को इस बारे में पता नहीं है। यह मेरे लिए अच्छी बात है।

सातवाँ दिन

इस बिल्डिंग के बाहर आने के बाद श्रुतिका खुश लग रही थी। मुझे यह बात इससे समझ में आई जब उसने कैब में बैठने के कुछ मिनट बाद ही मुझे फोन किया। मैं अभी भी उस बिल्डिंग के अंदर ही था, लेकिन मैंने उससे झूठ-मूठ में कह दिया कि मैं इवनिंग वाक के लिए गया हुआ था। मुझे उसकी खुशी का कारण समझ में नहीं आया? वह औरत कौन थी जो उस आदमी के साथ थी? और वह बच्चा? रात में जब मैं बिस्तर पर लेटा तो मैंने यही सोचा कि वह ज़रूर उस आदमी का परिवार है। लेकिन वह उसको अपने परिवार से क्यों मिलाएगा? और वे दोनों एक दूसरे के साथ इतने सहज लग रहे थे। मेरा मतलब है, दोनों औरतें। मुझे नहीं लगता है कि मैं कभी उस आदमी के साथ उतना सहज हो सकता था। न ही वह मेरे साथ हो सकता है। मैं सो नहीं पाया, क्योंकि मैं इस बात को नहीं समझ पाया कि उस आदमी, श्रुतिका तथा उस दूसरी औरत के बीच क्या हुआ होगा। क्या उसने अपनी पत्नी को यह बताया होगा कि श्रुतिका के साथ उसका चक्कर चल रहा है? इस समाचार को सुनकर उसकी पत्नी श्रुतिका के प्रति इतनी दोस्ताना कैसे हो गई?

सुबह के वक़्त मेरी माँ ने कहा कि उन्होंने श्रुतिका और उसके परिवार को डिनर पर बुलाया था। यह सुनकर मैंने खुशी तो जताई, लेकिन असल में मैं उसको देखना नहीं चाहता था। मैं इस बात को समझने में दिमाग़ लगा रहा था कि उस आदमी और श्रुतिका के बीच किस प्रकार का रिश्ता है और यह नहीं चाहता था कि रात में जब वह मेरे घर आए तो इस तरह की ऊहापोह की हालत में उससे सामना हो।

वे आठ बजकर पाँच मिनट पर पहुँचे। दुआ-सलाम के बाद बड़े बुजुर्ग बैठक में रह गए, जबकि मैं और श्रुतिका बालकनी में चले गए। वह बाँस के झूले में बैठ गई जबकि मैं रेलिंग से टिककर खड़ा हो गया। उसने मुझे बताया कि मेरे घर में यही जगह उसको सबसे अधिक पसंद है। मैंने उसको बताया कि मुझे भी यही जगह पसंद है। हम दोनों बहुत बात करने वाले लोग नहीं हैं। अक्सर हमारी चुप्पी उसके कुछ सवालों और मेरे कुछ जवाब से टूटती है। मैं उसकी बातों के पीछे कुछ पढ़ने की कोशिश करता हूँ, उस आदमी के बारे में कोई नई बात जान पाने की उम्मीद में, लेकिन मुझे निराशा ही हाथ लगी। डिनर तैयार हो जाने के बाद हमारे माँ-पापाओं ने हमें आवाज़ लगाई। मैंने उससे पहले जाने की कोशिश की, लेकिन पाया कि श्रुतिका ने मेरे हाथ थाम लिए।

‘मुझे दो मिनट का वक़्त दो’, वह बोली और उसके बाद उसने मुझे देखा। मैंने कंधे उचका दिए। उसने इस तरह से मेरा हाथ कभी नहीं थामा था।

‘मुझे तुमसे कुछ कहना है’, उसने कहा। मैं अचानक सख्त हो गया। मुझे यह पता था कि वह मुझे क्या कहना चाह रही है। पिछले एक सप्ताह के दौरान मैंने इस पल के बारे में कई बार कल्पना की थी। और अलग-अलग रूपों में इस बारे में सोचा था। लेकिन मैंने यह नहीं सोचा था कि असल में जब वह पल आएगा तो मेरा गला सूखने लगेगा। मैं तुमको कुछ बताना चाहती हूँ, केवल एक पुरुष ही बता सकता है, इसको किसी स्त्री से सुनना कितना परेशान करने वाला होता है। ख़ासकर तब जब उस आदमी को यह पता हो कि उस स्त्री का किसी और पुरुष के साथ चक्कर है।

‘ज़रूर’, मुझे ऐसा लगा कि मैंने यह बात पूरे आत्मविश्वास के साथ कही थी, लेकिन असल में मैं सकपकाया हुआ था।

‘मैं इस बात को लेकर निश्चिंत नहीं थी कि मैं कभी तुमको इस बारे में बता पाऊँगी या नहीं’, श्रुतिका ने कहना शुरू किया। ‘लेकिन कल कुछ ऐसा हुआ कि मुझे लगा कि मेरे पास इसका कारण है कि मैं यह बात तुमको बता दूँ। हम लोगों की शादी होने वाली है। मुझे पता है कि हम लोग एक दूसरे के बारे में अधिक जानते नहीं हैं। जाहिर है, समय के साथ हम लोग एक-दूसरे के बारे में बहुत कुछ नया जानेंगे लेकिन आज मैं तुमको एक आदमी के बारे में बताना चाहती हूँ।’

मेरे कानों में कुछ गूँज रहा था और उसकी आवाज़ बहने लगी। कुछ सेकेंड के बाद यह गूंज थमी और मुझे श्रुतिका की आवाज़ सुनाई दी, ‘हम लोग एक दूसरे को पिछले पाँच साल से जानते हैं। हम एक ही दफ़्तर में काम करते थे। अब हम अलग-अलग काम करते हैं। हम मिले तो सहकर्मी के रूप में थे, लेकिन दोस्त बन गए। मैं झूठ नहीं बोलूँगी कि जिस आदमी से मुझे सबसे अधिक जुड़ाव महसूस हुआ है वह वही है। वह सच में अच्छा इंसान है। संयोग से, हम जिस साल मिले उसी साल उसने अपने बचपन की एक दोस्त से विवाह कर लिया। दो साल बाद उनको बच्चे भी हुए।’ वह रुकी। काम की बात करो, मैंने मन-ही-मन उसको डाँटा लेकिन कहा कुछ नहीं।

‘लेकिन उसके बाद एक मुश्किल खड़ी हो गई। उसकी पत्नी का किसी से चक्कर चलने लगा। इस वजह से मेरा वह दोस्त जो काफी समय से मेरे संपर्क में नहीं था, हमारी सगाई से एक सप्ताह पहले अचानक फिर से प्रकट हुआ। काफी टूटी हुई हालत में।’

और तुम दोनों का चक्कर शुरू हो गया, मैंने अपने दिमाग़ में कहानी पूरी की।

‘मैं उसको उस रूप में देख नहीं सकी। इसकी वजह से प्यार और विवाह को लेकर भी मैं काफी कुछ सोचने लगी। हमें हमेशा से यह सिखाया गया है कि दोनों एक ही हैं।

लेकिन मुझे समझ में आ गया कि दोनों एक नहीं हैं। हम एक दूसरे को नहीं जानते हैं, लेकिन हमारी शादी हो रही है। हम अगर एक दूसरे की मौजूदगी में राहत महसूस करें, तो उसको प्यार कर सकते हैं। लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि यह प्यार से अधिक एक दूसरे को स्वीकार करना है, है ना?’

मैं चिढ़ गया। शायद इस वजह से क्योंकि मुझे यह पता था कि उसके दिमाग़ में क्या चल रहा है, लेकिन बजाय सीधे-सीधे कहने के वह इधर-उधर की बात किए जा रही थी।

‘हो सकता है। लेकिन तुम कहना क्या चाह रही हो?’ मैंने बेसब्र होते हुए उससे पूछा।

‘मेरे दोस्त ने अपने बचपन की प्रेमिका को किसी और पुरुष के साथ पकड़ लिया’, श्रुतिका खड़ी हो गई। उसने अभी भी मेरे हाथ पकड़ रखे थे।

‘मैं उससे बात करती हूँ, करीब-करीब रोज। पिछले एक सप्ताह से तो कुछ अधिक ही। उसके बाद मेरी बात उसकी पत्नी से भी हुई। उसने माफी माँग ली, और मैंने अपने दोस्त से कहा कि वह एक बार और मौक़ा देकर देखे। लेकिन मैं इस वजह से तुमको यह सब नहीं सुना रही।’

मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था इस कारण मैंने चिढ़ते हुए कहा – ‘फिर तुम मुझे यह सब किसलिए सुना रही हो श्रुतिका?’

‘हम लोग कुछ महीने में शादी के बंधन में बंधने वाले हैं। मैं यह चाहती हूँ कि तुम यह वादा करो कि अगर कोई दूसरी औरत आई, तो तुम मुझे बता दोगे। हम एक दूसरे को पकड़ेंगे नहीं। हम एक दूसरे से बता देंगे। पकड़ना या बता देना . . . शादी इन्हीं वजहों से बनती या टूटती है, है ना? क्या तुम मुझसे यह वादा करोगे एकलव्य?’ मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या जवाब दूँ। मैंने इसकी उम्मीद नहीं की थी। मुझे लग रहा था कि वह मुझे अपने संबंध के बारे में सब बता देगी। यह उम्मीद नहीं थी कि शादी को लेकर इतनी बड़ी-बड़ी बातें करेगी। इसलिए मैं यह कहना चाहता हूँ कि मुझे कुछ निराशा हुई। उसकी माँ ने एक बार फिर आवाज़ दी। इस बार कुछ बेचैन होते हुए। मैंने इस मौक़े का फायदा उठाया और हाथ छुड़ाकर अंदर चला गया।

कुछ मिनट बाद हम आमने-सामने बैठे थे। डिनर के दौरान ही मैंने अपना फोन उठाया और उसको मैसेज कर दिया— मैं वादा करता हूँ। उसको देखते हुए मैं यह सोचने लगा कि मैं भी क्या-क्या सोच रहा था। कई बार हम कुछ बातों पर बहुत अधिक सोचते हैं : अपने रिश्तों को अपने दिमाग़ में इस कदर जीते हैं कि हम यथार्थ से दूर चले जाते हैं। और अगर आप और आपका संगी या संगिनी एक दूसरे की वास्तविकता का हिस्सा नहीं हैं, तो उस रिश्ते की हर बात बेमानी हो जाती है।

मैंने उसकी तरफ देखा। हमारी आँखें मिली। अचानक, सब कुछ सही लगने लगा। और उचित भी।