प्रस्तावना

जब संदीप देव ने मुझे श्री आशुतोष महाराज जी पर प्रकाशित होने जा रही अपनी पुस्तक ‘आशुतोष महाराजः महायोगी का महारहस्य’ की प्रस्तावना लिखने को कहा तो मुझे विशेष गौरव की अनुभूति हुई। हालांकि लिखने के लिए मुझे पर्याप्त समय नहीं मिल सका, लेकिन फिर भी मैं यह कहना चाहूंगा कि आज की पीढ़ी को भारतीय सनातन परंपरा की जानकारी देने के लिए ऐसी पुस्तकों की रचना बेहद आवश्यक है।

सनातन धर्म में ब्रहमज्ञानी गुरुओं की साकार मौजूदगी, इसकी एक विलक्षणता है! अब्राहमिक मजहबों में पैगम्बर की परंपरा रही है। लेकिन इस्लाम के आखिरी पैगंबर, पैगंबर मोहम्मद के बाद से वह भी आगे नहीं बढ़ सकी है। इसलिए अब्राहमिक मजहब के अनुयायीयों को तत्कालीन समाज, काल व परस्थितियों में दिए गए ज्ञान के अनुरूप आज भी चलना पड़ रहा है। यही कारण है कि कई बार तत्कालीन समाज में जो उचित था, आज वह असंगत मालूम पड़ता है! नए पैगंबरों के उदय नहीं होने के कारण इन मजहबों में सुधरात्मक आंदोलन लगभग असंभव ही है! वैफथलिक धर्म में संत तो होते हैं, परन्तु वहां भी किसी व्यक्ति को मरणोपरांत ही संत घोषित करने की परंपरा है। शरीर में रहते कोई वहां भी संत नहीं हो सकता!

दूसरी तरफ सनातन धर्म में ब्रह्मवेत्ता गुरुओं की एक लंबी परंपरा रही है, जो स्वयं में ही परम सत्य होते हैं! उपनिषदों के ‘अह्म ब्रह्मास्मि’ की घोषणा सनातन धर्म का वह विशिष्ट रूप है, जिसमें हर व्यक्ति को यह बोध कराता है कि उसमें परमात्मा होने की क्षमता है! और यह बोध कोई सद्गुरु ही अपने शिष्यों में जगाता है। यह गुरु कोई सामान्य शिक्षक नहीं होता और ना ही वह कोई ऐसा व्यक्ति होता है जो मात्र ग्रंथों के पाठन और श्लोकों को रटने तक सीमित हो! वह तो अध्यात्म की दुनिया के अनुभव में डूब कर स्वयं साकार ‘ब्रह्म’ हो उठता है और फिर वही ब्रह्मवेत्ता गुरु अपने शिष्यों के लिए ‘ब्रह्म’ की यात्रा का मार्ग प्रशस्त करता है। सद्गुरु का सानिध्य और उसका दिया ज्ञान एक शिष्य में ऐसा विकास और परिवर्तन ला देता है जिसकी बराबरी कोई भी ग्रंथ या किताबी परम्परा नहीं कर सकती है।

श्री आशुतोष महाराज जी भी ऐसे ही एक ब्रह्मकल्प गुरु हैं। उनसे ज्ञान प्राप्त करने, उनका सान्निध्य हासिल करने और उनके अनुभव से प्रकाशित होने वाले शिष्य परम सौभाग्यशाली हैं! श्री आशुतोष महाराज जी अतीन्द्रिय ज्ञान से व्यावहारिक ज्ञान तक के प्रयोग के साकार रूप हैं!

हिंदु संस्थान गरीबों, रोगियों एवं पीड़ितों की उपेक्षा करती हैं इस मिथ्या प्रचार के ठीक विपरीत उनके ‘दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान’ ने विस्तृत सामाजिक प्रकल्पों के जरिए आत्मोन्नति और समाजोन्नति में सक्रिय भागीदारी निभायी है। उनके संस्थान की प्रभावशाली उपस्थिति जगजाहिर है। यह पुस्तक श्री आशुतोष महाराज जी के जीवन एवं उनके ‘ब्रह्मज्ञान’ के द्वारा मानव मात्र में होने वाले परिवर्तन को बेहद सरल भाषा में पाठकों के समक्ष रखती है। पुस्तक श्री महाराज जी के कार्यों की प्रवीणता का समुचित निरूपण करती है। यह उनके उस संत सदृश्य कार्य को समाज के सम्मुख लाती है, जिसमें प्राणघातक धमकियों और विवादों के वावजूद उनके चरैवेति-चरैवेति का संदेश छिपा है!

मै संदीप देव को श्री आशुतोष महराज जी की जीवनी लिखने के लिए बधाई देता हूँ, जिसमें उन्होंने उनके मिशन और समाधि के रहस्य से पर्दा उठाया है! हालाँकि ऐसा हो सकता है कि सामान्यजन, जो ऐसे आध्यात्मिक रहस्यों से अनभिज्ञ है, इस पर न तो विश्वास कर पाए और न ही इसकी सराहना कर पाए, परन्तु महत्व तो केवल इस बात का है कि उनके शिष्य इस पर लगातार आस्था बनाए हुए हैं! एक सद्गुरु का बुनियादी आकलन उनके शिष्यों की क्षमता, उनकी निष और गुरु के ज्ञान के प्रति उनकी कृतज्ञता का पर्यवेक्षण करके ही किया जा सकता है। जिस प्रकार आशुतोष महाराज जी के शिष्यों ने विपरीत परिस्थितयों का सामना करते हुए सेना की तरह संगठित हो कर अपने गुरु के समाधिस्थ देह एवं उनके परम लक्ष्य की रक्षा की है, उससे मैं अत्यंत प्रभावित हूँ। जिस पूर्ण गुरु के ऐसे निषवान शिष्य हों, उनका साथ तो स्वयं देवता भी देते हैं! मैं भी उनके साथ खड़ा हूँ!

राजीव मल्होत्रा,

लेखक प्रिन्सटन, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका

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