लव स्टोरी ऑफ संस्कार
साल 2003 - अजमेर
बारह महीने पंख लगाकर उड़ गये और श्रीति प्रोबेशन पीरियड को पूरा कर इसी कम्पनी की स्थायी कर्मचारी बन गयी। अब उसने राहत महसूस की थी, साथ ही साथ वक्त की दवा भी अपना असर दिखा रही थी। श्रीति पापा के ग़म को पूरी तरह से भुला तो न सकी पर ख़ुद को अधिक से अधिक व्यस्त रखकर ग़म से दूरी बनाने में सफल रही। उसके कुछ दोस्त भी बन गये थे पर वह एक सीमा तक ही थे। वह अब किसी से ज़्यादा व्यक्तिगत नहीं होती थी। संस्कार को एक स्थानीय कम्पनी में अकाउंटेंट की नौकरी मिल गयी। श्रीति की दादी भूतल पर चाचा के साथ रहती थीं। शकुंतला को उनके घरेलू कामों का प्रबंध अकेले करना पड़ता था।
श्रीति के चाचा उसके परिवार को अब पहले की तरह स्नेह नहीं देते थे। श्रीति के दादा की मृत्यु के बाद उसके चाचा और उनका व्यवहार मधुर नहीं रहा क्योंकि चाचा के मुताबि़क घर का यह हिस्सा इन्द्रसेन को नहीं उनको मिलना चाहिए था। चाचा का मानना था कि जब उनके पिता उनके साथ रहते हैं और वे ही उनकी देखभाल करते हैं जबकि अपनी नौकरी के लिए इन्द्रसेन बड़े शहर में चले गये थे और पिता की सेवा में उपलब्ध नहीं रहते थे इसलिए पिता की जायदाद में उनका ह़क है... पर इन्द्रसेन के पिता का मानना था कि दोनों पुत्रों का समान अधिकार हैं क्योंकि इन्द्रसेन दूर रहकर भी उनका ख़याल रखता था। श्रीति के चाचा में लालच व दिखावे की भावनाएँ अधिक थीं और उनको बस अपने फ़ायदे से मतलब था।
इस दौरान दो बार श्रीति का सामना राजू से हुआ। राजू ने श्रीति को देख हाथ हिलाकर इशारा भी किया और बात करने की कोशिश भी की, पर श्रीति ने उसे पूरी तरह ऐसे ऩजरअंदा़ज किया जैसे राह चलता व्यस्त आदमी भिखारी को करता है।
श्रीति नौकरी में अच्छी तरह सैटल हो गयी थी। उसकी आय भी उसकी आशा से अधिक थी। जैसा अक्सर होता है जब एक आम आदमी को आशा से अधिक मिल जाता है तो उसकी चाहतें बढ़ जाती हैं या नयी चाहतें बन जाती हैं। श्रीति को अब दिल के साथी की कमी फिर महसूस होने लगी। पापा के बाद और घर की ज़िम्मेदारी आने के कारण श्रीति इश्क़-प्यार-मोहब्बत को तो भूल ही चुकी थी। अब श्रीति ने सोचा कि उसे अपने सच्चे यार-प्यार की तलाश को फिर से आ़गा़ज देना चाहिए, पर इस बार वह पहले जैसी ग़लती नहीं करेगी। अब तक वह जान चुकी थी कि एक लड़की को शारीरिक सुख देने वाले तो बहुत मिल जाते हैं पर उसकी रूह को चाहने वाला मिलना बहुत मुश्किल होता है। श्रीति को लगने लगा था कि शारीरिक प्रेम ही रह गया है प्रेम के नाम पर, रूहानी प्रेम तो विचित्र-सा हो गया है और यदि है तो परी कथाओं या बॉलीवुड की घिसी-पिटी फ़ार्मूला फ़िल्मों में। ऐसा कोई मुश्किल से ही मिलता है अब, जिसके प्रेम के स्पर्श से लगे की आत्मा प्रेम में भीगी है और मन तृप्त है।
जब कभी मम्मी पूछतीं कि शादी के क्या प्लान हैं तो उसने यह कहकर टाल दिया कि अभी उसे थोड़ा समय और चाहिए।
उसी दौरान संस्कार ने घर पर अपनी शादी के इरादों की घोषणा कर दी। उसने घर पर बताया कि वह एक लड़की से प्यार करता है और उसी से शादी करेगा। श्रीति और मम्मी को ज़्यादा आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि संस्कार की हरकतों से उनको अंदा़जा हो गया था कि उसका कहीं तो चक्कर चल रहा है। उन्होंने कुछ विरोध नहीं किया क्योंकि उन्हें पता था कि इसका कुछ फ़ायदा नहीं होगा और वह मनमानी करेगा।
संस्कार ने ज़िद करके मम्मी को मना लिया कि वह ख़ुद ही लड़की के यहाँ रिश्ता लेकर जाएँ। लड़की का नाम स्निग्धा त्यागी था और वह रतलाम की रहने वाली थी। कुछ समय पूर्व स्निग्धा अजमेर युनिवर्सिटी से एम.ए. कर रही थी। वे दोनों कुछ माह पूर्व अजमेर में ही मिले थे। दोनों के ब्राह्मण परिवार से होने के कारण किसी भी परिवार को कोई जाति-धर्म की परेशानी नहीं थी। संस्कार अपने पाँव पर खड़ा था और सात ह़जार रुपये महीना कमा रहा था। शकुन्तला ने स्निग्धा के अजमेर के रिश्तेदारों से मिलकर बात की। बिना ना-नुकुर के दोनों परिवारों ने रिश्ते पर औपचारिक मोहर लगा दी। स्निग्धा के परिवार वाले अपने हिसाब से मुहूर्त निकाल रहे थे, दूसरी तऱफ शकुंतला अभी शादी करवाने के मूड में नहीं थी। उसे लगता था सगाई और शादी के बीच कम से कम चार-छह महीने का फासला होना चाहिए... पर संस्कार और लड़की वालों के आगे उन्हें झुकना पड़ा। आा़fखरकार तीन महीने बाद की शादी की तारी़ख निकाली गयी।
वक्त के साथ-साथ श्रीति और संस्कार के मन में दूरी बढ़ने लगी थी। संस्कार सात ह़जार रुपये कमाता था और छोटी बहन इंसेंटिव मिलाकर लगभग दुगुना कमा लेती थी, यह बात संस्कार के अहम् को चुभती थी। श्रीति चाहती थी कि संस्कार मम्मी का ध्यान रखा करे किन्तु संस्कार अपने में ही मस्त रहता था, उसे पारिवारिक ज़िम्मेदारियों में ख़ास रुचि नहीं थी।
भाई की शादी के एक महीने पहले श्रीति अरविंदर के पास सात दिनों की छुट्टी की परमिशन लेने गयी। अरविंदर ने बिना सवाल उसकी छुट्टी मंज़ूर कर दी। अरविंदर ने श्रीति को शादी के कार्यों में मदद का प्रस्ताव दिया। श्रीति ने धन्यवाद देकर कहा कि अगर ज़रूरत हुई तो वह ज़रूर उनकी मदद लेगी। अरविंदर ने कहा कि वे उसकी कार शादी में काम में ले सकते हैं इससे श्रीति को मदद मिल जाएगी और थोड़ा ख़र्चा भी बच जाएगा। श्रीति को बॉस के इन प्रस्तावों को सुन अच्छा लगा। अरविंदर ने फिर श्रीति से पूछा कि कहीं उसे पैसों की ज़रूरत तो नहीं। श्रीति उनकी इस तरह फ़िक्र करने से बहुत प्रभावित थी और सोचने लगी कि काश उसे अरविंदर जैसा ही कोई नेकदिल जीवनसाथी मिले।
शादी के एक दिन पहले सुबह ही अरविंदर शादी वाली धर्मशाला आ गया और कई कामों में घर के सदस्य की तरह मदद करने लगा। उसने कई व्यवस्थाओं को बिना कहे ख़ुद सँभाला और यहाँ तक कि कई काम वालों को पैसे भी दिये जो कि बाद में श्रीति को पता लगा। बिना आशा के इतनी मदद मिलने से श्रीति के मन में अरविंदर के लिए इ़ज़्जत बढ़ गयी। शादी बिना किसी परेशानी के सादे समारोह के साथ सम्पन्न हुई। श्रीति के परिवार में किसी को भी इस तरह के आयोजन का अनुभव नहीं था। अरविंदर की मदद काफी अहम् रही।
श्रीति ने शादी के बाद दो दिन अतिरिक्त छुट्टियाँ माँगी जो अरविदंर ने दे दी। मल्टीनेशनल फाइनेस कम्पनी में अपनी शादी के लिए भी छुट्टी मिलना एवरेस्ट पर फ़तह पाने जैसा लगता है। श्रीति समझ नहीं पा रही थी कि बॉस उस पर इतना मेहरबान क्यों हो रहे हैं... फिर उसे लगा कि शायद उनका स्वभाव ही मददगारी का है।
दो दिन बाद श्रीति ऑफिस में सभी के लिए मिठाई लेकर गयी। उस दिन अरविंदर लंच समय तक नहीं आये थे। श्रीति को आश्चर्य हुआ क्योंकि वे अक्सर जल्दी आ जाते थे और अगर देर हो जाए तो रिलेशनशिप मैनेजर को बता देते थे। आज रिलेशनशिप मैनेजर के पास भी कुछ सूचना नहीं थी।
अरविंदर लंच टाइम के बाद आये और बिना किसी से हाय-हैलो किये सीधे अपने केबिन में चले गये। सभी को लगा कि आज उनका मूड ख़राब है। बा़की स्टाफ तो अपने-अपने काम में लग गया पर श्रीति को लगा कि उसे जाकर पूछना चाहिए। श्रीति उनके केबिन में गयी जहाँ अरविंदर अपनी कुर्सी पर सिर टिकाये हुए बैठे थे।
‘‘सर! आप ठीक तो हैं?’’ श्रीति ने पूछा।
‘‘हम्म ठीक हूँ।’’ जवाबी आवा़ज धीमी और सुस्त थी।
‘‘सर कोई अन्जान भी बता सकता है कि कुछ तो टेन्शन है, क्या आप अपनी टेंशन को मुझसे शेयर करवा चाहेंगे, हो सकता है मैं आपकी कुछ मदद न कर पाऊँ, पर मुझे य़कीन है कि आप अपने दिल का बोझ मेरे साथ शेयर करेंगे तो बेहतर फील करेंगे।’’
‘‘सॉरी श्रीति इट्स माई पर्सनल मैटर, मैं नहीं चाहता कि मेरा बोझ किसी और के सिर पर रखूँ।’’
‘‘इट्स नॉट फेयर सर... आपने भी तो मेरे भाई की शादी में फ़ेमिली मेम्बर की तरह साथ दिया, आपके अपनेपन के कारण हमने भी कभी आपको मना नहीं किया। आप ही कहते हो कि हमारी ब्रांच एक फेमिली है; आपने ही कहा था कि हम लोग साथ काम करने वाले कम और दोस्त ज़्यादा हैं। एक दोस्त और फैमिली मेम्बर होने के नाते मैं आपको अपसेट नहीं देख सकती... सर ट्रस्ट मी, मुझे बताकर आप हलका फील करेंगे।’’
‘‘अभी ऑफिस टाइम है, काम के टाइम में पर्सनल बातें नहीं करना चाहता; आज बहुत काम बा़की है, अगर तुम्हें सच में वजह जाननी है तो हम शाम को बात करेंगे।’’
‘‘ओके सर।’’
श्रीति अपने वर्कस्टेशन लौट आयी पर चाहकर भी उसका ध्यान काम में नहीं था। अरविंदर की समस्या का अंदा़जा लगाने के लिए श्रीति की कल्पना के घोड़े बेलगाम दौड़ रहे थे। कुछ जानने की उत्सुकता अगर मन में घर कर लेती है तो फिर कहीं और मन नहीं बसता, खासकर जब मन किसी लड़की का हो। अरविंदर ने भाई की शादी में उसकी बहुत मदद की थी और यह अच्छा मौ़का था उसकी मदद का खाता बराबर करने का।
शाम को घर वापसी से पहले श्रीति अरविंदर के केबिन में गयी और उनसे फिर पूछा। पहले तो अरविंदर बताने में आनाकानी कर रहा था, पर श्रीति के ज़ोर देने पर बताया, ‘‘मैं तुम्हें बता तो रहा हूँ पर यह मेरा फ़ेमिली और पर्सनल मैटर है इसे किसी और के कानों तक नहीं पहुँचना चाहिए।’’
‘‘प्रोमिस सर यू केन ट्रस्ट मी।’’ श्रीति की आँखें वादा करते समय साथ थीं।
‘‘दो साल पहले मेरे पेरेंट्स ने अपने एक फेमिली फ्रेंण्ड की बेटी के साथ मेरी शादी कर दी, इट वाज अरेंज-मैरिज। मैंने भी घरवालों को मना नहीं किया क्योंकि उस वक्त मेरी लाइफ में कोई नहीं थी और मम्मी-पापा की ख़ुशी के लिए मान गया। शादी के बाद मुझे फील हुआ कि मेरी वाइफ सिमरत पागल, घमण्डी और ट़फ औरत है जो डेली मुझसे और मेरे पेरेन्ट्स से लड़ती रहती है। शक्की लोगों का कम्पीटिशन हो तो शायद वह टॉप पर हो। उसे शक है कि मेरा किसी के साथ अ़फेयर चल रहा है। घर के नौकरों और दूधवाले से भी बेवजह बहस करती है। घर का काम करने में तो उसे मौत आती है। घर का काफी काम मेरी माँ को इस उम्र में करना पड़ता है। वह नहीं चाहती कि मेरे पेरेन्ट्स साथ रहें इसलिए उनको मेण्टली टॉर्चर करती है। हमारी एक साल की बेटी है पर उसका भी सही ध्यान नहीं रखती। मैने कई बार डाईवोर्स का सोचा लेकिन उसने मुझे धमकी दी कि ऐसा सोचा भी तो हम लोगों को बरबाद कर देगी। मैं नहीं डरता पर पेरेन्ट्स और बच्ची को तकली़फ नहीं देना चाहता। आज सुबह हमारे बीच फिर तू-तू मैं-मैं हो गयी। अब उसे सिंगापुर घूमना है वो भी इसी महीने। उसकी कोई सहेली गयी थी सिंगापुर, अब इसे भी जाना है। मुझसा मिडिल-क्लास इतना ख़र्च नहीं उठा सकता और मैं अपने सेल्फ-रेसपेक्ट से समझौता कर ससुराल से कोई मदद नहीं लूँगा, इसी वजह से आज सुबह हमारी लड़ाई हुई और मूड ख़राब होने के कारण मैं लॉन्ग ड्राइव पर अकेले ही पुष्कर चला गया और तीन घण्टे घूमघाम कर ऑफिस आ गया।’’ अरविंदर ने सब्र के साथ अपना दु:ख प्रकट किया।
श्रीति कुछ क्षण नि:शब्द थी। वह बस यही कह पायी कि,
‘‘सर सब्र रखिए सब ठीक हो जाएगा।’’
‘‘मुझे पता था कि तुम मेरी कोई मदद नहीं कर पाओगी इसलिए मैं बताना नहीं चाहता था; मैंने ग़लत इंसान से शादी करने की ग़लती की उसकी सजा मुझे भुगतनी ही पड़ेगी।’’
‘‘सर! हर प्रोब्लम का कोई न कोई सोल्युशन जरूर होता है, बिना चाबी के आज तक कोई ताला नहीं बना।’’
‘‘मैंने उससे तला़क लेने के बारे में सोच लिया है; मम्मी तो रा़जी हैं क्योंकि वह ख़ुद उसके ज़ुल्मों की शिकार हैं, पर पापा को समझाना है अभी; पर मुझे मेरी बेटी की चिंता ज़्यादा है, दूसरी शादी के लिए अच्छी लड़की भी तो मिलना मुश्किल है जो मेरी बेटी को सगी माँ का प्यार दे सके... मैं नहीं चाहता मेरी बेटी सिमरत के साथ रहे।’’
‘‘दुनिया में बहुत-सी अच्छी लड़कियाँ भी हैं सर।’’
‘‘मुझे नहीं लगता; अगर मैं तुमसे पूछूँ कि क्या तुम मुझसे शादी करके मेरी बेटी को अपना सकती हो तो क्या होगा तुम्हारा जवाब?’’ अरविंदर ने सवाल फेंका।
इस तरह का सवाल सुनकर श्रीति अवाक् रह गयी। पहले तो उसे लगा कि वह सिर्फ़ बात समझाने के लिए उदाहरण दे रहा है, पर उसके चेहरे के हाव-भाव देखकर श्रीति को महसूस हो गया कि वह तो गम्भीर है।
‘‘देखा मैडम, आइ वाज राइट; मेरे हालात से वाक़िफ़ तुम जैसी समझदार लड़की के पास भी मेरे सवाल का जवाब नहीं है तो कोई अंजान लड़की मुझ जैसे तला़कशुदा और बेटी के बाप से कैसे शादी करेगी... प्लीज मेरी बातों का बुरा मत मानना, मैं बस तुम्हारी राय जानने की कोशिश कर रहा था।’’ अरविंदर ने हलका-सा मुस्कराते हुए कहा।
‘‘सर वो लड़की बहुत ही लक्की होगी जो आपके जैसा जीवनसाथी पाएगी, क्या कमी है आपमें!''
‘‘अच्छा तो मैडम मैं आपसे सीधे और सा़फ शब्दों में पूछता हूँ कि अगर मुझे तला़क मिल जाता है तो क्या आप मुझसे शादी करेंगी?’’ अरविंदर ने श्रीति की आँखों में आँखें डालते हुए पूछा।
श्रीति का चेहरा फ़क्क पड़ गया। उसके शरीर में सिरहन दौड़ गयी। क्या सच में वह उसे शादी का प्रस्ताव दे रहे थे? उसने सपनों में भी तला़कशुदा और एक पिता को पति के रूप में नहीं देखा था।
‘‘मुझे पता है यह एक बहुत मुश्किल पहेली है, तुम आराम से सोचकर बताना क्योंकि जवाब हम दोनों की ज़िन्दगी पर असर डालेगा। मैं तुमको पसन्द करता हूँ और अगर तुम मेरी जीवनसाथी हो तो मैं ख़ुद को लकी मानूँगा। अभी अँधेरा हो रहा है, तुम्हारी मम्मी इंत़जार कर रही होंगी, तुम्हें घर जाना चाहिए।’’ अरविंदर के शब्दों में फ़िक्र थी।
‘‘गुड नाइट सर!’’ कहकर श्रीति केबिन से घर के लिए निकल गयी।
रास्ते में श्रीति के मन में सवालों के बादल लहरा रहे थे। उसके विचार थे कि ‘लगभग हर मिडल क्लास लड़की को अरविंदर जैसे सफल समझदार जीवनसाथी की तलाश होती है... पर उसका पहले से शादीशुदा और अलग धर्म का होना मेरे परिवार के सामाजिक जीवन के लिए चुनौती हो सकता है। मैंने कभी उनको जीवनसाथी की कसौटी पर नहीं देखा, पर ऐसा प्रस्ताव भी एक चांस के जैसा है जो शायद दुबारा न मिले। अगर उसकी पहली शादी के दुर्भाग्य के साथ मेरा सौभाग्य जुड़ा हो तो क्यों न एक बार आ़जमाया जाए। मैं उसकी पत्नी को तो नहीं जानती पर वे तो एक अच्छे आदमी हैं और वो मुझसे झूठ क्यों बोलेंगे। कही अरविंदर ही तो मेरे खोजी स़फर की मांज़िल नहीं। फिर भी अनुभव कहता है कि इतना बड़ा फैसला लेने से पहले दो बार सोच और परख लेना चाहिए फिर देखते हैं कि क़िस्मत में क्या लिखा है। उनके तला़क में भी समय लगेगा, तब तक उनके बारे में और भी जानकारी हो जाएगी, फिर फैसला लेंगे शादी का।'
अगले दिन जब श्रीति ऑफिस गयी, उसके चेहरे पर नयी-सी चमक थी। अरसे बाद प्यार के मौसम निकले हों तो चेहरे पर रौऩक आना ला़जमी है। श्रीति ऑफिस जाते ही अरविंदर के केबिन में चली गयी। अरविंदर काम में व्यस्त था। श्रीति ने अरविंदर को मुस्कराहट के साथ गुड मॉर्निंग कहा और अरविंदर ने सिर्फ़ गुड मार्निंग कहकर जवाब दिया। श्रीति को महसूस हुआ कि उसे अपने वर्कस्टेशन पर जाना चाहिए और वह बिना कुछ कहे सहज भाव से चली गयी।
एक घण्टे के बाद अरविंदर ने श्रीति को अपने केबिन में बुलाया और सीधे ही मुद्दे पर आ गया, ‘‘क्या तुमने अपने दिल और दिमा़ग को मौ़का दिया मेरे बारे में सोचने के लिए?''
‘‘सर मुझे लगता है कि वह लड़की बहुत लकी होगी जिसका जीवनसाथी आप जैसा होगा... मेरे पास न कहने का कोई कारण नहीं है पर मेरी सोच मुझसे थोड़ा टाइम चाहती है; इतना बड़ा फैसला लेने से पहले मैं चाहती हूँ कि हम एक-दूसरे को समझ लें, इसके अलावा मैं अपनी मम्मी की भी इस मामले में राय लूँगी।’’
‘‘बिलकुल सही कहा; डाइवोर्स के प्रोसेस में भी टाइम लगता है, तब तक हम एक-दूसरे के साथ कुछ अच्छा समय बिता सकते हैं, इस तरह शायद हम दोनों एक-दूसरे को अच्छी तरह जान जाएँगे, बस एक वादा करो कि तुम मेरे बारे में किसी से भी किसी भी तरह की कोई बात नहीं करोगी, अपनी मम्मी से भी नहीं। अगर हमारे रिश्ते की बात कम्पनी में फैली तो हम दोनों की नौकरी पर ग्रहण लग सकता है, सही टाइम आने पर हम सबको बताएँगे। प्लीज अंडरस्टेंड, यह हमारे प्रोफेशनल कैरियर के लिए ज़रूरी है।’’ अरविंदर ने समझाइश की।
‘‘जी सर, जैसा आप कहें।’’
‘‘और जब हम अकेले हों तो तुम मुझे अर्वि कह सकती हो पर सबके सामने मैं तुम्हारा बॉस ही हूँ।’’
‘‘ठीक है अर्वि, हम शाम को बात करेंगे, अभी मेरी टेबल पर पेंडिंग लोन केस मेरे इंत़जार में बैठे उबासी ले रहे हैं।’’
शाम को अरविंदर ने श्रीति को केबिन में बुलाया और कहा,
‘‘मैं चाहता हूँ कल तुम अपना होने वाला घर देखो; झगड़े के बाद कल सिमरत अपने मायके चली गयी, मेरे पेरेण्ट्स भी जयपुर में हैं, मैं घर पर अकेला हूँ; मेरा घर ही ऐसी जगह है जहाँ हम आराम से बातें कर सकते हैं... कल सण्डे है क्या कल तुम अपने होने वाले घर पर चलना चाहोगी?’’
श्रीति ने मुस्कराकर अगले दिन के लिए सहमति दे दी।