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तंत्र-सूत्र आत्म-साधना
अनुक्रम
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भूमिका: ये विधियां क्रांतिकारी हैं
49. कृत्य नहीं, होना महत्वपूर्ण है।
73. निरभ्र आकाश की निर्मलता हो जाओ
74. समस्त अंतरिक्ष को अपने सिर में अनुभव करो
75. अपने को प्रकाश समझो
50. तम अपने भाग्य के मालिक हो
1. क्या अंतस के रूपांतरण के लिए बाह्य की बिलकुल उपेक्षा भूल नहीं है?
2. क्या सभी ध्यान-विधियां भी कृत्य नहीं हैं?
3. सुस्पष्टता के लिए क्या मन का परिपक्व होना जरूरी नहीं है?
4. हम क्यों दुख निर्मित करना जारी रखते हैं?
51. अंधकार की साधना
76. अंधकार में खो जाओ
77. आंतरिक अंधकार को बाहर लाना
78. शुद्ध ध्यान का विकास करो
52. ध्यान को हंसी-खेल बना लो
1. यदि सभी फिलासफी ध्यान-विरोधी हैं तो क्यों बुद्ध पुरुष दार्शनिक मीमांसा की मजबूत श्रृंखला अपने पीछे छोड़ जाते हैं?
2. क्या विचार से समस्याएं हल हो सकती हैं?
3. खुले, निर्मल आकाश को एकटक देखने, प्रज्ञावान सदगुरु के फोटो पर त्राटक करने और अंधकार को अपलक देखने में क्या फर्क है?
4. क्या विज्ञान और धर्म का कहीं मिलन हो सकता है?
5. हम अपने अधैर्य को कैसे वश में करें?
6. आधुनिक विज्ञान को ध्यान में रखकर कृपया अंधकार एवं प्रकाश के संबंध में कुछ और कहें।
53. जब हरि हैं मैं नाहिं
79. अग्नि-ध्यान
80. कल्पना करो कि संपूर्ण जगत जल रहा है।
81. सब कुछ तुममें लीन हो रहा है।
54. समग्र मनुष्यः संतुलित संस्कृति
1. ध्यानी व्यक्ति नकारात्मक तरंगों से अपना बचाव कैसे करे?
2. बोधपूर्ण होने पर भी जो मैं-भाव बना रहता है, उसे कैसे विलीन किया जाए?
3. क्या ऐसी संस्कृति संभव है जो मनुष्य को समग्रतः स्वीकार करे
55. दो विचारों के अंतराल में झांको
82. सोचो मत, अनुभव करो
83. अपना ध्यान अंतरालों पर एकाग्र करो
56. अहंकार की यात्रा और अध्यात्म
1. कृपया बताएं कि कोई शून्यता के साथ जीना कैसे सीखे?
2. क्या सारा आध्यात्मिक प्रयोग झूठे अहंकार के सच्चे रूपांतरण के लिए है?
3. अगर अहंकार झूठ है तो क्या अचेतन मन, स्मृतियों का संग्रह और रूपांतरण की प्रक्रिया, यह सब भी झूठ है?
4. कोई कैसे जाने कि उसकी आध्यात्मिक खोज। अहंकार की यात्रा न होकर एक प्रामाणिक धार्मिक खोज है?
57. स्वतंत्रताः शरीर-मन के पार
84. शरीर की आसक्ति से अपने को दर करो
85. ना-कुछ का विचार
58. अपनी नियति अपने हाथ में लो
1. क्या त्वरित विधियां स्वभाव के, ताओ के विपरीत नहीं हैं?
2. हम अब तक बुद्धत्व को प्राप्त क्यों नहीं हुए?
3. यदि समग्र बोध और समग्र स्वतंत्रता को उपलब्ध होकर प्राकृतिक विकास के करोड़ों जन्मों को टाला जा सकता है तो क्या यह तर्क नहीं किया जा सकता कि ऐसा हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए?
4. क्या अकर्म और विस्तृत बोध पर्यायवाची हैं?
59. स्वयं को असीमतः अनुभव करो
86. अकल्पनीय की कल्पना करो
87. भाव करो : ‘मैं हूं’
60. डरने से मत डरो
1. क्या स्वतंत्रता और समर्पण परस्पर विरोधी नहीं हैं?
2. सूत्र का सिर्फ यह यह है’ पर इतना जोर क्यों?
3. क्या भगवत्ता या परमात्मा संसार का ही हिस्सा है? और वह क्या है जो दोनों के पार जाता है?
4. तंत्र के अनुसार भय से कैसे मुक्त हुआ जाए?
5. ऐसी ध्वनियां सुनने लगा हूं जो बहती नदी या झरने की ध्वनियों जैसी हैं। यह ध्वनि क्या है?
61. तुम्हारा घर जल रहा है।
88. ज्ञाता और ज्ञेय को जानो
89. सब कुछ को अपने में समाहित कर लो।
62. आरंभ से आरंभ करो।
1. मंजिल को पाने की जल्दी’ और ‘प्रयत्न-रहित खेल’ में संगति कैसे बिठाएं?
2. अपने शत्रु को भी अपने में समाविष्ट करने की शिक्षा क्या दमन पर नहीं ले जाती है?
63. परमात्मा को जन्म देना है।
90. आंखों को हलके से छुओ
91. अपने आकाश-शरीर को अनुभव करो
64. आनंद है अचुनाव में
1. अधिक लोग दुख और पीड़ा का जीवन ही क्यों चुनते हैं?
2. हम एक प्रबुद्ध समाज की आशा कैसे कर सकते हैं?
ओशो-एक परिचय
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