Chapter 1
विमल कालिया के खार वाले फ्लैट पर पहुंचा ।
वहां वागले और इरफान अली के साथ मुबारक अली भी मौजूद था । विमल ने देखा, उसने दाढी-मूंछ बढ़ा ली थी और सिर घुटवा लिया था ।
वह विमल से बड़े प्रेम भाव से मिला ।
“किधर थे मियां ?” - विमल बोला ।
“छुप के बैठेला था ।” - मुबारक अली दांत निकालता हुआ बोला - “बाप, आखिर वो क्या कहते हैं अंग्रेजी में - पुलिसियों के बड़े दफ्तर से भागा था ।”
“पुलिस हैडक्वार्टर से ।” - वागले बोला ।
“ऐन कमिश्नर की नाक के नीचे से ।” - इरफान बोला ।
“सब भाई लोगों की मेहरबानी है ।” - मुबारक अली बोला ।
“बम्बई से फूटे नहीं ?” - विमल बोला ।
“कोशिश भी नहीं की ।” - मुबारक अली बोला ।
“अच्छा ? पर इधर खतरा है ।”
“बाप, खतरे से डरने वाले आदमी के वास्ते तो दुनिया में खतरा ही खतरा है ।”
“बहुत पते की बात कही मुबारक अली ।”
“वागले ने कुछ बताया ?” - विमल बोल ।
“बताया तो बहुत कुछ ।” - मुबारक अली बोला - “पण मेरे कू सिर्फ इतना पकड़ में आया कि मेरे कू तुम्हेरा वो क्या कहते हैं अंग्रेजी में - मल्लाह बनने का है ।”
“बोटमैन ।” - वागले बोला - “बोटमैन कहते है अंग्रेजी में मल्लाह को ।”
“तो तुम्हें हमारा साथ देना मंजूर है ?” - विमल बोला ।
“ये भी कोई पूछने की बात है ?” - मुबारक अली जोश से बोला
“काम जोखिम का साबित हो सकता है ।”
“बाप, अपुन तेरे साथ है” - मुबारक अली जोश से बोला - “अपुन मेरा मुरीद है । अपुन ये बी नेई जानना मांगता कि काम क्या है ! तू जो बोलेंगा, करेंगा । तू जहन्नुम में जाने को बोलेंगा तो जायेंगा । अपुन की तो यही बहुत, वो क्या कहता हैं अंग्रेजी में, खुशकिस्मती है कि लाखों लोगों को छोड़ के तू मेरे कू चुना ! तूने मेरे कू अपनी सोहबत के काबिल माना ।”
“शुक्रिया, मुबारक अली, बहुत-बहुत शुक्रिया ।”
“अपुन भी ठैंक्यू बोलता है, बाप ।”
ठैंक्यू पर विमल की हंसी छूट गई ।
“अपुन” - मुबारक अली सकपकाया - “कुछ गलत बोल गया, बाप ?”
“नहीं” - विमल बोला, तभी वह वागले की तरफ घूमा - “हमारा तिजोरीतोड़ कहां है ?”
“उससे बात हो गई है ।” - वागले बोला - “जब चाहोगे आ जायेगा ।”
“उसे बोल दो कि कल रात को तैयार रहे ।”
“कल रात हल्ला बोलने का इरादा है ?”
“हां । मैं तो आज ही चाहता था लेकिन बीच में खामखाह एक भारी अड़ंगा आ गया जिसकी वजह से काम को एक दिन के लिये तो मुल्तवी करना ही अच्छा है ।”
“क्या अड़ंगा आ गया ?”
विमल ने उन्हें अपनी गिरफ्तारी और रिहाई की बाबत बताया ।
“तौबा !” - वागले बोला - “इतना बड़ा वाकया हो गया और हमें खबर ही नहीं !”
“जो कि अच्छी बात है । तुम लोग भी वहां होते तो हम सब उनकी पहचान में आ जाते । अब हमें इस बात का ख्याल रखना है कि कोई हमारी निगाहबीनी न करने पाये ।”
“ठीक है ।”
“अब कल रात का प्रोग्राम सुनो ।”
फिर विमल ने विस्तार से समझाना शुरू किया कि कैसीनो की रेड में किसने क्या रोल अदा करना था ।
“कोई सवाल ?” - अन्त में वह बोला ।
कोई कुछ न बोला ।
तभी भट्टी वहां पहुंचा उसके साथ एक कोई पचास साल का दुबला-पतला सा आदमी था जिसे उसने ड्राइंगरूम में बिठा दिया और स्वयं विमल और उसके साथियों के पास पहुंचा ।
उसने प्रश्नसूचक नेत्रों से मुबारक अली को देखा ।
“मुबारक अली ।” - विमल बोला - “हमारा बोटमैन ।”
“एक मुबारक अली” - भट्टी अपलक मुबारक अली को देखता हुआ बोला - “जौहरी बाजार की वाल्ट डकैती में सोहल के गैंग में शामिल था, बाद में पकड़ा गया था तो ऐन पुलिस की नाक के नीचे से पुलिस कमिश्नर के दफ्तर की खिड़की फांद कर दिन-दहाड़े फरार हो गया था ।”
“ये वो मुबारक अली नहीं ।” - विमल बोला ।
“हो भी तो मुझे क्या ?” - भट्टी लाहरवाही से बोला - “अपनी पसन्द के आदमी चुनने का आखिर तुझे पूरा अख्तियार है ।”
“तेरे साथ कौन आया है !”
“बाहर चल बताता हूं । तेरे ही काम से आया है ।”
“चलता हूं लेकिन पहले मेरी एक बात सुन ।”
“क्या ?”
“मुझे लगता है तुम लोगों के मलाड वाले फ्लैट की निगरानी हो रही है ।”
भट्टी सकपकाया । उसने अपलक विमल की ओर देखा ।
“कैसे जाना ?”
“बस, जाना किसी तरह से । हम में से कोई तो अब वहां कदम रखेगा नहीं, सोचा तुम्हें भी खबरदार कर दूं ।”
भट्टी कुछ क्षण सोचता रहा और फिर बोला - “ठीक है । हम हो गये खबरदार । अब चल ।”
विमल उनके साथ ड्राइंग रूम में पहुंचा ।
“ये इस्साभाई विगवाला है ।” - भट्टी ने वहां बैठे व्यक्ति का परिचय दिया - “हिन्दोस्तान का टॉप का विग मास्टर है । हालीवुड से ट्रेनिंग ले के आया है । तेरे वास्ते दाढी बना कर लाया है ।”
“ओह !”
विमल ने उसका अभिवादन किया ।
इस्साभाई ने उसे अपने सामने बिठाया और अपना ब्रीफकेस खोला । ब्रीफकेस में से एक दाढी निकालकर उसने विमल के चेहरे पर फिक्स की और फिर कंघी कैंची लेकर उसमें मुनासिब कतरव्योंत की । फिर उसने परे हटकर अपनी कारीगरी का मुआयना किया और फिर विमल को शीशा देखने को कहा ।
विमल ने बाथरूम में जाकर शीशा देखा ।
दाढी बिल्कुल असली मालूम होती थी ।
वह वापिस लौटा ।
“खुश ?” - भट्टी बोला ।
“बहुत ।” - विमल बोला, फिर वह इस्साभाई की तरफ घूमा - “थैंक्यू । थैंक्यू वैरी मच ।”
इस्साभाई केवल मुस्कराया ।
फिर उसने विमल को दो शीशियां सौंपी ।
“एक में” - वह बोला - “लिक्विड गम पेंट है जो कि दाढी जोड़ने के काम के लिये है । दूसरी में एक खास तरह की स्पिरिट है जो कि दाढी को उतारने के काम के लिये है । वैसे तुम चाहते तो दाढी को हमेशा भी लगाये रह सकते हो ।”
“गुड !”
“लेकिन हफ्ते में दो बार शेव करना जरूरी होगा वर्ना लिक्वड गम पेंट की पकड़ कमजोर पड़ जायेगी ।”
“मैं ध्यान रखूंगा ।”
फिर भट्टी इस्साभाई विगवाला के साथ वहां से विदा हो गया ।
***
शाम सात बजे विमल अपने होटल के कमरे में पहुंचा ।
वहां योगेश पाण्डेय बैठा था ।
हकबकाया-सा विमल दरवाजे पर ही ठिठक गया ।
“आओ, आओ ।” - पाण्डेय स्वागतपूर्ण स्वर में बोला - “संकोच मत करो, तुम्हारा अपना घर है ।”
विमल ने हिचाकचाते हुए भीतर कदम रखा । उसने अपने पीछे दरवाजा बन्द कर दिया और फिरोजा के आन्दोलित चेहरे पर निगाह डाली ।
“ये” - उसने कहना चाहा - “ये...”
“नैवर माइन्ड ।” - विमल बोला - “मैं जानता हूं इन्हें ।”
“लेकिन ये... ये मुझे...”
“मैं आ गया हूं । अब ये जो कुछ कहेंगे, मेरे से कहेंगे ।” - वह पाण्डेय की तरफ घूमा - “ठीक !”
“अगर तुम” - पाण्डेय बोला - “मुझे यहां से निकाल नहीं दोगे तो ठीक ।”
“मेरी क्या मजाल है जो मैं...”
“मजाल तो तुम्हारी बहुत है, भैय्या” - पाण्डेय गहरी सांस लेता हुआ बोला - “तभी तो कमिश्नर के सामने मेरी पालिश उतार दी, मेरा पलस्तर उधेड़ दिया ।”
“अब क्या चाहते हो ?”
“तुमने एक बात नोट की ?”
“क्या ?”
“कि मैं अकेला आया हूं । मेरे साथ मेरा जोड़ीदार नरेन्द्र यादव नहीं है । कोई हथियारबन्द पुलसिये भी नहीं हैं मेरे साथ ।”
“दिखाई तो नहीं दे रहे ।”
“हैं ही नही ।”
“गुड !”
“और खुद मैं भी” - उसने अपना कोट खोल कर दिखाया - “हथियारबन्द नहीं हूं ।”
“वैरी गुड ! लेकिन ये अभी नहीं बताया कि चाहते क्या हो ?”
“जाहिर है कि तुमसे बात करना चाहता हूं । इसीलिये तुम्हारे इन्तजार में यहां बैठा हूं ।”
“क्या बात करना चाहते हो ?”
“यहीं सुनना चाहते हो ?”
“कोई खराबी है इस जगह में ?”
“खराबी तो नहीं है लेकिन... वो क्या है कि... तुम्हारी बीवी पहले ही परेशान है । और परेशान हो जायेगी ।”
“तो...”
“विस्की पीते हो ?”
“पीता तो हूं लेकिन...”
“चलो नीचे बार में चलते हैं ।”
विमल एक क्षण हिचकिचाया और फिर बोला - “ठीक है चलो ।”
पाण्डेय उठ खड़ा हुआ ।
“जरा मेरी सुनो ।” - फिरोजा व्यग्रभाव से बोली ।
“लौट के सुनता हूं ।”
“लेकिन...”
“सुन लो ।” - पाण्डेय बोला - “मैं बाहर गलियारे मैं खड़ा हूं ।”
पाण्डेय कमरे से बाहर निकल गया ।
उसके दृष्टि से ओझल होते ही विमल फिरोजा के करीब पहुंचा और सख्ती से बोला - “तुम मुझे यही सुनाना चाहती हो ने कि तुम इस आदमी के सामने कबूल कर चुकी हो कि तुम मेरी बीवी नहीं हो, ये मेरे बच्चे नहीं है और मैं खुद भी मैं नहीं, पता नहीं कौन हूं ।”
“वो मुझे” - फिरोजा रुंआसे स्वर में बोलो - “गिरफ्तार कर लेने की धमकी दे रहा था ।”
“इसलिये तुमने सब बक दिया ?”
“मैं क्या करती ?”
“अड़ी रहती अपनी बात पर । तोते की तरह रटती रहती कि तुम मेरी बीवी हो, ये हमारे बच्चे हैं ।”
“मैं डर गयी थी ।”
“वो तो दिख ही रहा है ।”
“अब क्या होगा ?”
“जो होगा सामने आ जायेगा । फिलहाल चैन से बैठो ।”
“लेकिन माजरा क्या है ? वो आदमी...”
“माजरा तुम्हारी समझ में नहीं आयेगा, फिरोजा बाई । तुम चैन से बैठो, मैं अभी लौट कर आता हूं ।”
“लौट कर आओगे न ?”
विमल हंसा ।
“इतनी नाउमीदी हो गयी ! बहुत ज्यादा खौफ खायी मालूम होती तो उस आदमी का !”
“अब मैं क्या बताऊं ! तुम्हारे सामने तो वो मक्खन की तरह पिघला जा रहा था । जबकि मुझे तो वह अंगारे जैसी लाल-लाल आंखें दिखा रहा था और कड़क-कड़क के बोल रहा था ।”
“छोड़ो वो किस्सा । जो हो गया सो हो गया । आइन्दा ध्यान रखना ! किसी की कैसी भी धमकी में नहीं आना है तुमने । मैं आता हूं ।”
विमल कमरे से बाहर निकला । पाण्डेय उसे लिफ्ट के सामने खड़ा दिखाई दिया । वह लम्बे लग भरता हुआ उसके करीब पहुंचा ।
लिफ्ट द्वारा वे नीचे पहुंचे ।
नीचे बार लगभग खाली पड़ा था । ये दोनों कोने की एक मेज पर जा बैठे । पाण्डेय ने ड्रिंक्स का आर्डर दिया । आर्डर सर्व हुआ तो दोनों ने बड़े मशीनी अन्दाज से चियर्स बोला । विमल ने पाइप सुलगा लिया और फिर बड़ी गम्भीरता से बोला - “मैं सुन रहा हूं ।”
पाण्डेय का सिर सहमति में हिला । वह कुछ क्षण खामोश रहा और फिर बोला - “वो औरत... फिरोजा बाई... यहीं बम्बई की रहने वाली है । चर्च गेट के करीब एक यतीमखाना है जिसकी वो मैनेजर है । उसक पति का नाम नौशेरवानजी है लेकिन वो नौशेरवानजी तुम नहीं हो । बच्चे दोनों यतीमखाने के हैं ।”
“इतने से साबित हो गया कि मै सोहल हूं ।”
“नहीं ।” - पाण्डेय बड़े इत्मीनान से बोला - “लेकिन यह साबित हो गया कि तुम वो भी नहीं हो जो कि तुम कहते हो कि तुम हो ।”
“कबूल । लेकिन ये साबित हो जाने के क्या संवर गया तुम्हारा ?”
“इतने से कुछ नहीं संवरा । इतने से तो सिर्फ ये साबित हो सकता है कि तुम कोई शरारती, खुराफाती आदमी हो और किसी फिराक में हो । इतने से तुम सोहल साबित नहीं होते ।”
“तो ?”
“तुम्हें सोहल साबित करने के लिये मैंने कुछ और किया ?”
“क्या ?”
“कुछ करने से पहले कुछ सोचा मैंने । जो मैंने सोचा वो कोई बहुत दूर का कोड़ी नहीं थी मामूली बात थी वो । देखो, शनिवार को तुम्हारे फिंगरप्रिंट्स पुलिस रिकार्ड में मौजूद सोहल के फिंगरप्रिंट्स् से मिलते थे, मंगलवार को नहीं मिलते थे । ऐसा दो ही तरीकों से हो सकता था । या तो तुम्हारे फिंगर प्रिंट्स बदले गये हों या फिर सोहल के फिंगर प्रिंट्स का रिकार्ड बदल गया हेा ! तुम्हारे फिंगर प्रिंट्स तो बदल नहीं सकते । इसका मतलब है कि रिकार्ड बदला गया । अब रिकार्ड तो अपने आप बदल नहीं सकता । जाहिर है कि उसे किसी ने बदला । इस हेराफेरी को सहूलियत से अंजाम उन्ही लोगों में से कोई दे सकता था जो कि फिंगरप्रिंट्स डिपार्टमैट मे काम करते हैं । एक चपरासी को मिलकर वहां चार आदमी हैं । मैंने चारों को चैक किया । भौंसले को जानते हो ?”
“कौन भौंसले ?”
“हवलदार है ! फिंगर प्रिंट्स डिपार्टमैंट में काम करता है । पूरा नाम केशवराव भौंसले है !”
“मैं नहीं जानता ।”
“पुलिस रिकार्ड में से तुम्हारे फिंगर प्रिंट्स उसने गायब किये थे ।”
“वो मानता है ऐसा किया होना ?”
“अभी इस बाबत उससे पूछा नहीं गया । जब पूछा जायेगा तो मान जायेगा । नहीं भी मानेगा तो साबित हो जायेगा कि यह उसी की करतूत थी ।”
“बहुत यकीनी तौर से की रहे हो यह बात ?”
“हां । बहुत यकीनी तौर से कह राह हूं ।”
विमल ने विस्की का एक घूंट पिया, पाइप का एक लम्बा कश लगया ।
“जानना चाहते हो” - पाण्डेय बोला - “उसकी करतूत कैसे साबित होगी ?”
“नहीं । मैंने क्या लेना है जानकर !”
“जान लो । घर की बात है ।”
विमल ने अपलक उसकी तरफ देखा ।
“वो हवलदार” - पाण्डेय बोला - “केशवराव भौंसले - मैंने मालूम किया है, कोई करप्ट पुलसिया नहीं है । बहुत क्लीन रिकार्ड है उसका पुलिस में लगता है तुम्हारा कोई अहसान है उस पर जिसका कि वो तुम्हें सिला देना चाहता था । तभी उसने इतनी टॉप की हेराफेरी करने की जुर्रत की । और हेराफेरी भी ऐसे तरीके से की कि खुद को जोखम में डाल दिया ।”
“अच्छा !” - प्रत्यक्षत: विमल सुसंयत स्वर में बोला लेकिन भीतर से उसका दिल किसी अज्ञात अशंका से लरजा जा रहा था ।
“फिंगर प्रिंट्स का क्लासीफाइड रिकार्ड रखने का एक खास तरीका होता है ।” - पाण्डेय एकाएक यूं बोलने लगा जैसे कोई टीचर क्लास में लैक्चर दे रहा है - “एक चार्ट बना होता है इस काम के लिये दस छोटे खाने और दो हथेलियों के निशानों के लिये दो बड़े खाने बने होते हैं । तुम्हें तो मालूम ही है कि अपराधी के फिंगरप्रिंट्स कैसे रिकार्ड किये जाते हैं । आखिर दो बार गिरफ्तार हो चुके हो । एक बार दिल्ली में यूनियन बैंक वैन राबरी वाले केस में और दूसरी बाद जयपुर में कंचन नाम की एक नौजवान लड़की के कत्ल के केस में ।”
विमल खामोश रहा । अभी वो आदमी एरिक जानसन कम्पनी से पचास हजार रुपये के गबन के इलजाम में हुई उसकी पहली गिरफ्तारी को भूल रहा था जो कि उसकी तबाही और बरबादी की लम्बी दास्तान का पहला अध्याय बनी थी ।
“लगता है” - पाण्डेय आगे बढा - “भौंसले को तुम्हारा फिंगरप्रिंट्स का रिकार्ड तब्दील करने की कोई जल्दी थी । पिछले तीन चार दिनों से बुक करने के लिये कोई अपराधी पुलिस हैडक्वार्टर लाया नहीं जा रहा था इसलिये रिकार्ड के तुम्हारे चार्ट की जगह कोई दूसरा चार्ट रख देने का उसका कोई साधन नहीं बन रहा था । नतीजतन उस बेचारे ने क्या किया कि उसने खुद अपनी उंगलियों के निशानों का एक चार्ट बनाया और उसे रिकार्ड में मौजूद तुम्हारे चार्ट से तब्दील कर दिया । कहने का मतलब ये है अब बाम्बे पुलिस के रिकार्ड में तुम्हारे फिंगर प्रिंट्स के स्थान पर जो फिंगरप्रिंट्स मौजूद हैं, वो हवलदार केशवराव भौंसले के हैं ।”
विमल सन्न रह गया ।
उसके काम को अंजाम देने के लिये बुजुर्गवार ने निश्चय ही बहुत बड़ी कुर्बानी दी थी ।
“भौंसले ने सोचा होगा” - पाण्डेय कह रहा था - “कि और एकाध दिन में उसे बुक होने के लिये आये अपराधी के फिंगर प्रिंट्स हासिल हो जायेंगे तो वह अपने फिंगर प्रिंट्स रिकार्ड से निकाल कर नष्ट कर देगा । लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हुआ है और शायद आगे हो भी न पाये ।”
“वो किसलिये ?”
“कल उसकी छुट्टी है । परसों जब वो ड्यूटी पर लौटेगा तो हो सकता है सस्पेंशन आर्डर थमा दिया जाये । या गिरफ्तार ही कर लिया जाये ।”
अपनी बात का सोहल पर कोई प्रभाव देखने के लिये पाण्डेय ठिठका ।
“जो कुछ” - विमल कठिन स्वर में बोला - “भौंसले ने, तुम कहते हो कि, किया है, उसकी तुम्हें कैसे खबर है ?”
“मैंने चैक किया है ।” - पाण्डेय सहज स्वर में बोला - “खुद चैक किया है । भौंसले पर शक हो जाने के बाद और ये मालूम हो जाने के बाद कि तब्दील करने के लिये कोई दूसरे फिंगर प्रिंट्स उसे हासिल नहीं थे लेकिन फिंगरप्रिंट्स तब्दील हो चुके थे, मेरा यह सोचना स्वाभाविक था कि शायद उसने अपने फिंगरप्रिंट्स इस्तेमाल किये हों । यह बहुत दूर की कौड़ी थी और कोई नतीजा हासिल होने को मुझे जीरो उम्मीद थी लेकिन फिर भी मैंने भौंसले की जानकारी के बिना उसके फिंगर प्रिंट्स हासिल किये और उनका सोहल के कथित फिंगरप्रिंट्स से मिलान करके देखा । नतीजा चौंका देने वाला निकला ।”
“मिस्टर पाण्डेय, नतीजा चौंका देने वाला निकला, या दहला देने वाला, लेकिन यह हकीकत अभी भी अपनी जगह कायम है कि मेरी उंगलियों के निशान पुलिस रिकार्ड में मौजूद सोहल की उंगलियों के निशानों से नहीं मिलते ।”
“दुरूस्त । लेकिन अब हमें यह भी तो मालूम है कि निशान क्यों नहीं मिलते !”
“उससे क्या होता है ?”
“होता है ।”
“क्या होता है ?”
“तुम भूल रहे हो कि तुम सात राज्यों में घोषित इश्तहारी मुजरिम हो । महाराष्ट्र के अलावा तमिलनाडु, दिल्ली, पंजाब, गोवा, राजस्थान, और उत्तर प्रदेश में भी वहां की पुलिस के पास तुम्हारे फिंगर प्रिंट्स का रिकार्ड उपलब्ध है । महाराष्ट्र की तरह वहां के अपने रिकार्ड में भी तुम हेराफेरी करवा चुके हो तो बात दूसरी है वर्ना वहां से रिकार्ड मंगवाया जा सकता है और निर्विवाद रूप से साबित किया जा सकता है कि तुम सोहल हो ।”
दाता ! - विमल मन-ही-मन बोला - सोचै सोचि न होवई जे सोची लखवार !
“मैंने गलत कहा ?” - पाण्डेय बोला ।
विमल ने उत्तर न दिया ।
तुम्हारा गिलास खाली है, मैं ड्रिंक मंगवाता हूं ।
पाण्डेय ने अपना गिलास भी खाली किया और नये राउन्ड का आर्डर दिया ।
आर्डर सर्व होते तक दोनों में मुकम्मल सन्नाटा छाया रहा ।
“अब” - फिर पाण्डेय ने चुप्पी भंग की - “मैं तुम्हें यह समझाने की कोशिश करता हूं कि क्यों बादशाह अब्दुल मजीद दलवई नाम का आदमी हमें हिन्दोस्तानी जमीन पर जिन्दा चाहिये ।”
“मैं सुन रहा हूं ।”
“शुक्रिया । बात यूं है मेरे भाई कि बादशाह नाम का ये दरिन्दा हिन्दोस्तान के टैरेरिस्ट्स को हथियार और गोला-बारूद सप्लाई करने का काम करता है । यही शख्स हिन्दुस्तान में और हिन्दुस्तानी सरहद से पार टैरेरिस्ट्स के कैम्प आर्गेनाइज करता है जहां कि उन्हें हथियार चलाने की और अराजकता फैलाने की बाकायदा ट्रेनिंग दी जाती है । यही शख्स टैरेरिस्ट्स को पनाहगाहें मुहैया कराता है । हमें यकीनी तौर पर मालूम है कि पंजाब में, कश्मीर में, आसाम में, मिजोरम में, नागालैण्ड में हर जगह कितने भी टैरेरिस्ट्स ग्रुप सक्रिय हैं, उन सबकी पीठ पर यही आदमी है । यही उनके लीडर के नाम जानता है, यही उन्हें आधुनिक चीनी और अमरीकी हथियार मुहैया कराता है, इसी के माध्यम से हिन्दोस्तान की दुश्मन विदेशी ताकतें हिन्दोस्तान में सक्रिय टैरेरिस्ट्स ग्रप्स को माली इमदाद पहुंचाती हैं । यह एक इकलौता शख्स हिन्दोस्तान में जगह-जगह फैली टैरेरिस्ट्स एक्टीविटीज का धुरा है । हम जानते हैं ये कौन है, हम जानते हैं ये कहां पाया जाता है, हम इसकी हर करतूत से वाकिफ हैं लेकिन, कैसी ट्रेजेडी है हमारी कि, हम इस पर हाथ नही डाल सकते ।”
“ओह !”
“अब तुम समझे कि इसका हिन्दोस्तानी जमीं पर जिन्दा हमारे हाथ आना क्यों जरूरी है ?”
“समझा !”
“देखो, मैंने तुम्हारी केस हिस्ट्री स्टडी की है । तुम्हारी केस हिस्ट्री ये कहती है कि तुम कोई पैदायशी मुजरिम नहीं हो । सुना है बहुत उच्च शिक्षा प्राप्त हो....”
“बी.काम, एल. एल.बी. हूं ।”
“मैं एक उच्च शिक्षा प्राप्त, कुलीन और संभ्रान्त शहरी की कल्पना एक हत्यारे और डकैत के रूप करने में दिक्कत महसूस कर रहा हूं । ऊपर से तुम उस सूरमा और जांबाज कौम से ताल्लुक रखते हो जिसे खालसा कहते हैं और जिसका सारा इतिहास ही कुर्बानी और जांबाजी की खूनआलूदी दस्तावेज है, जिसका रोल शुरू से ही मुल्क के, कोम के मुहाफिज का रहा है ।”
“मैं एक मुजरिम हूं । कई कत्लों के लिये जिस्मेदार । कई डकैतियों का गुनहगार । सूली पर टांग दिये जाने के काबिल । एक हड़काये कुत्ते की तरह गोली से उड़ा दिये जाने के काबिल ।”
“अपनी हरकतों से तुमने समाज की स्थापित मर्यादाएं भंग की हैं । मुल्क के कायदे कानून के मुताबिक तुम यकीनन सख्त-से-सख्त सजा के काबिल हो लेकिन अपने समाज के कायदे कानून का दुश्मन देश दुश्मन हो यह जरूरी नहीं । एक चोर का, एक हत्यारे का, एक डकैत का दिल देशभक्ति के जज्बे से एक नेक शहरी से ज्यादा लबरेज हो सकता है, वो अगर चाहे तो ज्यादा कारआमद तरीके से मुल्क का मुहाफिज बनके दिखा सकता है, मुल्क के किये अपने फर्ज को वो किसी इश्तिहारी या नुमायशी देशभक्त से बेहतर समझ सकता है ।”
पाण्डेय एक क्षण ठिठका और फिर बोला - “मुझे तुम्हारे समाजी गुनाहों से कुछ लेना-देना नहीं । किन जज्बात के काबू में आकर किन हालात के आगे घुटने टेककर तुमने वो गुनाह किये, मुझे इससे कोई मतलब नहीं । आगे कौन सा गुनाह करके कानून की कौन सी धारा भंग करोगे, मैं जानना तक नहीं चाहता । मैं पुलिस नहीं, मैं मिलिट्री, मैं कोई सिविल लॉ एनफोर्समैंट वाली एजेन्सी नहीं । यह देखना मेरा काम नहीं कि तुम्हें तुम्हारे गुनाहों की सजा मिलती है या नहीं । कानून की गिरफ्त में आकर तुम्हारे फांसी पर चढ जाने से तुम्हें अपने इस अंजाम तक पहुंचाने वालों की कलंगी में कोई नया सितारा या फुंदना लग जाने से बेहतर कुछ नहीं होने वाला लेकिन...”
“क्या लेकिन ?”
“...बादशाह को हमारी पहुंच के भीतर लाने के लिये तुम जो हमारी मदद करोगे उससे मुल्क से आतंकवाद का सफाया होगा जिससे कि मुल्क के अस्सी करोड़ बाशिन्दों का भला होगा ।”
“तुम अभी भी चाहते हो कि मैं बादशाह को हिन्दोस्तानी जमीं पर लाने की कोशिश करूं ?”
“बिल्कुल चाहता हूं । तभी तो तुम्हारे पास बैठा हूं ।”
“तुम मुझे गिरफ्तार नहीं करवाओेगे ?”
“नहीं ।”
“अगर मैं कहूं कि मै तुम्हारा काम करने को तैयार नहीं, तुम तब भी मुझे गिरफ्तार नहीं करवाओगे !”
“इस सवाल का जवाब न में देना सफेद झूठ होगा । तुम्हारा इनकार इस बात का सबूत होगा कि तुम एक खालिस मुजरिम हो, और इसके अलावा कुछ भी नहीं हो । उस सूरत में मुझे वही कदम उठाना होगा जो कि मुल्क के कायदे कानून के दुश्मन किसी गुण्डे, बदमाश, किसी डकैत हत्यारे के खिलाफ उठाया जाता है ।”
“मैं तुम्हारी सफगोई की दाद देता हूं ।”
“शुक्रिया ।”
“तो कहने का मतलब यह हुआ कि तुम मेरे साथ एक सौदा कर रहे हो । अगर मैं तुम्हारा काम करना कबूल कर लूंगा तो तुम मेरी पोल नहीं खोलोगे ।”
“दुरुस्त । ”
“क्या गारन्टी है ?”
“मौजूदा हालात में अपनी जुबान के अलावा कोई गारन्टी पेश करना मेरे लिये मुमकिन नहीं ।”
“लेकिन....”
“मैं पाण्डेय हूं । जनेऊधारी ब्राह्मण । मैं गाय का मास खाऊं जो अपनी जुबान से फिरूं ?”
“मुझे तुम्हारी जुबान का एतबार है ।” - विमल तत्काल बोला ।
“शुक्रिया ।” - पाण्डेय शुष्क स्वर में बोला ।
“तुम बहुत मेहरबान आदमी हो । रहमदिल और दयानतदार भी । मैं तुम्हारी इन खूबियों को थोड़ा और कैश करना चाहता हूं ।”
“और क्या चाहते हो ?”
“एक तो भौंसले को बख्श दो । उसने जो कुछ किया, हालात से मजबूर होकर किया ।”
“कबूल ।”
“मेरे से दूर रहो । आइन्दा दिनों में मेरे करीब भी न फटकने का वादा करो ।”
“वो किस लिये ?”
“ये वनमैन शो नहीं, टीम से होने वाला काम है । तुम्हारे अभयदान से मैं तो बेखौफ हो गया लेकिन मेरे संगी साथी शायद यूं बेखौफ न हो सकें । उन्हें खबर लगी कि उनकी निगाहबानी हो रही है तो वो मेरा साथ देने से ही इनकार कर देंगे । इनकार नहीं भी करेंगे तो डरे जरूर रहेंगे । और तुम जानते हो कि ऐसे कामों में जो डर गया, वो मर गया ।”
पाण्डेय सोचने लगा ।
विमल ने पाइप का गहरा कश लगाया और विस्की की एक चुस्की मारी ।
“ढोलकिया को कबूल करोगे ?” - पाण्डेय बोला ।
“हरिगज नहीं” - विमल बोला - “लेकिन तुम खातिर जमा रखो । उसकी जगह अपनी पसन्द का आदमी मुझे मिल गया है ”
“कौन ?”
विमल केवल मुस्काराया ।
“आदमी भरोसे का है न ?” - पाण्डेय बोला
“भरोसे का होगा तभी तो पसन्द का होगा ।”
“ठीक है फिर ।”
“अब एक बात मैं गुजारिश के तौर पर कहना चाहता हूं, उसे मानने को तुम बाध्य नहीं हो ।”
“वो भी बोलो ।”
“मैं तुम्हारे महकमे को नहीं समझता, मैं तुम्हारी नौकरी को नहीं समझता, मैं तुम्हारी नौकरी में तुम्हारे दर्जे को नहीं समझता...”
“अपने महकमे में मेरा दर्जा पुलिस के डिप्टी कमिश्नर बराबर है ।”
“जानकर खुशी हुई । बहरहाल आज सुबह जो बीस हथियारबन्द पुलसिये मैंने तुम्हारे साथ देखे थे, उससे इतना तो मैं समझ गया था कि तुम्हारा ओहदा काफी ऊंचा है ।”
“तुम वो बात बोलो जिसे तुम कह रह थे कि मै मानने को बाध्य नहीं ।”
“मेरा एक मोहसिन, एक जोड़ीदार लोकल गैंगस्टर्स के हाथों में फंसा हुआ है । कुछ दादा लोगों ने उसे उसके अपने ही घर में नजरबन्द करके रखा हुआ है ।”
“क्यों ?”
“मेरे तक पहुंच पाने की उम्मीद में ।”
“क्यों ?”
“यह एक बहुत लम्बी कहानी है । बस इतना समझ लो कि कुछ दादा लोग तड़प रहे हैं मुझे खत्म कर देने को । इसीलिये वो मेरे एक दोस्त को फांसे हुए है ।”
“कौन दोस्त ?”
विमल ने उसे तुकाराम की बाबत बताया ।
“हूं ।” - सारी बात सुनके पाण्डेय बोला - “इस बात की क्या गारन्टी है कि वो अभी भी चैम्बूर में ही होगा ।”
“कोई गारण्टी नहीं ।”
“फिर तो पहले इसी बात की तसदीक करनी होगी कि वो वहां है भी या नहीं ।”
“जाहिर है ।”
पाण्डेय कुछ क्षण सोचता रहा और फिर बोला - “बिजली का मीटर घर के भीतर होता है । मीटर रीडर का घर में दाखिला जरूरी होता है । कल मेरा एक आदमी मीटर रीडर बनके तुम्हारे इस दोस्त, क्या नाम बताया था ?”
“तुकाराम ।”
“तुकाराम के घर में घुसेगा ।”
“उसे तो मीटर पर से ही चलता कर दिया जायेगा जो कि घर के भीतर प्रवेशद्वार के पहलू में ही लगा हुआ है ।”
“हूं । यानी कि हमें ऐसा बन्दा वहां घुसाना चाहिये जिसके पास सारे घर में फिर जाने का बहाना हो ।”
“हां ।”
“कारपोरेशन से हाउस टैक्स असैसमैंट के लिए इमारत का सर्वे करनेवाला जो आदमी आता है, उसे इमारत के सारे कवर्ड एरिया का मुआयना करना होता है ।”
“ऐसा सर्वे तो नई बनी इमारतों का होता होगा ।”
“पुरानी इमारतों का भी होता है लोग आल्ट्रेशंस, एडीशंस करते जो रहते हैं । सर्वेअर को पुरानी इमारत में यह देखना होता है कि मकान मालिक ने एकाध कमरा और तो नहीं डाल लिया ।”
“मैं समझ गया ।”
“अगर तुम्हारा बन्दा भीतर गिरफ्तार होगा तो वो हाउस टैक्स का सर्वेअर बनके वहां पहुंचे मेरे आदमी से छुपा नहीं रहेगा । फिर वहां हल्ला बोलने का इन्तजाम मैं करवा दूंगा ।”
विमल ने उसे तुकाराम के घर की निगरानी के लिये बाहर सड़क पर तैनात धोबी, मोची, भिखारी और बीट का हवाल्दार बने कम्पनी के प्यादों की बाबत बताया ।
“उनकी चिन्ता न करो” - पाण्डेय बोला - “तुम्हारा बन्दा भीतर हुआ तो पहले वही चारों चुपचाप हिरासत में लिये जायेंगे ।”
“गुड ! मिस्टर पाण्डेय, तुमने मेरे दोस्त को छुड़वा दिया तो यह तुम्हारा मुझ पर बड़ा अहसान होगा ।”
“दिन चढने दो । मैं दोपहर से पहले ही तुम्हें कोई गुड न्यूज दूंगा ।”
“शुक्रिया ।”
“बादशाह को पहचानते हो ?”
“नहीं ।”
“तो फिर उसे पकड़ के कैसे लाओगे ? बादशाह के धोखे में किसी गलत आदमी की पकड़ लाये तो ?”
“मैं उसका हुलिया मालूम कर लूंगा ।”
“किससे ?”
विमल ने उत्तर न दिया ।
“ठीक है ।” - पाण्डेय बोला - “मालूम कर लेना हुलिया । बहरहाल उसकी यह एक तस्वीर भी रख लो ।”
विमल ने तस्वीर पर एक सरसरी निगाह डाली और उसक अपनी जेब में रख लिया ।
“तस्वीर के पीछे एक टेलीफोन नम्बर लिखा है ।” - पाण्डेय बोला - “उस पर फोन करोगे तो अव्वल तो मैं ही बोलूंगा, मैं न हुआ तो तुम्हारा कोई भी मैसेज बड़ी हर दस मिनट में मेरे तक पहुंच जायेगा ।”
“गुड !”
“तो” - पाण्डेय ने अपना गिलास खाली किया - “अब मैं चलूं, मिस्टर घड़ीवाला ।”
“एक-एक ड्रिंक और हो जाये ।”
“नहीं, मेरे लिए बस । अलबत्ता तुम चाहो तो...”
“नहीं । मेरे लिये भी बस ।”
पाण्डेय ने वेटर को बिल लाने के लिए कहा ।
“बिल मैं दूंगा ।” - विमल बोला ।
“नहीं, मैं ।” - पाण्डेय बोला - “ड्रिंक्स की बात ही मैने चलाई थी ।”
“लेकिन...”
“ओह कम आन, मिस्टर घड़ीवाला । वाट इज ए स्माल बिल बिटवीन फ्रेंड्स ।”
“फ्रेड्स !”
“ऑफकोर्स ।”
“चोर सिपाही की दोस्ती !”
पाण्डेय ने जोर का अट्टहास किया ।
फिर निहायत गर्मजोशी से हाथ मिलाकर दोनों ने एक-दूसरे से विदा ली ।
***
रात दस बजे परेशानहाल डोंगरे इकबालसिंह के पास पहुंचा ।
“सितोले की लाश मिली है ।” - उसने खबर सुनाई ।
“लाश !” - इकबालसिंह सकपकाया ।
“गोलियों से छिदी हुई । वरली सी फेस के करीब की एक पार्किंग में खड़ी उसकी बुलेटप्रूफ कार की पिछली सीट पर से ।”
“पिछली सीट पर से ?”
“कार में खून नहीं बहा था । उसे शूट कहीं और किया गया था और फिर उसे उसी की कार में डालकर वहां पार्किंग में छोड़ दिया गया था । गश्त के एक सिपाही की इत्तफाक से कार में नजर पड़ी । पुलिस ने सितोले की जेब में मौजूद उसके ड्राइविंग लाइसेंस से उसे पहचाना । अभी आधा घंटा पहले ही वो लोग पूछताछ करते जैकपॉट पहुंचे थे ।”
“पुलिस क्या कहती है ?”
“उनके ख्याल से ये गैंग किलिंग नहीं । वे लोग कहते हैं कि वो उस औरत के चक्कर में ही मारा गया हो सकता है जिसके साथ वो जैकपॉट से कहीं गया था । एक वेटर का कहना है कि उस औरत का नाम अनिता सोनी था और वह अपने खाविंद सुशील सोनी के साथ वहां आई थी । वहीं दोनों में ऐसा झगड़ा हुआ था कि खाविंद बीवी को वहीं बैठा छोड़कर खुद वहां से कूच कर गया था । वेटर कहता है कि वो बिल भी चुकाकर नहीं गया था और बीवी के पास बिल चुकाने को पैसे नहीं थे ।”
“यानी कि यूं वहां छोड़ी गई बीवी हमारे बीवीकतरे सितोले के लिए तैयार माल था ।”
डोंगरे खामोश रहा ।
“आपके ख्याल से” - फिर इकबालसिंह को बोलता न पाकर कुछ क्षण बाद वह बोला - “वो उस औरत के खाविंद के कहर का शिकार हुआ ?”
“जाहिर है । जैसी हरकतें वो शादीशुदा औरतों के साथ करता था, उनकी रू में एक-न-एक दिन उसका ये अंजाम होना ही था ।”
“खाविंद ने अपनी बेवफा बीवी को कुछ न कहा ?”
“खाविंद खूबसूरत बीवियों की सौ खताएं माफ कर देते हैं ।” - खुद अपनी बीवी की उसके यार जोजो के साथ की करतूत को याद करता हुआ इकबालसिंह बोला ।
“यानी कि आपकी राय में सितोले की मौत में कालिया का हाथ नहीं ?”
“मुझे तो नहीं लगता ।”
“लेकिन...”
“है तो मालूम कर ।”
“ठीक है । मैं चलता हूं ।”
“कहां चलता है ! एकाध घूंट लगा के जा ।”
डोंगरे के चेहरे पर अनायास ही मुस्कराहट आ गई । शुक्र था खुदा का कि मुतवातर डांट-फटकार हासिल होते रहने के बाद अब उसे अपने आका का हमप्याला होने का दावतनामा मिल रहा था ।
***
बादशाह अब्दुल मजीद दलवई एक लगभग पचपन साल का तांबे जैसी रंगत की चमड़ी वाला और पहलवानों जैसे मजबूत कद-काठ वाला आदमी था । उसके सिर पर बिना खिजाब लगाए स्याह काले बाल थे और दाढी-मूंछ साफ थीं । उसकी आंखें बहुत तीखी और चमकीली थी और बोलता था तो भैंस की तरह डकराता लगता था । अपने गले में मशहूर पीर पैगंबरों की दरगाहों और मजारों से हासिल हुई कोई आधा दर्जन गंडे ताबीजें वो हमेशा पहने रहता था । धर्म-कर्म में उसकी वैसी आस्था उसे किसी ऐब से रोकती हो, ऐसा नहीं था । वो रोजाना कम-से-कम एक बोतल ब्लैक डॉग विस्की पीता था, पांच पैकेट डनहिल सिगरेट फूंकता था - जबकि अकेले में हुक्का भी गुड़गुड़ाता था - और तीस-चालीस पीली पत्ती किमाम वाले मघई पान खाता था - जो कि खासतौर से उसके लिए बंबई से मंगाए जाते थे । पढा-लिखा बहुत कम था, लेकिन अंग्रेजी धड़ल्ले से बोलता था और फ्रेंच और जर्मन का भी कामचलाऊ ज्ञान रखता था । पहले बतौर नारकाटिक्स स्मगलर और फिर बतौर आर्म्स स्मगलर वो देश-देश घूमा हुआ था और घाट-घाट का पानी पिए हुए था । एक मामूली जेबकतरे और उठाईगिरे से वो अपनी मौजूदा हैसियत तक पहुंचा था और उस अजीमोश्शान टापू का बादशाह बना था ।
उस रोज सुबह दस बजे के करीब वह ब्रेकफास्ट करके हटा था कि नीचे से अंजुम खान का फोन आया ।
“आप को जरा नीचे आना पड़ेगा ।” - अंजुम खान बोला ।
“क्यों ?” - बादशाह की पेशानी पर बल पड़े - “क्या हुआ ?”
“एक आदमी यहां आया है । बड़ी अनोखी बात कह रहा है । मैं चाहता हूं उसकी सूरत आप भी देख लें, उसकी बात आप भी सुन लें, आखिर झूठ भांपने का और फरेबी सूरत पहचानने का आपको ज्यादा तजुर्बा है ।”
“वो आदमी कोई झूठा और फरेबी है ?”
“हो सकता है, नहीं भी हो सकता । अलबत्ता बात ऐसी कह रहा है कि एकाएक यकीन में आनी मुश्किल है ।”
“क्या कह रहा है ?”
“कह रहा है यहां डाका पड़ने वाला है ।”
“क्या !”
“तभी तो मैं चाहता हूं कि आप उससे मिल लें ।”
“वो कोई सिरफिरा तो नहीं ?”
“सूरत से तो नहीं लगता ।”
“कहता है यहां डाका पड़ने वाला है ?”
“हां ।”
“इस वक्त कहां है ?”
“बाहर कैसीनो में है ! जब तक आप नीचे पहुंचेंगे, मेरे ऑफिस में होगा ।”
“मैं पांच मिनट में पहुंचता हूं ।”
“बढिया ।”
बादशाह ने सिल्क की महरून रंग की तहमद और कुर्ता उतारकर सूट पहना, कल्ले में मघई पान का एक जोड़ा दबाया, डनहिल का नया सिगरेट सुलगाया और राजसी शान से चलता हुआ सीढियों की तरफ बढा । नीचे सीढियों के दहाने पर पहुंचकर उसने एक बटन दबाया तो इलेक्ट्रॉनिक कंट्रोल द्वारा संचालित होने वाला दरवाजा निःशब्द खुल गया ।
उसने बाहर कैसीनो में कदम रखा ।
कैसीनो चौबीस घंटे चलता था, चाहे असल रौनक वहां दिन ढलने के बाद ही होती थी लेकिन चंदेक जुआरी उस वक्त भी वहां मौजूद थे । उनमें से जिनका रुख दरवाजे वाली दीवार की तरफ था, उन्होंने एक तिलिस्म की तरह अभेद्य लगने वाली दीवार में एक दरवाजा प्रकट होते और उसमें से बादशाह को बाहर कदम रखते देखा ।
वो दरवाजा अंजुम खान के मस्तिष्क की उपज था । आरंभ में बादशाह उस दरवाजे से बहुत खुश हुआ था लेकिन बाद में उसके इस्तेमाल का वो पहलू बहुत नुमाया होकर सामने आया था जो कि व्यवहारिक नहीं था । ऊपर से नीचे आने का क्योंकि वही एक रास्ता था, इसलिए जरूरत पड़ने पर उसे रात को उस वक्त ही खोला जाता था जबकि कैसीनो मेहमानों से खचाखच भरा होता था । उस स्थिति में उन्होंने यह सोचकर समझौता किया था कि थ्रिल और एक्साइटमेंट की तलाश में वहां आए कैसीनो के मेहमानों के लिए वो अनोखा दरवाजा भी थ्रिल और एक्साइटमेंट का ही जरिया था ।
कैसीनो में मौजूद जो पुराने और मुतवातर आने वाले मेहमान बादशाह को जानते थे उन्होंने बड़े आदर भाव से बादशाह का अभिवादन किया । गर्दन की हल्की-सी जुम्बिश से अभिवादनों का जवाब देता, लंबे डग भरता बादशाह कैशियर के पिंजरे के पीछे बने सिक्योरिटी ऑफिस में पहुंचा ।
एक नीली वर्दी वाले गार्ड ने बड़े अदब से उसके लिए दरवाजा खोला ।
उसने भीतर कदम रखा ।
भीतर अपनी एग्जीक्यूटिव चेयर पर अंजुम खान बैठा था । उसकी टेबल के सामने लगी कुर्सियों में से एक पर एक लगभग पचास साल का पीली चमड़ी वाला गंजा व्यक्ति बैठा था जो कि एक घिसी हुई जीन, धारीदार स्कीवी और चमड़े की जैकेट पहने था ।
न जाने क्यों बादशाह को उसकी सूरत से ही अरुचि होने लगी ।
बादशाह के वहां पहुंचते ही अंजुम खान ने अपनी सीट अपने आका के लिए खाली कर दी और स्वयं उसके सामने आगंतुक के पहलू में जा बैठा ।
बादशाह ने कुर्सी पर बैठते ही पहले पान की एक पिचकारी वेस्ट पेपर बास्केट में छोड़ी और फिर सिगरेट का एक लंबा कश खींचते हुए उस शख्स का फिर से मुआयना किया ।
आगंतुक ने बेचैनी से पहलू बदला । बादशाह के व्यक्तित्व में कुछ ऐसा दबदबा और जलाल था कि उससे एक बार आंख मिलाने-भर से ही वह विचलित हो उठा था और उसका आत्मविश्वास काफूर हो गया था ।
“नाम क्या है तेरा ?” - अपनी भैंसे की तरह डकारती आवाज में बादशाह बोला ।
“ढोलकिया” - आगंतुक दबे स्वर में बोला - “नानू भाई ढोलकिया ।”
“ये क्या फुलझड़ी छोड़ रहा है कैसीनो के बारे में ? क्या बेपर की उड़ा रहा है !”
“बाप, ये हकीकत है ।”
“क्या हकीकत है ?” - बादशाह उसे घूरता हुआ बोला - “यहां डाका पड़ने वाला है ?”
“हां ।”
“माथा फिर गया मालूम होता है तेरा ।”
“आपको” - ढोलकिया एकाएक उठ खड़ा हुआ और तनिक दिलेरी से बोला - “नहीं विश्वास तो न सही । अपुन चला ।”
“बैठ जा वापिस ।” - अंजुम खान कर्कश स्वर में बोला ।
“लेकिन जब...”
“चुपचाप बैठ जा । जब बोलने को बोला जाए तो बोलना है । खामखाह मुंह नहीं फाड़ना है ।”
ढोलकिया वापिस कुर्सी पर बैठ गया ।
“बाप” - इस बार वह विनयशील स्वर में बोला - “मैं तो आप लोगों के भले के वास्ते इधर आया । आप मेरे को ही...”
अंजुम खान ने उसके अपनी ओर वाले गाल पर एक चपत लगाई ।
“बहरा है ?” - वह कहर-भरे स्वर में बोला - “या ऊंचा सुनता है ? अभी क्या बोला तेरे को ? जब बोला जाए तो बोलना है । क्या ?”
वह खामोश रहा । उसने जोर से थूक निगली और होंठ भींच लिए ।
“शाबाश !” - अंजुम खान बोला ।
“तो” - बादशाह ने वार्तालाप का सूत्र फिर अपने हाथ में लिया - “यहां डाका पड़ने वाला है ?”
“हां ।”
“कौन करेगा यह काम ?”
“बंबई के कुछ मवाली हैं ।”
“तेरे को कैसे खबर है इस बात की ?”
“उन्होंने मुझे अपने ग्रुप में शामिल करना चाहा था । मोटरबोट चलाने के लिए ।”
“लेकिन तूने इनकार कर दिया । क्योंकि तुझे डकैती जैसे कामों से परहेज है । ठीक ?”
ढोलकिया ने इनकार में सिर हिला दिया ।
“क्यों ?”
“मैं... मैं जंचा नहीं उन्हें ।”
“हूं । यहां क्यों आया ?”
“मेरे पर हमला हुआ था । किसी ने मेरी जान लेने की कोशिश की थी । मैं बाल-बाल बचा था । तब मैंने सोचा था कि इससे पहले कि वे लोग मुझे खत्म कर दें, क्यों न मैं पहले उन्हीं के खात्मे का सामान कर दूं ।”
“और ?”
“और क्या ?”
“बस यही वजह है यहां आने की ? या कोई और भी वजह है ?”
“मैंने सोचा शायद इतनी कांटे की जानकारी की मुझे कोई कीमत भी मिल जाए ।”
“ओह ! तो तू रोकड़ा चाहता है ?”
“खैरात तो नहीं मांगता, बाप । आखिर...”
“अदब से” - अंजुम खान ने चेतावनी दी - “अदब से बोल ।”
“मैं सिर्फ इतना जानता हूं वो चार जने हैं और उनमें से एक का नाम सोहल है ।”
“सोहल !”
बादशाह और अंजुम खान की अचरज-भरी निगाहें आपस में मिलीं ।
“तू सोहल को जानता है ?” - इस बार सवाल अंजुम खान ने किया ।
“मैंने सिर्फ नाम सुना है ।” - ढोलकिया बोला - “उसके कारनामों का जिक्र सुना है ।”
“उसे पहचानता है ?”
“नहीं ।”
“तो फिर तू कैसे जानता है कि उनमें से एक जना सोहल था ?”
“मैं उनसे मलाड के एक फ्लैट में मिला था । आपस में सलाह करने के लिए उन्होंने थोड़ी देर के लिए मुझे फ्लैट से बाहर कर दिया था । मैंने बंद दरवाजे के चाबी के छेद के साथ बाहर से कान लगाकर उन लोगों की बातचीत सुनने की कोशिश की थी । उनमें से एक ने साफ कहा था कि उन लोगों का निशाना स्वैन नैक प्वाइंट का कैसीनो था ।”
“यह मेरे सवाल का जवाब नहीं । मैंने पूछा था तू कैसे जानता है कि उनमें से एक जना सोहल था ?”
“जिस आदमी ने मेरे से उन लोगों का बोटमैन बनने की बात की थी, उसने सोहल का नाम लिया था । मैंने उससे पूछा था जिन लोगों के साथ मैंने काम करना था, वो लोग कौन थे । जवाब में उसने कहा था कि मुझे इस मामले में अपने आपको खुशकिस्मत मानना चाहिए था कि मुझे सोहल जैसे टॉप के मवाली के साथ काम करने का मौका मिल रहा था । मेरे पूछने पर उसने साफ-साफ कहा था कि यहां डाका डालने की तैयारी करते जिन लोगों के साथ मैंने काम करना था, उनका सरगना सोहल था ।”
अंजुम खान और बादशाह की निगाहें मिलीं ।
“पक्की बात ?” - बादशाह बोला - “नाम ठीक से सुना था ?”
“बिल्कुल ठीक से सुना था ।”
“जब तू सोहल को जानता-पहचानता नहीं तो तुझे ये कैसे पता है कि मलाड वाले फ्लैट में जिन लोगों से तू मिला था, उनमें से एक सोहल था ?”
“मेरा अंदाजा है ।”
“कैसे अंदाजा है ?”
“वहां इतने जने थे । जब सब जने थे तो उनका सरगना, सोहल भी तो होगा ही उनमें !”
“कोई जरूरी नहीं ।” - अंजुम खान बोला ।
बादशाह ने सहमति में सिर हिलाया ।
“बाप” - ढोलकिया थूक निगलकर बोला - “चाबी के छेद के साथ कान लगाकर इतना तो मैंने साफ सुना था कि उन लोगों का निशाना स्वैन नैक प्वाइंट था ।”
“चार आदमियों का ?” - बादशाह बोला - “सिर्फ चार आदमी थे वो ?”
“हां, बाप । मैं होता तो पांचवां होता ।”
“यानी कि तेरी जगह लेने के लिए जब वो किसी और को तलाश कर लेंगे तो पांच हो जाएंगे ?”
“हां ।”
“पांच आदमी !” - बादशाह ने अपने दाएं हाथ का भारी पंजा ढोलकिया की आंखों के सामने लहराया - “सिर्फ पांच आदमी” - पंजे की एक-एक उंगली उसने बारी-बारी हथेली की ओर समेटनी शुरू की - “एक दो तीन चार पांच आदमी इस कैसीनो को लूट सकते हैं ?”
“हां ।”
“खान ! सुना ये क्या कहता है ? ये कहता है हां । हां कहता है ये ।”
“मैंने जो सुना” - ढोलकिया ने फरियाद की - “वो ही बोला ।”
“कब पड़ने वाली है ये डकैती ?”
“मालूम नहीं ।”
“मालूम नहीं ?” - बादशाह घूड़ककर बोला ।
“अभी तो वो मेरी जगह लेने के लिए कोई बोटमैन तैयार कर रहे हैं, बाप । और भी कई तैयारियां, हो सकता है, उन्होंने करनी हों ।”
“यानी कि अभी कुछ दिन लग सकते हैं ।”
“हां, हफ्ता दस दिन तो लग ही सकते हैं ।”
“ठीक है ।” - बादशाह एकाएक उठ खड़ा हुआ - “हम यहां डाका पड़ने का इंतजार करते हैं । वो घड़ी गुजर जाए, फिर तेरी उम्मीद से कहीं ज्यादा इनाम-इकराम से तुझे नवाजा जाएगा ।”
“तो” - ढोलकिया भी उठ खड़ा हुआ - “मैं फिर कब आऊं ?”
“तुझे” - बादशाह मुस्कराया - “फिर आने की जरूरत नहीं पड़ेगी ।”
“मतलब ?”
“तू यहीं रहेगा ।”
“जी !”
“बादशाह का मेहमान बन के ।”
“नहीं, नहीं ।” - ढोलकिया व्याकुल भाव से बोला - “मैं यहां नहीं रह सकता ।”
“तेरी खातिर-तवज्जो में यहां कोई कमी नहीं होगी ।”
“मैं नहीं चाहता कि वो लोग मुझे यहां देखें ।”
“ऐसा ही होगा ।”
“क-कैसा... कैसा ही होगा ?”
“वो लोग तुझे यहां नहीं देखेंगे । सच पूछे को कोई भी तुझे यहां नहीं देखेगा । हम लोग भी नहीं ।”
“नहीं, नहीं...”
“अंजुम खान, मेहमान का मुनासिब इंतजाम कर ।”
“आप लोग” - ढोलकिया एकाएक बेहद आतंकित हो उठा - “ऐसा नहीं कर सकते ।”
एकाएक वह विक्षिप्तों की तरह बाहर की तरफ झपटा । उसके दरवाजे से बाहर कदम रखते ही दो गार्डों ने उसे दबोच लिया और उसे घसीटते हुए वहां से ले चले ।
***
फोन की घंटी बजी ।
विमल ने फोन उठाया और माउथपास में बोला - “हल्लो ।”
“पांडेय बोल रहा हूं ।” - आवाज आई - “गुड मार्निंग ।”
“वैरी गुड मार्निंग ।”
“तुम्हारा आदमी वहां नहीं है ।”
“अच्छा !”
“वहां कोई भी नहीं है । चैम्बूर वाला वो मकान एकदम खाली है । उसके बाहर सड़क पर कोई धोबी या मोची या मंगता या हवलदार भी मौजूद नहीं है ।”
“शायद भीतर...”
“कुछ नहीं रखा । ताला खोल के देखा जा चुका है ।”
“अरे ! ये तो अच्छा नहीं हुआ ।”
“तुम्हारी निगाह में कोई और जगह हो जहां उसके होने की उम्मीद हो तो...”
“उम्मीद तो क्या मुझे यकीनी तौर पर मालूम है कि तुकाराम कहां है लेकिन वहां से उसे छुड़ाने के लिये तुम्हारी कोई मदद मेरे काम नहीं आने वाली ।”
“ऐसी कौन सी जगह है ?”
“है एक जगह । और वहां से मेरे लिये कोई फतवा बस जारी होता ही होगा ।”
“मैं समझ नहीं पा रहा तुम्हारी बात ।”
“नैवर माइंड । बहरहाल, मदद का शुक्रिया ।”
विमल ने रिसीवर वापिस क्रेडल पर रख दिया और सोचने लगा ।
तुकाराम को निश्चय ही होटल सी-व्यू की बदनाम बेसमेंट में पहुंचाया जा चुका था । इसका साफ़ मतलब था कि उसके चैम्बूर लौटने के मामले में अब उन्हें नाउम्मीदी हो चुकी थी । अब इकबालसिंह का अगला कदम उस तक ये धमकी पहुंचाना ही होता कि अगर उसने आत्मसमर्पण न किया तो तुकाराम की जान ले ली जायेगी ।
भाग्य की कैसी विडम्बना थी कि तुकाराम और वो उस घड़ी एक ही इमारत में मौजूद थे लेकिन फिर भी उसकी तुकाराम तक पहुंच नामुमकिन थी ।
दाता ! - विमल होठों में बुदबुदाया - जीउ डरत है आपणा, कै सिउ करी पुकार । दुख विसारण सेवया, सदा-सदा दातार ।
***
बादशाह कुछ क्षण अपने सिक्योरिटी चीफ के ऑफिस में चहलकदमी करता रहा और फिर वापिस कुर्सी पर बैठ गया । उसके चेहरे पर गहन चिन्ता के भाव परिलक्षित हो रहे थे । उसने एक नया सिगरेट सुलगाया और फिर धीमे से बोला - “मुझे इस आदमी पर ऐतबार है ।”
“लेकिन पांच आदमी !” - अंजुम खान अचरजभरे स्वर में बोला - “सिर्फ पांच आदमी...”
“मैं इस आदमी की बात को चुटकुला जानता और जी भर के हंसता बशर्ते कि इसने सोहल का नाम न लिया होता । वो शख्स वन मैन आर्गेनाइजेशन है, आफत का परकाला है, अकेला सवा लाख है ।”
“मैं नहीं मानता, आप खामखाह उसमें फुंदने टांक रहे हैं ।”
“काश ऐसा ही होता ! बखिया की कायनात उजाड़ देने वाले शख्स की कूवत और कहर को मैं कम करके नहीं आंक सकता । ऐसा करूंगा तो यह मेरा अपने आपसे धोखा होगा ।”
“अब जब हम जानते हैं कि ऐसा कुछ हो सकता है तो हम उसके लिये तैयार रह सकते हैं ।”
“वो तो हम रहेंगे ही । लेकिन हमें यह भी तो मालूम होना चाहिये कि सोहल की नजरेइनायत इधर क्यों हो रही है ? हमारे से उसकी क्या अदावत है ? महज दौलत लूटने के लिये वो यहां डाका डालना चाहता हो, यह बात तो मेरे यकीन में नहीं आती ।”
अंजुम खान चुप रहा ।
“खान, इकबालसिंह को खबर कर । उसे यहां बुला । यह एक अहम मसला है जिस पर उसके साथ मशवरा जरूरी है ।”
“ठीक है ।”
***
इकबालसिंह ने होटल सी-व्यू में अन्डरवर्ल्ड के फेमस तहखाने में कदम रखा ।
“कहां है ?” - उसने वहां पहले से मौजूद डोंगरे से पूछा ।
डोंगरे में तहखाने के पिछवाड़े के अन्धेरे भाग की तरफ उंगली उठा दी ।
“इशारेबाजी मत कर ।” - इकबालसिंह भुनभुनाया - “मुंह से बोल ।”
“पिछली कोठरी में ।”
“ले के आ !”
इकबालसिंह एक कुर्सी पर बैठ गया और प्रतीक्षा करने लगा ।
कुछ क्षण बाद डोंगरे ने चार प्यादों से घिरे तुकाराम को इकबाल सिंह के हुजूर में पेश किया ।
“कैसा है, तुका ?” - मुस्कराने की नाकाम कोशिश करता हुआ इकबालसिंह बोला ।
“देख नहीं रहा कैसा हूं !” - तुकाराम कठोर स्वर में बोला ।
“जानता है न कहां है ?”
“जानता हूं ।”
“क्यों नहीं जानता होगा ! एक बार पहले भी तो यूं ही यहां लाया जा चुका है । अपने छोटे भाई देवाराम के साथ । फर्क सिर्फ इतना है कि तब मुझे मेरी जगह बखिया साहब के रूबरू पेश किया गया था ।”
तुकाराम खामोश रहा ।
“तब सोहल तुझे यहां से छुड़ा के ले गया था । इस बार भी कोई ऐसी कोशिश करेगा वो ? करेगा न तुकाराम ?”
“करेगा ।” - तुकाराम पूरी निडरता से बोला - “क्यों नहीं करेगा ? जरूर करेगा । इकबालसिंह, पिछली बार तो बखिया की लाश के सिरहाने बैठकर रोने वाला तू बच गया था लेकिन इस बार तेरी लाश पर रोने वाला यहां कोई नहीं होगा ।”
इकबालसिंह का चेहरा कानों तक लाल हो गया । बड़ी कठिनाई से उसने स्वंय पर जब्त किया ।
“एक बात बता दे, इकबालसिंह ।” - तुकाराम बोला ।
“क्या ?”
“वागले कहां है ?”
“पहले तू बता सोहल कहां है ?”
“मुझे नहीं मालूम ।”
“वो बम्बई में है या नहीं ?”
“मुझे नहीं मालूम ।”
“मालूम होता तो बताता ?”
“हरगिज नहीं ।”
“साले ! मैं तेरी खाल खींच लूंगा । मैं तेरा खून पी जाऊंगा । मैं तुझे तेरे बाकी के चार भाइयों के पास जहन्नुम रसीद कर दूंगा ।”
“जल्दी कर । ताकि बखेड़ा खत्म हो ।”
“जल्दी तो नहीं करूंगा । मरेगा तो तू तिल-तिल करके ।”
“वो प्रोग्राम भी आजमा ले ।”
“लेकिन पहले मैं तेरे शागिर्द का सिर काट के उसे तश्तरी में रखकर तेरे सामने पेश करूंगा ।”
तुकाराम के होंठ भिंच गये । उसे अपनी परवाह नहीं थी लेकिन वागले के किसी हौलनाक अंजाम ख्याल ने ही उसे विचलित कर दिया । उसके पास यह जानने का कोई जरिया जो नहीं था कि वागले उनकी गिरफ्त में नहीं था ।
“वागले ने तेरा क्या बिगाड़ा !” - वह बोला ।
“वही जो तूने बिगाड़ा ।”
“मैंने तेरा क्या बिगाड़ा ?”
“तूने मेरे दुश्मन को पनाह दी । उसने अपनी रिश्तेदारी गांठी । उसे अपना भांजा बनाया ।”
“जो तेरा दुश्मन है वो मेरा दोस्त पहले है । और दोस्त के लिये मैं कुछ भी कर सकता हूं । इकबालसिंह, जान कोई बड़ी चीज नहीं । मेरे पास इससे भी कीमती कोई चीज होती तो मैं उसे दोस्ती की खातिर कुर्बान कर देता ।”
“काश, तेरे जैसा कोई दोस्त मुझे भी हासिल होता ।”
“दोस्ती रोब से, धमकी से, डण्डे के जोर से नहीं हासिल होती । इकबालसिंह । दोस्ती पैदा करनी पड़ती है, उसे प्रेम और निष्ठा का बीज बोकर उगाना पड़ता है, दोस्ती फसल की तरह होती है जो प्यार मुहब्बत के जल से सींची जाये तो लहलहाती है । लेकिन तू क्या समझेगा इन बातों को ?”
“तू कैसे समझ गया ? कैसे काबिल हो गया ऐसी ज्ञान-ध्यान की बात समझने के ? सोहल मिल गया तो तेरे पर निकल आये । असली औकात भूल गया अपनी ! तू वही स्मगलर तुकाराम नहीं जो कल तक अपने चार भाइयों के साथ बम्बई में बखिया की टक्कर की स्मगलिंग की बादशाहत खड़ी करना चाहता था । बखिया ने तेरे भाई शान्ताराम और उसके उसके सारे कुनबे का कत्ल करवा के तुझे शुरू से ही तेरी औकात न दिखा दी होती तो आज तुम पांचों भाई अन्डरवर्ल्ड में ‘कम्पनी’ से कहीं ऊंची गद्दी न कब्जाये बैठे होते !”
“कम्पनी की मेहरबानी से” - तुकाराम दबे स्वर में बोला - “मेरे सारे भाई मर चुके हैं और खुद मैं रिटायर हो चुका हूं ।”
“इसे कहते हैं नौ सौ चूहे खा के बिल्ली हज को चली ।”
तुकाराम खामोश रहा ।
“गुण्डागर्दी, बदमाशी और दादागिरी के खूंरेज धन्धे से कोई रिटायर नहीं होता, तुकाराम । ये रण्डी का धन्धा है । रण्डी धन्धा नहीं छोड़ती । धन्धा रण्डी को छोड़ता है । कोई इकबालसिंह या कोई तुकाराम धन्धा नहीं छोड़ता । धन्धा हम लोगों को छोड़ता है । ये वो धन्धा है जिसमें आदमी अपने पैरों से चल के दाखिल होता है लेकिन जब रुखसत होता है तो चार भाइयों के कन्धों पर सवार होता है । इसलिये तू मुझे ये फैंसी बातें सुनाकर भरमाने की कोशिश मत कर कि तू रिटायर हो चुका है ।”
“तू चाहता क्या है ?”
“सच बोलूं ?”
“बोल ।”
“दिल की बात बोलूं ?”
“तू वक्त का हाकिम है, तुझे कौन रोक सकता है दिल की बात बोलने से ?”
“फिर शुरू कर दी फैंसी बातें !”
तुकाराम खामोश रहा ।
“इधर पास आ मेरे ।”
चारों प्यादों और उनके सिपहसालार को परे खड़ा छोड़ कर तुकाराम इकबालसिंह के करीब पहुंचा ।
“तुकाराम” - इकबालसिंह धीरे से बोला - “मैं सोहल से सुलह चाहता हूं ।”
“क्या ?” - तुकाराम सकपकाकर बोला ।
“हां । और वो सुलह तू करा सकता है ।”
“मैं नहीं करा सकता । सोहल ने आर्गेनाइज्ड क्राइम की खिलाफत की कसम खाई है । तेरे जैसे जो लोग अपने आपको कायदे कानून और सरकार से ऊंचा समझते हैं, जो मुल्क के कानून को अपना गुलाम और सरकार की अपनी लौंडी समझते हैं उनके खिलाफ जेहाद खड़ा करना, उन पर कहर बन कर टूटना आज की तारीख में सोहल की जिन्दगी का इकलौता मकसद है । सुलह कैसे होगी, इकबालसिंह ?”
“तू मेरी उससे बात करा । तू बिचौलिया बन एक बार मेरी उससे बात करा । मुझे यकीन है कि आमने-सामने बैठकर बात करने से कोई ऐसी सूरत निकल आयेगी जिससे हम दोनों में टकराव न हो । वो अपने रास्ते जाये और मैं अपने रास्ते जाऊं ।”
“उसका कोई रास्ता नहीं । उसका वो ही रास्ता है जो तेरे जैसे आर्गेनाइज्ड क्राइम के बड़े महन्तों का है ।”
“तू एक बार बात तो करा मेरी उससे । फिर मैं...”
“कैसे कराऊं ? मुझे मालूम तो हो वो कहां है ?”
“अभी नहीं मालूम होगा लेकिन जरूरत पड़ने पर ढूंढ तो सकता होगा तू उसे ।”
“नहीं ढूंढ सकता ।”
“ये कैसे हो सकता है ? फिर तेरा उससे मिलना-जुलना कैसे होता है ?”
“वही मेरे पास आता है ।”
“आया तो नहीं ?”
“पता नहीं क्यों नहीं आया !”
“आया तो वो जरूर होगा लेकिन लगता है चैम्बूर में तेरे घर की चौकसी में हमसे कोई कसर रह गई थी जो वो भांप गया कि उसका तेरे घर में कदम रखना उसके लिये खतरनाक साबित हो सकता था ।”
“वागले कहां है ?”
“अरे जहन्नुम में गया वागले” - इकबालसिंह झल्लाया - “यहां बात सोहल की हो रही है । तू बीच में वागले टपका देता है ?”
तुकाराम खामोश रहा ।
“तो फिर क्या जवाब हे तेरा ?”
“तू” - तुकाराम बोला - “वाकेई सोहल से सुलह करना चाहता है !”
“हां । किसी भी कीमत पर !”
“कम्पनी के और ओहदेदार ऐसी सुलह से एतराज नहीं करेंगे ?”
“तुकाराम, वो जमाना बखिया के साथ ही रुख्सत हो गया था जबकि कम्पनी में दर्जनों की तादाद से ऊंचे ओहदेदार होते थे । सब को तो मार गिराया तेरे यार सरदार सुरन्द्रसिंह सोहल ने । अब या मैं हूं और या व्यास शंकर गजरे है । गजरे को जानता है न ?”
“जानता हूं ।”
“वो मेरे से बाहर नहीं जा सकता । इसलिये सोहल से सुलह की बात को तू एकदम खरी समझ । बोल क्या कहता है ?”
“मुझे सोचने के लिये थोड़ा वक्त दो ।”
“ठीक है । शाम तक सोच ले ।”
“वागले कहां है ?”
“उसकी फिक्र छोड़ । वो एकदम चौकस है । जो मसला इस वक्त तेरे सामने है, उसकी बाबत शाम तक कोई अच्छा-अच्छा फैसला कर, फिर हम सब मिलकर बैठेंगे और एक-दूसरे की मिजाजपुर्सी करेंगे । ठीक ?”
तुकाराम ने सहमति में सिर हिलाया ।
“बढिया ।” - इकबालसिंह कुर्सी से उठता हुआ बोला ।
फिर उसने डोंगरे को इशारा किया ।
***
विमल खार वाले फ्लैट में पहुंचा ।
वहां वागले और इरफान अली मौजूद थे ।
“मुबारक अली कहां गया ?” - विमल ने पूछा ।
“डेनियल को बुलाने गया है ।” - वागले बोला ।
“भट्टी नहीं आया अभी ?”
“नहीं ।”
“आता ही होगा । होटल से उसके ट्रैवल एजेन्सी वाले फोन पर उसके लिए यहां पहुंचने का सन्देशा छोड़कर मैं यहां के लिए रवाना हुआ था ।”
“कोई खास बात ?”
“उसकी बाबत नहीं लेकिन तुकाराम की बाबत है ।”
“क्या ?”
“वो अब अपने चैम्बूर वाले मकान में नहीं है । वहां कोई भी नहीं है ।”
“ओह !” - वागले चिन्तित भाव से बोला - “यानी कि उन्हें तुम्हारे चैम्बूर पहुंचने की उम्मीद नहीं रही ।”
“जाहिर है ।”
“होटल सी व्यू में ही लेकर गये होंगे वो उसे ?”
“और कहां ले जायेंगे ?”
“वहां से तो उसे छुड़ाना बहुत मुश्किल होगा ।”
“कुछ तो करना ही पड़ेगा ।”
“क्या ?”
“यही तो सूझ नहीं रहा ।”
तभी भट्टी वहां पहुंचा ।
सब में अभिवादनों का आदान प्रदान हुआ ।
“सब तैयारी हो गयी ?” - विमल ने पूछा ।
“हां ।” - भट्टी बोला - “पक्की ।”
“मैं मोटरबोट देखना चाहता हूं ।”
“तुम्हारी देखी हुई है । वही है, जिस पर हम शनिवार की सुबह टापू का मुआयना करने गये थे ।”
“मेरा मतलब है मैं उसे मुबारक अली को दिखाना चाहता हूं । आखिर उसे चलाना तो उसी ने है ।”
“उसका इन्तजाम हो जायेगा । कहां है वो ?”
“कहीं गया है । आता ही होगा ।”
“आ जाये । फिर मैं खुद ले चलता हूं उसे मोटरबोट तक ।”
“बढिया । अब एक बात बताओ ।”
“पूछो ।”
“इकबालसिंह पहले यहां खार में ही एक बंगले में रहता था...”
“तुम्हें कैसे मालूम ?” - भट्टी हैरानी से बोला ।
“मालूम है किसी तरह से ।” - विमल लापरवाही से बोला - “उसकी पारसी बीवी लवलीन भी वहां रहती थी उसके साथ !”
भट्टी ने फिर हैरानी से विमल की तरफ देखा ।
“इकबालसिंह तो” - विमल आगे बढा - “अब स्थायी से रूप होंटल सी व्यू में बसा हुआ है । मैं जानना ये चाहता हूं उसकी बीवी अब खार में रहती है या होटल में ।”
“इकबालसिंह के खार वाले बंगले में अब कोई नहीं रहता । वहां तो बखिया की मौत के बाद से ही पक्का ताला पड़ा हुआ है ।”
“यानी कि बीवी उसके साथ होटल में रहती है ?”
“नहीं ।”
“तो ! तो और कहां रहती है ?”
“बाप, उस बात का जवाब तुझे तब मिलेगा जब तू बादशाह की और उसकी बादशाहत को तबाह करने में कामयाब हो चुका होगा ।”
“मतलब ?”
“इकबालसिंह को हिट करने के लिये हमने उसका जो दूसरा ठिकाना सोचा हुआ है, वो वो है जहां आजकल उसकी बीवी बसी हुई है ।”
“भट्टी, जरा साफ साफ बोल । पहेलियां मत बुझा ।”
“इससे ज्यादा फिलहाल मैं कुछ नहीं बोल सकता ।”
“मुझे उसकी बीवी का पता चाहिये । अगर पता तुझे मालूम है तो वो तुझे मेरे को बताना पड़ेगा ।”
“कोई वान्दा नहीं लेकिन इस बाबत मेरे को पहले कालिया से पूछना होगा ।”
“पूछ ।”
“टेम लगेगा ।”
“लगा ।”
वो हिचकिचाया ।
“मुझे इसका जल्दी जवाब चाहिये ।” - विमल बोला ।
“क्यों !”
“है कोई वजह ।”
“बाप, पूछना सब चाहता है । बताना कुछ नहीं चाहता ।”
विमल ने उसे घूर कर देखा ।
“ठीक है, ठीक है ।” - तत्काल भट्टी बोला - “मैं कालिया से बात करूंगा ।”
“दुबई ?” - विमल उसे अपलक देखता हुआ बोला ।
“और कहां ?”
तभी मुबारक अली वापिस लौटा ।
अकेला ।
“तिजोरी तोड़ कहां गया ?” - विमल ने पूछा ।
“कहीं नहीं गया, बाप” - मुबारक अली बोला - “वो वहीं है जहां होता है । अपुन उससे बात कर आया है । वो नौ बजे, वो क्या कहते हैं अंग्रेजी में, घाट पर मिलेगा ।”
“पायर” - वागले बोला - “पायर कहते है घाट को अंग्रेजी में ।”
“वही । बाप, अब मेरे कू उस बोट के भी तो दर्शन कराओ जो मेरे कू चलाने का है ।”
“भट्टी, तुम्हें अभी साथ ले जा रहा है ।” - विमल बोला ।
भट्टी ने सहमित में सिर हिलाया ।
फिर दोनों वहां से विदा हो गये ।
“मुझे” - विमल बोला - “इस बात पर बिल्कुल एतबार नहीं कि इब्राहिम कालिया दुबई में रहता है । मुझे तो ये कोई उसकी स्थापित की हुई अफवाह लगती है ।”
“तुम्हारा मतलब है” - वागले बोला - “वो रहता बम्बई में ही है लेकिन लोगों को इस भरम में रखता है कि वो दुबई में रहता है ।”
“हां । लोग समझते हैं कि वो बम्बई कभी-कभार आता है जब कि मुझे लगता है कि दुबई कभी कभार जाता है ।”
“किस लिये ?”
“ताकि दो चार लोग उसके वहां दर्शन कर लें और ये बात स्थापित हुई रहे कि वो रहता ही दुबई में है ।”
“इब्राहिम कालिया दुबई में फिल्म स्टार नाइट्स कराने के लिये बहुत मशहूर है । हर दूसरे-तीसरे महीने बम्बई के दर्जनों स्क्रीन और स्टेज आर्टिस्ट्स दुबई जाते हैं और कालिया की मेहमानी में वहां राग-रंग का वैरायटी प्रोग्राम पेश कर के आते हैं । कहीं को सब आडम्बर इसीलिये तो नहीं किया जाता कि लोगबाग वहां कालिया के दर्शन कर लें और उसकी वहां हाजिरी पक्की हो जाये ।”
“बहुत मुमकिन है ।”
“यहां कहां रहता होगा वो ?”
“रहने को तो वो कहीं भी रहता हो सकता है लेकिन मेरी निगाह में एक खास जगह है ।”
“कौन-सी जगह ?”
“इन लोगों का ग्रान्ट रोड पर एक ठीया है जो कि अमूनन बन्द रहता है । ये जाहिर करते हैं कि किसी से खास मुलाकात करनी हो तो उसकी वहां बुला कर ही ये लोग वहां जाते हैं लेकिन मुझे लगता है कि वहां इब्राहिम कालिया स्थायी रूप से पाया जाता है । मैंने एक बार वहां का चक्कर लगाया था । फ्लैट मुझे बन्द ही मिला था लेकिन उसके बन्द होने में, बन्द रहने में भी मुझे कोई भेद लगता है ।”
“क्या भेद ?”
“मालूम करेंगे । आज की रात निर्विघ्न गुजर जाये । कल का सवेरा देखना नसीब हुआ तो मालूम करेंगे ।”
“इकबालसिंह की बीवी के बारे में क्यों पूछताछ कर रहे थे ?”
“वागले, इकबालसिंह की बीवी लवलीन तुका को छुड़ाने के काम में मोहरे के तौर पर इस्तेमाल की जा सकती है । इकबालसिंह अपनी बीवी से बहुत मुहब्बत करता है ।”
“तुम्हें क्या पता ?”
“क्यों नहीं पता । देखो, इकबालसिंह को मालूम हो गया था कि उसकी बीवी कंपनी के जल्लाद जोजो के साथ फंसी हुई थी । मैरिन ड्राइव वाले जोजो और लवलीन के लवनैस्ट से जोजो का कत्ल करके मेरे वहां से निकलते ही इकबालसिंह वहां पहुंच गया था जहां उसने अपनी बीवी को जोजो की लाश के सिरहाने बैठे पाया था । क्यों इरफान ?”
इरफान ने तत्काल सहमति में सिर हिलाया ।
“और इकबालसिंह वहां से अपना बीवी को अपने साथ ले कर गया था । इसका क्या मतलब हुआ ? इसका क्या यह मतलब न हुआ कि इकबालसिंह अपनी बीवी से इतनी मुहब्बत करता है कि वो उसकी वो खता भी माफ कर सकता था जो कि मर्द के मुंह पर सबसे तीखा तमाचा होती है, जो कि उसकी गैरत को सबसे बड़ी गाली होती है ? ऐसा न होता तो उसकी बेवफा बीवी भी वहां खुद अपने पति द्वारा पकड़ी जाने के बाद अपने ? यार के पहलू में ही मरी पड़ी पायी जाती ।”
“क्या पता इकबालसिंह ने उसकी करतूत की कोई सजा उसे बाद में दी हो !”
“पागल हुए हो ? अभी सुना नहीं भट्टी ने क्या कहा था ? उसने कहा था कि जहां आजकल लवलीन रहती है वो कम्पनी का टापू के बाद दूसरा ठिकाना है जिसे उन लोगों ने हिट करने का इरादा बनाया हुआ है । इतनी महत्वपूर्ण जगह है वो ! इकबालसिंह का इरादा अपनी बीवी को कोई सजा देना को होता तो उसने उसे ऐसी जगह रखा होता !”
“तुम ठीक कह रहे हो ।”
“इकबालसिंह अपनी बीवी से यकीनन बहुत मुहब्बत करता है । अब अगर उसकी बीवी हमारी पकड़ में आ जाये तो हम उसकी जिन्दगी से तुका की जिन्दगी का सौदा कर सकते हैं ।”
“ओह !”
“वैसे भी लवलीन के अलावा और किसी ऐसे शख्स की हमें जानकारी नहीं है जो इकबालसिंह को बेहद अजीज हो और जिस तक हमारी पहुंच हो सकती हो ।”
“भट्टी लवलीन के पते को मिस्ट्री क्यों बना रहा है ?”
“होगी कोई वजह । शाम तक पता लग जायेगी ।”
“ठीक है फिर ।”
***
शाम को अपना सिपहसालार डोंगरे, चार बाडीगार्डों और आधा दर्जन प्यादों के साथ इकबालसिंह स्वेन नैक प्वायन्ट पर पहुंचा ।
अंजुम खान की मौजूदगी में उसकी बादशाह अब्दुल मजीद दलवई से भेंट हुई ।
“बिरादर !” - बादशाह बोला - “यहां भी इतना लाव-लश्कर !”
“आदत हो गई है ।” - इकबालसिंह सहज भाव से बोला ।
प्यादों और बाडीगार्डों को नीचे ही छोड़कर वे ऊपर पहुंचे ।
बादशाह ने ब्लैकडाग की नयी बोतल खोली । उसने सिर्फ अपने और इकबालसिंह के लिये पैग तैयार किये । दोनों ने चियर्स बोला ।
अंजुम खान और डोंगरे खामोशी से अपने-अपने आका के पहलू में बैठ रहे ।
“क्या हो गया, बादशाह !” - इकबालसिंह बोला - “जो यहां बुला भेजा ?”
“अभी कुछ हुआ नहीं” - बादशाह बोला - “लेकिन होने का अन्देशा है ।”
“क्या होने का अन्देशा है ?”
“यहां डाका पड़ने का अन्देशा है ।”
“क्या !”
“और इस काम को अंजाम देने को जो शख्स आमादा है, वो सोहल है !”
“सोहल !”
“हां ।”
“सोहल यहां डाका डालने वाला है ?”
“हां ।”
“क्या पहेलियां बुझा रहे हो, मियां ! जो कहना है साफ- साफ क्यों नहीं कहते ?”
प्रत्युत्तर में बादशाह ने ढोलकिया से सुनी सारी कहानी सविस्तार दोहराई ।
बादशाह के खामोश होने तक इकबालसिंह बेहद गम्भीर हो चुका था ।
“उसे यह जगह सूझी कैसे ?” - फिर वह बोला ।
“सूझी कैसे क्या मतलब ?” - बादशाह बोला - “शिकारी को शिकार की कैसे सूझती है ?”
“वो वैसा शिकारी नहीं । वो दौलतमंद होने के लिये डाका डालने की किस्म का शख्स नहीं ।”
“तो ?”
“जरूर उसे तुम्हारे कैसीनो की कम्पनी से गंठजोड़ की बाबत समझाया गया है । अगर वो वाकई यहां डाका डालने वाला है तो समझ लो कि वो ऐसा इसलिये नहीं करने वाला क्योंकि वो एकाएक दौलत का ख्वाहिशमन्द हो उठा है, बल्कि इसलिये करने वाला है क्योंकि यूं वह ‘कम्पनी’ को एक बहुत बड़ी चोट पहुंचा सकता है ।”
“वजह कुछ भी हो, लेकिन अगर उसका ऐसा कोई इरादा है तो यह फिक्र की बात है ।”
“क्या फिक्र की बात है ? यहां सिर्फ पांच आदमियों से दो-चार होने लायक भी सलाहियत तुमने नहीं जुटाई हुई ?”
“वो बात नहीं ।”
“तो ?”
बादशाह ने अंजुम खान की तरफ देखा ।
“हम” - तत्काल अंजुम खान बोला - “डकैतों को पहचानते नहीं । हम तो सोहल को भी नहीं पहचानते ।”
“वो तो अब पहचान जाओगे ।”
“कैसे ?”
“वो आदमी, ढोलकिया, अभी यहीं है न !”
“हां ।”
“तुमने खुद अभी बताया है कि अपनी जगह लेने वाले बोटमैन को छोड़कर उसने सबकी सूरत देखी है । शिनाख्त का तुम्हारा ये काम वो कर सकता है ।”
बादशाह और अंजुम खान की निगाहें मिलीं ।
“यहां जो कोई भी कदम रखेगा” - इकबालसिंह बोला - “रॉक गार्डन के सामने वाले पायर के रास्ते ही कदम रखेगा । उस ढोलकिया की औलाद को किसी ऐसी जगह बिठा दो जहां से मेन पायर का सीधा नजारा होता हो । फिर वही सबकी शिनाख्त करा देगा ।”
“वो तो कहता है कि उन लोगों के यहां पहुंचने में हफ्ता दस दिन लग सकते हैं ।”
“वो मूर्ख है । वो सोहल को नहीं जानता । किसी काम को अंजाम देने का फैसला कर चुकने के बाद वो हफ्ता-दस दिन हाथ पर हाथ रखकर बैठ रहने वाली किस्म का आदमी नहीं । बादशाह वो कल ही वहां पहुंच सकता है । बल्कि आज ही यहां पहुंच सकता है ।”
“आज ही !”
“मैंने कहा है, पहुंच सकता है । पहुंचे चाहे न । तुम आज ही से, बल्कि अभी से उस ढोलकिया को पायर की निगाहबीनी पर लागाओ ।”
बादशाह से अंजुम खान की तरफ देखा ।
अंजुम खान ने बड़े अदब से सहमति में सिर हिलाया ।
“मेरे ख्याल से” - इकबालसिंह बोला - “उन लोगों के यहां कदम एक ग्रुप के तौर पर नहीं पड़ेगे । यहां के मेहमानों को भीड़ में मिलकर वो लोग इक्का-दुक्का यहां आयेंगे । तब ढोलकिया उन्हें पहचानता जायेगा और तुम्हारा सिक्योरिटी स्टाफ उन्हें थामता जायेगा ।”
“काम इतना आसान नहीं” - बादशाह चिन्तित भाव से बोला - “वो लोग हथियारबन्द तो यकीनन होंगे । तुम्हारी राय पर अमल करने से तो पायर पर ही खून खराबा हो जायेगा । ऐसे तो कैसीनो की साख मिट्टी में मिल जायेगी । हमारे मेहमानों का इस बात से विश्वास हिल जायेगा कि वे लोग यहां महफूज हैं ! एकाध जख्मी हो गया या मारा गया तो बेड़ा ही गर्क हो जायेगा । इकबालसिंह, फिर यहां का भी वही हाल होगा जो पहले कल्ब -29 का हो चुका है । फिर यहां उल्लू बोलेंगे और कुत्ते रोयेंगे ।”
“ये कोई बड़ी समस्या नहीं ।” - इकबालसिंह तनिक झुंझलाये स्वर में बोला - “उन लोगों से खामोशी से भी दो-चार हुआ जा सकता है । बादशाह, तुम्हारे इस जजीरे की ये खूबी है कि यहां आता आदमी अपनी मर्जी से है लेकिन लोट अपनी मर्जी से नहीं सकता ।”
“बशर्ते कि वो” - डोंगरे पहली बार बोला - “कम से कम साठ मील समन्दर तैरकर पार करने को तैयार न हो ।”
बादशाह ने फिर अंजुम खान को देखा ।
“हम” - अंजुम खान बोला - “ऐसी कोई सूरत निकालेंगे कि उन्हें मेहमानों की डिस्टर्ब किये बिना चुपचाप थामा जा सके ।”
“बढिया । अब सोहल के साथियों की पहचान तो तुम्हें ढोलकिया करायेगा लेकिन सोहल की पहचान तुम्हें मैं कराता हूं ।”
“वो कैसे ?” - बादशाह बोला ।
इकबालसिंह ने डोंगरे को इशारा किया ।
डोंगरे ने सोहल के नये चेहरे की तस्वीर निकालकर मेज पर रख दी जिसका बादशाह और अंजुम खान दोनों ने मुआयना किया ।
“ये” - एकाएक अंजुम खान चौंककर बोला - “ये सोहल है ?”
“हां ।” - इकबालसिंह बोला - “क्या हुआ ?”
“इसको तो मैं पहचानता हूं ।”
“ये सोहल का नया चेहरा है जो कि उसे प्लास्टिक सर्जरी के बाद हासिल हुआ है ।”
“मैं नया पुराना चेहरा नहीं जानता लेकिन मैं इस चेहरे को बखूबी देख चुका हूं, मैं इस चेहरे के मालिक से मिल चुका हूं, उसके आमने-सामने बात कर चुका हूं ।”
“कब ? कहां ?”
“तीन दिन पहले । इतवार को । यहीं । नीचे कैसीनो में तब इसके साथ एक खूबसूरत लड़की थी और इसके चेहरे पर फ्रेंचकट दाढ़ी मूंछ थी । मेरे एक आदमी में खबर की थी कि एक आदमी नकली दाढी मूंछ लगाकर यहां आया था । वो आदमी ये था । मैंने इसे अपने आफिस में बुलाया था तो पाया था कि नकली दाढी मूंछ के अलावा वो आंखों में नीले रंग के कान्टैक्ट लैंस भी लगाये हुए था जबकि उसकी नाक पर चश्मा भी था । अपने मेकअप की उसने ये सफाई दी थी कि वो बड़ौदा के पुलिस लॉकअप से भागा हुआ था घड़ियों का सम्गलर था और गिरफ्तारी से बचने के लिये वो हुलिया बनाकर रखता था । मुझे शक उस पर कतर्ई नहीं हुआ था । वो नोटों से भरा सूटकेस लेकर नौजवान लड़की के साथ यहां पहुंचा था और तफरीह का ख्वाहिशमन्द मालूम होता था । मैंने उसे यह नेक राय देकर रुख्सत कर दिया था कि यहां मेकअप में आने की जरूरत नहीं थी, यहां वो एकदम सेफ था ।”
“वो शख्स” - इकबालसिंह ने तस्वीर पर एक उंगली से दस्तक दी - “ये था ।”
“हां । शक की कोई गुंजाइश नहीं ।”
“कोई नाम बताया था उसने अपना ?”
“हां पैस्टन जी नौशेरवान जी घड़ीवाला ।”
“तो सरदार पासी बन गया है अब ?”
“अगर ये ही सोहल है तो हां । अपनी गोरी रंगत, नीली आंखों और फ्रेंच कट दाढी मूंछ की वजह से पारसी लगता भी था वो । मॉडर्न पारसी । योरोपियन पोशाक पहनने वाला और पाइप पीने वाला ।”
“एक नम्बर का बहुरूपिया है ये आदमी ।”
“और” - बादशाह चिन्तित भाव से बोला - “इसका कम से कम एक फेरा यहां मेरे कैसीनों में लग भी चुका है ।”
“मेरे से चूकहुई ।” - इकबालसिंह खेदपूर्ण स्वर में बोला - “मैंने सारी बम्बई में इसके नये चेहरे की तस्वीरें फैलाई लेकिन यहां नहीं भेजी । मुझे सपने में भी सूझा था कि वो यहां पहुंच सकता था ।”
“हमें” - अंजुम खान बोला - “इस सूरत की खबर होती तो ये यहां से जिन्दा वापिस न गया होता । मैंने तो इसे पकड़ के भी छोड़ दिया ।”
“इसके कदम” - इकबालसिंह बोला - “खुद व खुद यहां पड़े नहीं हो सकते । जरूर इसे किसी की शै मिली है ।”
“किसकी ?”
“इब्राहिम कालिया के अलावा और कौन हरामजादा हो सकता है बम्बई में मेरे खिलाफ किसी को शै देने वाला ? पिछले एक हफ्ते में मैंने उसके बीस आदमी मरवा दिये, उसके कई ठीये तोड़ दिये, कितना ही माल लूट लिया या पुलिस से पकड़वा दिया लेकिन उसने कोई सबक नहीं लिया मालूम होता । जबकि उसकी खामोशी का मैं मतलब लगा रहा था कि उसे सबक मिल चुका था । मेरा ख्याल गलत था। वो तो अपने खिलाफ हुए सारे वाकयात का बदला इस एक कैसीनो की लूट से ही पूरा कर लेने का इरादा बनाये बैठा मालूम होता है ।”
“वो” - बादशाह बोला - “यहां कदम रखने का हौसला नहीं कर सकता ।”
“यकीनन नहीं कर सकता । न वो, न उसका कोई खासुलखास आदमी । इस बात को वो बखूबी समझता है । तभी तो उसने सोहल के साथ गठजोड़ किया है । यानी कि जो काम वो खुद नहीं कर सकता, उसे करने के लिये उसने सोहल को तैयार कर लिया है । ऐसी जुलगबन्दी ‘कम्पनी’ के दुश्मनों से पता नहीं कैसा बना लेता है ये सरदार का बच्चा !”
कोई कुछ न बोला ।
“बादशाह !” - इकबालसिंह शिकायतभरे स्वर में बोला - “क्या बात है, आज विस्की राशन से पिला रहा है !”
बादशाह ने हड़बड़ाकर इकबालसिंह के खाली गिलास की तरफ देखा । उसने तत्काल अपने और इकबालसिंह के लिये नये ड्रिंक तैयार किये ।
इकबालसिंह ने विस्की का एक बड़ा-सा घूंट भरा और फिर बोला - “जरा उस आदमी को, ढोलकिया को, यहां बुलाओ ।”
तत्काल ढोलकिया को इकबालसिंह के रूबरू पेश किया गया ।
“ये तस्वीर देख” - बिना किसी भूमिका के इकबालसिंह बोला - “पहचानता है इस आदमी को ?”
ढोलकिया ने तस्वीर का मुआयना किया ।
“ये” - ढोलकिया तत्काल निसंकोच बोला - “उस चार आदमियों में से एक है, जो मुझे मलाड वाले फ्लैट में मिले थे ।”
“जो कि” - इकबालसिंह उसे धूरता हुआ बोला - “तेरे ख्याल से यहां डाका डालने वाले हैं ?”
“हां । हफ्ते दस दिन में वो लोग...”
“हफ्ते दस दिन में क्यों ?”
“क्योंकि अभी उन्हें मेरी जगह लेने के लिये कोई बोटमैन नहीं मिला है ।”
“बोटमैन न हुआ कोहनूर हीरा हो गया । चांद पर जाना पड़ता है बोटमैन की खातिर ?”
ढोलकिया ने जोर से थूक निगली ।
“उन लोगों में से कोई बोला ऐसा कि डकैती डालने में अभी हफ्ता दस दिन लगेंगे ?”
“नहीं ।”
“यह तेरा खुद का अंदाजा है ?”
“हां ।”
इकबालसिंह ने बादशाह की तरफ देखा ।
बादशाह ने गम्भीरता से सहमति में सिर हिलाया ।
“ये कौन बोला” - इकबालसिंह फिर ढोलकिया से सम्बोधित हुआ - “कि डकैती पांच ही जनों की कारगुजारी से पड़ने वाली थी ?”
“बोला तो कोई नहीं” - ढोलकिया दबे स्वर में बोला - “लेकिन...”
“क्या लेकिन ?”
“वहां चार आदमी थे । पांचवा मैं...”
“कोई बोला कि वो चारों ही डकैती में शामिल होने वाले थे ? कोई बोला कि जितने लोग डकैती शामिल होने वाले थे, वो सब के सब वहां मौजूद थे ?”
“ऐसा तो कोई नहीं बोला ।”
“वहां अकेला सोहल होता तो तू कहता कि वो और तू सिर्फ दो जने डकैती डालने वाले थे ? वहां दस आदमी होते तो तू कहता ग्यारह जने डकैती डालने वाले थे ? पन्द्रह होते तो तू स्कोर सोलह कर देता ?”
ढोलकिया ने उत्तर न दिया । उसने बेचैनी से पहलू बदला ।
“ये आदमी” - इकबालसिंह तिरस्कारपूर्ण स्वर में बोला - “ज्यादा होशियार बन रहा है । आदमी कितने भी हो सकते हैं । डकैती कभी भी पड़ सकती । आज ही पड़ सकती है । ये भी जरूरी नहीं, जिन चार आदमियों को ये पहचानता है, वो चारों डकैती में शामिल हों ।”
“तो क्या किया जाये ?” - बादशाह चिन्तित भाव से बोला ।
“हथियारों के बिना तो डकैती पड़ नहीं सकती । क्या ऐसा नहीं हो सकता कि आइन्दा चन्द दिनों तक यहां कदम रखने वाले हर आदमी की पायर पर ही तलाशी ले ली जाये ?”
“नहीं हो सकता ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि यहां लोगों का हथियारबन्द होकर आना आम बात है । कई लोग तो चार स्टेनगनधारी बाडीगार्डों के साथ आते हैं । जैसे कि तुम आये हो । इकबालसिंह, कैसीनो के आधे से ज्यादा क्लायन्ट जरायमपेशा लोग होते हैं । वो तो हथियार या बाडीगार्डों के बिना स्वयं को नंगा महसूस करते हैं । उनकी तलाशी नहीं ली जा सकती । उनके बाडीगार्डों के हथियार नहीं रखवाये जा सकते । ऐसी कोई कोशिश की जायेगी तो वो पायर से ही वापिस लौट जायेंगे और दोबारा फिर कभी यहां कदम नहीं रखेंगे ।”
“ओह !”
“ये आदमी” - अंजुम खान बोला - “डकैतों के एक दो आदमियों को भी पहचान लेगा तो फिर हम उन्हीं से उसके बाकी साथियों की बाबत कुबुलवा लेंगे ।”
“खान ठीक कहता है ।” - बादशाह बोला ।
“और इसकी मुलाकात सिर्फ डकैतों के सरगने से, मेरा मतलब है सोहल से, नहीं करवाई गई इसका मतलब यह हो सकता है कि कुल जमा आदमी इतने ही हैं जितने कि इसने देखे ।”
“जरूरी नहीं ।” - इकबालसिंह अप्रसन्न भाव से बोला ।
“मैंने कहा है ऐसा हो सकता है ।” - अंजुम खान विनयपूर्ण स्वर में बोला - “हम फिलहाल ये समझकर चल सकते हैं कि डकैती को अंजाम देने यहां आने वाले आदमी कम से कम पांच जरूर होंगे ।”
इकबालसिंह ने हिचकिचाते हुए सहमति में सिर हिलाया ।
कुछ क्षण खामोशी रही ।
“तो” - फिर बादशाह बोला - “हमें आज से ही चौकसी रखनी होनी ।”
“यही मुनासिब होगा ।” - इकबालसिंह बोला - “मैं कुछ आदमी और भिजवाता हूं ।”
“जरूरत नहीं । पांच दस आदमियों को सम्भालने लायक काफी आदमी हैं यहां ।”
“लेकिन अगर...”
“इकबालसिंह यहां फौज का हमला नहीं होने वाला ।”
“लेकिन...”
“तू यहां धन्धे को, यहां के माहौल की नहीं समझता । देख, ऐसे ज्यादा लोगों की यहां मौजूदगी यहां का धन्धा चौपट कर सकती है । दूरदराज से जुआ खेलने यहां आने वाले अमीर-उमरा यहां के सिक्योरिटी गार्ड को बतौर यहां की शानोशौकात और सजावटी सामान देखना चाहते हैं । वही गार्ड अगर यहां फौजी या पुलसिया माहौल बना देंगे तो यहां के मुअज्जिज मेहमान समझेंगे कि जरूर वो यहां महफूज नहीं । ऐसा करने के लिये यहां आया कोई शख्स हर वक्त बेशुमार खोजी निगाहों का मरकज बना रहना भला कैसे पसन्द कर सकता है ?”
शायद तुम ठीक कह रहे हो । तो मैं निश्चिन्त रहूं कि अपनी हिफाजत तुम खुद कर सकते हो ?”
“पांच दस आदमियों के खिलाफ तो यकीनन कर सकता हूं ।”
“उसमें से भी एक” - अंजुम खान बोला - “बोटमैन होगा ।”
“बढिया । तो मैं चलूं ?”
“बैठो । कुछ और तफरीह करके जाना ।”
“नहीं । रात को होटल में मैंने एक आदमी से मिलना है ।” - इकबालसिंह ने अपना विस्की का गिलास खाली किया और उठ खड़ा हुआ ।
“मेरा क्या होगा ?” - ढोलकिया व्याकुल भाव से बोला ।
किसी ने उसकी तरफ ध्यान न दिया ।
“मैं नहीं चाहता” - वो फिर बोला - “कि वो लोग मुझे यहां देखें ।”
“वो तुझे नहीं देखेंगे ।” - अंजुम खान कठोर स्वर में बोला - “तू ही उन्हें देखेगा ।”
“लेकिन...”
“खबरदार । जयास्ती बात नहीं ।”
ढोलकिया सहमकर चुप हो गया ।
फिर अंजुम खान और ढोलकिया को पीछे छोड़कर बादशाह, इकबालसिंह और डोंगरे नींचे पहुंचे ।
कैसीनो में ही इकबालसिंह के चारों अंगरक्षक उसके आसपास पहुंच गये । इमारत से बाहर निकलने तक बाकी प्यादे भी उसके साथ हो लिये । पूरा लावलश्कर रॉक गार्डन से गुजर कर मेन पायर पर पहुंचा जहां कि मोटरबोटों की आवाजाही उस वक्त खूब जोरों से थी । बादशाह की अपनी मोटरबोटें और गल्फ कन्ट्रीज के रइसों के प्राइवेट जलवाइन मेहमानों के साथ निरन्तर वहां पहुंच रहे थे । पायर पर पहुचने वाले लोगों में अधिकतर एक दूसरे को जानते मालूम होते थे, उनमें हंसी मजाक और अभिवादनों का आदान प्रदान हो रहा था ।
अंगरक्षकों और प्यादों से घिरा इकबालसिंह अपने एक छोटे-मोटे जहाज जितने विशाल केबिन क्रूसर की ओर बढा । ऐन उसकी बगल में उसी क्षण टापू की एक मोटरवोट आकर खड़ी हुई थी और लोग उस पर से उतरकर पायर पर कदम रख रहे थे ।
इकबालसिंह की दृष्टि अनायास ही उधर उठी ।
तभी उधर तनिक हलचल हुई और एक छपाक की आवाज गूंजी ।
कुछ लोग जोर से चिल्लाये ।
“क्या हुआ ?” - इकबालसिंह हड़बड़ाकर बोला ।
“कुछ नहीं ।” - जबाव बादशाह ने दिया - “मेरा एक मुअज्जिन मेहमान बोट से पायर पर कदम रखता-रखता पानी में जा गिरा है ।”
“ओह !”
“ऐसे छोटे-मोटे वाकयात यहां होते ही रहते हैं । लोगों से बर्दाश्त नहीं होती लेकिन पीते हैं । फिर नशे में ऐसे ही इधर-उधर पांव डाल बैठते हैं । वापसी में तो यूं गिरते-पड़ते लोग यहां आम देखे जाते हैं, अलबत्ता यहां आते ही कोई पानी में छलांग मार बैठा हो, ऐसा पहली बार हुआ है ।”
“घर से ही टुन्न आया होगा ।”
“जाहिर है ।”
इकबालसिंह अपने आदमियों के साथ बोट में सवार हो गया ।
“खुदा हाफिज !” - बादशाह बोला ।
इकबालसिंह ने मुस्करा कर उसका अभिवादन किया, फिर बोट वहां से चल पड़ी ।
बादशाह वापिस घूमा ।
उसने देखा पायर पर तैनात उसके दो गार्ड पानी में जा गिरे कैसीनो के मेहमान को सहारा देकर पानी से बाहर निकाल रहे थे । मेहमान का ब्रीफकेस अभी भी उसके हाथ में था । पानी से नहाया मेहमान जब पायर पर पहुंचा तो सबसे पहले उसने अपना ब्रीफकेस खोल कर देखा ।
बादशाह की निगाह भी ब्रीफकेस के भीतर पड़ी ।
ब्रीफकेस नोटों से ठुसा हुआ था । गनीमत था कि पानी भीतर नहीं पहुंचा था ।
बादशाह के होंठो पर अनायास मुस्कराहट खेल गई । ऐसे ही मेहमानों की तो उसके कैसीनो को जरूरत होती थी । जो पानी में जा गिरने जैसी अलगर्ज और लापरवाह हालत में मालामाल वहां पहुंचे और कंगाल वहां से रुख्सत हों ।
शाइस्तगी से चलता हुआ वह वापस मेन कैसीनो की ओर बढ चला ।
गार्डों की नुमायश के लिये खोले ब्रीफकेस को वागले ने बन्द किया और ठिठुरता हुआ सीधा खड़ा हुआ ।
“डैक का फर्श चिकना था ।” - वह बोला - “मेरा पांव फिसल गया ।
“हादसा हो ही जाता है, साहब ।” - एक गार्ड सहानुभूतिपूर्ण स्वर में बोला ।
“अब इस हालत में मैं...”
“आप मेरे साथ आइये । मैं सब इन्तजाम करता हूं ।”
“तुम सब इन्तजाम करोगे ?”
“जी हां । बादशाह की सारे स्टाफ को खास हिदायत है कि मेहमान को किन्हीं भी हालात में कोई तकलीफ न हो ।”
“वैरी गुड !”
“आइये ।”
सिर से पांव तक पानी से भरा वागले उसके साथ हो लिया ।
वह बाल-बाल बचा था ।
इकबालसिंह को टापू पर और वह भी ऐन अपने सामने देखने की उसने सपने में उम्मीद नहीं की थी । उसने एकाएक अपने आप को समुद्र में न गिरा दिया होता तो इकबालसिंह ने निश्चय ही उसे देख लिया होता जो कि उस घड़ी उससे मुश्किल से दस फुट परे पायर पर खड़ा था ।
वागले नहीं जानता था कि उसकी उसी हरकत ने उसे कैसीनो की इमारत की पहली मंजिल पर मौजूद ढोलकिया द्वारा पहचान लिये जाने से बचा लिया था । पानी से उसके बाहर निकाले जाने तक मोटरबोट खाली होकर वहां से हट चुकी थी और जब तक वह एक गार्ड के साथ पायर से रवाना हुआ था, तब तक ढोलकिया की निगाहों में वो नवागंतुक नहीं रहा था । वैसे भी पानी में डुबकी खाई होने की वजह से उसके गीले बाल उसकी आंखों तक लटक आये थे और ठण्ड से उसका हुलिया बदरंग हुआ था ।
गार्ड उसे पावर हाउस के पहलू से चलाता हुआ काटेजों तक ले आया । वागले ने नोट किया कि वहां अपेक्षाकृत अन्धेरा था और सन्नाटा था ।
“सुनो ।” - वागले बोला - “नाम क्या है तुम्हारा ?”
“मेरा नाम हमीद है, सर ।” - गार्ड बोला ।
“तुम बढिया आदमी हो । मैं तुम्हें बढिया टिप दूंगा ।”
“उसकी जरूरत नहीं !”
“अब मैं कहता हूं जरूरत है तो है ।”
“जैसी आपकी मर्जी सर ।”
हमीद ने एक काटेज का दरवाजा खोला और भीतर की कुछ बतियां जलायी । फिर वह उसे एक बड़ी नफासत से सजे बैडरूम में ले आया । उसने वहां की एक वार्डरोब खोलकर भीतर से एक मोटा ड्रेसिंग गाउन बरामद किया और उसे पलंग पर डाल दिया ।
“सर, अब आप गीले कपड़े उतर दीजिये ।” - हमीद बोला - “और गाउन पहन लीजिये । दस मिनट में आपका एकदम सूखा और प्रैस किया हुआ सूट वापिस आपके पास होगा ।
वागले सहमति से सिर हिलाता हुआ ड्रैंसिंग गाउन के पास पहुंचा । उसने अपने हाथ में थमा ब्रीफकेस पलंग पर रख कर यूं उसका ढक्कन खोला कि खुला ढक्कन हमीद और ब्रीफकेस के माल के बीच में ओट बन गया ।
उसने नोटों के नीचे हाथ डाला ।
भीतर छः टाइम बम और एक साइलेंसर लगी रिवाल्वर मौजूद थी । उसका हाथ रिवाल्वर पर सरक गया ।
“पहले कपड़े उतार लीजिये सर” - हमीद बोला - “वर्ना ठण्ड पकड़ जायेंगे ।”
“कपड़े” - वागले सीधा होकर रिवाल्वर उसकी ओर तानता हुआ बोला - “तू उतार, बेटा ।”
रिवाल्वर पर निगाह पड़ते ही हमीद के नेत्र फट पड़े ।
***
“कितने अफसोस की बात है” - अपने केबिन क्रूसर के मैन सैलून में बैठा इकबालसिंह बड़े चिन्तित भाव से बोला - “कि हम अपने दुश्मन के नये चेहरे से वाकिफ हैं, उसके नये बहूरूप से वाकिफ हैं, उसके नये नाम से वाकिफ हैं लेकिन हम उसे तलाश नहीं कर सकते ।”
“बाप, उसकी खबर हमें जरूर लगेगी” - डोंगरे बोला - “सिर्फ...”
“बकवास मत कर । इन झूठी तसल्लियों से मुझे भरमाने की कोशिश मत कर । डोंगरे, तू निकम्मा सिपहसालार है ।”
डोंगरे ने यूं थक निगली जैसे खून का घूंट पिया हो ।
“अब चुप क्यों है ? कुछ बोलता क्यों नहीं ?”
“बाप, ऐसे कामों में वक्त तो लगता है न ?”
“एक हफ्ता तो हो गया । और कितना वक्त लगता है ?”
डोंगरे से जवाब न बन पड़ा ।
“डोंगरे, अब जो मैं कहता हूं वो कर ।”
“बोलो, बाप ।”
“पहले तो मलाड वाले उस फ्लैट को टटोल, जहां वो ढोलकिया सोहल और उसके साथियों से मिला था । हो सकता है वहीं हमारा काम वन जाये ।”
डोंगरे ने संदिग्ध भाव से अपने आका की ओर देखा ।
“अबे, मूर्ख !” - इकबालसिंह भुनभुनाया - “वो लोग नहीं जानते होंगे कि ढोलकिया बादशाह के पास पहुंच गया है । इसलिये सोहल वहां अभी भी हो सकता है । वहां वागले भी हो सकता है ।”
“ठीक है । मैं कल ही वहां झपट्टा...”
“कल नहीं । आज ही रात । किनारे पर पहुंचते ही ।”
“ठीक है ।”
“और सोहल के नये चेहरे की पांच सौ तसवीरें और बनवा ।”
“वो किसलिये ?”
“सुनता नहीं । बीच में टोक देता है ।”
डोंगरे ने होंठ भींच लिये ।
“वो तस्वीरें ऐसी होनी चाहिये जिसमें सोहल के चेहरे पर वैसी फ्रेंचकट दाढी मूंछ हो जैसी अंजुम खान ने बयान की थी । उसमें सोहल की आंखों की रंगत नीली हो । समझ गया ?”
“हां, बाप ।”
“फिर उन नई तस्वीरों को भी सारी बंबई में सरकुलेट करवा और गणपति से ये प्रार्थना कर कि ऐसा होने से पहले ही सोहल ने कोई और नया बहुरूप न पकड़ लिया हो ।”
“ठीक है । दो-तीन दिन में नई तस्वीरें तैयार हो जाएंगी ।”
इकबालसिंह ने घूरकर उसे देखा ।
“कल ही हो जाएंगी, बाप ।”
“बढिया ।”
***
“वो ।” - ढोलकिया बोला - “वो उनमें से एक है ।”
कैसीनो की इमारत के सारे अग्रभाग में कोई परंपरागत खिड़की या रोशनदान नहीं था । केवल ऊपर की मंजिल पर बादशाह के बेडरूम के साथ जुड़े बाथरूम में एक छोटा सा झरोखा था लेकिन वहां से पायर का सीधा नजारा नहीं हो पाता था । इस समस्या का यह हल निकाला गया था कि बादशाह की विशाल स्टडी में लगे दो एयरकंडीशनरों में एक को अपनी जगह से उखाड़ दिया गया था और उसके सामने एक कुर्सी पर लंबी और उबाऊ निगाहबीनी की ड्यूटी पर ढोलकिया को बिठा गया था । वस्तुतः उसने पायर की तरफ किसी नई बोट के पहुंचने पर ही तवज्जो करनी होती थी लेकिन उस रोज वहां मेहमानों का ऐसा रश पड़ रहा था कि बोटों का तांता पायर पर से टूट ही नहीं रहा था ।
वहां बैठने के पंद्रह मिनट बाद ही ढोलकिया ने एक दूरबीन की जरूरत महसूस की थी जो कि उसे तत्काल मुहैया करा दी गई थी ।
संयोगवश इकबालसिंह की रवानगी के वक्त एक मेहमान के पानी में जा गिरने वाला हादसा उस मुख्तसर के वक्फे में हुआ था जबकि ढोलकिया को अभी दूरबीन नहीं दी गई थी । इसलिए उसकी निगाह में डकैतों का पहला आदमी तभी वहां पहुंचा था ।
उस रात आसमान पर चांद नहीं था । उस रात सुरमई आसमान में तारे यूं जगमगा रहे थे जैसे इस्पात की विशाल चादर में नन्हे-नन्हे छेद हों और चादर के पीछे रोशनी छुपी हो । लेकिन कैसीनो का सारा अग्रभाग, रॉक गार्डन और मेन पायर कृत्रिम प्रकाश से जगमग-जगमग कर रहा था । वातावरण में संगीत की स्वर लहरियां प्रवाहित हो रही थीं, ठंडी हवा चल रही थी, अट्टहास गूंज रहे थे, हर तरफ जत्रत का सा नजारा था ।
ऐसे माहौल में इरफान अली ने अकेले वहां कदम रखा था । उस घड़ी वो उस सूट से भी बढिया सूट पहने था जिसे पहनकर कि वह वैभवी के साथ जैकपॉट गया था और बो-टाई लगाए था । उसके होंठों में एक सुनहरा सिगरेट होल्डर लगा हुआ था जिसमें फंसे सिगरेट के वो छोटे-छोटे कश लगा रहा था । अपनी मौजूदा सजधज में वह शीशे में अपना प्रतिबिंब देखता था तो खुद अपने आप पर मुग्ध हो जाता था ।
सितोले की लाश और उसकी कार को ठिकाने लगा आने के बाद सोमवार की सारी रात उसने वरली वाली कोठी में ही वैभवी के साथ गुजारी थी और सारी रात उस निहायत खूबसूरत औरत की खूबसूरती और जवानी का भरपूर रसपान किया था । इस अहसास से उसका दिल छोटा जरूर हुआ था कि वस्तुत: वैभवी कालिया के गैंग की बाई थी और एक काम को उम्दा और तसल्लीबख्श तरीके से अंजाम देने की एवज में जैसे बतौर इनाम वो उसे मिली थी, वैसे वो किसी दूसरे को भी - किसी को भी - मिल सकती थी । अलबत्ता ये अहसास बहुत जल्द ही उसके जेहन से रूख्सत हो गया था और वह वैभवी के सात मौजमेल के प्रोग्राम में गहरे गोते खाने लगा था ।
उस घड़ी बड़ी मदमाती चाल से चलता हुआ वह पायर पर आगे बढ रहा था ।
अंजुम खान ने ढोलकिया के हाथ से दूरबीन लेकर अपनी आंखों से लगाई और पायर की तरफ देखा ।
“कौन सा ?” - वह बोला ।
ढोलकिया ने बताया ।
अंजुम खान में गौर से इरफान अली का मुआयना किया ।
बादशाह स्टडी में चहलकदमी कर रहा था ।
“एक आदमी पहुंचा है ।” - अंजुम खान उससे बोला ।
वह भी लपककर उनके करीब पहुंचा, उसने भी दूरबीन के जरिए बाहर का मुआयना किया ।
जो सूरत उसे दिखाई गई वो उसके लिए सर्वदा अपरिचित था ।
उसने दूरबीन वापिस अंजुम खान को थमा दी जिसने कि उसे आगे ढोलकिया को सौंप दिया ।
“पकड़ लिया जाए ?” - अंजुम खान बोला ।
“अभी नहीं ।” - बादशाह तनिक बेसब्रेपन से बोला - “अभी ये अकेला है और हमारी मोटरबोट पर सवार होकर यहां पहुंचा है । हो सकता है आज सिर्फ हालात का जायजा लेने के लिए यह आदमी भेजा गया हो । फिलहाल देखो कि कोई और ढोलकिया की पहचानी सूरत यहां पहुंचती है या नहीं और इसकी निगरानी करवाओ ।”
अंजुम खान ने सहमति में सिर हिलाया ।
“लेकिन अपने आदमियों को हिदायत दे दो कि अगर यह कोई शरारती हरकत करने की कोशिश करे तो इसे फौरन पकड़ लिया जाए ।”
“ठीक है ।”
अंजुम खान वहां से हटा और टेलीफोन की ओर बढा ।
***
गार्ड की वर्दी पहने वागले काटेज से बाहर निकला । उसने काटेज की बत्तियां बुझा दीं और उसको ताला लगाकर चाबी अपने कब्जे में कर ली । गार्ड की रिवॉल्वर भी उसके अधिकार मे थी और वर्दी की बैल्ट के साथ बंधे होल्स्टर में मौजूद थी जबकि उसकी खुद की साइलेंसर लगी रिवॉल्वर वर्दी की एक जेब में मौजूद थी । ब्रीफकेस उसने भीतर ही छोड़ दिया था ।
वह मिनी ओपन एयर थिएटर में पहुंचा जहां कि मुर्गों की लड़ाई चल रही थी और दर्शकों में भारी उत्तेजना और जोशो-खरोश का माहौल बना हुआ था । वहां एक ही गार्ड था जो इधर-उधर टहलता फिर रहा था और जिससे आमना-सामना होने से वागले ने खास परहेज किया ।
पांच मिनट बाद उसे भीड़ में इरफान अली दिखाई दिया ।
वागले उसके करीब पहुंचा ।
दोनों की आंखें मिलीं ।
“टॉयलेट ।” - इरफान धीरे से बोला ।
वागले वहां से हट गया । वहां के गार्ड की निगाहों से बचता वह टॉयलेट में दाखिल हो गया । वहां वह लघुशंका की मुद्रा में एक स्टाल के सामने जा खड़ा हुआ ।
कुछ क्षण बाद इरफान वहा पहुंचा । वह उसके बगल के स्टाल पर जा खड़ा हुआ ।
“मेरे पीछे” - वह होंठो में बुदबुदाया - “साए की तरह दो आदमी लगे हैं । उनसे पीछा छुड़ाना जरूरी है ।”
“गार्ड हैं ?” - वागले बोला ।
“होंगे । लेकिन वर्दी में नहीं हैं । नीले सूट पहने हैं दोनों ।”
“अब कहां हैं ?”
“या तो टॉयलेट के बाहर मेरे निकलने का इंतजार कर रहे होंगे या फिर अभी भीतर आते होंगे ।”
उस घड़ी मुर्गों की लड़ाई अपने क्लाईमैक्स की ओर अग्रसर हो रही थी इसलिए टॉयलेट खाली था ।
वागले ने चारों ओर निगाह डाली ।
एक ओर लैवेटरियों की कतार थी ।
“कोने वाली लैवेटरी में जा ।” - वागले बोला ।
इरफान ने तत्काल आज्ञा का पालन किया ।
वागले टायलेट से बाहर निकला ।
बाहर दो नीले सूट वाले व्यक्ति खड़े थे ।
वागले ने सिर तनिक झुका लिया और वर्दी की उसके नाप से ढीली पीककैप अपनी आंखों पर सरक आने दी ।
“सुन ।” - एक आदमी बोला । उसके बुलाने के अंदाज से ही लग रहा था कि वह वागले को अपना भाईबंद जानकर बात कर रहा था ।
वागले ठिठका ।
“अभी भीतर एक कोले सूट वाला आदमी गया था, वो वहां...”
“भीतर तो” - वागले बोला - “कोई भी नहीं है ।”
“क्या !”
“मैंने कहा भीतर कोई नहीं है ।”
“यह कैसे हो सकता है ? अभी तो...”
“वो लैवेरटी में होगा” - दूसरा बोला - “इसे दिखाई नहीं दिया होगा ।”
“भीतर कहीं कोई नहीं है ।” - वागले पूरे विश्वास के साथ बोला ।
दोनों एक-दूसरे का मुंह देखने लगे, फिर वे झपटते हुए टॉयलेट में दाखिल हुए ।
वागले ने उनके पीछे वापिस भीतर कदम रखा, उसने अपनी जेब से अपनी साइलेंसर लगी रिवॉल्वर निकाली और बड़े इत्मीनान से दोनों को शूट कर दिया ।
“बाहर आ जा ।” - वह तनिक उच्च स्वर में बोला ।
इरफान ने लैवेटरी से बाहर कदम रखा । दोनों ने एक-एक निश्चेट शरीर को थामा और घसीटकर दो लैवेटरियों में डालकर बाहर से चिटकनी चढा दी ।
दोनों वहां से बाहर निकले ।
वागले उसे काटेज में ले आया ।
वहां उसने इरफान को सारे टाइम बम और वहां मृत पड़े गार्ड वाली रिवॉल्वर सौंप दी । अपनी रिवॉल्वर उसने यूं खाली हुए होल्स्टर में रख ली ।
दोनों वहां से बाहर निकले ।
वागले ने अपनी कलाई घड़ी पर निगाह डाली और प्रश्नसूचक नेत्रों से इरफान की तरफ देखा ।
“पंद्रह मिनट ।” - इरफान निसंकोच बोला ।
“मुझे पता कैसे लगेगा कि तू अपना काम खत्म कर चुका है ?”
“ऐन पंद्रह मिनट बाद मैं वापिस यहीं होऊंगा ।”
“ठीक है ।”
दोनों कुछ कदम और इकट्ठे आगे बढे और फिर अलग-अलग दिशाओं में चल दिए ।
***
तुकाराम को डोंगरे ने इकबालसिंह के रुबरु पेश किया ।
“तो” - इकबालसिंह बोला - “क्या सोचा तूने ?”
“मैं” - तुकाराम बोला - “तेरी और सोहल की सुलह करवाने की कोशिश करने को तैयार हूं ।”
“बढिया । कैसे करेगा ये काम ?”
“सोहल को तलाश करुंगा । तेरा प्रस्ताव उसके सामने रखूंगा, फिर किसी, तुम दोनों को मंजूर, जगह पर मुलाकात का इंतजाम कर दूंगा ।”
“उसे तलाश कैसे करेगा ?”
“उसके लिए मुझे काफी जगह भटकना पड़ेगा ।”
“क्यों ? उसका कोई एक ठीया तेरी निगाह में नहीं ?”
“नहीं ।”
“वक्त जरुरत उससे कांटैक्ट बनाने का कोई जरिया तो जरुर होगा तेरे पास ?”
“नहीं है ।”
“ऐसा कैसे हो सकता है ?”
“ऐसा ही है । इकबालसिंह, मेरा यकीन कर ।”
“यूं काम कैसे बनेगा ?”
“मेरा एतबार किए बिना तो काम नहीं बनेगा ।”
“एतबार करके क्या करूं ?”
“मुझे छोड़ दे ।”
“ताकि तू सोहल को तलाश कर सके ?”
“हां ।”
इकबालसिंह ने डोंगरे की तरफ देखा । डोंगरे ने इनकार में सिर हिलाया ।
“मेरे आदमी तेरे साथ होंगे ।” - इकबालसिंह बोला ।
“फिर एतबार क्या किया तूने मेरा ?”
“मैंने तुझे यूं ही चला जाने दिया तो बाद में तू मुझे ढूंढे नहीं मिलेगा ।”
“ऐसा नहीं होगा ।”
“क्या गारंटी है ?”
“बखिया ने भी ऐसे एक बार सोहल को छोड़ा था ।”
“मैं बखिया नहीं । तू भी सोहल नहीं । मौजूदा हालात भी पहले जैसे नहीं ।”
“तो फिर कैसे हल होगा ये मसला ?”
“सोहल की तलाश में जहां भी तू जाना चाहता है, वहां मेरे आदमी तुझे ले के जाएंगे । ये जरूरी है ।”
“ये मुझे मंजूर नहीं ।”
“क्यों ?”
“इकबालसिंह, तू यूं सोहल को धर-दबोचना चाहता है । तू मुझे सोहल तक पहुंचने का जरिया बनाना चाहता है । मैं इतना मूर्ख नहीं जो...”
“तो क्या मैं इतना मूर्ख हूं” - इकबालसिंह भड़का - “जो तुझे यूं छुट्टा घूम लेने दूं ?”
“नहीं । तू बहुत सयाना है । मैं भी मूर्ख नहीं । इसलिए यह पाखंड छोड़ कि तू सोहल से सुलह करना चाहता है । कोई बच्चा भी समझ सकता है कि सुलह के नाम पर तू धोखे से सोहल को अपने काबू में करना चाहता है । तू बखूबी जानता है कि तेरे और सोहल में सुलह हो ही नहीं सकती ।”
“क्यों नहीं हो सकती ?”
“क्योंकि तू अपनी जात-औकात नहीं छोड़ सकता और सोहल अपनी कसम से नहीं फिर सकता ।”
“जब सुबह मेरी तेरे से बात हुई थी तो ये रोशन ख्याल तब तेरे जेहन में नहीं थे ?”
“थे ।”
“फिर तूने सोचने के लिए शाम तक का वक्त क्यों मांगा ?”
“कोई खास वजह नहीं ।”
“यानी कि वक्ती तौर से मुझे बेवकूफ बनाने की कोशिश की ?”
“यही समझ ले । ये समझ ले कि जिस नीयत से तू मेरे से पेश आया, उसी नीयत से मैं तेरे से पेश आया ।”
“जानता है तेरी इस बदजुबानी के लिए मैं अभी तेरी जुबान खींच सकता हूं । मैं तेरी बोटी-बोटी काटकर चील-कौओं को खिला सकता हूं ।”
“जानता हूं ।”
“तुझे अपने अंजाम की परवाह नहीं ?”
“अपने अंजाम की परवाह मैंने कभी छोड़ दी थी जब मेरा पहला भाई शांताराम मरा था । और भी बेखतर मैं तब हो गया था जब मेरे दूसरे भाई जीवाराम की लाश मेरे घर के सामने बिजली के खंभे के साथ लटकी पाई गई थी । रही-सही कसर तब पूरी हो गई थी जब कल्याण में बखिया के अंगरक्षकों ने मेरे तीसरे भाई बालेराम को शूट कर दिया था और मेरे चौथे भाई देवाराम की मौत, जो कि सिर्फ बीस साल का था, तो समझ ले कि ऊंट की पीठ पर आखिरी तिनका था । इकबालसिंह, तू मुझे अंजाम से डराता है । तू एक मुर्दे को मौत से कैसे डरा सकता है ? मैं तो एक प्रेत हूं जो अपने चार भाईयों की लाशों का बोझ अपने कंधों पर उठाए घूम रहा हूं । तू मेरा क्या बिगाड़ सकता है ? मेरा तो यमराज भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता ।”
इकबालसिंह ने असहाय भाव से गर्दन हिलाई और अपने सिपहसालार की तरफ देखा ।
“मार के आगे” - डोंगरे धीरे से बोला - “भूत भी भागते हैं ।”
“इस पर ये बात लागू नहीं होने वाली ।”
“लेकिन...”
“इसे वापिस बंद करके आ, फिर मैं तुझे इसकी बची-खुची जिंदगी कैश करने की दूसरी तरकीब बताता हूं ।”
डोंगरे सहमति में सिर हिलाता हुआ तुकाराम की ओर बढा ।
***
बादशाह अपनी स्टडी में बेचैनी से चहलकदमी कर रहा था और सिगरेट पर सिगरेट फूंक रहा था ।
पांच मिनट पहले अंजुम खान ने उसे खबर दी थी कि वहां पहुंचा डकैतों का पहला आदमी, काले सूट वाला, गायब था और उसके पीछे लगे उनके गूफी और तौफीक नाम के दोनों आदमी भी गायब थे ।
अंजुम खान वहां पहुंचा ।
“अब क्या हुआ ?” - उसकी सूरत पर निगाह पड़ते ही बादशाह सशंक स्वर में बोला ।
“गूफी और तौफीक की लाशें” - अंजुम खान कठिन स्वर में बोला - “ओपन एयर थियेटर के टायलेट से बरामद हुई हैं ।”
“लाशें ?”
“हां । दोनों को शूट किया गया है । एक मेहमान टॉयलेट में गया, उसने शोर मचाया तो खबर लगी ।”
“और वो आदमी ?”
“उसका अभी भी कुछ पता नहीं ।”
“क्यों पता नहीं ?” - बादशाह दहाड़ा - “होगा तो वो जजीरे पर ही । यहां से कूच कर गया होता तो ढोलकिया ने उसे देखा होता । खान, इतने से जजीरे पर एक आदमी की तलाश नहीं कर सकते हम लोग ?”
“कर सकते हैं ।”
“तो करते क्यों नहीं ?”
अंजुम खान खामोश रहा ।
“उसे ढूंढ ! कहीं से भी खोजकर निकाल उसे और पकड़कर मेरे पास ला ।”
“जो हुक्म ।”
“अब उसके साथ ही यहां लौटकर आना ।”
“बेहतर ।”
***
वागले ने अपनी कलाई घड़ी पर निगाह डाली ।
घड़ी के मुताबिक इरफान को अब तक वहां कब का लौट आया होना था ।
वह बेचैनी का अनुभव करने लगा ।
सिक्योरिटी गार्ड की वर्दी में उसकी तलाश में वह हर जगह नहीं जा सकता था । कैसीनो में जाना खासतौर से खतरनाक साबित हो सकता था । कैसीनो और मेन पायर के अलावा वह तकरीबन हर जगह का चक्कर लगा चुका था लेकिन इरफान उसे कहीं दिखाई नहीं था ।
बहुत सस्पेंस में उसने थोड़ा वक्त और काटा ।
उसने फिर घड़ी पर निगाह डाली तो पाया कि बजने में पांच मिनट बाकी थे ।
अब और इंतजार संभव नहीं था ।
उसने होल्स्टर में रिवॉल्वर चौकस की और बोट हाउस की दिशा में बढा । नक्शों और तस्वीरों की सहायता से विमल उसे वहां के चप्पे-चप्पे से वाकिफ करा चुका था ।
वह बोट हाउस के करीब पहुंचा तो उसने अपेक्षानुसार तीन गार्डों को वहां मौजूद पाया । अपने ही भाईबंद को अपनी ओर आता पाकर उनमें कोई हलचल न हुई ।
वागले जानबूझकर उनसे थोड़ा परे ही ठिठक गया ।
“चौथा कहां गया ?” - वागले अधिकारपूर्ण स्वर में बोला ।
“कौन चौथा ?” - एक बोला ।
“अरे, तुम चार जनों को होना चाहिए न यहां । ”
“पागल हुआ है । इधर तो आज तक तीन से ज्यादा गार्ड नहीं हुए । अलबत्ता दो अक्सर हो जाते हैं ।”
“आज की रात की बात और है ।
“क्यों ? क्यों और है ?”
“तो तुम तीन ही हो यहां ?”
“हां । और तू कौन है ? इधर आ जरा ।”
“आता हूं ।”
वागले का हाथ होल्स्टर में रखी साइलेंसर लगी रिवाल्वर की मूठ पर सरक गया ।
वह करीब पहुंचा ।
तीनों की उस निगाह पड़ी । तत्काल सबके चेहरे पर संदेह के भाव आए ।
“तू कौन है, भई ?” - एक कठोर स्वर में बोला ।
वागले मुस्कराया । उसने फुर्ती से रिवॉल्वर निकालकर उनकी ओर तान दी । फिर इससे पहले कि प्रतिक्रियास्वरुप वे कोई हरकत कर पाते, उसने तीनों को शूट कर दिया । तीनों धराशायी हो गए ।
वागले सावधानी से उनके करीब पहुंचा । उसने बारी-बारी से तीनों का मुआयना किया । तीनों मरे पड़े थे । उसने रिवॉल्वर वापिस अपने होल्स्टर में पहुंचाई और उन्हें बारी-बारी घसीटकर झाड़ियों की ओट में डाल दिया । फिर वह आगे बढा और समुद्र के किनारे पर पहुंचा । उसने जेब से एक पेंसिल टॉर्च निकाली और उसका रुख समुद्र की दिशा में करके उसे एक पूर्व निर्धारित तरीके से जलाया-बुझाया ।
तत्काल दूर समुद्र के अंधेरे में से उत्तर मिला ।
वागले ने टॉर्च बंद करके जेब के हवाले की । और वापिस बोट हाउस के सामने लौटा । वहां वह तीन गार्डों द्वारा खाली की गई कुर्सियों में से एक पर बैठ गया और प्रतीक्षा करने लगा ।
एक बात से वह फिक्रमंद था ।
इराफान वापिस नहीं लौटा था ।
***
“मलाड वाला वो फ्लैट खाली है ।” - डोंगरे ने बताया ।
“खाली है !” - इकबालसिंह की भवें तनीं ।
“हां, उस पर ताला पड़ा है । बाप, आधी रात को कोई तगड़ी पूछताछ तो नहीं हो सकती थी फिर भी जो पूछताछ की, उसका कोई नतीजा नहीं निकला ।”
“क्यों ?”
“वो इलाका ऐसा है बाप कि वहां लोग अपने काम से काम रखते हैं । पड़ोसी में रस न लेना, उसके रहन-सहन को नजरअंदाज करके रखना उधर का फैशनेबल और स्टेंडर्ड का काम माना जाता है । पूछताछ से सिर्फ इतना ही मालूम हो सका है कि वहां कोई फैमिली नहीं रहती ।”
“तो कौन रहता है ?”
“मेरे ख्याल से पक्के तौर से कोई भी नहीं रहता । एक लड़की पिछले दिनों वहां अक्सर देखी जाती थी । और जब वो वहां होती है तो वहां मर्दों की काफी आवाजाही रहती है ।”
“कोई कोठा तो नहीं वो ?”
“हो सकता है । गृहस्थी वाला घर तो वो बिल्कुल भी नहीं ।”
“कैसे जाना ?”
“मैं तोला तोड़कर भीतर घुस के देखा ।”
“ओह !”
“फ्लैट खूब सजा-धजा था लेकिन भीतर गृहस्थी वाला कोई सामान नहीं था । सिर्फ किचन में खानपान की कुछ डिब्बाबंद चिजें थीं और चाय-कॉफी का इंतजाम था । या बैठक में बार था ।”
“तब तो जरूर वो किसी बाई का कोठा है ।”
“कोठे में फोटोग्राफरों वाले डार्करूम का क्या काम होगा ?”
“डार्करूम ?”
“हां । वहां एक स्टोर में डार्करूम बना हुआ है । और बाप...”
“अरे कुछ बोलेगा भी ।”
“वहां रद्दी की टोकरी में कैसीनो वाले टापू की कई तस्वीरें पड़ी थीं ।”
इकबालसिंह स्तब्ध रह गया ।
“ओह !” - कई क्षण की खामोशी के बाद वह बोला - “तो टापू लूटने की योजना बहुत पहले से, बहुत तरीके से बन रही थी ।”
“ऐसा ही मालूम होता है ।”
“डोंगर, तू दो काम कर ।”
“बोलो, बाप ।”
“एक तो टापू पर फौरन दर्जन-भर चुने हुए हथियारबंद आदमी भेज । बादशाह चाहे ऐसा नहीं चाहता, फिर भी भेज । कल मैं फिर वहां जाऊंगा और उसे समझा दूंगा । अपने आदमियों को समझा के भेज कि उन्हें टापू पर जो कोई भी संदिग्ध आदमी दिखाई दे वो उससे मुकम्मल पूछताछ करें और अगर तसल्ली न हो तो गिरफ्तार कर लें, कोई गिरफ्तारी से बचने की कोशिश करे तो उसे निःसंकोच शूट कर दें ।”
“बादशाह को ये मंजूर होगा ?”
“हो न हो, लेकिन तू ये इंतजाम कर । आखिर कैसीनो में हम भी पचास फीसदी के पार्टनर हैं । कैसीनो लुट गया तो हमारा भी बराबर का नुकसान है ।”
डोंगरे खामेश रहा ।
“अपने आदमियों को समझा के भेज वहां सोहल या वागले या इब्राहीम कालिया के गैंग का कोई आदमी दिखाई दे तो वे उसे गोली पहले मारें और सवाल बाद में करें । समझ गया ?”
“हां ।”
“और मलाड के फ्लैट की कड़ी निगरानी करवा ।”
“हो रही है । बाबू कामले के साथ वहां छः आदमी तैयार हैं ।”
“उन्हें भी यही बोल कि वहां सोहल या वागले या कालिया या भट्टी या उनका कोई भी आदमी दिखाई दे तो गोली पहले मारें, सवाल बाद में करें । फिर जो होगा देखा जाएगा । इलाके का थानेदार हमारा आदमी है । कोई खून खराबा हो भी जाएगा तो वो सब संभाल लेगा ।”
“ठीक है ।”
“और कल दिन चढते ही कमेटी के खसरे के रजिस्टर से मालूम करा कि वो फ्लैट किसके नाम है । अगर वो कालिया की या उसके किसी चमचे की प्रापर्टी निकले तो फ्लैट को फूंक के रख दे, तबाह कर दे ।”
“ठीक है । ये तो मेरी पसंद का काम है ।”
“बढिया । अब” - इकबालसिंह ने उसे एक कागज थमाया - “ये पकड़ ।”
“ये क्या है ?”
“ये एक इश्तहार है जो कल बंबई से निकलने वाले हिंदी, मराठी और अंग्रेजी के हर अखबार में छपना चाहिए । मोटा-मोटा । खास जगह पर ।”
“बाप, कल का दिया इश्तहार तो परसों के पर्चे में छपेगा ।”
इकबालसिंह सकपकाया ।
“ठीक है ।” - फिर वह बोला - “परसों ही सही ।”
“है क्या ये ?” - डोंगरे उत्सुक भाव से बोला ।
“पढ के देख । ये सोहल के बच्चे के नाम तुकाराम का प्रेमपत्र है ।”
“बाप, ये वो दूसरी तरकीब तो नहीं जो आप बोला कि आप तुकाराम की बची-खुची जिंदगी कैश करने की करेगा ?”
“वही है । अब फूट । रात खोटी हो रही है ।”
डोंगरे तत्काल वहां से विदा हो गया ।
***
अंजुम खान ने इरफान अली को बादशाह के हुजूर में पेश किया ।
सिक्योरिटी स्टाफ के दो आदमी इरफान को मजबूती से दाएं-बाएं से थामे हुए थे ।
“कहां मिला ?” - बादशाह बोला ।
“गोदाम के करीब ।” - अंजुम खान बोला - “वहां बम लगा रहा था ।”
बादशाह के नेत्र फैले ।
“एक बम अभी और भी था इसके पास ।”
बादशाह ने कहर-भरी निगाह से इरफान की ओर देखा ।
इरफान बड़ी धृष्टता से हंसा ।
फिर उसकी निगाह ढोलकिया पर पड़ी ।
“ढोलकिये !” - वह कर्कश स्वर में बोला - “तू यहां !”
ढोलकिया ने जोर से थूक निगली ।
“अब समझा मैं तेरी करतूत को” - इरफान दांत पीसता हुआ बोला - “हरामजादे ! लगता है तू सबकी तरफ है ।”
“म... मैं” - ढोलकिया हकलाया - “मैं...”
“साला !” - इरफान नफरत-भरे स्वर में बोला - “बकरी का बच्चा !”
“बकवास बंद ।” - बादशाह दहाड़ा ।
इरफान खामोश हो गया ।
“क्या नाम है तेरा ?” - बादशाह बोला ।
“इरफान अली ।” -इरफान बेखौफ बोला ।
“सोहल का आदमी है ?”
“हां ।”
“मुसलमान होके सरदार का साथ देता है ?”
“इंसान होके इंसान का साथ देता हूं ।”
“टापू पर बम लगाता है ?”
“लगाता हूं ।”
“और कहां-कहां लगाया ?”
“कई जगह ।”
बादशाह हकबकाया ।
“लगा भी चुका ?” - वह बोला
“हां ।” - इरफान पूर्ववत् बेखौफा बोला - “जब पकड़ा गया था तब तो एक ही बम बाकी रह गया था लगाने के लिए ।”
“बम कहां से आए तेरे पास ? टापू पर तो खाली हाथ पहुंचा था ?”
उत्तर देने की जगह इरफान हंसा ।
“और कहां-कहां बम लगाए ?” - बादशाह गरजा ।
इरफान फिर हंसा ।
“सर” - अंजुम खान दबे स्वर में बोला - “ये बातों में वक्त जाया करने का वक्त नहीं ।”
“क्या टाइम हो गया ?” - इरफान बोला ।
“सवा दस । क्यों ?”
“फिर क्या फर्क पड़ता है ! अब तो आतिशबाजी शुरू हो भी चुकी होगी ।”
“इसे पकड़ो ।” - बादशाह बोला ।
दोनों सिक्योरिटी वालों ने इरफान की दोनों बांहे थामीं और उन्हें उमेठकर उसकी पीठ पीछे कर दिया ।
फिर बादशाह के शाक्तिशाली हाथों ने इरफान को रुई की तरह धुनना शूरू किया । उसके लात-घूंसे इरफान के शरीर के विभिन्न अंगों पर पड़ने लगे ।
“बोल” - बादशाह विक्षिप्तों की तरह चिल्ला रहा था - “जल्दी बोल ! कहां लगाए बम ? कितने लगाए ? कहां-कहां लगाए ?”
उस नजारे से आंदोलित ढोलकिया के जिस्म में रह-रहकर झुरझुरी दौड़ने लगी ।
“बोल ! बोल, कमीने !”
तभी फोन की घंटी बजी ।
बादशाह ने अपना हाथ रोका और बड़े अप्रसन्न भाव से फोन की सूरत में आए व्यवधान को देखा । फिर उसने अंजुम खान को इशारा किया ।
अंजुम खान ने फोन सुना ।
“बम !” - फोन सुन चुकने के बाद वो बोला - “कैसीनो में फटा है । नीचे आग लगी हुई है ।”
“अब मेरा क्या होगा ?” - ढोलकिया कंपित स्वर में बोला ।
किसी ने उसकी तरफ ध्यान न दिया ।
“बुझाओ !” - बादशाह दहाड़ा - “बुझाओ !”
“कैसे !”
अंजुम खान का सवाल हजार मन के हथौड़े की तरह बादशाह की चेतना से टकराया ।
टापू पर फायर फाइटिंग का कोई मुनासिब साजो-सामान तो था ही नहीं । उसको तो कभी सपने में ख्याल नहीं आया था कि वहां आग लग सकती थी । वहां कहीं-कहीं दीवारों पर जो छोटे-मोटे फायर एक्सटिंग्विशर लगे हुए थे वो भी महज सजावटी समाने थे ।
“कैसे भी बुझाओ ।” - बादशाह फिर दहाड़ा - “समुद्र से पानी निकालो । कुछ भी करो ।”
अंजुम खान ने फिर फोन में बात की ।
“अमजद कहता है” - वह बोला - “आग कोई खतरनाक नहीं है लेकिन लोगों में भगदड़ मच गई है जिसकी वजह से हालात काबू से बाहर होते जा रहे हैं । क्या हमारा स्टाफ और क्या हमारे मेहमान, दहशत का मारा हर कोई एक ही वक्त में कैसीनो से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा है इसलिए कोई भी नहीं निकल पा रहा ।”
“उसे कहो, स्टाफ को रोके, मेहमानों को जाने दे ।”
“मैं अभी...”
लेकिन अंजुम खान के माउथपीस में बोल पाने से पहले टेलीफोन का इयरपीस खड़खड़ाने लगा । वह सुनने लगा ।
“ओपन एयर थियेटर में भी बम फटा है ।” - फिर उसने बादशाह को बताया - “वहां ज्यादा कोहराम मचा बता रहा है अमजद ।” - उसकी तवज्जो फिर फोन की तरफ गई, उसने कुछ क्षण उधर से आती आवाज सुनी और फिर विचलित भाव से बोला - “अब स्टाफ क्वार्टर्स भी ।”
“मेरा क्या होगा !” - ढोलकिया बोला ।
“अल्लाह !” - बादशाह अपना माथा पीटने लगा - “ये क्या हो रहा है ?”
“अब पावर हाउस भी...”
बादशाह झपटकर इरफान के करीब पहुंचा । उनसे पैरों पर पैंडुलम की तरह हिलते इरफान का गिरहबान थाम लिया और उसे झिंझोड़ता हुआ चिल्लाया - “सोहल ! सोहल कहां है ? कहां है वह हरामजादा ?”
“मुझे नहीं पता ।” - इरफान क्षीण स्वर में बोला ।
“तुझे सब पता है कमीने !”
“मुझे कुछ नहीं पता...”
“अभी और कितने बम फटने हैं ?”
इरफान केवल मुस्कराया । उसके खूनआलूदा चेहरे पर मुस्कराहट बड़ी वीभत्स लग रही थी ।
“सोहल कहां है ?”
“मुझे नहीं पता ।”
“तेरे बाकी साथी कहां हैं ?”
“मुझे नहीं पता ।”
बादशाह ने उसे अपने आदमियों पर धकेल दिया और जाकर ढोलकिया का गला थाम लिया ।
“तू बता सोहल कहां है ?” - वह बोला ।
“मुझे क्या पता ?” - ढोलकिया आतंकित भाव से बोला - “मुझे कैसे पता होगा ?”
“किसी को नहीं पता ।” - बादशाह दहाड़ा - “किसी को कुछ नहीं पता । मेरी बादशाहत तबाह होती जा रही है लेकिन किसी कि कुछ नहीं पता ।”
“मेरा क्या होगा ?” - ढोलकिया बोला ।
“थोबड़ा बंद रख, हरामजादे !” - बादशाह कहर-भरे स्वर में बोला, उसने ढोलकिया को इतनी जोर का धक्का दिया कि वह भरभराकर फर्श पर जा गिरा ।
“खान !” - बादशाह चिल्लाया ।
“हां ।” - खान हड़बड़ाकर बोला ।
“गन केस खोल । सारे आदमियों को हथियारबंद कर दे । उन्हें जजीरे के चप्पे-चप्पे पर फैला दे । उन्हें बोल कि जो गलत आदमी दिखाई दे, उसे पकड़ लें । यूं कोई मुअज्जिज मेहमान पकड़ा जाएगा तो हम बाद में उससे माफी मांग लेंगे ।”
खान ने सहमति में सिर हिलाया, फिर उसने जेब से चाबियों का एक गुच्छा निकाला और वहीं कोने में बनी शो-केस जैसी उस विशाल अलमारी की ओर बढा जिसमें तरह- तरह के हथियार बंद थे ।
***
विमल ने मोटरबोट पर से किनारे पर रस्सी फेंकी जिसे वागले ने बड़ी दक्षता से थाम लिया । उसने रस्सी को अपनी तरफ खींचना आरंभ किया । लहरों में डोलती मोटरबोट हौले-हौले किनारे पर आ लगी ।
“मुबारक अली” - विमल कंट्रोल पर बैठे मुबारक अली से बोला - “तूने यहीं मोटरबोट के साथ रहना है । तेरे पास रिवॉल्वर है, स्पेयर गोलियां हैं, हैंड ग्रेनेड हैं और धुएं के बम हैं । हमारी गैरहाजिरी में कोई छोटी-मोटी आफत आ जाए तो डटकर मुकाबला करना है, भाग नहीं खड़े होना ।”
“फिक्र न करो, बाप !” - मुबारक अली बोला ।
“तू भाग गया तो यहां हम पिंजरे में चूहे की तरह फंस के रह जाएंगे ।”
“बाप, क्यों इज्जत उतारेला है, वो क्या कहते हैं अंग्रेजी में, बुढापे में ।”
“अगर भागना पड़ भी जाए तो लोट के आ जाना ।”
“बाप, तू इधर की जरा भी फिक्र नक्की कर ।”
विमल ने डेनियल के साथ किनारे पर कदम रखा ।
तिजोरीतोड़ डेनियल एक कोई चालीस साल का निहायत संजीदा सूरत वाला दुबला-पतला आदमी था । उसके हाथ में एक कैनवस का झोला था जिसमें उसके औजारों के अलावा डाक ढोने में इस्तेमाल होने वाली किस्म के दो बोरे थे । वैसा ही एक झोला विमल के हाथ में था जिसमें हैंड ग्रेनेड और धुएं के बम थे । अपने दोनों कंधों पर उसने दी मशीनगनें लादी हुई थी ।
तीनों वहां के सिक्योरिटी स्टाफ जैसी नीली वर्दियां पहने थे ।
उसने मशीनगन और झोला वागले को थमाया और फिर बोला - “इरफान कहां है ?”
“होना तो उसे यहीं चाहिए था ।” - वागले चिंतित भाव से बोला - “कहीं फंस गया मालूम होता है ।”
“ये तो बहुत बुरा होगा ।”
“जरूरी नहीं दुश्मन के हाथों ही फंसा हो । जरूर वो कहीं छुपा होगा ।”
“अच्छा !”
“अपना काम तो उसने बखूबी कर दिया है । छः में से चार बम तो फट भी चुके हैं । इमारतें धू-धू करके जल रही हैं ।”
“चलो ।”
वे ओपन एयर थियेटर तक पहुंचे ।
वहां से पावर हाउस और स्टाफ क्वार्टर्स वाली इमारतें भी दिखाई दे रही थीं और वो सब आग के हवाले थीं । चारों तरफ चिल्ल-पौं और भगदड़ मची हुई थी । मेन बिल्डिंग के सामने के दो पायरों पर एक वक्त में आठ से ज्यादा बोट नहीं लग सकती थीं लेकिन वहां कम-से-कम तीस बोटों की धकापेल थी । हर कोई अपनी बोट पर अपने केबिन क्रूसर पर, अपने प्राइवेट याट पर सबसे पहले सवार होकर वहां से निकल भागना चाहता था । बोटें आपस में टकरा रही थीं, उन पर सवार होने की कोशिश करते लोग धकापेल में पानी में जाकर गिर रहे थे । और फिर तैरकर बोट तक पहुंचने की कोशिश कर रहे थे । कुछ ऐसे भी थे जो तैरना नहीं जानते थे और ‘बचाओ-बचाओ’ की दुहाई दे रहे थे लेकिन बचाव को आगे आने की फुरसत किसी को नहीं थी ।
उस घड़ी टापू पर जहन्नुम का नजारा था ।
वे कैसीनो की मेन बिल्डिंग पर पहुंचे ।
उस इमारत के अग्रभाग में क्योंकि कोई खिड़की-रोशनदान नहीं था इसलिए वहां की आग की हालत का बाहर से जायजा लग पाना मुश्किल था ।
भगदड़ के माहौल में वे कैसीनो में दाखिल हुए ।
वहां के सिक्योरिटी स्टाफ जैसी ही उनकी नीली वर्दियों की वजह से किसी ने उनकी तरफ ध्यान न दिया ।
भीतर डायनिंग हाल के पिछवाडे़ में आग की लपटें लपलपा रही थीं । लेकिन कैसीनो अभी आग से बचा हुआ था । वहां हाल खाली था और अव्यवस्था का बोलबाला था । मेज-कुर्सियां उलटी पड़ी थीं, टूटी क्राकरी के टुकड़े जगह-जगह फैले हुए थे, हर तरफ टूटी बोतलों से बही मदिरा की महक थी ।
कैशियर का पिंजरा खाली था ।
सबसे पहले वे वहीं पहुंचे ।
विमल ने सावधानी से उसके पीछे बने अंजुम खान के आफिस में झांका तो पाया कि आफिस खाली था । उसने कैशियर के दराज खोले तो उन्हें नोटों से भरा पाया । उसने डेनियल को इशारा किया । डेनियल ने झोले में से कैनवस का एक बैग निकाला जिसमें तीनों ने मिलकर दराजों में मौजूद सारे नोट भर लिए ।
फिर विमल ने वहीं मौजूद अलमारी जैसी तिजोरी का हैंडल ट्राई किया ।
तिजोरी खुली थी और नोटों से भरी थी । उन नोटों में हिंदोस्तानी रुपए के अलावा डालर, पाउंड और रियाल की भी बहुतायत थी ।
उन्होंने वे सारे नोट भी झोले में भर लिए ।
तभी सारी बत्तियां बुझ गईं ।
लगता था तब तक पावर हाउस पूरी तरह से आग की लपेट में आ चुका था । डेनियल ने अपने झोले से टॉर्च निकालकर जला ली । वैसे डायनिंग हाल में लगी आग भी वहां का अंधेरा दूर करने में काफी हद तक सहायक सिद्ध हो रही थी ।
फिर नोटों से भरा झोला उन्होंने वहीं कैशियर के पिंजरे के करीब एक पर्दे की ओट में टांग दिया और आगे उस तरफ बढे जिधर पहली मंजिल का गुप्त दरवाजा था । हाहाकार के उस माहौल में विमल को दरवाजा खुला मिलने की पूरी उम्मीद थी ।
“ये तो बंद है ।” - वे अभी दूर ही थे तो विमल बोल पड़ा ।
“अब ?” - वागले बोला ।
“तोड़ना पड़ेगा । एक ही हैंड ग्रेनेड दरवाजे को चौखट समेत उखाड़ फेंकेगा । कोई समस्या नहीं ।”
लेकिन हैंड ग्रेनेड के इस्तेमाल की नौबत न आई ।
तभी दरवाजा उनके सामने निशब्द खुला और उसके पीछे से एक आदमी दौड़ता हुआ बाहर निकला ।
नीम-अंधेरे में भी विमल ने उसकी सूरत साफ पहचानी । उसने वागले का कंधा दबाया ।
वागले ने सहमति में सिर हिला कर अनुमोदन किया कि उसने भी उस शख्स को साफ पहचान लिया था ।
***
आतंकित ढोलकिया अपने स्थान से धीरे-धीरे सरकता आगे बढ आया था लेकिन किसी की तवज्जो उसकी तरफ नहीं थी ।
जिस वक्त अंजुम खान हथियारों वाली अलमारी खोल रहा था, उस वक्त ढोलकिया उससे मुश्किल से पांच फुट दूर था । अलमारी खुलते ही वह आगे को झपटा उसने अंजुम खान को एक ओर धक्का दिया और अलमारी में से एक ऑटोमैटिक रिवॉल्वर उठा ली । उसने अलमारी की तरफ पीठ की और रिवॉल्वर को दोनों हाथों में थामकर अपने सामने अर्धवृत्ताकार में लहराता हुए विक्षिप्तों की तरह चिल्लाया - “खबरदार ।”
किसी ने भी उसे गंभीरता से न लिया ।
खासतौर से अंजुम खान ने ।
“साले !” - वह दांत पीसता हुआ उसकी तरफ बढा - “शामत आई है तेरी !”
ढोलकिया ने गोली चला दी जो कि अंजुम खान की छाती में लगी । वो कटे वृक्ष की तरह धड़ाम से फर्श पर गिरा । फर्श पर गिरते ही उसकी इहलीला समाप्त हो गई ।
हर किसी को जैसे सांप सूंघ गया ।
फिर सिक्योरिटी स्टाफ के दोनों आदमियों ने इरफान की बांहें छोड़ दीं और वे ढोलकिया की ओर झपटे ।
ढोलकिया ने उन्हें भी शूट कर दिया ।
अपनी बांहों पर से पकड़ छूटते ही इरफान की कमजोर पड़ चुकी टांगें मुड़ीं और बेहोशी की ओर अग्रसर होता हुआ उसका शरीर धराशायी हो गया ।
इसी से वो गोली का शिकार होने से बच गया ।
ढोलकिया ने रिवॉल्वर का रुख बादशाह की ओर किया ।
आतंक और अविश्वास-भरे नेत्रों से बादशाह ने ढोलकिया को देखा ।
कैसे एक मच्छर, एक खटमल, इतना कहर ढाने में कामयाब हो गया था कि अपने आपको सर्वशक्तिमान समझने वाला बादशाह भी उसके सामने बेबस खड़ा था !
“गोली न चलाना ।” - उसने खोखली धमकी दी ।
उस धमकी ने ही जैसे ढोलकिया को गोली चलाने के लिए प्रेरित किया । उसने तत्काल फायर किया ।
तभी बिजली गुल हो गई ।
ढोलकिया को बादशाह के धड़ाम से फर्श पर गिरने की आवाज आई ।
उसने जोर से अट्टहास किया ।
सबको मार गिराया था उसने ।
अब वो आजाद था ।
इसी खुशी में उसने बादशाह की दिशा में एक फायर और झोंकने की कोशिश की तो उसने रिवॉल्वर को खाली पाया । उसने रिवॉल्वर हवा में उछाल दी और अंधेरे में टटोलकर अलमारी में से नई रिवॉल्वर निकाल ली । फिर वह सीढियों की तरफ बढा ।
सीढियों के दहाने पर पहुंचकर उसने दरवाजा बंद पाया । लेकिन उसे दीवार पर दरवाजे के करीब लगे उस स्विच की खबर थी जिसको दबाने से वो दरवाजा खुलता था । अंजुम खान इकबाल सिंह के रूबरू पेश करने के लिए इसे जब वहां लाया था तो दरवाजा बंद करने के लिए उसने उसे वो स्विवच दबाते देखा था ।
अंधेरे में दीवार टटोलकर उसने वो स्विच तलाश किया और उसे दबाया ।
कुछ भी न हुआ ।
विक्षिप्तों की तरह उसने स्विच को कई बार दबाया ।
दरवाजा टस से मस न हुआ ।
वह आतंकित हो उठा ।
क्या दरवाजा खोलने के लिए कोई और स्विच था ?
किसी और स्विच की तलाश में वह दीवार टटोलने लगा ।
उसके हाथ कोई दूसरा स्विच न लगा ।
फिर एकाएक वह ठिठका ।
आतंक ने उसका दिमाग ठस्स कर दिया था ।
बिजली तो गुल हो चुकी थी । स्विच दबाने से दरवाजा भला कैसे खुलता !
इस बार अपेक्षाकृत सब्र के साथ वह फिर दीवार टटोलने लगा । वहां कोई लीवर या जंजीर या वैसा ही कोई और उपकरण होना लाजमी था जिससे कि बिजली चली जाने पर दरवाजा खोला जा सकता था ।
उसका हाथ एक चक्के पर पड़ा ।
उसने चक्के को एक ओर घुमाया ।
चक्का अपने स्थान से हिला भी नहीं ।
उसने चक्के को दूसरी ओर घुमाया ।
तत्काल चक्का फिरने लगा और उसके साथ ही दरवाजा भी अपने स्थान से सरकने लगा ।
दरवाजा पूरा खुल गया तो उसने बाहर छलांग लगा दी ।
रिवॉल्वर थामे वह आगे को लपका ही था कि ठिठककर खड़ा हो गया ।
सामने चट्टान की तरह तीन साए खड़े थे ।
“ढोलकिया !” - विमल हौले से बोला ।
ढोलकिया ने विमल और वागले को साफ पहचाना, अलबत्ता तीसरा आदमी उसके लिए अजनबी था ।
“मैंने कुछ नहीं किया ।” - एकाएक वह विक्षिप्तों की तरह चिल्लाया - “मैंने कुछ नहीं किया ।”
फिर उसने रिवॉल्वर का रुख उनकी तरफ किया और अंधाधुंध गोलिया चलाने लगा ।
वागले की मशीनगन ने उसकी तरफ गोलियां की एक ही बौछार की ।
ढोलकिया के जिस्म में झरोखे ही झरोखे बन गए । बौखलाहट में उसके द्वारा चलाई गई एक भी गोली निशाने पर नहीं लगी थी, सब इधर-उधर से गुजर गई थीं । उसकी लाश फर्श पर लोट गई जिसे लांघकर तीनों ने आगे-पीछे सीढियों में कदम रखा ।
मशीनगन चलने की आवाज बादशाह ने साफ सुनी । कैसीनो की पहली मंजिल साउंडप्रूफ थी लेकिन नीचे का दरवाजा खुला होने की वजह से नीचे की आवाजें ऊपर पहुंच रही थीं । आवाज से उसने साफ महसूस किया था कि गोलियां दरवाजे के करीब ही कहीं से चली थीं । खुद उसके किसी आदमी के पास मशीनगन नहीं थी - मशीनगनें और आटोमैटिक रायफलें तो अभी उस अलमारी में से निकाली जानी थीं जिस पर वो हरामजादा ढोलकिया एक हड़काए कुत्ते की तरह पहले ही झपट पड़ा था और उसने उसके भाई जैसे अजीज अंजुम खान को मार गिराया था । खुद उसने धड़ाम से फर्श पर गिरने की समझदारी न दिखाई होती तो उस घड़ी वो भी जिंदा न होता । मशीनगन की आवाज ही ये साबित करने के लिए काफी थी कि सोहल और उसके साथी आन पहुंचे थे ।
तभी सीढियों पर से धम्म-धम्म करते कदमों की आवाजें आने लगीं । कई जोड़ी पांव सीढियों पर पड़ रहे थे । कम-से-कम चार तो वो जरूर होंगे । ढोलकिया ने कहा था कि वो पांच थे । एक के पकड़ाई में आ जाने पर भी चार बाकी बचते थे । वो अकेला बार हथियारबंद आदमियों का मुकाबला नहीं कर सकता था । मौजूदा हालात में उसकी खैरियत कहीं छुप जाने में ही थी ।
कहां ?
तभी पहला साया स्टडी के दहाने पर प्रकट हुआ ।
बादशाह तत्काल निशब्द स्टडी में लगी विशाल टेबल के नीचे जा दुबका ।
कुछ और कदम स्टडी के फर्श पर पड़े ।
फिर एक शक्तिशाली टॉर्च की रोशनी चारों तरफ फिरने लगी ।
मेज के नीचे बादशाह सांस रोके खामोश बैठा रहा ।
“अरे !” - वागले के मुंह से निकला - “ये तो इरफान है ।”
तीनों झपटकर इरफान के पास पहुंचे ।
विमल ने उसकी नब्ज टटोली, दिल पर हाथ रखा ।
“जिंदा है ।” - वह बोला ।
वागले ने कई बार उसका नाम लेकर पुकारा और उसके रक्तरंजित गाल थपथपाए ।
इरफान के मुंह से कराह निकली ।
“मैं इसे देखता हूं ।” - वागले बोला - “तुम बादशाह को देखो ।”
विमल और डेनियल पहली मंजिल पर सब जगह घूम गए ।
बादशाह उन्हें न मिला ।
लेकिन तिजोरी मिल गई ।
तिजोरी वाल सेफ थी और स्टडी की एक विशाल आयल पेंटिंग के पीछे छुपी हुई थी ।
“खोल लेगा ?” - विमल ने पूछा ।
डेनियल ने बड़े यकीन के साथ सहमति में सिर हिलाया ।
“शुरू हो जा ।”
तक तक वागले इरफान को अपने पैरों पर खड़ा कर चुका था । उसके कंधे का सहारा लिए इरफान यूं खड़ा था जैसे सोया पड़ा हो ।
“कैसा है ?” - विमल ने पूछा ।
“ठीक है ।” - वागले बोला - “धुनाई बहुत हुई मालूम होती है लेकिन कोई हड्डी नहीं टूटी । कोई गहरा जख्म नहीं आया ।”
“शुक्र है ।”
“ये खुद चलने की हालत में नहीं है । इसे बोट तक पहुंचाना होगा ।”
“पहुंचाते हैं । चलो ।”
“मैं” - एकाएक डेनियल बोला - “वहां अकेला ?”
“क्या वांदा है ?” - वागले बोला ।
“पांच मिनट की तो बात है ।” - विमल बोला - “बस, गए और आए ।”
“उतने में यहां बादशाह के आदमी आ गए तो क्या मैं अकेला उनका मुकाबला कर सकूंगा ?”
“कोई नहीं आने का । सब भाग गए मालूम होते हैं ।”
“फिर भी...”
“डेनियल, पांच मिनट का ये खतरा उठाना जरूरी है ।”
“अगर आग ही जोर पकड़ गई तो ?”
“इस इमारत में आग जोर नहीं पकड़ने वाली ।”
“मैंने कहा है अगर...”
“तो बेशक भाग खड़े होना ।”
“भट्टी ने” - विमल बोला - “तेरा हवाला हमें एक जांबाज शख्स के तौर पर दिया था । डेनियल, जो जुबान तू इस वक्त बोल रहा है, वो किसी जांबाज आदमी की जुबान तो नहीं !”
डेनियल ने बेचैनी से पहलू बदला और अपने होंटों पर जुबान फेरी ।
“ऊपर आने का एक ही रास्ता है ।” - वागले बोला - “कोई अजनबी सीढियों में कदम भी डाले तो फायरिंग शुरू कर देना ।”
“मैं तिजोरी की तरफ तवज्जो दूंगा या फायरिंग...”
“हुज्जत नहीं कर, डेनियल ।” - विमल सख्ती से बोला - “पांच मिनट तूने यहां रुकना है । जरूर रुकना है । जरूर-जरूर रुकना है ।”
डेनियल फिर न बोला ।
“चलो ।” - विमल बोला ।
इरफान को अपने बीच सभाले वे नीचे पहुंचे ।
कैशियर के पिंजरे के करीब से गुजरते समय विमल ने नोटों से भरा कैनवस का बैग भी अपने कब्जे में कर लिया ।
बादशाह मेज की ओट से बाहर निकला और छाती के बल रेंगता हुआ फर्श पर आगे बढा ।
डेनियल के नाम से पुकारे जाने वाले शख्स की उसकी तरफ पीठ थी । उसने टॉर्च को एक करीब की टेबल पर इस प्रकार टिका लिया हुआ था कि उसकी रोशनी सीधे वाल सेफ पर पड़ रही थी जिसे अत्याधुनिक औजारों की सहायता से वह बड़ी दक्षता और तत्परता से खोलने की कोशिश कर रहा था । किसी के वहां आगमन का जो अंदेशा उसने कुछ क्षण पहले अपने साथियों के सामने जाहिर किया था, उससे अब वह कतई बेखबर मालूम होता था ।
अंजुम खान और उसके दोनों आदमी हथियारबंद थे और उनमें से किसी के भी करीब पहुंच जाने से उसका मतलब हल हो सकता था ।
सेफ पर से प्रतिबिम्बित होती टॉर्च की रोशनी की वजह से वहां घुप्प अंधेरा नहीं था । लेकिन वो नीम-अंधेरा उसके फायदे की जगह उसका नुकसान कर सकता था, डेनियल को अपने पीठ पीछे उसकी मौजूदगी की खबर लग सकती थी और वह बड़े इत्मीनान से उसे शूट कर सकता था ।
उसका दायां हाथ एक गार्ड के शरीर से टकराया जिसकी वर्दी की बैल्ट से उसने उसकी रिवॉल्वर खींच ली ।
उसके पास पांच मिनट का वक्त था जिसमें से शायद दो मिनट गुजर भी चुके थे । अब अगर वो बाकी के मुख्तसर से वक्फे में अपनी जान और माल की हिफाजत का कोई जुगाड़ न कर सका तो वो मौका उसे दोबारा हासिल होने वाला नहीं था ।
वह उछलकर खड़ा हुआ और उसने डेनियल पर अंधाधुंध गोलियां चलानी आरंभ कर दीं ।
डेनियल के मुंह से एक घुटी हुई चीख निकली और वह फर्श पर ढेर हो गया ।
बादशाह लपककर वाल सेफ के पास पहुंचा । उसने पांव की ठोकर से डेनियल के मृत शरीर को परे धकेला और सेफ का मुआयना किया । यह देखकर उसका दिल धक्क से रह गया कि सेफ का दरवाजा खुला भी पड़ा था । खासतौर से उसके लिए फ्रांस से बनकर आई उस सेफ को उस हरामजादे ने दो मिनट में खोल लिया था ।
वह दौड़कर बैडरूम में गया और वहां से दो सूटकेस उठा लाया । फिर आनन-फानन उसने सेफ का सारा माल - करेंसी, गोल्ड बिस्कुट, हीरे - दोनों सूटकेसों में हस्तांतरित किए जो कि ठसाठस भर गए । फिर वह लपककर अंजुम खान की लाश के करीब पहुंचा और उसकी भरी हुई रिवॉल्वर उसने अपने काबू में कर ली । वह जानता था कि अगर वह रिवॉल्वर इस्तेमाल करना चाहता था तो दो सूटकेस नहीं संभाल सकता था लेकिन उसका लालच उसे एक सूटकेस पीछे नहीं छोड़ने दे रहा था । उसने रिवॉल्वर को अपने कोट की दाईं जेब के हवाले किया और दोनों सूटकेस संभाल लिए ।
फिर वह सीढियों की ओर लपका ।
वह हाल के दरवाजे के करीब पहुंचा तो उसे बाहर से करीब आती दौड़ते कदमों की आहट सुनाई दी । तत्काल वह एक पर्दे की ओट में हो गया ।
मशीनगनें संभाले दो आदमी भीतर दाखिल हुए और दौड़ते हुए सीढियों की ओर बढ चले ।
वह बाल-बाल बचा था ।
विमल भौचक्का-सा कभी मुंह बाए खुली पड़ी खाली सेफ को तो कभी सेफ के करीब फर्श पर मरे पड़े डेनियल को देखने लगा ।
वही हाल वागले का था ।
“दाता !” - विमल के मुंह से निकला ।
“ये तो चोट हो गई ।” - वागले बोला ।
“लगता है बादशाह यहीं कहीं छुपा हुआ था ।” - विमल बोला - “हमारे यहां से जाते ही वो अपनी छुपने की जगह से निकला, उसने डेनियल को शूट किया और माल ले के भाग गया ।”
“बादशाह ही क्यों ?”
“और कौन होगा ? और तो हर किसी की यहां से कूच कर जाने की पड़ी हुई है । फिर इतनी जल्दी यह सेफ, सेफ के मालिक के अलावा और कौन खोल सकता है ?”
वागले का सिर सहमति में हिला ।
“अब किया क्या जाए ?” - फिर वह बोला ।
“उसे तलाश किया जाए और क्या किया जाए !” - विमल बोला - “उसे पकड़ के काबू में करना होगा । वो हमारे से आगे-आगे ही यहां से गया होगा । वो अभी टापू पर ही होगा । चलो ।”
दोनों नीचे को दोड़ चले ।
“माल भी हाथ से निकल गया और बादशाह भी ।” - रास्ते में विमल बोला - “दोहरी किरकिरी का सामान हो गया ।”
“अभी से ऐसा क्यों कहते हो ?” - वागले बोला - “अभी दोनों ही चीजें वापस पकड़ाई में आ सकती हैं ।”
वे बाहर पहुंचे ।
मेन पायर पर अभी भी पहले जैसी ही आपाधापी का आलम था ।
“यहां तो बादशाह क्या होगा ?” - वागले बोला ।
“उम्मीद नहीं ।” - विमल बोला ।
“मुमकिन है वो जंगल में कहीं जा छुपा हो ?”
“क्या फायदा ? अब तो जंगल भी आग की पकड़ में आया पड़ा है, जंगल में तो वो जिंदा ही तंदूरी चिकन बन जाएगा ।”
“तो ?”
“बोट में बैठते हैं और टापू के पायर वाले एरिया की निगाहबीनी करते हैं, कोई अकेला आदमी यहां से कूच करता हमें जरूर दिखाई दे जाएगा ।”
“ठीक है ।”
दोनों बोट हाउस की ओर भागे ।
***
धू-धू करती स्टाफ क्वार्टरों वाली इमारत के आगे से सिर नीचा किए दौड़ता हुआ बादशाह बोट हाउस की दिशा में बढा ।
बोट हाउस से थोड़ा पहले वह राहदारी छोड़कर पेड़ों के झुरमुट में दाखिल हो गया ।
तब पहली बार उसने स्वयं को सुरक्षित महसूस किया और रुककर अपनी उखड़ती सांसों पर काबू पाने का प्रयत्न किया । मुंह पूरा खोलकर वह कुछ क्षण लंबी-लंबी सांसें लेता रहा और फिर दौड़ने की जगह पैदल चलता हुआ आगे बढा ।
आगे एक विशाल बड़ का पेड़ था जिसके नीचे पहुंचकर वह ठिठका । वहां उसने दोनों सूटकेस जमीन पर रख दिए और दोनों हाथों से पेड़ के नीचे फैला झाड-झंखाड़ सरकाने लगा । अपने उस उपक्रम में वह सफल हुआ तो नीचे से एक पत्थर की शिला निकल आई । बड़ी मेहनत से उसने इस शिला को अपने स्थान से सरकाया तो वहां से नीचे धरती के गर्भ में उतरती संकरी-सी सीढियां प्रकट हुईं । बादशाह ने दोनों सूटकेस वापिस संभाल लिए और सीढियां उतरने लगा ।
नीचे सीढियां एक गुफा में जाकर खत्म हुईं ।
गुफा के आधे भाग तक समुद्र का पानी पहुंचा हुआ था और उसमें एक नई-नकोर मोटरबोट खड़ी थी । आगे गुफा का दहाना टापू की तरफ से नीचे को लटक आई झाडि़यों से ढका हुआ था ।
बादशाह दोनों सूटकेसों समेट मोटरबोट में सवार हो गया । डैक के गुफा वाली साइड के किनारे पहुंचकर उसने वो रस्सी खोली जो मोटरबोट को गुफा की दीवार से बांधे थी । फिर दौलत से भरे सूटकेस उसने नीचे स्टोररूम में पहुंचाए और स्वयं मोटरबोट के ड्राइविंग केबिन में पहुंच गया ।
“अल्लाह !” - तब पहली बार एक चैन की सांस के साथ उसके मुंह से निकला ।
मोटरबोट का वो खुफिया इंतजाम टापू पर बसने से पहले वहां कंस्ट्रक्शन के दौरान ही उसने करा लिया था और उसके बारे में उसके और अंजुम खान के अतिरिक्त और कोई नहीं जानता था । वस्तुत: वो अंजुम खान का ही आइडिया था जो कि जेम्स बांड स्टाइल एस्पिेयानेज फिल्मों और नावलों का बहुत रसिया था । बादशाह ने तो कभी सपने में नहीं सोचा था कि उस खुफिया गुफा में खड़ी उस मोटरबोट को इस्तेमाल करने का कभी मौका आ सकता था । उसने तो कभी यह ही नहीं सोचा था कि उसकी बादशाहत यूं तबाह हो सकती थी और उसे भगोड़ों की तरह से वहां से भागकर अपनी जान बचानी पड़ सकती थी ।
“इंशाअल्ला !” - वह होंठों में बुदबुदाया; फिर उसने इंजन चालू किया और मोटरबोट को आगे बढाया ।
***
“खैरियत है ?” - विमल ने पूछा ।
“खैरियत तो है, बाप” - मुबारक अली बोला - “लेकिन अभी इदर मेरे कू एक ऐसा नजारा दिखाई दिया कि मैं सोचा कि कोई, वो क्या कहते हैं अंग्रेजी में, भूत कुछ किया ।”
वागले और विमल उसी क्षण मोटरबोट में सवार हुए थे ।
“क्या देखा ?”
“बाप, वो उदर दायां बाजू है न जजीरे का ! उदर से अभी एक मोटरबोट यूं बाहर निकली जैसे जजीरे का पेट फाड़कर निकली हो ।”
“अंधेरे में कोई वहम तो नहीं हुआ, मुबारक अली ?”
“बिल्कुल नेईं, बाप । अपुन साफ देखेला था । वो मोटरबोट ही थी और जैसे जादू के जोर से जजीरे के पेट में से निकली थी ।”
“सवार कौन था उस पर ?”
“मालूम नेईं । उसकी कोई बत्ती तो जल नेईं रही थी ।”
विमल और वागले की निगाहें मिलीं ।
“वही होगा ।” - वागले तनिक उत्तेजित स्वर में बोला ।
“मेरा भी यही ख्याल है ।” - विमल बोला - “और कौन चोरों की तरह से यहां से कूच करेगा ?”
“कौन होएंगा, बाप ?” - मुबारक अली बोला !
“मुबारक अली, उस बोट में वतन का, इंसानियत का, एक दुश्मन था जिसे हमने हर हाल में पकड़ना है । तूने अब साबित करके दिखाना है कि तू ही, सिर्फ तू ही, उस काम के काबिल है जो कि तुझे सौंपा गया है । मुबारक अली, अगर वो आदमी काबू में न आया तो समझ लेना कि तेरे इस दोस्त की नाक मोरी में रगड़ी जाएगी, उसके मान-सम्मान, इज्जत-आबरू का ऐसा जनाजा निकलेगा कि वो जिंदगी में किसी को मुंह दिखाने का काबिल नहीं रहेगा ।”
मुबारक अली ने बातों में एक क्षण भी वक्त जाया नहीं किया, उसने केवल सहमति में सिर हिलाया और मोटरबोट काले अंधियारे समुद्र की छाती पर दौड़ा दी ।
“एक बात का ख्याल रखना ।” - विमल बोला - “वो शख्स हिंदोस्तानी समुद्री किनारों का रुख नहीं करने वाला ।”
“वो किदर का भी रुख करे, बाप” - मुबारक अली पूरे विश्वास के साथ बोला - “कोई वांदा नहीं । अपुन हवा सूंघ के बता सकता है कि आगे बोट किदर है । अपुन उसको भागते देखा । वैसे भी अपुन का अंदाजा है कि वो किदर जाना मांगता था ।”
“गुड !”
“बाप, तू फिक्र नक्को कर । तेरी इज्जत हमेरी इज्जत । वो जरूर पकड़ में आएंगा ।”
“वैरी गुड !”
मुबारक अली ने शैतान की तरह मोटरबोट दौड़ाई । उसकी रफ्तार ऐसी थी कि उसका अग्रभाग समुद्र को छूने की जगह पैंतालीस अंश के कोण पर यूं आसमान की तरफ उठ गया था जैसे वो समुद्र की छाती को छोड़कर आसमान में उड़ जाना चाहती हो । बोट के स्टियरिंग पर उसका कंट्रोल करिश्मासाज था । उसके होंठ भिंचे हुए थे, कान खड़े और पलकें जैसे झपकना भूल गई थीं ।
“आगे कोई है ।” - एकाएक वह बोला ।
“वही होगा ।” - विमल बोला ।
“वो देखो रोशनी ! जरूर बोट की हैडलाइट की है ।”
“तू फ्लड लाइट जला और उसे सायरन का इशारा दे । वो समझेगा पीछे कोस्ट गार्ड लगे हैं ।”
“किनारे से इतनी दूर कोस्ट गार्ड !” - वागले बोला ।
“नहीं भी समझेगा तो हमारा क्या जाएगा ! और नहीं तो उसे ये तो खबर लगेगी कि उसे रोकने की कोशिश की जा रही है ।”
मुबारक अली ने फ्लड लाइट जलाई और रह-रहकर सायरन बजाया ।
अगली मोटरबोट की रफ्तार एकाएक तेज हो गई ।
“ये तो” - विमल बड़बड़ाया - “उलटा असर हुआ ।”
“कोई वांदा नहीं ।” - मुबारक अली बोला - “अपुन अब्बी उसके बाजू में पहुंचता है ।”
और दो मिनट बाद समुद्र की छाती पर दोनों मोटरबोटें अगल-बगल दौड़ रही थीं ।
“बादशाह !” - विमल गला फाड़कर चिल्लाया - “रुक जा ।”
लेकिन पता नहीं दो बोटों के इंजनों के गर्जन की भेदकर आवाज बादशाह के कानों तक पहुंची भी या नहीं ।
“ये ऐसे नहीं रुकने वाला ।” - विमल बोला - “मशीनगन संभाल ले ।”
वागले ने सहमति में सिर हिलाया ।
दोनों ने गोलियों की बौछार बगल की बोट पर की ।
कोई कारआमद नतीजा सामने न आया ।
वागले ने एक हथगोला उस बोट पर फेंका ।
हथगोला डैक पर जाकर फूटा । ड्राइविंग केबिन की खिड़कियों के शीशे चटके । इस बार बोट की रफ्तार कम हुई ।
वागले ने एक हथगोला और फेंका ।
ड्राइविंग केबिन ध्वस्त हो गया । वोट की रफ्तार घटती-घटती शून्य हो गई । उन्होंने फ्लड लाइट में कांखते-कराहतें बादशाह को केबिन से बाहर निकलते देखा ।
विमल ने उसके सिर से ऊपर मशीनगन की गोलियों की एक बाढ फेंकी ।
बादशाह ने दोनों हाथ हवा में उठा दिए ।
“फतह !” - विमल ने हर्षनाद किया ।