समर्पण

यह पुस्तक मैं अपनी मां को समर्पित करता हूं। यह पुस्तक कई बार अलौकिक सत्ता के राज्य में प्रवेश कर जाती और मेरे लिए मेरी मां अलौकिक हैं! मैं जब छोटा था तो पढ़ने के लिए नहीं बैठता था, स्कूल से भाग आता था, स्कूल जाता तो मां की साड़ी का पल्लू पकड़ कर उन्हें भी कक्षा में बैठाए रहता! मेरी परवरिश ननिहाल में हुई है। लोग मेरी मां से कहते, ‘मीरा (मेरी मां का नाम) तुम्हारा बेटा कभी नहीं पढ़ेगा, यह गांठ बांध लो!’

मां रोती! एक दिन रोते-रोते वहां के काली मंदिर चली गई! उन्हें किसी ने कह दिया था कि काली मां के आशीर्वाद से कालीदास विद्वान बने थे! मां काली माता के गह्वर में रोती रही और कहा, ‘हे माता, यदि मेरा बेटा पढ़ने के लिए बैठ जाए तो मैं लगातार सवा महीने आपकी पिंडी को लीपती रहूंगी!’

फिर मेरी मां लगातार सवा महीने भूखी-प्यासी-नंगे पांव चलकर काली माता के मंदिर जाती और उनकी पिंडी को मिट्टी से लीपती! वर्षा हो या आंधी-तूफान, वह एक दिन भी माता का मंदिर जाना नहीं छोड़ती! सवा महीना पूरा होते ही चमत्कार हो गया! मैं पढ़ने के लिए बैठने लगा! मेरी उत्साहित मां, इसके आगे भी सवा महीने काली माता की पिंडी लिपती रही ताकि अब मैं ठीक से पढ़ने लगूं! दूसरी बार भी चमत्कार हो गया और मैं पढ़ने लगा! आज जब मेरी मां मुझे पढ़ते-लिखते देखती है तो बहुत खुश होती है! उन्हें खुश देखकर लगता है, मेरा ईश्वर मेरे लिए मुस्कुरा रहा है!

संदीप देव